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Categories: chemistrychemistry

Chemistry of Actinides in hindi properties introduction ऐक्टिनाइडों का रसायन विज्ञान क्या है

जानिये Chemistry of Actinides in hindi properties introduction ऐक्टिनाइडों का रसायन विज्ञान क्या है ?

ऐक्टिनाइडों का रसायन (Chemistry of Actinides)

 परिचय (Introduction)

ऐक्टिनाइड तत्वों का प्रत्येक ज्ञात समस्थानिक रेडियोसक्रिय है । इस श्रृंखला के केवल प्रथम तीन सदस्य, थोरियम, प्रोटैक्टिनियम तथा यूरेनियम ही प्रकृति में पाये जाते हैं। इस श्रृंखला का यूरेनियम प्रथम तत्व है जिसे 200 से अधिक वर्षों पूर्व पिच ब्लैंड से पृथक किया गया था। थोरियम की दूसरे ज्ञात तत्व के रूप में खोज की गई थी। ये दोनों तत्व प्रकृति में बहुतायत में पाये जाते हैं। प्रोटैक्टिनियम की खोज 1913 में की गई थी। यूरेनियम के पश्चात् आने वाले सभी तत्व कृत्रिम रूप से बनाये जाते हैं। चूंकि यूरेनियम (92)* तत्व का नामकरण यूरेनस (Uranus) उपग्रह के आधार पर किया गया था उसके के कृत्रिम रूप से बनाये गये दो तत्वों को यूरेनस के पश्चात् आने वाले उपग्रहों नेपट्यून (Neptune) तथा प्लूटो (Pluto) के आधार पर क्रमशः नेपट्यूनियम (93) तथा प्लूटोनियम (94) नाम दिया गया। यूरेनियम के बाद आने वाले तत्वों को ट्रांसयूरेनिक तत्व (transurenic element) भी कहते हैं।

ऐक्टिनियम के बाद आने वाले 14 तत्वों की श्रृंखला को ऐक्टिनाइड अथवा ऐक्टिनॉन (actinons) श्रृंखला कहते हैं। इस श्रृंखला को यह नाम इसके तत्वों के गुणों में ऐक्टिनियम से समानता के कारण दिया गया है। ऐक्टिनाइड तत्वों को An द्वारा तथा आयनों को Ann+ द्वारा प्रदर्शित करते हैं।

लैन्थेनाइड एवं ऐक्टिनाइड तत्वों के गुणों में आपस में काफी समानता होती है। लैन्थेनाइड तत्वों के गुणों के आधार पर ऐक्टिनाइड तत्वों, विशेष रूप से ऐमेरिशियम Am (95) के बाद आने वाले तत्वों, के गुणों का सहज ही अनुमान लगाना संभव है । परन्तु इसका अर्थ यह भी नहीं है कि ऐक्टिनाइड तत्वों में लैन्थेनाइड तत्वों के गुणों की पुनरावृत्ति मात्र होती है। लैन्थेनाइड तथा ऐक्टिनाइडों के गुणों में भिन्नताएँ भी पाई जाती हैं। उदाहरण के लिए, ऐक्टिनाइड श्रृंखला के प्रारम्भिक सदस्यों गुण लैन्थेनाइड तत्वों की अपेक्षा संक्रमण धातुओं के गुणों से अधिक मिलते हैं। गुणों में ये भिन्नताएँ मुख्यतः 4f तथा 5∫ कक्षकों का स्थानिक वितरण (spatial distribution) में अन्तर के कारण होती है। 5f कक्षकों के स्थानिक वितरण (spatial extension) 4f कक्षकों की तुलना में अधिक होता है अर्थात् 5f कक्षक त्रिविम में अधिक फैले हुए होते हैं। इसके परिणामस्वरूप, 5f इलेक्ट्रॉनों का परिरक्षण प्रभाव (shielding effect) 4f इलेक्ट्रॉनों की तुलना में कम होता है। अधिक स्थानिक विस्तार के कारण ऐक्टिनाइडों में 5f इलेक्ट्रॉनों की बन्धन ऊर्जाएँ लैन्थेनाइडों में 4f इलेक्ट्रॉनों की अपेक्षा कम होती हैं ।

आवर्त सारणी में स्थान (Positive in periodic table)

जब आवर्त सारणी का पहला दीर्घ रूप (long form) चलन मे आया उस समय ऐक्टिनाइड श्रृखला के केवल कुछ सदस्य, थोरियम (90), प्रोटैक्टिनियम (91) तथा यूरेनियम (92) ही ज्ञात थे। इन तत्वों के रसायन सीरियम (58), प्रेसीओडायमियम (59) तथा नीओडायमियम (60) की अपेक्षा क्रमशः हैफनियम (72), टैन्टालम (73) तथा टंग्स्टेन (74) से अधिक मिलते थे । अतः 1940 से पहले तक Th (90), Pa (91) तथा U(92) को साधारण संक्रमण श्रृंखला के सदस्य मानकर क्रमश: IVB, VB तथा VIB समूहा में रखा गया था। परन्तु 1940 में नैप्टूनियम (93) तथा प्लूटोनियम (94) की खोज के पश्चात् इस स्थिति में परिवर्तन हुआ क्योंकि क्रमानुसार इन तत्वों को VII B वर्ग में रीनियम (75) तथा VIII B वर्ग में आस्मियम (76) के नीचे रखा जाना चाहिए था। लेकिन ये दोनों तत्व संक्रमण धातुओं के तत्वों रीनियम (Re) एवं ऑस्मियम (Os) से भिन्न गुण प्रदर्शित करते हैं। अतः 1944 में जी. टी. सीबोर्ग (G.T.Seaborg) ने लैन्थेनाइड श्रृंखला के समान ही द्वितीय अन्तर्भूत संक्रमण श्रृंखला (second inner transition series) के अस्तित्व का विचार प्रस्तुत किया। इसके बाद ऐमेरिशियम (95) क्यूरियम (96) तथा अन्य भारी ऐक्टिनाइड तत्वों की खोज हुई जिनका रसायन लैन्थेनाइड तत्वों के रसायन से काफी मिलता था। इन तत्वों की खोज के बाद ऐक्टिनियम (89) के पश्चात् आने वाले 14 तत्वों ( 90-103) को विधिवत् लैन्थेनाइड श्रृंखला के समानान्तर द्वितीय अन्तर्भूत श्रृंखला का सदस्य मान लिया गया। ऐक्टिनाइडों को लैन्थेनाइडों के समान IIIB तथा IV B समूहों के मध्य रखा जाना चाहिए लेकिन आवर्त सारणी के वर्तमान स्वरूप में यह सम्भव नहीं है। अतः 14 ऐक्टिनाइड तत्वों को लैन्थेनाइड तत्वों के साथ ही अलग से आवर्त सारणी मुख्य भाग के नीचे स्थान दिया गया है। इलेक्ट्रॉनिक विन्यास के आधार पर दोनों श्रृंखलाओं के तत्व संयुक्त रूप से “f ब्लॉक तत्वों” के नाम से जाने जाते हैं । अन्तर के लिए लैन्थेनाइड तत्वों को “4f श्रृंखला” तथा ऐक्टिनाइड तत्वों को ” 5f श्रृंखला” भी कहा जाता है।

सामान्य विशिष्टताएँ (General Features)

ऐक्टिनाइड तत्वों की सामान्य विशिष्टाताओं का विवेचन निम्न प्रकार है :

 इलेक्ट्रॉनिक विन्यास (Electronic Configuration)

छठे आवर्त के अन्तिम सदस्य रेडॉन Rn ( 86 ) के पश्चात् 5 f कक्षकों की अभेदनशील प्रकृति (nonpenetrating nature) के कारण इनकी ऊर्जा बहुत धीरे-धीरे कम होती है जबकि 7s कक्षक की ऊर्जा तेजी से कम होती है। फलतः 5f तथा 6d कक्षक उच्चतर ऊर्जा के तथा 7s कक्षक निम्नतर ऊर्जा के हो जाते हैं। अतः फ्रेंशियम (87) में आगन्तुक इलेक्ट्रॉन 7s कक्षक में प्रवेश करता है। 7s कक्षक रेडियम (88) में पूर्ण रूप से भर जाता है। नाभिकीय आवेश बढ़ने के साथ ही 6d तथा 5 कक्षकों की ऊर्जा कम होने लगती है, परन्तु 5 का स्थानिक विस्तार (spatial extension) अधिक होने के कारण इसकी ऊर्जा 6d की तुलना में धीरे-धीरे कम होती है। अतः ऐक्टिनियम (89) में 6d कक्षकों की ऊर्जा 7s से कम हो जाती है जिसके कारण आगामी इलेक्ट्रॉन 6d कक्षकों में स्थान ग्रहण करता है। 5f कक्षकों की ऊर्जा में, इनके अधिक स्थानिक विस्तार के कारण, इतनी धीरे-धीरे कमी होती हैं कि एक इकाई नाभिकीय आवेश और बढ़ने के पश्चात् भी थोरियम (90) में 5f की ऊर्जा 6d से अधिक ही रहती है जैसा कि चित्र 5.1 में दिखाया गया है। इसके फलस्वरूप थोरियम का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास [Rn] 6d27s 2 होता है। नाभिकीय आवेश के एक इकाई और बढ़ने के बाद Pa (91) में 5f की ऊर्जा 6d से कम हो जाती है तथा अगला इलेक्ट्रॉन 5f में प्रवेश करता है । परन्तु ऐक्टिनाइड श्रृंखला के प्रारम्भिक तत्वों में 5f तथा 6d स्तरों के मध्य ऊर्जा अन्तर इतना कम होता है कि 6d स्तर में कम से कम एक इलेक्ट्रॉन उपस्थित रहता है। फलतः ऐक्टिनाइड श्रृंखला के प्रारम्भिक सदस्यों (Ac से U) की निम्नतम अवस्था में 6d कक्षकों में एक अथवा दो इलेक्ट्रॉन पाए जाते हैं। वास्तव में, इन तत्वों की निम्नतम अवस्था एवं विभिन्न ऑक्सीकरण अवस्थाओं के लिए कोई एक निश्चित इलेक्ट्रॉनिक विन्यास सुझाना कठिन है। उदाहरण के लिए, प्रोटेक्टिनियम (91) के लिए दो इलेक्ट्रॉनिक विन्यासों [Rn]5f26d1 7s2 तथा [Rn]5f16d27s2 में से सही अथवा गलत का निर्णय कर पाना संभव नहीं है। यूरेनियम के बाद आने वाले तत्वों में 5/स्तर अधिक स्थायी हो जाता है, जिससे अब नए जुड़ने वाले इलेक्ट्रॉन 5f में प्रवेश करते हैं । ऐक्टिनाइड तत्वों के इलेक्ट्रॉनिक विन्यास सारणी 7.1 में दिए गए हैं।

सारणी 7.1 के अध्ययन से पता चलता है कि क्यूरियम (96) तथा संभवतः बर्केलियम (97) में 5f कक्षकों के भरे जाने के क्रम में रूकावट आती है तथा इलेक्ट्रॉन 6d कक्षक में फिर से प्रवेश करता है। इसका कारण यह है कि 5fतथा 6d इलेक्ट्रॉनों की स्थितिज ऊर्जा मे विशेष अन्तर नहीं होता तथा परमाणु में स्थायी अर्ध पूर्ण विन्यास बनाए रखने | Cm, 5f7 6d1 7s2], [Bk, 5f86d1 7s2] की प्रवृत्ति पायी जाती है ।

ऑक्सीकरण अवस्थाएँ (Oxidation States)

लैन्थेनाइडों एवं ऐक्टिनाइडों के रसायन में मुख्य अन्तर यह है कि सभी लैन्थेनाइड +3 ऑक्सीकरण अवस्था में स्थायी यौगिकों का निर्माण करते हैं, जबकि ऐक्टिनाइड श्रृंखला के सत्व, विशेष रूप से ऐमेरिशियम तक, अपने यौगिकों में बहुत सी ऑक्सीकरण अवस्थाएँ प्रदर्शित करते हैं।

थोरियम एवं सम्भवयता प्रोटैक्टिनियम को छोड़कर अन्य सभी ऐक्टिनाइड तत्व + 3 ऑक्सीकरण अवस्था प्रदर्शित करते हैं। एक ओर लैन्थेनाइड तत्वों की यह (+3) सर्वाधिक स्थायी अवस्था है वहीं दूसरी ओर हलके ऐक्टिनाइड तत्वों की निश्चय ही यह सर्वाधिक स्थायी अवस्था नहीं होती। संक्रमण तत्वों की भांति हलके ऐक्टिनाइड तत्व बहुत सी ऑक्सीकरण अवस्थाएँ प्रदर्शित करते हैं । इस प्रकार ऐक्टिनाइड श्रृंखला के प्रारम्भिक सदस्य, लैन्थेनाइडों की तुलना में, संक्रमण धातुओं से अधिक मिलते हैं जबकि भारी ऐक्टिनाइड तत्व लैन्थेनाइडों के अधिक निकट हैं क्योंकि इनकी भी +3 सामान्य ऑक्सीकरण अवस्था तथा +2 व +4 असमान्य ऑक्सीकरण अवस्थाएँ हैं। इस कारण दोनों प्रकार के ऐक्टिनाइडों की ऑक्सीकरण अवस्थाओं का विवेचन अलग-अलग किया गया है।

(i) हलके ऐक्टिनाइड तत्व : हलके ऐक्टिनाइड तत्वों में 5f कक्षकों के इलेक्ट्रॉन 4f इलेक्ट्रॉनों जितने परिरक्षित (shielded) नहीं होते। इस बात को समझने के लिए हमें पहले 4f तथा 5f कक्षकों के अन्तर को समझाना होगा। 5fकक्षकों में एक त्रिज्या नोड (radial node) पायी जाती है जबकि 4f कक्षकों में कोई त्रिज्या नोड नहीं हैं। इसके कारण 5f कक्षक त्रिविम में अधिक फैले होते हैं। साथ ही इनकी ऊर्जा 4f भी काफी अधिक होती है जिसके कारण इन तत्वों में 5fतथा 6d स्तर लगभग समान ऊर्जा के होते हैं। अतः लैन्थेनाइड तत्वों के विपरीत ऐक्टिनाइड तत्व अपने 5f इलेक्ट्रॉनों का भी प्रयोग बन्ध बनाने में करके उच्च ऑक्सीकरण अवस्था प्रदर्शित करते हैं। चूँकि इन तत्वों में 7s, 6d तथा 5f स्तरों की ऊर्जा लगभग समान होती है, इसलिए 5∫इलेक्ट्रॉन भी 6d तथा 7s इलेक्ट्रॉनों की जितनी ही आसानी से निकल जाते हैं जिनके कारण ये तत्व 7s, Gd और 5∫कक्षकों में उपस्थित कुल इलेक्ट्रॉनों की संख्या के बराबर उच्चतम ऑक्सीकरण अवस्थाएँ प्रदर्शित करते हैं (सारणी 5.2 ) ।

ऐक्टिनाइड श्रृंखला में हलके तत्वों की उच्चतम अवस्थाएँ ही उनकी सर्वाधिक स्थायी अवस्थाएँ हैं। इनमें इनके 5/कक्षक रिक्त होते हैं। इस प्रकार Ac. Th, Pa तथा U की उच्चतम अवस्थाएँ, अतः सर्वाधिक

स्थायी अवस्थाएँ, क्रमशः + 3, 4, + 5 तथा +6 होती हैं। इस गुण (उच्च एवं परिवर्ती ऑक्सीकरण अवस्थाओं) के कारण ये धातुएँ क्रमशः IIIB, IVB, VB तथा VIB समूहों के तत्वों के समान कुछ रासायनिक गुण प्रदर्शित करती हैं। यही कारण था की 1940 से पूर्व इन तत्वों को उपर्युक्त अनुरूपी समूहों के सदस्यों के साथ रखे जाने का प्रस्ताव किया गया था ।

(i) भारी ऐक्टिनाइड तत्व : मध्यवर्ती ऐक्टीनाइडों के पश्चात् जैसे-जैसे 5f कक्षकों में इलेक्ट्रॉन प्रवेश करते जाते हैं, वैसे-वैसे बढ़ते हुए नाभिकीय आवेश के कारण 5f कक्षकों में भी 4f कक्षकों की भाँति संकुचन बढ़ता जाता है। अब 5f कक्षक 6s तथा 6p कक्षकों के नीचे चले जाते हैं । फलतः, किसी ऐक्टनाइड परमाणु के 5f इलेक्ट्रॉन किसी अन्य परमाणु से पारस्परिक क्रिया हेतु कम ही उपलब्ध हो पाते हैं क्योंकि 5 कक्षक उसी परमाणु के बाह्यतम 6s तथा 6p कक्षकों द्वारा भली-भाँति परिरक्षित होते. हैं। साथ ही 5fतथा बाह्य कक्षकों (6d तथा 7s) के मध्य ऊर्जा अन्तर भी बढ़ता जाता है (चित्र 5.2) क्योंकि 6ad कक्षकों की ऊर्जा सभी ऐक्टीनाइड तत्वों में स्थिर सी रहती है जबकि 5f कक्षक अन्दर की ओर धंसते चले जाते हैं। इस कारण U के बाद के तत्वों में 5f कक्षकों की भागीदारी कम होती जाती है। फलतः इनकी ऊर्जा कम होती जाती है तथा 5 कक्षकों का बन्धन में भाग लेना कठिन होता जाता है। इसके फलस्वरूप सर्वाधिक स्थायी ऑक्सीकरण अवस्था उच्चतम ऑक्सीकरण अवस्था न होकर धीरे-धीरे घटती जाती है। उदाहरण के लिए, U के बाद Np, Pu, तथा Am की स्थायी ऑक्सीकरण अवस्थाएँ क्रमशः + 5, +4 तथा + 3 होती हैं । तथापि, ये तीनों ही तत्व इन स्थायी ऑक्सीकरण अवस्थाओं के अतिरिक्त अन्य ऑक्सीकरण अवस्थाएँ भी प्रदर्शित करते हैं। Np की +7 ऑक्सीकरण अवस्था संभवतया रिक्त 5∫कक्षक विन्यास (5f0) को प्राप्त करने की तथा Pu की + 7 ऑक्सीकरण अवस्था 5f0 के निकट पहुंचने के प्रयास का परिणाम कहा जा सकता है।

ऐमेरिशियम के बाद आने वाले भारी ऐक्टिनाइड तत्वों में + 3 ऑक्सीकरण अवस्था लैन्थेनाइड तत्वों की भांति ही स्थायी हो जाती है। इसके अतिरिक्त अन्य ऑक्सीकरण अवस्थाएँ तब ही पाई जाती हैं जब कोई विशिष्ट इलेक्ट्रॉनिक विन्यास, जैसे कि अर्ध-पूर्ण अथवा पूर्ण, प्राप्त होता हो, अर्थात् उस आयन का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास f7 अथवा f14 हो जाए। उदाहरणार्थ, बर्केलियम की + 4 ऑक्सीकरण अवस्था 5f7 विन्यास के कारण, तथा क्यूरियम की + 4 ऑक्सीकारण अवस्था (5f6 ) अर्ध-पूर्ण 5f7 इलेक्ट्रॉनिक विन्यास प्राप्त करने की चेष्टा का परिणाम है। इसी कारण Bk (IV) की तुलना में Cm (IV) अस्थायी होता है, यद्यपि ये दोनों ही अपनी-अपनी +3 अवस्था से कम स्थायी होते हैं ।

ऐमेरिशियम तथा कुछ भारी ऐक्टिनाइड तत्व (Cf, Es, Fm Md तथा No) + 3 के अतिरिक्त + 2 ऑक्सीकरण अवस्था भी प्रदर्शित करते हैं। Am की + 2 ऑक्सीकरण अवस्था इसमें पाए जाने वाले अर्ध-पूर्ण कक्षक (5f7) के स्थायित्व का परिणाम होती है जबकि Cf से No तक के तत्वों में + 2 ऑक्सीकरण अवस्था का पाया जाना 5f कक्षकों के बढ़ते हुए स्थायित्व के कारण होता है

जैसा कि प्रारम्भ में लिखा जा चुका है, नाभिकीय आवेश बढ़ने के साथ-साथ 5f कक्षकों का स्थायित्व तथा 5 एवं 7s कक्षकों के बीच का अन्तर बढ़ता जाता है। वास्तव में, ऐक्टिनाइड श्रृंखला के अन्तिम तत्वों में 5f कक्षकों का स्थायित्व लैन्थेनाइड श्रृंखला के अन्तिम तत्वों में 4f कक्षकों के स्थायित्व की तुलना से अधिक होता है जिसके कारण 5f से इलेक्ट्रॉन निकालने के लिए आवश्यक ऊर्जा के मानों में वृद्धि होती जाती है। No में यह ऊर्जा इतनी अधिक होती है कि इसकी + 2 ऑक्सीकरण अवस्था + 3 अवस्था से अधिक स्थायी होती है। इसके अतिरिक्त No (II) के स्थायित्व में इस अवस्था में पूर्ण भरे हुए 5 कक्षकों का योगदान भी महत्वपूर्ण है जिसके कारण No के अगने तत्व Lr में केवल + 3 ऑक्सीकरण अवस्था ही पायी जाती है जो 6d7.52 इलेक्ट्रॉनों के निकल जाने से प्राप्त होती है।

हम जानते हैं कि तीन से अधिक इलेक्ट्रॉन निकालने के लिए अत्यधिक ऊर्जा की आवश्यकता होती है। अतः उच्च ऑक्सीकरण अवस्था में ऐक्टिनाइड तत्व सहसंयोजी बन्ध बनाते हैं। 5/ कक्षक अपनी लगभग समान ऊर्जा के कक्षकों 6d एवं 7s के साथ संकरित होकर sf, sf3, fsd2 एवं f2 sd3 संकर कक्षक बनाते हैं। इनकी ज्यामितियाँ क्रमशः सरल रेखीय, चतुष्फलकीय, वर्णाकार एवं अष्टफलकीय होती है। उदाहरणार्थ, PuO22, NpCI4 तथा UCI6 में क्रमश: sf, sf3 एवं f2sd3 संकरण पाया जाता है।

 चुम्बकीय गुण (Magnetic Properties)

द्वितीय श्रृंखला के सदस्य ऐक्टिनाइड तत्वों के चुम्बकीय गुण प्रथम f श्रृंखला के लैन्थेनाइडों के गुणों के समान ही अपेक्षित हैं, क्योंकि लैन्थेनाइड आयनों की भाँति ऐक्टिनाइड आयनों में भी चुम्बकत्व के लिए उत्तरदायी अयुग्मित इलेक्ट्रॉन /कक्षकों में पाए जाते हैं।

परन्तु जहाँ एक और लैन्थेनाइड आयनों में 4 f इलेक्ट्रॉन 5s25p6 कक्षकों के नीचे पाए जाते हैं तथा बाह्य लिगण्ड प्रभाव से भली-भांति परिरक्षित होते हैं वहीं दूसरी ओर ऐक्टिनाइड आयनों में 5 कक्षक अपने अधिक स्थानिक विस्तार के कारण 6s2 6p6 कक्षकों से बाहर की ओर फैल रहते हैं । तथापि, ये प्रथम संक्रमण श्रृंखला में 3d कक्षकों की भाँति पूर्णतः सतह पर भी नहीं आ जाते। वास्तव में, बहुत ऍक्टिनाइडों के 5f कक्षकों की बन्धन में भागीदारी प्रयोगों द्वारा सिद्ध की जा चुकी है। परिणाम स्वरूप, ऐक्टिनाइड आयनों में 5f कक्षक न तो लैन्थेनाइड आयनों के 4f कक्षकों की भाँति बाह्य कक्षकों से लगभग पूर्णतः परिरक्षित होते हैं और न ही संक्रमण तत्वों की भाँति आयन की सतह पर एकदम बाहर स्थित रहकर बंधन में लगभग पूर्णरूपेण शामिल रहते हैं। दूसरे शब्दों में, 5f कक्षक आंशिक रूप से परिरक्षित रहते हुए (लैन्थेनाइडों से कुछ-कुछ समानता ) लिगण्ड कक्षकों से अतिव्यापन कर बन्ध निर्माण में भाग लेते हैं । अत ऐक्टिनाइड आयनों के सकल कोणीय आघूर्ण के निर्धारण में कक्षीय आघूर्ण का योगदान (जिसे L द्वार) मापते हैं) संक्रमण तत्वों की भाँति नगण्य न होकर लैन्थेनाइड आयनों की तुलना में कम अवश्य होता है । अत: सकल कोणीय आघूर्ण, जो कि सकल चक्रण आघूर्ण तथा सकल कक्षीय आघूर्ण का परिणाम है, की प्रासंगिकता ऐक्टिनाइड आयनों के लिए कम होती है जिसके कारण ऐक्टिनाइड की जा सकती है। जैसा कि चित्र 5.3 से स्पष्ट है, ऐक्टिनाइड आयनों की चुम्बकीय मोलर प्रवृत्ति (molar आयनों के चुम्बकीय आघूर्ण की गणना लैन्थेनाइड आयनों के लिए प्रयुक्त व्यंजक (expression) से नहीं ) के मान समान अयुग्मित इलेक्ट्रॉन संख्या वाले लैन्थेनाइड आयनों की मोलर प्रवृत्ति से कम होते है यद्यपि दोनों में मात्रात्मक समानता होती है

उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि ऐक्टिनाइड आयनों के चुम्बकीय आघूर्ण की गणना लैन्थेनाइड आयनों की तुलना में जटिल है । ऐक्टिनाइड आयनों के चुम्बकीय आघूर्ण की गणना जटिल होने का ‘एक अन्य कारण यह भी है कि 5f तथा 6d कक्षकों के मध्य ऊर्जा का अन्तर इतना कम होता है कि इसकी साधारण बन्ध ऊर्जा द्वारा भरपाई हो सकती है। अतः ऐक्टिनाइड आयनों में इलेक्ट्रॉन 5f से 6d कक्षकों में आसानी से स्थानान्तरित हो जाते हैं जिसके कारण अयुग्मित इलेक्ट्रॉनों की 5f तथा 6d कक्षकों में पाए जाने की सम्भावना रहती है । फलतः गणनाएँ जटिल एवं श्रमकारी हो जाती है।

ऐक्टिनाइड संकुचन (Actinide contraction)

लैन्थेनाइड आयनों की भाँति ही ऐक्टिनाइड आयनों के आकार में भी परमाणु क्रमांक बढने पर कमी होती है। Ac3+ से Cm3+ तक जाने पर त्रिज्या 1.11 से 0.98Á हो जाती है ( सारणी 5.3 ) । चतुर्धनीय- Ac4 + आयनों की त्रिज्या में भी इसी प्रकार की कमी पाई जाती है।

परमाणु क्रमांक बढ़ने के साथ ऐक्टिनाइड आयनों के आकार में निरन्तर होने वाली कमी ऐक्टिनाइड संकुचन कहलाती है। सारणी 5.3 में दिये गये त्रिज्या के मानों को ध्यान से देखने पर पता चलता है कि हलके ऐक्टिनाइड तत्वों की त्रिज्या मे अन्तर भारी तत्वों की त्रिज्या में होने वाले अन्तर से अधिक है। आरम्भिक ऐक्टिनाइड तत्वों में 5f कक्षकों का त्रिविमिय विस्तार अधिक होने से परिरक्षण प्रभाव कम होता है जिससे इसमें जुड़ने वाला इलेक्ट्रॉन बढ़े हुए नाभिकीय आवेश से बाह्य इलेक्ट्रॉनों को पूर्णतः परिरक्षित नहीं कर पाता है जबकि भारी ऐक्टिनाइड तत्वों में 5f कक्षक नाभिकीय आवेश बढ़ने के साथ साथ सिकुड़ जाते हैं जिससे इनका परिरक्षण प्रभाव आरम्भिक ऐक्टिनाइड तत्वों से कुछ अधिक होता हैं। अतः इन तत्वों में इलेक्ट्रॉन बढ़ने पर प्रभावी नाभिकीय आवेश में तुलनात्मक रूप से वृद्धि कम होती है। फलस्वरूप आयनों के आकार में कमी अपेक्षाकृत कम होती है ।

 रंग एवं वर्ण क्रम (Colour and Spectrum)

ऐक्टिनाइडों के यौगिक समान्यतः रंगीन होते हैं तथा इनके रंग 5f कक्षकों में उपस्थित इलेक्ट्रॉनों की संख्या पर निर्भर करते हैं। वे आयन जिनमें रिक्त 5f कक्षक (5f0), अर्धपूर्ण 5f कक्षक (5f7) एवं पूर्ण भरे हुए 5∫कक्षक (5∫14) होते हैं, रंगहीन होते हैं। वे आयन जिनमें 5 कक्षकों में 2 से 6 इलेक्ट्रॉन पाये जाते हैं, रंगीन होते हैं। इन आयनों के रंग का कारण है निम्न ऊर्जा के 5f अयुग्मित इलेक्ट्रॉन द्वारा दृष्य क्षेत्र से ऊर्जा का अवशोषण करके उच्च ऊर्जा के 5f कक्षक में स्थानान्तरण (f-/ संक्रमण) सारणी 5.3 में विभिन्न ऐक्टिनाइड आयनों के रंग दिये गये हैं । ऐक्टिनाइडों का अवशोषण स्पेक्ट्रम लैन्थेनाइडों के अवशोषण स्पेक्ट्रम की भाँति ही सकरी पट्टियों ( narrow bands ) का बना होता है।

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