अर्द्धचालक में विद्युत धारा प्रवाह , current flow in semiconductor , अर्द्धचालकों में होलो का प्रवाह एवं विद्युत चालन

(current flow in semiconductor) अर्द्धचालकों में होलो का प्रवाह एवं विद्युत चालन : किसी भी अर्द्धचालक में होलो के प्रवाह को निम्न चित्र की सहायता से समझाया जा सकता है।

जब अर्द्धचालक का तापमान बढाया जाता है तब अनेक सहसंयोजी बंध टूटते है। प्रत्येक एक सहसंयोजी बंध के टूटने से एक मुक्त इलेक्ट्रॉन प्राप्त होता है जो क्रिस्टल में यादृच्छिक रूप से गमन कर सकता है।  दिखाए गए चित्र में इस इलेक्ट्रॉन के अलग होने से स्थान (site-2) पर होल तैयार हो जाता है।

स्थान (site-2) के होल को भरने के लिए आस-पास के सिलिकन के परमाणुओं के इलेक्ट्रॉन गति करने लगते है।  दिखाए गए चित्र में स्थान site-1 का बंध इलेक्ट्रॉन अपने स्थान को छोड़कर स्थान site-2 पर आ जाता है जिससे होल स्थान site-1 से स्थान site-2 पर स्थानांतरित होता हुआ प्रतीत होता है।

चित्र से यह स्पष्ट है कि अर्द्ध चालको में इलेक्ट्रॉन एवं हॉल का प्रवाह एक दुसरे के विपरीत होता है।

ठीक इसी प्रकार दिखाए गए चित्र अनुसार site-3 का बाध्य इलेक्ट्रोन स्थान के होल पर चला जाता है जबकि स्थान site-1 का होल स्थान site-3 पर स्थानांतरित हो जाता है।

प्रश्न : किसी भी अर्द्धचालक में विद्युत के चालन को समझाते हुए धारा घनत्व , अर्द्धचालन की चालकता तथा उसकी प्रतिरोधकता को सूत्र प्राप्त कीजिये .

उत्तर : जब किसी अर्द्धचालक के सिरों के मध्य बैट्री नहीं लगायी जाती तब अर्द्धचालक में विद्युत क्षेत्र की अनुपस्थिति में सभी आवेश वाहक व यादृच्छिक गति करते है . इनकी यादृच्छिक गति का नेट प्रभाव शून्य होता है . इसलिए इस स्थिति में अर्द्धचालक में कोई धारा प्रवाहित नहीं होती है।

जब अर्द्ध चालक के दोनों सिरों के मध्य बैटरी को जोड़ा जाता है तब अर्द्धचालक में उत्पन्न विद्युत क्षेत्र के कारण सभी आवेश वाहक निश्चित दिशा में चलने लगते है।  मुक्त इलेक्ट्रॉन विद्युत क्षेत्र के विपरीत जबकि होल विद्युत क्षेत्र दिशा में चलने लगते है।

आरोपित विद्युत क्षेत्र E के कारण मुक्त इलेक्ट्रॉन एवं होल अपवाह करने लगेंगे।

यदि मुक्त इलेक्ट्रॉन एवं होलो की अपवाह चाल को क्रमशः Vn एवं Vp माने तब

Vn ∝ E

V∝ E

अथवा

Vn = μn E [समीकरण-1]

V= μp E [समीकरण-2]

आवेशो के अपवाह के कारण दोनों प्रकार के आवेशो से सम्बंधित धारा घनत्व को यदि क्रमशः Jp एवं Jn माना जाए तब –

कुल धारा घनत्व (J) = Jp + Jn  [समीकरण-3]

हम जानते है –

धारा घनत्व = (आवेशो की सान्द्रता) x (आवेश) x (अपवाह चाल)

Jp = P.e.Vp = P.e. μp E [समीकरण-4]

इसी प्रकार

Jn = n.(-e).Vn = n.e. μn E  [समीकरण-5]

समीकरण-3 में समीकरण-4 और समीकरण-5 से मान रखने पर –

कुल धारा घनत्व (J) = Jp + Jn

J = P.e. μp E + n.e. μn E [समीकरण-6]

उपरोक्त समीकरण-6 किसी भी अर्द्धचालक के लिए उसके कुल धारा घनत्व को बताती है।

J = σ.E [समीकरण-7]

चूँकि

समीकरण-7 में समीकरण-6 का मान रखने पर –

J/E = P.e. μp  + n.e. μn

चूँकि σ = J/E (चालकता)

σ =  P.e. μp  + n.e. μ[समीकरण-8]

उपरोक्त समीकरण-8 किसी भी अर्द्धचालक के लिए उसकी चालकता का मान बताती है।

किसी भी पदार्थ की प्रतिरोधकता उसकी चालकता का व्युत्क्रम होती है , इसलिए

प्रतिरोधकता (ρ) = 1/σ

प्रतिरोधकता (ρ) = 1/(P.e. μp  + n.e. μn) [समीकरण-9]

उपरोक्त समीकरण-9 किसी भी अर्द्धचालक के लिए उसकी प्रतिरोधकता को बताती है।

नेज प्रकार के अर्द्ध चालको के लिए समीकरण-8 और समीकरण-9 में n = p = ni रखने पर –

 σ =  ni.e. [μp  + μ]  [समीकरण-10]

(ρ) = 1/ni.e.[μp  + μ] [समीकरण-11]

नेज अर्द्धचालको तथा धातुओ की चालकता पर तापमान का प्रभाव :-

जब किसी धातु का तापमान बढाया जाता है तब उसमे उपस्थित मुक्त आवेशो (मुक्त इलेक्ट्रॉन) की संख्या पर कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ता है।

तापमान बढ़ने पर धातु के परमाणुओं एवं आयनों का कम्पन्न बढ़ जाता है जिसके कारण मुक्त इलेक्ट्रॉन की गतिशीलता में कमी आ जाती है इसी कारण धातुओ का तापमान बढ़ाने पर उनकी चालकता कम होती जाती है।

अर्धचालको में सहसंयोजी बंध पाए जाते है इसलिए इनका तापमान बढ़ाने पर इनके परमाणुओं एवं आयनों के कम्पनो पर विशेष प्रभाव नहीं पड़ता है जबकि तापमान में वृद्धि के कारण सहसंयोजी बंध टूटने लगते है जिससे अर्द्धचालक में मुक्त आवेशो की सांद्रता बढ़ जाती है , इसी कारण तापमान बढ़ाने पर अर्द्ध चालको की चालकता में वृद्धि हो जाती है।