पृथ्वी की मीमांसा नामक पुस्तक किसने लिखी Who wrote the book Prithvi ki Mimamsa in hindi

Who wrote the book Prithvi ki Mimamsa in hindi पृथ्वी की मीमांसा नामक पुस्तक किसने लिखी ?

वस्तुनिष्ठ प्रश्न
1. स्थलाकृति शब्द का सबसे प्रथम प्रयोग जर्मनी के विद्वान –
(अ) लैण्डशाट (ब) बिस्मार्क (स) रुसो (द) हेडली
2. पृथ्वी की मीमांसा नामक पुस्तक किसने लिखी –
(अ) वाल्टर (ब) रोसेल (स) पैक (द) लैण्डशाट
3. अमेरिका का स्थलाकृतियों में प्रथम भूगोल शास्त्री-
(अ) हेडली (ब) जे.ए.पौउल (स) ग्रीव (द) रोसेल
4. स्थलाकृतियों का प्रयोग जर्मनी के भौगोलिक साहित्य में करने वाला प्रथम व्यक्ति-
(अ) पासर्गी (ब) पौउल (स) लैण्डशार (द) वाल्टर
उत्तर- 1. (अ), 2. (ब्), 3. (ब), 4. (अ)

स्थलाकृतियों के अध्ययन का अवयवीय ढाँचा
(Integrated Approach in study of Landscapes)
किसी भी तथ्य के निरूपाण के लिए विभिन्न तरीकों का आश्रय लेना पड़ता है। उसी प्रकार स्थलाकृतिय के अध्ययन के लिए यह माना गया है कि पृथ्वी के धरातल पर जो भी स्थलाकृतियाँ हैं इनके उद्भव एवं विकास स्वतंत्र रूपा से नहीं हुआ है बल्कि पृथ्वी के धरातल पर जो प्राकृतिक तथ्य जैसे वनस्पति वन मिट्टी, जल संसाधन, जैविक सम्पदा तथा जलवायु के अन्य तत्व हैं उनका सम्मिलित प्रभाव स्थलाकृतिय के उद्भव पर आंका जा सकता है। अन्तोगत्वा भौगर्भिक शक्तियों के फलस्वरूपा वह अवसाद पर्वत मालाओं के रूपा में बदल जाती हैं। यही क्रम लगातार चलता रहता है इस से स्थलाकृतियों की उत्पत्ति एव साथ ही साथ विनाश भी होता है। यहीं तथ्य और कारकों से भी सिद्ध किया जा सकता है। इस प्रकार का सम्मिलित अध्ययन है व अवयवीय ढांचा या तरीका कहलाता है. इसलिए यह माना गया है कि स्थलाकृतियों का अध्ययन अवायवीय तरीके से होना चाहिए।
पासी ने स्थलाकृतियों का वर्णन करते हुए यह स्पष्ट किया है कि प्रकृति ही स्थलाकृति का सीमा का निर्धारण करती है तथा किसी भी क्षेत्र की भूआकृतियों के विकास में उसे क्षेत्र में स्थित वनस्पति, जलाशय जैविक एवं मिट्टी इत्यादि तत्व पर जो प्रभाव डालते हैं, उससे स्थलाकृतियों का विकास होता है तथा यह कोई स्वतंत्र प्रक्रिया नहीं है बल्कि सभी तत्वों का भूदृश्यों की उत्पत्ति में सम्मिलित प्रभाव पड़ता है। इतना ही नहीं बल्कि पासी ने यह भी स्पष्ट किया कि यदि हमें विश्व को विभिन्न स्थलाकतियों के रूपा में विभाजित करना है तो वनस्पति की भूदृश्यों का निर्णायक मानना चाहिए। बहुत से अमरीकी भूगोल विशारदों ने प्राकृतिक भदश्यों को अपवाद स्वरूपा माना है तथा यह स्पष्ट किया कि मानव के आगमन से पूर्व आद्य स्थलाकृति के स्वरूपा में विशेष परिवर्तन नहीं हो पाया था। पासर्गी ने यद्यपि भूदृश्यों के निर्माण में वनस्पति को मुख्य स्थान दिया है परन्तु उनके अनुयायियों या उन्होंने इस प्रश्न का यथोचित समाधान पेश नहीं किया है। जबकि वे स्वयं भी यह मानते हैं कि मनुष्य के द्वारा मूल स्थलाकृतियों में पूर्णतया परिवर्तन ही नहीं हो जाता है, बल्कि फिर से उनकी वास्तविकता को समझना एक कठिन समस्या है।
पासर्गी ने सबसे प्रथम स्थलाकृति का प्रयोग जर्मनी के भौगोलिक साहित्य में किया तथा उन्होंने भूमध्यरेखीय वनों के क्षेत्रों के वितरण के आधार पर यह स्पष्ट किया कि इन क्षेत्रों में वनस्पति एवं जैविक जीवन पर वहाँ की स्थलकृति का प्रत्यक्ष प्रभाव आंका जा सकता है। इन क्षेत्रों के अतिरिक्त विश्व के अन्य भागों में भी इसी प्रकार के उदाहरण मिलते हैं। पासर्गी के अनुसार जलवायु की अपेक्षा भूमि के उपयोग के लिए वनस्पति ही एक ऐसा सूचक है जो उसकी रचना को परख सकता है। यही कारण है कि सांस्कृतिक भूदृश्यों का उपयोग प्राकृतिक भूदृश्यों की सहायता से करना पड़ता है। पासर्गी ने जिस वनस्पति को स्थलाकृति का सूचक माना है उसके विषय में यह ठीक-ठीक नहीं कहा जा सकता है कि किस प्रकार से बनस्पति श्स्थलाकृतियों का सूचकश् माना जा सकता है क्योंकि विश्व के कई ऐसे क्षेत्र हैं जिनकी प्राकृतिक वनस्पतिक विस्तृत ज्ञान अभी तक नहीं हो पाया है और यदि किसी भूभाग की वनस्पति का विस्तृत अध्ययन किया भी जाये तो यह ठीक-ठीक नहीं कहा जा सकता है कि प्राचीन काल से लेकर अब तक जितने भी परिवर्तन हुए होंगे, उन परिवर्तनों का वहाँ की मौलिक वनस्पति पर क्या प्रभाव पड़ा होगा, जिससे हम स्थलाकृति का निर्धारण कर सकें।
वनस्पति एवं मिट्टी का घनिष्ठ सम्बन्ध है। वनस्पति मिट्टी से ही उत्पन्न होती है, तथा उसमें पनपती है और अन्त में उसमें ही समाप्त होकर वनस्पति से सडगल कर मिट्टी की रचना होती है। यही कारण है कि विश्व के जिन भागों में वनस्पति का घना आवरण छाया है वहाँ पर मिट्टी की पर्त कुछ भागों की अपेक्षा मोटी आंकी गई है। जैसा कि हास्टसोन ने स्पष्ट किया है कि पृथ्वी के आन्तरिक भाग में जो खनिज सम्पदा कई हजार मीटर की गहराई पर दबी पड़ी है वह स्थलाकृति के अन्तर्गत सम्मिलित नहीं की जा सकती है। इसके विपरीत भूभाग से कुछ ही गहराई पर जो खुली खानें हैं वे स्थलाकृति के अन्तर्गत आ सकती हैं। जलवायु बहुत सीमा तक वनस्पति को तथा वनस्पति जलवायु को प्रभावित करते हैं, तथा इन दोनों का प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष प्रभाव स्थलाकृतियों पर आंका गया है, स्थलाकृतियों की संरचना के अनुसार विभिन्न क्षेत्रों में वनस्पति के प्रकार एवं वितरण पर प्रभाव पड़ता है। वनस्पति, स्थलाकृतियों के धरातल से ही उत्पन्न होती हैं। कालान्तर में वही वनस्पति सड़-गल कर मिट्टी का रूपा धारण कर लेती है जो कि स्थलाकृति का एक अंग है। किसी एक निश्चित क्षेत्र में होने वाली वर्षा की मात्रा स्थलाकृति का तत्व नहीं है बल्कि उस वर्षा का जो प्रभाव वहां की स्थलाकृतियों पर पड़ता है वह एक मुख्य तत्व है जिससे उसकी रचना एवं बनावट प्रभावित होती है। स्थलाकृतियों के रूपाान्तरण में आर्थिक शक्तियाँ बहुत महत्वपूर्ण प्रभाव डालती हैं।
महत्वपूर्ण प्रश्न
दीर्घउत्तरीय प्रश्न
1. स्थलाकृतियों की संकल्पना का विवरण दीजिए।
2. प्राकृतिक स्थलाकृतियों की संकल्पना की विवेचना कीजिए तथा भौगोलिक अध्ययन में इसके योगदान का विवरण दीजिए।
3. आकृतिक स्थलाकृति की परिभाषा दीजिए। किसी प्रदेश के प्राकृतिक स्थलाकृतियों के परिवर्तन के उत्तरदायी कारकों की विवेचना कीजिए।
4. किसी प्रदेश की भौतिक स्थलाकृतियों को प्रभावित करने वाले विभिन्न कारकों की समीक्षा कीजिए।
5. भौतिक स्थलाकृतियों की जर्मनी तथा अमेरीकी संकल्पना का विवरण दीजिए।
6. भौतिक स्थलाकृतियों की संकल्पनाओं की व्याख्या दीजिए, इस संकल्पना के विकास में विभिल विचारधाराओं वाले स्कूलों के योगदान की विवेचना कीजिए।
7. भौतिक स्थलाकृतियों की परिभाषा दीजिए तथा इसकी मुख्य संकल्पनाओं की विवेचना कीजिए।
8. स्थलाकृतियों की संकल्पनाओं का विस्तार पूर्वक विवेचना कीजिए।
लघुउत्तरीय प्रश्न
1. स्थलाकृति की संकल्पना से क्या-क्या तात्पर्य है?
2. भौगर्भिक स्थलाकृति से क्या तात्पर्य है?
3. स्थलाकृतियों के अध्ययन को स्पष्ट कीजिए।