परम शून्य तापमान (ताप) की परिभाषा क्या है , अर्द्धचालको के प्रकार (types of semiconductor in hindi) :-
अर्द्धचालक (semiconductor) : अर्द्ध चालक पदार्थो की बैण्ड संरचना कुचालको के समान ही होती है | जिसमे वर्जित ऊर्जा अंतराल का मान कुचालको की तुलना में बहुत कम होता है |अधिकांश अर्द्धचालक पदार्थो के लिए वर्जित ऊर्जा अन्तराल Eg का मान लगभग 1 eV के आस पास होता है |
अर्द्धचालक पदार्थो में परम शून्य तापमान पर इनके संयोजी बैंड के सभी ऊर्जा स्तर पूरी तरह से भरे होते है जबकि चालन बैण्ड पूरी तरह से रिक्त होता है |
परम शून्य तापमान पर संयोजी बैंड का कोई भी इलेक्ट्रॉन ऊर्जा ग्रहण करके चालन बैण्ड में नहीं जा सकता इसी कारण परमशून्य ताप मान पर अर्धचालक पदार्थ कुचालक की तरह व्यवहार करते है |
जब अर्द्धचालकों का तापमान कमरे के सामान्य ताप अथवा उससे अधिक किया जाता है तब संयोजी बैण्ड के इलेक्ट्रॉन तापीय ऊर्जा को ग्रहण करके चालन बैण्ड के ऊर्जा स्तरों में जाने लगते है , चालन बैण्ड में जाने के बाद यह इलेक्ट्रॉन स्वतंत्रता पूर्वक गतिशील हो सकते है , तथा चालन में योगदान कर सकते है |
चालन बैंड में तापीय ऊर्जा के कारण पहुचने वाले इन इलेक्ट्रॉन की संख्या चालक पदार्थो की तुलना में कम जबकि कुचालको की तुलना में अधिक होती है |
यही कारण है कि अर्द्धचालको की चालकता चालको से कम तथा कुचालको से अधिक होती है। इसी प्रकार इनकी प्रतिरोधकता कुचालको से कम तथा चालकों से अधिक होती है।
अर्द्धचालको के प्रकार (types of semiconductor)
मुख्यतया अर्द्धचालक निम्न दो प्रकार के होते है –
- नैज (शुद्ध) अर्द्धचालक
- अपद्रव्यी (अशुद्ध) अर्द्धचालक
- नैज (शुद्ध) अर्द्धचालक:
परिभाषा : वे अर्द्धचालक जिनमे उपस्थित सभी परमाणु एक ही प्रकार के हो वे नैज अर्द्धचालक कहलाते है।
इस प्रकार के अर्द्धचालकों में अन्य परमाणुओं की अशुद्धि (अपद्रव्य) नहीं मिलाया जाता है।
उदाहरण के लिए Si (सिलिकन) अथवा Ge (जर्मेनियम) नैज प्रकार के अर्द्ध चालक होते है।
सिलिकन तथा जर्मेनियम के अर्द्धचालको में इनके परमाणुओं का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास निम्न प्रकार से होता है –
Si (14) = 1S2 2S2 2P6 3S2 3P2
Ge (32) = 1S2 2S2 2P6 3S2 3P6 3d10 4S2 4P2
नेज प्रकार के अर्द्धचालक में उपस्थित Si अथवा Ge चतुष्संयोजी होता है , जिसके कारण इनकी संरचना समचतुष्फलकीय रूप में बनती है।
प्रत्येक Si परमाणु अपने आसपास उन चार Si परमाणुओं से घिरा होता है , इस कारण प्रत्येक Si कुल चार सह्संयोजी बंध बनाता है। हर एक संयोजी बंध में कुल दो इलेक्ट्रॉन उपस्थित होते है।
परम शून्य तापमान पर सभी इलेक्ट्रॉन सहसंयोजी बन्धो में बंधे होते है , कोई भी इलेक्ट्रॉन इस ताप पर मुक्त नहीं होता अर्थात इलेक्ट्रोनो के द्वारा चालन प्रदर्शित नहीं होता , इसी कारण नैज अर्द्धचालक परम शून्य तापमान पर कुचालक की तरह व्यवहार प्रदर्शित करते है।
परमशून्य तापमान पर नेज Si अर्द्धचालक की क्रिस्टल संरचना निम्न प्रकार से होती है –
परम शून्य तापमान के बाद ताप बढाने पर क्रिस्टल की तापीय ऊर्जा में वृद्धि होने लगती है। तापीय उर्जा में वृद्धि के कारण क्रिस्टल में कुछ सहसंयोजी बंध के इलेक्ट्रॉन ऊर्जा ग्रहण करके बंध तोड़ देते है। प्रत्येक एक सहसंयोजी बंध के टूटने पर एक इलेक्ट्रॉन मुक्त होता है तथा उस इलेक्ट्रॉन के स्थान पर एक रिक्त स्थान बनता है , इस रिक्त स्थान को प्रभावी रूप में धनात्मक आवेश माना जाता है जिसके आवेश इलेक्ट्रॉन के आवेश के बराबर होता है इसे हॉल कहते है। तापमान को और अधिक बढाये जाने पर सहसंयोजी बंध और अधिक टूटने लगते है।
नेज प्रकार के अर्द्धचालकों में बन्धो के टूटने से बनने वाले मुक्त इलेक्ट्रॉन तथा हॉलो की संख्या एक समान होती है , दूसरे शब्दों में मुक्त इलेक्ट्रॉन की सांद्रता का मान नैज अर्द्धचालको के लिए हॉलों की सान्द्रता के बराबर होता है।
n = p = ni
यहाँ n = मुक्त इलेक्ट्रोनो की सांद्रता
P = हॉल की सांद्रता
ni = नैज वाहक की सांद्रता
नोट : किसी भी अर्द्धचालक के लिए किसी भी विशेष तापमान पर उसमे उपस्थित इलेक्ट्रोनो की सांद्रता n तथा होलो की सांद्रता p का गुणनफल हमेशा नियत रहता है। यह गुणनफल नेज वाहक सांद्रता के वर्ग के बराबर होता है।
अर्थात n x p = ni2
नेज अर्द्ध चालक के तापमान को बढाने पर तापीय ऊर्जा के कारण बंधो के टूटने से इलेक्ट्रॉन एवं होल प्राप्त होते है।
परमशून्य तापमान से अधिक तापमान पर क्रिस्टलीय संरचना निम्न प्रकार से दिखाई जाती है –
नेज प्रकार के अर्द्धचालको में परम शून्य तापमान से अधिक ताप पर चालन बैण्ड में जितने मुक्त इलेक्ट्रॉन उपस्थित होते है उतनी ही संख्या के होल संयोजी बैंड में दिखाए जाते है।