नैज (शुद्ध) अर्द्धचालक , अपद्रव्यी (अशुद्ध) अर्द्धचालक , extrinsic semiconductor and intrinsic semiconductor

अर्धचालको के प्रकार (types of semiconductor) : मुख्यतया अर्द्धचालक निम्न दो प्रकार के होते है –

(1) नैज (शुद्ध) अर्द्धचालक (intrinsic semiconductor)

(2) अपद्रव्यी (अशुद्ध) अर्द्धचालक (extrinsic semiconductor)

(1) नैज (शुद्ध) अर्द्धचालक :

परिभाषा : वे अर्द्ध चालक जिनमे उपस्थित सभी परमाणु एक ही प्रकार के हो वे नैज अर्धचालक कहलाते है।

इस प्रकार के अर्द्धचालको में अन्य परमाणुओं की अशुद्धि (अपद्रव्य) नहीं मिलाया जाता है।

उदाहरण के लिए Si (सिलिकन) अथवा Ge (जर्मेनियम) नैज प्रकार के अर्धचालक होते है।

सिलिकन (Si) तथा जर्मेनियम (Ge) के अर्द्धचालकों में इनके परमाणुओं का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास निम्न प्रकार से होता हैं –

Si (14) : 1S2 2S2 2P6 3S2 3P2

Ge (32) : 1S2 2S2 2P6 3S2 3P6 3d10 4S2 4P2

नेज प्रकार के अर्धचालक में उपस्थित Si अथवा Ge चतुष्संयोजी होता है जिसके कारण इनकी संरचना समचतुष्फलकीय रूप में बनती है।

प्रत्येक Si परमाणु अपने आस-पास उन चार Si परमाणुओं से घिरा होता है , इस कारण प्रत्येक Si कुल चार सहसंयोजी बंध बनाता है।  हर एक संयोजी बंध में कुल दो इलेक्ट्रॉन उपस्थित होते है।

नैज प्रकार के अर्द्धचालक में उपस्थित Si अथवा Ge चतुष्सयोजी होता है जिसके कारण इनकी संरचना समचतुष्फलकीय रूप में बनती है।

प्रत्येक Si परमाणु अपने आस-पास उन चार Si परमाणुओं से घिरा होता है , इस कारण प्रत्येक Si कुल चार सहसंयोजी बन्ध बनाता है।  हर एक संयोजी बंध में कुल दो इलेक्ट्रॉन उपस्थित होते है।

परम शून्य तापमान पर सभी इलेक्ट्रॉन सहसंयोजी बन्धो में बंधे होते है।  कोई भी इलेक्ट्रॉन इस ताप पर मुक्त नहीं होता अर्थात इलेक्ट्रॉनो के द्वारा चालन प्रदर्शित नहीं होता इसी कारण नैज अर्धचालक परम शून्य तापमान पर कुचालक की तरह व्यवहार प्रदर्शित करते है।

परम शून्य ताप मान पर नैज Si (सिलिकन) अर्द्धचालक की क्रिस्टल संरचना निम्न प्रकार से होती है।

परम शून्य तापमान के बाद ताप बढ़ाने पर क्रिस्टल की तापीय ऊर्जा में वृद्धि होने लगती है।  तापीय ऊर्जा में वृद्धि के कारण क्रिस्टल में कुछ सह संयोजी बंध के इलेक्ट्रॉन ऊर्जा ग्रहण करके बंध तोड़ देते है।  प्रत्येक एक सहसंयोजी बन्ध के टूटने पर एक इलेक्ट्रॉन मुक्त होता है तथा उस इलेक्ट्रोन के स्थान पर एक रिक्त स्थान बनता है , इस रिक्त स्थान को प्रभावी रूप में धनात्मक आवेश माना जाता है जिसके आवेश इलेक्ट्रॉन के आवेश के बराबर होता है इसे हॉल कहते है।  तापमान को ओर अधिक बढाये जाने पर सहसंयोजी बंध और अधिक टूटने लगते है।

नैज प्रकार के अर्द्धचालको में बन्धो के टूटने से बनने वाले मुक्त इलेक्ट्रॉन तथा हॉलो की संख्या एक समान होती है।

दूसरे शब्दों में मुक्त इलेक्ट्रॉन की सांद्रता का मान नैज अर्द्धचालको के लिए हॉलों की सांद्रता के बराबर होता है।

अर्थात [ n = P = ni ]

यहाँ n = मुक्त इलेक्ट्रॉनो की सान्द्रता

P = होलो की सान्द्रता

n= नैज वाहक की सान्द्रता

नोट : किसी भी अर्द्ध चालक के लिए किसी भी विशेष तापमान पर उसमे उपस्थित इलेक्ट्रॉनों की सांद्रता n तथा होलो की सांद्रता P का गुणनफल नियत रहता है यह गुणनफल नेज वाहक सान्द्रता के वर्ग के बराबर होता है।

अर्थात n x P = ni2

नेज अर्द्ध चालक के तापमान को बढ़ाने पर तापीय ऊर्जा के कारण बन्धो के टूटने से इलेक्ट्रॉन एवं होल प्राप्त होते है।

परमशून्य तापमान से अधिक तापमान पर क्रिस्टलीय संरचना निम्न प्रकार से दिखाई जाती है।

नेज प्रकार के अर्द्धचालको के लिए परम शून्य तापमान (T = 0K) तथा उससे अधिक तापमान T > 0K पर बैण्ड संरचना निम्न प्रकार से दिखाई जाती है।

नैज अर्द्धचालकों में परम शून्य तापमान से अधिक ताप पर चालन बैंड में जितने मुक्त इलेक्ट्रॉन उपस्थित होते है उतनी ही संख्या के हॉल संयोजी बैण्ड में दिखाएँ जाते है।

प्रश्न 1 : किसी भी नेज अर्द्धचालक के लिए उसमे उपस्थित नेज वाहक सान्द्रता किन-किन कारको पर निर्भर करती है ? सम्बन्धित सूत्र लिखते हुए समझाइये।

उत्तर : किसी भी नेज अर्द्धचालक में किसी विशेष तापमान पर उत्पन्न नेज वाहक सांद्रता Ni का सूत्र निम्न प्रकार से दिया जाता है।

ni = A.T3/2 e-Eg/2KT

K & A = नियतांक

T = तापमान

Eg = अर्द्धचालक के लिए वर्जित ऊर्जा अन्तराल

उपरोक्त सूत्र से यह स्पष्ट है कि नेज वाहक सान्द्रता ni का मान अर्द्धचालक के तापमान T के साथ -साथ अर्द्धचालक के पदार्थ की प्रकृति अर्थात अर्द्धचालक के लिए वर्जित ऊर्जा अंतराल Eg पर भी निर्भर करता है।

जिन अर्द्धचालकों के लिए ऊर्जा अंतराल Eg का मान कम होता है उनके लिए नेज वाहक सान्द्रता ni अधिक होती है जबकि जिन अर्द्धचालको के लिए Eg का मान अधिक होता है उनके लिए ni का मान कम होता है।