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complexation properties of lanthanide in hindi , लैंथेनाइड संकुलन गुण बताइए कारण लिखिए

जानिये complexation properties of lanthanide in hindi , लैंथेनाइड संकुलन गुण बताइए कारण लिखिए ?

रंग एवं अवशोषण वर्णक्रम (Colour and Absorption spectra)

लैन्थेनाइडों के अधिकांश त्रिधनीय आयन ठोस अवस्था में तथा जलीय विलयन में रंगीन होते हैं। इनके रंग सारणी 4.8 में दिखाये गये हैं।

उपर्युक्त सारणी से स्पष्ट है कि 4fn तथा 4f14 n विन्यास वाले लैन्थेनाइड आयनों के रंग समान हैं। इन आयनों में अयुग्मित इलेक्ट्रॉनों की संख्या समान होती है। संक्रमण धातुओं के लवणों की भांति लैन्थेनाइड यौगिकों के जलयोजन से 4f कक्षकों का विभाजन हो जाता है । लैन्थेनाइडों में इन विभाजित f-fकक्षकों का ऊर्जा अन्तर संक्रमण तत्वों के dd ऊर्जा अन्तर की तरह दृश्य क्षेत्र में पड़ता है। अतः निम्न ऊर्जा के ∫-f कक्षकों के अयुग्मित इलेक्ट्रॉन प्रकाश के दृश्य भाग में ऊर्जा अवशोषित करके उच्चतर ऊर्जा केfकक्षकों में चले जाते हैं जिससे इनके जलीय विलयन रंगीन दिखते हैं। इस प्रकार के इलेक्ट्रॉनिक, संक्रमण f-f संक्रमण कहलाते हैं। इन वर्णक्रमों की विशेषता यह है कि ये तीक्ष्ण (sharp) होते हैं जबकि संक्रमण धातु लवणों के अवशोषण बैण्ड चौड़े होते हैं। d तथा ∫ब्लॉक तत्वों के अवशोषण बैंडों की आकृति में अन्तर का मुख्य कारण यह है कि लैन्थेनाइडों में 45 कक्षक 5s2,5p6 कक्षकों के नीचे पाये जाने से परिरक्षित रहते हैं जिससे इनकी लिगण्ड कक्षकों से कोई पारस्परिक क्रिया नहीं होती है जबकि संक्रमण धातु आयनों में d कक्षक बाह्यतम कक्षक होते हैं जिससे ये लिगण्ड कक्षकों के साथ अधिकतम पारस्परिक क्रिया करते हैं। La3+ (4f) इलेक्ट्रॉनविहीन होने तथा Lu3+ (4f14) में 4f कक्षकों के पूर्ण भरे होने के कारण इलेक्ट्रॉन का f-f स्थानान्तरण नहीं पाता है । फलतः ये दोनों आयन रंगहीन होते हैं। Ce3+, Gd 3 + तथा Yb 3 + में f-f संक्रमण पराबैंगनी (ultraviolet) क्षेत्र में होते हैं। इन तीनों लैन्थेनाइड आयनों में ऊर्जा स्थानान्तरण दृश्य क्षेत्र में नहीं होनेके कारण ये आयन भी रंगहीन दिखायी पड़ते हैं ।

चुम्बकीय गुण (Magnetic Properties)

किसी पदार्थ के चुम्बकीय गुण उसमें उपस्थित अयुग्मित इलेक्ट्रॉनों की संख्या पर निर्भर करते हैं। संक्रमण धातु आयनों का अनुचुम्बकत्व (Paramagnetism) उनमें अयुग्मित इलेक्ट्रॉन की संख्या बढ़ने के साथ-साथ बढ़ता है। हम जानते हैं कि एक संक्रमण श्रृंखला तथा लैन्थेनाइड श्रृंखला के आयनों में अयुग्मित इलेक्ट्रॉनों की संख्या का परिवर्तन समान प्रकार का होता है। त्रिधनीय लैन्थेनाइड आयनों के इलेक्ट्रॉनों की संख्या लैन्थेनम से गैडोलिनियम तक नियमित रूप से बढती है (0 से 7) और फिर ल्यूटेसियम तक लगातार घटती है (7 से 0)। इस प्रकार, La3+ (4f0) व Lu3+ (4f14) प्रतिचुम्बकीय (diamagnetic) हैं तथा शेष अन्य सभी त्रिधनीय लैन्थेनाइड आयन अनुचम्बकीय हैं। अयुग्मित इलेक्ट्रॉनों की संख्या में इसी प्रकार का परिवर्तन चतुर्थ आवर्त के तत्वों, Ca (20) से Zn (30), के द्विसंयोजकीय आयनों में पाया जाता है। Ca2+ तथा Zn 2 + आयनों में कोई अयुग्मित इलेक्ट्रॉन नहीं होता है । अतः ये La+ तथा Lu3+ आयनों की तरह प्रतिचुम्बकीय हैं। Ca2+ आयन से आगे बढ़ने पर अयुग्मित इलेक्ट्रॉनों की संख्या नियमित रूप से Mn 2 + आयन तक बढ़ती है (1 से 5 तक) तथा इसके पश्चात् कम होते-होते Cu2+ आयन में केवल एक अयुग्मित इलेक्ट्रॉन रह जाता है और Zn2+ में कोई अयुग्मित इलेक्ट्रॉन नहीं होता है। फलतः Cu2+ आयन समेत इससे पूर्व आने वाले समस्त द्विघनीय आयन अनुचुम्बकी हैं। संक्रमण धातु आयनों में अयुग्मित इलेक्ट्रानों तथा अनुचुम्बकत्व के बीच सीधा सम्बन्ध होता है जिससे प्रतिचुम्बकीय Ca2+ के पश्चात् के धनायनों में अनुचुम्बकत्व बढ़ते हुए Mn 2 + आयन के लिए अधिकतम होकर Cu2+ आयन के लिए न्यूनतम हो जाता है । त्रिसंयोजकीय लैन्थेनाइड आयनों में अयुग्मित इलेक्ट्रॉनों की संख्या का परिवर्तन भी M2+ संक्रमण धातु आयनों जैसा ही होता है लेकिन उनके चुम्बकीय गुणों में भिन्न प्रकार का परिवर्तन होता है। वास्तव में, पदार्थों का अनुचुम्बकत्व उनके इलेक्ट्रॉनों की चक्रण तथा कक्षीय गतियों का संयुक्त परिणाम होता है। संक्रमण धातुओं में (n-1)d कक्षकं ns कक्षकों के नीचे ही स्थित होते हैं। आयन बनने पर s इलेक्ट्रॉन निकल जाते हैं तथा अयुग्मित d – इलेक्ट्रॉन सतह पर आ जाते हैं। संक्रमण धातु आयनों में अयुग्मित इलेक्ट्रॉन सतह पर होने के कारण बाह्य क्षेत्र से इस प्रकार पारस्परिक क्रिया करते हैं कि कक्षकीय योगदान नगण्य हो जाता है जिसके कारण संक्रमण आयनों में चुम्बकत्व केवल इलेक्ट्रॉनों के चक्रण द्वारा ही उत्पन्न माना जाता है। चूंकि इलेक्ट्रॉन चक्रण के कारण उत्पन्न चुम्बकत्व अयुग्मित इलेक्ट्रॉनों की संख्या के समानुपाती (directly proportional) होता है, संक्रमण धातु आयनों के चुम्बकीय आघूर्णों में एक रेखीय परिवर्तन देखने को मिलता है। जिसकी निम्न सूत्र द्वारा गणना की जा सकती है।

u = \n(n+ 2)

संक्रमण तत्वों के आधार पर यह अपेक्षा की जा सकती है कि La 3 + आयन के बाद में आने वाले आयनों का अनुचुम्बकत्व नियमित रूप से बढ़ते हुए Gd 3 + आयन पर अधिकतम हो जाने के पश्चात् फिर से नियमित रूप से घटना प्रारम्भ होना चाहिए जैसा कि चित्र 4.5 में टूटी हुई रेखा B(~~~~) द्वारा दिखाया गया है। लैन्थेनाइड आयनों के चुम्बकीय गुण सामान्य संक्रमण तत्वों के चुम्बकीय गुणों से भिन्न हैं। इनके चुम्बकीय आघूर्णों के प्रायोगिक मान सारणी 4.9 में दिये गये हैं जन्हें चित्र 4.5 में रेखांकित किया गया है। सारणी 4.9 में ये मान एक क्षेत्र के रूप में दिये गये हैं जबकि चित्र 4.5 मध्यवर्ती मानों के अनुसार बनाया गया है। लैन्थेनाइडों के चुम्बकीय आघूर्ण परिवर्तन संक्रमण तत्वों की भांति एकरेखीय न होकर, द्विनोडी वक्र के रूप में पाया जाता है जैसा कि चित्र 4.6 में वक्र A द्वारा दिखाया गया है। थेनाइड आयनों में 4f इलेक्ट्रॉन, जो चुम्बकीय आघूर्ण में योगदान करते हैं, अपने ऊपर पड़ने वाले 5s2 तथा 5p6 कोशों की उपस्थिति के कारण बाह्य क्षेत्र के साथ पारस्परिक क्रिया (interaction) करने से बचे रहते हैं। इसलिए यहाँ कक्षकीय योगदान पर भी विचार करना आवश्यक है जो कुछ आयनों, उदाहरणार्थ Tb3+, Dy3+, Ho3+ तथा Er 3 + के लिए अत्यन्त महत्वपूर्ण हैं। ऐसी दशाओं में प्रत्येक इलेक्ट्रॉन के चक्रण आघूर्ण और कक्षकीय आघूर्ण परस्पर संयुक्त होकर परिणामी चुम्बकीय आघूर्ण उत्पन्न करते हैं।

लैन्थेनाइडों के चुम्बकीय आघूर्ण की सैद्धान्तिक गणना एक भिन्न सूत्र से की जाती है जो निम्न

A= g√J(J+1) जहाँ g = = +3/2 S(S+1)—L(L+1) /2J(J+1)

जहाँ J एक नई क्वाण्टम संख्या है जिसका मान सकल चक्रण क्वाण्टम संख्या S तथा सकल कोणीय क्वाण्टम संख्या J के संयोग से निम्न प्रकार प्राप्त किया जाता है-

J=L-S यदि कोश अर्धपूर्ण से कम भरा है

J=L+S यदि कोश अर्धपूर्ण से अधिक रा है

S समस्त इलेक्ट्रॉनों की पृथक-पृथक चक्रण क्वांटम संख्याओं का योग है। चूँकि इलेक्ट्रॉनों का युग्मन होने पर उनकी चक्रण क्वांटम संख्याओं का योग शून्य हो जाता है, मात्र अयुग्मित इलेक्ट्रॉनों की चक्रण क्वांटम संख्याओं का योग ही सकल चक्रण क्वांटम संख्या होगी। इसी प्रकार पृथक-पृथक इलेक्ट्रॉनों की कोणीय क्वांटम संख्याओं के योग से सकल कोणीय क्वांटम संख्या L प्राप्त होती है

S= s1 + s2 + s3 + S4 +……………….. sn

L= l1 + l2 + l3 + l4 +……………………….ln

उपर्युक्त सूत्र से गणना करने से प्राप्त चुम्बकीय आघूर्णों के मान सारणी 4.8 में दिये गये हैं। साथ ही तुलनार्थ प्रायोगिक मान भी दिये गये हैं। चूँकि भिन्न-भिन्न प्रयोगकर्ताओं के मानों में थोड़ा अन्तर होता है, सारणी में प्रायोगिक मान एक क्षेत्र (range) के रूप में दिये गये हैं-

उपर्युक्त सारणी के अध्ययन से स्पष्ट है कि अधिकांश लैन्थेनाइड यौगिकों के चुम्बकीय आघूर्ण के परिकलित तथा प्रायोगिक मान समान हैं। यहाँ Eu3 + का परिकलित चुम्बकीय आघूर्ण का मान प्रायोगिक मान से बहुत कम है यद्यपि Sm 3+ का परिकलित मान भी प्रायोगिक मान के निकट नहीं है। Eu3+ के चुम्बकीय आघूर्ण के अनुपयुक्त मान का कारण यह है कि इस आयन के लिए चक्रण-कक्षीय युग्मन स्थिरांक का मान मात्र 300 cm- 1 है जबकि अन्य लैन्थेनाइडों के लिए यह लगभग 2000 cm- 1 है । इस कारण से Eu3 + की न्यूनतम ऊर्जा अवस्था तथा निकटतम उत्तेजित अवस्था के बीच में बहुत कम अन्तर होता है- यहाँ तक कि द्वितीय तथा तृतीय उत्तेजित अवस्थाएँ भी न्यूनतम अवस्था से बहुत दूर नहीं हैं। फलतः ऊष्मीय कम्पन से भी इलेक्ट्रॉन न्यूनतम अवस्था से उत्तेजित अवस्था में पहुँच जाते हैं। इस प्रकार, Eu3 + आयन के चुम्बकीय गुण पूर्णतः इलेक्ट्रॉनिक विन्यास की निम्नतम अवस्था से ही प्राप्त नहीं होते हैं।

संकुलन (Complexation)

लैन्थेनाइड तथा संक्रमण तत्वों में इलेक्ट्रॉनिक विन्यास की दृष्टि से यह समानता पाई जाती है कि दोनों प्रकार के तत्वों में आन्तरिक कक्षक आशिक रूप से भरे होते हैं। हम जानते हैं कि संक्रमण तत्वों में संकुल बनाने की अत्यधिक प्रवृत्ति पाई जाती है। इसका मुख्य कारण इनके d कक्षकों में रिक्त स्थान की उपलब्धता है जिनमें बंधन हेतु लिगण्डों के इलेक्ट्रॉनों को बंधी युग्म आसानी से ग्रहण कर लेते हैं। क्योंकि लैन्थेनाइडों में भी आंशिक रूप से भरे हुए 4f कक्षक होते हैं, ऐसा अनुमान लगाया जा सकता है कि संक्रमण तत्वों की तरह लैन्थेनाइडों में भी संकुलन की अत्यधिक प्रवृत्ति पाई जायेगी। वास्तव में, लैन्थेनाइडों के बहुत कम संकुल ज्ञात है।

इसके मुख्यतः निम्न कारण है –

  1. 4f कक्षकों की बंधन के लिए अनुपयुक्तता : लिगण्डों के साथ बंध बनाने के लिए लैन्थेनाइडों में 4∫कक्षक उतनी आसानी से उपलब्ध नहीं होते हैं जितनी आसानी से संक्रमण तत्वों में d कक्षक उपलब्ध हो जाते हैं। इसका मुख्य कारण इन तत्वों में d तथा fकक्षकों की भिन्न आपेक्षिक स्थिति है। दोनों प्रकार के तत्वों के आयन निर्माण के लिए उनके परमाणुओं से बाह्य s इलेक्ट्रॉन निकल जाते हैं जिससे संक्रमण धातु आयनों में d कक्षक बाह्यतम कक्षक हो जाते हैं लेकिन लैन्थेनाइड आयनों में अक्रिय 5s2p6 उपकोश बाह्यतम होते हैं तथा 4f कक्षक उनके अन्दर की ओर रहते हैं। जब संकुल बनाने के लिए लिगण्ड धातु आयनों की ओर अग्रसर होते हैं तो संक्रमण धातु आयनों के d कक्षक तो उन्हें आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं लेकिन लैन्थेनाइडों के 4f कक्षक 5s2p6 कवच से परिरक्षित होने के कारण कठिनता से उपलब्ध हो पाते हैं। L → M o बंध बनाने के लिए धातु आयनों के d या कक्षकों की संकरण हेतु आवश्यकता होती है। संक्रमण धातुओं में d कक्षक तो आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं लेकिन लैन्थेनाइडों में f कक्षकों की संकरण हेतु उपलब्धता सीमित रहती है। धातु तथा लिगण्डों के मध्य में बंधन M – Lo-बंध की दृढ़ता को बढ़ा देता है क्योंकि ० बंधन के फलस्वरूप जो अत्यधिक ऋण आवेश लिगण्डों से स्थानान्तरित (M← L ) होकर केन्द्रीय धातु पर एकत्रित हो जाता है, वह ग-बंधन के माध्यम से वापिस धातु से लिगण्ड (ML) को चला जाता है। संक्रमण धातुओं में d कक्षक बाह्यतम होने के कारण ० तथा ग दोनों प्रकार के बंधन हेतु आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं लेकिन लैन्थेनाइडों में 4f कक्षक उपान्तिम (penultimate) होने के कारण अपेक्षाकृत कम सीमा तक उपलब्ध होते हैं। इसके अतिरिक्त 4f कक्षकों का स्थानिक विस्तार (Spatial extension) भी सीमित रहता है। यह स्थिति भी प्रभावी सहसंयोजक बंध बनाने के लिए प्रतिकूल है। इस प्रकार संक्रमण तत्वों की तुलना में लैन्थेनाइड तत्वों की संकुल बनाने की कम प्रवृत्ति पाई जाती है।
  2. आयनिक बंध बनाने की प्रवृत्ति : लैन्थेनाइड तत्व निम्न आयनन ऊर्जा वाली क्रियाशील धातुएँ हैं। ये आसानी से अपने तीनों इलेक्ट्रॉन खोकर त्रिधनीय आयन बनाते हैं। फायन्स नियमों के आधार पर अनुमान लगाया जा सकता है कि Ln3+ आयनों पर उच्च आवेश होने के कारण इनकी ध्रुवण क्षमता बहुत अधिक होगी जिससे ये लिगण्ड कक्षकों को ध्रुवित कर प्रबल M – L सहसंयोजक बंध बनाने में सक्षम होंगे। लेकिन उच्च आयनिक आवेश होते हुए भी Ln3+ आयनों के बड़े आकार विशेषत: La3+, Ce3+ आदि प्रारम्भिक लैन्थेनाइड, के कारण इन पर आवेश घनत्व काफी कम हो जाता है जिससे इनकी ध्रुवण क्षमता भी कम हो जाती है। चूंकि लिगण्डों की ध्रुवित हो सकने की मात्रा का धातु लिगण्ड बंध में सहसंयोजक गुण से सीधा सम्बन्ध है, आरम्भिक लैन्थेनाइड जो बनायेंगे उनमें वैद्युत संयोजक गुण अधिक पाये जायेंगे तथा संकुल निर्माण हेतु अधिक | वाले F”, OH,H2O, NO3-, CI- इत्यादि एक दन्तुक लिगण्ड अधिक उपयुक्त होंगे। लैन्थेनाइड श्रृंखला में क्योंकि परमाणु संख्या बढ़ने की दिशा में आयनिक आकार घटता है, दायीं ओर चलने पर आवेश घनत्व बढ़ने से संकुल बनाने की प्रवृत्ति भी बढ़ती जायेगी। ऑक्सीकरण अवस्था एवं आयनिक आवेश बढ़ने पर आकार में कमी आती है तथा आवेश घनत्व बढ़ता है जिससे संकुलन की प्रवृत्ति भी बढ़ेगी। इसके विपरीत, आवेश घटने से आकार में वृद्धि होगी जिसके कारण संकुलों का अस्थायित्व बढ़ेगा। लैन्थेनाइडों की सामान्य ऑक्सीकरण अवस्था +3 तथा असामान्य ऑक्सीकरण अवस्थाओं, +4 व +2, में संकुल निर्माण की प्रवृत्ति निम्न क्रम में घटेगी

Ln4+ > Ln3+ > Ln2+

उदाहरण के लिए Ce3+ की अपेक्षा चर्तुधनीय सीरियम अधिक संकुल बनायेगा जबकि Eu2+ में Eu3+ की अपेक्षा संकुलन की कम प्रवृत्ति होगी।

Sbistudy

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