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उपसहसंयोजक यौगिको में आबन्धन , VBT – valence bond theory (संयोजकता बंध सिद्धांत) , VBT – valence bond theory (संयोजकता बंध सिद्धांत)
1. VBT – valence bond theory (संयोजकता बंध सिद्धांत)
2. CFT – crystal field theory (क्रिस्टल क्षेत्र सिद्धांत)
3. LFT – legend field theory
4. MOT – molecular orbital theory
1. VBT – valence bond theory (संयोजकता बंध सिद्धांत)
इस सिद्धांत के मुख्य बिंदु निम्न है –
- सर्वप्रथम केन्द्रीय धातु परमाणु अपनी ऑक्सीकरण अवस्था के अनुरूप इलेक्ट्रॉन त्याग कर धनायन बनाता है।
- इस धातु धनायन के पास लिगेंड को जोड़ने के लिए रिक्त s,p,d कक्षक उपलब्ध होते है।
- यह रिक्त कक्षक आपस में मिलकर संकरित कक्षकों का निर्माण करते है।
- इन रिक्त संकरित कक्षको में लिगेंड अपना एकांकी इलेक्ट्रोन युग्म प्रदान करके धातु आयन के साथ बंध बना लेता है।
- इसी संकरण के आधार पर संकुल यौगिक की ज्यामिति निर्धारित होती है –
संकरण | ज्यामिति |
SP3 | चतुष्फलकीय |
dsp2 | वर्ग समतलीय |
d2sp3 | अष्टफलकीय (बाह्य कक्षक संकुल) |
Sp3d2 | अष्टफलकीय (आन्तरिक कक्षक संकुल) |
- यदि संकरण में आन्तरिक d कक्षक भाग लेते है तो आंतरिक कक्षक संकुल बनता है लेकिन यदि संकरण में बाह्य d कक्षक भाग ले तो बाह्य कक्षक संकुल बनता है। आंतरिक कक्षक संकुल / चक्रण युग्मित संकुल / निम्न चक्रण संकुल।
- बाह्य कक्षक संकुल / चक्रण मुक्त संकुल / उच्च चक्रण संकुल।
- यदि धातु आयन के असंकरित कक्षकों में सभी इलेक्ट्रोन युग्मित हो तो वह यौगिक प्रतिचुम्बकीय होगा , लेकिन यदि अयुग्मित इलेक्ट्रोन उपस्थित हो तो वह यौगिक अनुचुम्बकीय होगा।
- यौगिक के चुम्बकीय आघूर्ण के मान को निम्न सूत्र द्वारा ज्ञात कर सकते है –
- यदि अयुग्मित इलेक्ट्रोन उपस्थित हो तो वह यौगिक रंगीन होगा तथा यदि अयुग्मित इलेक्ट्रोन अनुपस्थित हो तो वह यौगिक रंगहीन होगा।
2. CFT – crystal field theory (क्रिस्टल क्षेत्र सिद्धान्त)
- यह सिद्धांत सर्वप्रथम आयनिक क्रिस्टलो पर लागू किया गया इसलिए इसे क्रिस्टल क्षेत्र सिद्धांत कहते है।
- इस सिद्धांत के अनुसार केंद्रीय धातु आयन व लिगेंड आपस में स्थिर विद्युत आकर्षण बल या आयनिक बंध द्वारा बंधित होते है।
- यह स्थिर विद्युत आकर्षण बल , केन्द्रीय धातु आयन के धनावेश व लिगेंड के ऋण आवेश के कारण उत्पन्न होता है।
- यदि लिगेंड उदासीन हो तो वह द्विध्रुव की तरह व्यवहार करता है तथा उस लिगेंड का ऋण आवेशित सिरा धातु आयन की ओर विन्यासित होता है।
- केन्द्रीय धातु आयन के पास उपस्थित पाँचो d कक्षको की ऊर्जा एक समान होती है इसलिए इन्हें समभ्रंश d कक्षक कहते है।
- इस सिद्धान्त के अनुसार जब लिगेंड धातु आयन से जुड़ने के लिए धातु आयन की ओर अग्रसर होते है तो यह धातु आयन के d कक्षकों की ऊर्जा को प्रभावित करते है जिससे धातु आयन के यह d कक्षक दो भागो में बंट जाते है – (i) t2g कक्षक (ii) eg कक्षक
- यह घटना क्रिस्टल फिल्ड विपाटन कहलाती है तथा इन t2g व eg कक्षकों के मध्य ऊर्जा के अन्तर को क्रिस्टल फिल्ड विपाटन ऊर्जा कहते है।
अष्टफलकीय संकुलों में क्रिस्टल फिल्ड विपाटन
स्पेक्ट्रो रासायनिक श्रेणी
चतुष्फलकीय संकुलों में क्रिस्टल फिल्ड विपाटन
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