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stokes law definition in hindi in chemistry ion motion in solution स्टॉक का नियम किसे कहते हैं

स्टॉक का नियम किसे कहते हैं stokes law definition in hindi in chemistry ion motion in solution स्टोक्स का नियम लिखिए तथा द्रव में गिरते किसी ठोस, गोले का सीमान्त वेग ज्ञात कीजिए। ?

स्टॉक का नियम (Stoke’s Law)

प्रायोगिक प्रेक्षणों के आधार पर यह देखा गया कि जब कोई आयन विलयन में गति करता है तो उसकी गति विभिन्न विलयनों में अलग-अलग होती है तथा आयनिक गतिशीलता व चालकता भी अलग-अलग होती है। इसको स्टॉक ने इस प्रकार समझाया कि जब आयन विलयन (द्रव) में गति करता है तो द्रव का घर्षण बल (Frictional force or viscous drag) उसकी गति का प्रतिरोध करता है जिससे आयन की गति कम हो जाती है। स्टॉक ने इस सिद्धान्त का उपयोग करते हुए एक गोलाकार आयन का अध्ययन द्रव में किया। उसके अनुसार माना कि आयन जिसकी त्रिज्या है, एक द्रव जिसकी श्यानता है. में गति V करता है। इस आयन पर द्रव द्वारा लगने वाला घर्षण बल जो आयन की गति पर निर्भर करता है

इस आयन की गति को पूर्व के अनुसार बनाये रखने के लिए आयन पर कुछ प्रेरक बल (driving force) लगाना पड़ता है ताकि घर्षण बल के प्रभाव को समाप्त किया जा सके। माना कि यह प्रेरक बल F है । आयन के घर्षण बल को समाप्त करने के लिये आयन को विद्युत क्षेत्र E में गति कराई जाती है जिससे उस पर लगा विद्युत बल (Zi eE) प्रेरक बल के बराबर अर्थात् घर्षण बल के बराबर हो जाये । घर्षण बल = प्रेरक बल

आयन की गति लगाए गए विद्युत क्षेत्र के समानुपाती होती है अतः

यहाँ Uएक समानुपातिक स्थिरांक है जिसे आयन की गतिशीलता (ionic mobility) कहते हैं ।उपरोक्त समीकरण (74) से स्पष्ट है कि आयनिक चालकता या गतिशीलता निम्न कारकों पर निर्भर करती है। (i) विलयन ( माध्यम ) की विस्कासिता (ii) आयन के आकार (अर्द्धव्यास) पर (i) माध्यम की विस्कासिता: चालकता माध्यम की विस्कासिता पर निर्भर करती है, इसे सर्वप्रथम वाल्डन नियम (Walden rule) द्वारा दिया गया। इसके अनुसार व स्टॉक के नियम के अनुसार किसी विद्युत अपघट्य की तुल्यांकी चालकता माध्यम की विस्कासिता के व्युत्क्रमानुपाती होती है अर्थात् Amno = स्थिरांक विस्कासिता बढ़ाने पर तुल्यांकी चालकता का मान कम होगा। यदि आयन का विलायकीकरण नहीं हो अर्थात् सभी विलायकों में आयन का एक सा आकार हो तो वाल्डन नियम के अनुसार Ang का मान हमेशा स्थिरांक होगा। यह माध्यम (विलायक ) की प्रकृति पर निर्भर नहीं करेगा। उदाहरणार्थ टेट्रा ऐल्किल अमोनियम धनायन (RĀN) या ऐल्किल कार्बोक्लेिट ऋणायन RCOO- आदि आयनों के लिए यह ठीक है क्योंकि इनका विलायकीकरण नहीं होता है। ऐसे आयन जिनका विलायकीकरण होता है उन पर वाल्डन नियम लागू नहीं होता। (ii) स्टॉक के अनुसार आयन का आकार बढ़ने पर तुल्यांकी चालकता या आयन की गतिशीलता में कमी होनी चाहिए। लेकिन वास्तव में यह सत्य नहीं है। क्षारीय धातु आयनों (Li+ से Cst) तथा हैलोजन परिवार के आयनों (CI से I) में छोटे आयनों की गतिशीलता व तुल्यांकी चालकता कम है तथा बड़े आयनों की अधिक है। इस विसंगति (Discrepancy) को इस प्रकार समझा सकते हैं कि स्टॉक सूत्र में जो आयन का अर्द्धव्यास है वह आयनिक जालक या क्रिस्टलीय जालक के आयन के अर्द्धव्यास के बराबर है और आयनिक जालक में आयन का अर्द्धव्यास छोटा होता है। वास्तव में छोटे अर्द्धव्यास वाले आयनों का विलयन में अर्द्धव्यास बड़ा होता है। इसका कारण यह है कि छोटे अर्द्धव्यास वाले आयन की सतह पर प्रबल विद्युत क्षेत्र होता है। (वैद्युत स्थैतिक के अनुसार सतह पर विद्युत क्षेत्र F होता है अर्थात् जितना कम होगा उतना ही F अधिक होगा ) इस प्रबल विद्युत क्षेत्र के कारण छोटा आयन बड़े आयन की तुलना में जल या विलायक के अधिक अणुओं को अपनी ओर खींचता है जिससे यह आयन स्वतन्त्र न रहकर जलयोजित या विलायकीकृत ( Solvated ) हो जाएगा तथा इसका प्रभावी अर्द्धव्यास विलयन में बढ़ जाएगा। इस कारण से यह कम जलयोजित या अजलयोजित आयन की अपेक्षा धीमी गति से चलेगा जिससे इसकी गतिशीलता व तुल्यांकी चालकता के मान कम होगें उदाहरणार्थ Li’ (छोटे आयन) की जलयोजन क्षमता K+ से अधिक होती है जिसके कारण Li की तुल्यांकी चालकता व आयनिक गतिशीलता K + से कम है।

हम जानते हैं कि किसी आयन की अनन्त तनुता पर तुल्यांकी आयनिक चालकता (A) उस आयन.

की गतिशीलता (U;) की समानुपाती होती है

उपरोक्त समीकरण (74) से स्पष्ट है कि आयनिक चालकता या गतिशीलता निम्न कारकों पर निर्भर करती है।

(i) विलयन ( माध्यम ) की विस्कासिता

(ii) आयन के आकार (अर्द्धव्यास) पर

(i) माध्यम की विस्कासिता: चालकता माध्यम की विस्कासिता पर निर्भर करती है, इसे सर्वप्रथम वाल्डन नियम (Walden rule) द्वारा दिया गया। इसके अनुसार व स्टॉक के नियम के अनुसार किसी विद्युत अपघट्य की तुल्यांकी चालकता माध्यम की विस्कासिता के व्युत्क्रमानुपाती होती है अर्थात्

विस्कासिता बढ़ाने पर तुल्यांकी चालकता का मान कम होगा। यदि आयन का विलायकीकरण नहीं हो अर्थात् सभी विलायकों में आयन का एक सा आकार हो तो वाल्डन नियम के अनुसार Ang का मान हमेशा स्थिरांक होगा। यह माध्यम (विलायक ) की प्रकृति पर निर्भर नहीं करेगा। उदाहरणार्थ टेट्रा ऐल्किल अमोनियम धनायन (R4N) या ऐल्किल कार्बोक्लेिट ऋणायन RCOO- आदि आयनों के लिए यह ठीक है क्योंकि इनका विलायकीकरण नहीं होता है। ऐसे आयन जिनका विलायकीकरण होता है उन पर वाल्डन नियम लागू नहीं होता।

(ii) स्टॉक के अनुसार आयन का आकार बढ़ने पर तुल्यांकी चालकता या आयन की गतिशीलता में कमी होनी चाहिए। लेकिन वास्तव में यह सत्य नहीं है। क्षारीय धातु आयनों (Li+ से Cst) तथा हैलोजन परिवार के आयनों (CI से I) में छोटे आयनों की गतिशीलता व तुल्यांकी चालकता कम है तथा बड़े आयनों की अधिक है।

इस विसंगति (Discrepancy) को इस प्रकार समझा सकते हैं कि स्टॉक सूत्र में जो आयन का अर्द्धव्यास है वह आयनिक जालक या क्रिस्टलीय जालक के आयन के अर्द्धव्यास के बराबर है और आयनिक जालक में आयन का अर्द्धव्यास छोटा होता है। वास्तव में छोटे अर्द्धव्यास वाले आयनों का विलयन में अर्द्धव्यास बड़ा होता है। इसका कारण यह है कि छोटे अर्द्धव्यास वाले आयन की सतह पर प्रबल विद्युत क्षेत्र होता है। (वैद्युत स्थैतिक के अनुसार सतह पर विद्युत क्षेत्र  होता है अर्थात् जितना कम होगा उतना ही F अधिक होगा ) इस प्रबल विद्युत क्षेत्र के कारण छोटा आयन बड़े आयन की तुलना में जल या विलायक के अधिक अणुओं को अपनी ओर खींचता है जिससे यह आयन स्वतन्त्र न रहकर जलयोजित या विलायकीकृत ( Solvated ) हो जाएगा तथा इसका प्रभावी अर्द्धव्यास विलयन में बढ़ जाएगा। इस कारण से यह कम जलयोजित या अजलयोजित आयन की अपेक्षा धीमी गति से चलेगा जिससे इसकी गतिशीलता व तुल्यांकी चालकता के मान कम होगें उदाहरणार्थ Li’ (छोटे आयन) की जलयोजन क्षमता K+ से अधिक होती है जिसके कारण Li की तुल्यांकी चालकता व आयनिक गतिशीलता K + से कम है।

स्टॉक के नियमानुसार बहुआवेशित आयनों (Multiple charged ions) की गतिशीलता एकल आवेश (single charged) युक्त आयन से अधिक होनी चाहिए लेकिन बहु आवेशित आयनों व एकल आवेशित आयनों की गतिशीलता में अन्तर बहुत कम है। (Na+ = 50.1, Mg 2+ = 55.0, Al3+ = 63.0) । इसका कारण बहु आवेशित आयनों की सतह पर प्रबल विद्युत क्षेत्र होने से इनकी जलयोजन (विलायकीकरण) की मात्रा अधिक हो जाती है जिससे इनकी गतिशीलता में अधिक वृद्धि नहीं हो पाती।

 हाइड्रोजन व हाइड्रॉक्सिल आयनों की चालकता (Conductance of Hydrogen and Hydroxyl lons)

हाइड्रोजन तथा हाइड्रॉक्सिल आयनों की आयनिक चालकताऐं जल अथवा ऐल्कोहॉल विलायक में अन्य आयनों की तुलना में बहुत अधिक होती है। इसका कारण प्रोटॉन का एक स्पीशीज से दूसरी स्पीशीज पर कूदना है। जल में H+ आयन हाइड्रोनियम आयन H3O+ के रूप में रहते हैं। चित्र 5.11 में बताये अनुसार इसमें एक प्रोटॉन H3O+ आयन से पास वाले जल के अणु पर स्थानान्तरित होकर नया HO’ बनाता है। इसमें हाइड्रोजन बंध की पुर्नव्यवस्था होती है। इस प्रकार नया बनने वाला H3O+ आयन फिर प्रोटॉन (H’) पास वाले जल के अणु को देता है तथा यह प्रक्रम चलता रहता है। इसमें प्रोटॉन एक सिरे से दूसरे सिरे तक स्थानान्तरित होता है न कि विलयन में अभिगमन करता है।

अर्थात् इस स्थानान्तरण में बाएं से दाएं प्रोटॉन के स्थानान्तरण में जल के अणु का निम्नानुसार आणविक घूर्णन होता है।

पहले जैसी स्थिति प्राप्त करने के लिए अणु को 90° पर घुमाना होगा। चित्र 5.12 (a) में स्थानान्तरण की प्रारम्भिक अवस्था (b) में मध्य अवस्था तथा (c) में अन्तिम अवस्था दर्शायी गयी है। इसी प्रकार OH- आयनों का स्थानान्तरण भी चित्र 5.11 व 5.12 में दिखाये अनुसार होता है।

आयनों के अभिगमन द्वारा विद्युत चालन विलयन में H’ तथा OH- आयनों के अभिगमन के स्थान पर प्रोटॉन का स्थानान्तरण होता है जिससे इनका अभिगमन माध्यम की विस्कासिता पर निर्भर नहीं करता है। अतः इनकी आयनिक तुल्यांकी चालकताऐं अन्य आयनों की तुलना में बहुत अधिक होती है। इनको निम्न प्रकार भी समझा सकते हैं।

इसी प्रकार यह माना गया कि हाइड्रॉक्सिल आयन की जल में बहुत अधिक गतिशीलता या तुल्यांकी चालकता हाइड्रोक्सिल आयन व जलीय अणु के मध्य प्रोटॉन के स्थानान्तरण के कारण होती है। इस प्रकार जलीय अणु विलयन में H’, OH- आयन ले जाने के बजाय एक सेतु (Bridge) का कार्य करता है जैसा कि रिले रेस में होता है।

चालकता पर ताप का प्रभाव (Effect of Temperature on Conductance ) 

सारणी 5.11 चालकता पर ताप का प्रभाव

उपरोक्त सारणी 5.11 से स्पष्ट है कि ताप बढ़ाने पर सभी विद्युत अपघट्यों की चालकताऐं बढ़ती है। इसका कारण यह है कि ताप बढ़ने पर माध्यम की विस्कासिता कम होती है। एक डिग्री ताप बढने पर विस्कासिता में लगभग 2.5% की कमी होती है। इससे आयनों की गति बढ़ती है। इस गति के बढ़ने के कारण चालकता में वृद्धि होती है। अनन्त तनुता पर तुल्यांकी चालकता में तापक्रम के साथ परिवर्तन को निम्न सूत्र द्वारा दिया जाता है।

यहाँ  क्रमशः 1° से. व 25° से. पर अनन्त तनुता पर तुल्यांकी चालकताऐं है। प्रत्येक विद्युत अपघट्य के लिए x एक स्थिरांक (ताप गुणांक) है जिसका मान अम्लों के लिए 0.016 क्षारों के लिए 0.019 तथा लवणों के लिए 0.022 से 0.025 तक होता है। अर्थात् विद्युत अपघट्‌यों के जलीय विलयन में तुल्यांकी चालकता में वृद्धि 2% प्रति डिग्री (0° से. से 100° से के परास में) होती है। प्रबल विद्युत अपघट्यो के लिए समीकरण (76) उपयुक्त है जबकि दुर्बल विद्युत अपघट्यों के लिए ताप के साथ ★ तुल्यांकी चालकता का परिवर्तन नियमित नहीं है। अतः हम कह सकते हैं कि ताप के साथ चालकता में वृद्धि विलयन की विस्कासिता से कमी, आयनों की गति में वृद्धि तथा आयनन की मात्रा में वृद्धि (दुर्बल अपघट्यों के लिए) के कारण होती है।

दाब बढ़ाने पर विलयन की विस्कासिता में थोड़ी वृद्धि होती है जिससे आयनों की गति घटती है परिणामस्वरूप दाब बढ़ाने पर विलयन की चालकता में कमी होती है।

 चालकता पर विलायक का प्रभाव ( Effect of Solvent on Conductance)

हम जानते हैं कि दो विपरीत आवेशित आयनों के मध्य स्थिर विद्युत आकर्षण बल माध्यम के परावैद्युत स्थिरांक (D) के व्युत्क्रमानुपाती होता है अर्थात्

इस समीकरण से स्पष्ट है कि यदि विलायक का परा वैद्युत स्थिरांक उच्च होगा तो आयनों के मध्य आर्कषण बल कम होगा और यदि विलायक का परावैद्युत स्थिरांक निम्न होगा तो आयनों के मध्य आकर्षण भी अधिक होगा। अतः कम परा वैद्युत स्थिरांक वाले विलायकों में वैद्युत अपघट्य का आयनन कम होता है जिससे विपरीत आवेश वाले आयनों के मध्य स्थिर वैद्युत आकर्षण बल अधिक होने से चालकता का मान कम होता है। जबकि उच्च परा वैद्युत स्थिरांक वाले विलायकों में आयनन की मात्रा अधिक होने के कारण चालन क्षमता अधिक होती है जिससे चालकता अधिक होगी।

विद्युत धारा के उच्च विभव तथा उच्च आवृत्ति पर चालकता (Conductance at high potential and high frequency of current)

उच्च कोटि के विभव (E > 105 वोल्ट प्रति सेमी.) के विद्युत क्षेत्र में किसी प्रबल विद्युत अपघट्य विलयन की चालकता का अध्ययन करने पर यह पाया गया कि इसकी चालकता में वृद्धि होती है। इसका कारण उच्च तीव्रता वाले विद्युत क्षेत्र में आयन की गति का बढ़ना है जिससे वह विपरीत आवेश युक्त आयनिक परिमण्डल को पीछे छोड़ देता है तथा इसके प्रभाव से मुक्त होकर स्वतन्त्र रूप से चलने लगता है। जिससे असममित या शिथिलन प्रभाव नगण्य हो जाता है। इसे सबसे पहले विन ने बताया । अतः चालकता पर उच्च विभव के प्रभाव को विन का प्रभाव (Wien effect) कहते हैं।,

डेबाई फाकेन हेगन ने प्रबल विद्युत अपघट्यों के विलयन की चालकता का अध्ययन प्रत्यावर्ती धारा (Alternating Current) की विभिन्न आवृत्तियों पर किया तथा उन्होंने पाया कि धारा की आवृत्ति बढ़ाने पर चालकता में वृद्धि होती है। जबकि उच्च आवृत्ति बढ़ाने पर चालकता में वृद्धि होती है। जब उच्च आवृत्ति होती है (106 Hz) तब आयनिक परिमण्डल के शिथिलन समय की तुलना में दोलन का समय बहुत कम होता है जिससे वस्तुतः सममितता लगभग नगण्य हो जाती है। इस कारण आयन तथा आयनिक परिमण्डल तेजी से बदलते हुए क्षेत्र का अनुगमन नहीं कर सकते फलस्वरूप केन्द्रीय आयन के चारों ओर आयनिक परिमण्डल सममितता में होता है जिससे आयन की गति पर आयनिक परिमण्डल द्वारा लगने वाला वैद्युत आकर्षण बल बहुत कम होने से उसकी चाल में कमी (retardation) बहुत कम अर्थात् नगण्य हो जाती है फलस्वरूप आयन स्वतन्त्र रूप से चलने लगता है जिससे चालकता में वृद्धि होती है।

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