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विद्युत क्षेत्र रेखाएँ क्या है , परिभाषा व रेखाओं गुण धर्म या विशेषताएं electric field lines of force in hindi ,

विद्युत क्षेत्र रेखाएँ (electric field lines in hindi) : हमने बात की थी की प्रत्येक आवेश अपने चारो ओर एक क्षेत्र उत्पन्न करता है जिससे वह अन्य आवेश की उपस्थिति तथा अनुपस्थिति महसूस करता है इस क्षेत्र को हमने विद्युत क्षेत्र कहा था।
यदि विद्युत क्षेत्र को ग्राफीय रूप में निरूपित किया जावे तो यह कुछ रेखाओं (सतत) के रूप में प्राप्त होता है इस ग्राफीय निरूपण को ही विद्युत क्षेत्र रेखाएँ कहते है।

विद्युत क्षेत्र की परिभाषा :
जब एक धन परिक्षण आवेश को विद्युत क्षेत्र में स्वतंत्रतापूर्वक छोड़ा जाता है तो वह जिस पथ का अनुसरण करता है उसे उस विद्युत क्षेत्र की बल रेखा कहते है।
19 वीं शताब्दी में फैराडे ने विद्युत क्षेत्र रेखाओं की अवधारणा दी थी।

विद्युत क्षेत्र रेखाओ से सम्बन्धित महत्वपूर्ण गुणधर्म या विशेषताएं :

1. विद्युत क्षेत्र रेखा या विद्युत बल रेखा के किसी बिंदु पर खींची गई स्पर्श रेखा , उस बिन्दु पर विद्युत क्षेत्र की दिशा को व्यक्त करती है।
अर्थात विद्युत क्षेत्र के किसी बिंदु पर विद्युत क्षेत्र सदिश की दिशा ज्ञात करने के लिए उस बिन्दु पर निरूपित विद्युत क्षेत्र रेखा पर रेखा खींची जा सकती है और रेखा की परिणामी दिशा , विद्युत क्षेत्र (उस बिंदु पर) की दिशा होगी।
2. विद्युत बल रेखाएं धनावेश से शुरू होकर ऋणावेश पर समाप्त हो जाती है।

3. एकल आवेश (एक ही आवेश) उपस्थित है तो क्षेत्र रेखाएं अनंत से शुरू होती है और अनन्त पर ही समाप्त होती हुई प्रतीत होती है।
4. एक विलगित धनावेश के कारण विद्युत क्षेत्र रेखाएँ त्रिज्यत बाहर की तरफ तथा ऋणावेश के कारण क्षेत्र रेखाएं त्रिज्यत अंतर की तरफ होती है।
5. दो विद्युत क्षेत्र रेखा कभी एक दूसरे को नहीं काटती है क्योंकि यदि ये एक दूसरे को काटे तो कटान बिंदु पर दोनों वक्रों पर खींची गयी स्पर्श रेखा दो परिणामी विद्युत क्षेत्रों को व्यक्त करती है जो की वास्तविकता में सम्भव नहीं है।
अतः दो बल रेखाओ का आपस में कटान संभव नहीं है।
6. विद्युत बल रेखाएं खुले वक्र के रूप में होती है क्योंकि ये रेखाएं धन आवेश से शुरू होती है तथा ऋण आवेश पर समाप्त होती है।
7. किसी भी आवेश से शुरू या समाप्त होने वाली बल रेखाओ की संख्या उस आवेश के परिमाण के समानुपाती होती है अर्थात जितनी ज़्यादा रेखाएं उतना ही अधिक परिमाण का आवेश।
8. किसी स्थान पर विद्युत क्षेत्र के लंबवत रखे एकांक क्षेत्रफल से गुजरने वाली बल रेखाओं की संख्या उस स्थान पर विद्युत क्षेत्र की तीव्रता के तुल्य (समानुपाती) होती है।  अर्थात क्षेत्र रेखाएं जितनी पास पास होती है क्षेत्र उतना ही अधिक प्रबल होता है और यदि बल रेखाएं दूर दूर है तो विद्युत क्षेत्र दुर्बल है।
9. एक क्षेत्र रेखा जिस बिंदु आवेश से प्रारम्भ होती है उसी आवेश पर समाप्त नहीं होती है।  विद्युत क्षेत्र रेखाएं कभी भी बंद लूप में नहीं होती।
10. विद्युत क्षेत्र रेखाएं लम्बाई की दिशा में सिकुड़ने (संकुचित) का प्रयास करती है अतः कह सकते है की विपरीत आवेशों में आकर्षण होता है।
तथा क्षेत्र रेखाएं चौड़ाई की दिशा में फैलने का प्रयास करती है अतः कहा जा सकता है की समान प्रकृति के आवेश एक दूसरे को प्रतिकर्षित करते है।

11. विद्युत बल रेखाएं समविभव पृष्ठ (आवेशित चालक) के हमेशा लंबवत होती है।


विद्युत बल रेखाएँ (electric lines of force in hindi) : विद्युत बल रेखाओं की धारणा माइकल फैराडे द्वारा दी गयी थी। विद्युत बल रेखा एक काल्पनिक रेखा होती है जिसके किसी बिन्दु पर खिंची गयी स्पर्श रेखा उस बिन्दु पर क्षेत्र की तीव्रता की दिशा को व्यक्त करती है।

एकांक क्षेत्रफल से गुजरने वाली बल रेखाएँ उस बिन्दु पर विद्युत क्षेत्र की तीव्रता के परिमाण को व्यक्त करती है।

विधुत बल रेखाओ से सम्बंधित महत्वपूर्ण बिंदु :

  1. विद्युत बल रेखाएँ धनावेश से प्रारंभ होती है या फैलती है और ऋण आवेश पर समाप्त होती है या एकत्रित होती है।
  2. किसी आवेश से उत्पन्न होने वाली बल रेखाएँ उस आवेश के परिमाण के समानुपाती होती है।
  3. SI मात्रक में एक कूलाम आवेश से सम्बद्ध बल रेखाओ की संख्या 1/∈0 होती है। अत: किसी वस्तु में यदि q आवेश है तो उससे निर्गमित कुल फ्लक्स रेखाएँ q/∈0 होगी। यदि वस्तु घनाकार है और आवेश इसके केंद्र पर स्थित है तो इसके प्रत्येक फलक से निर्गमित बल रेखाओं की संख्या q/6∈0 होगी।
  4. विद्युत बल रेखायें कभी भी एक दुसरे को नहीं काटती है क्योंकि यदि वे एक दुसरे को कटेगी तो उस बिंदु पर विद्युत क्षेत्र की दो दिशाएँ प्रदर्शित करती है तो की असंभव है।
  5. स्थिरवैद्युतिकी में विद्युत बल रेखाएं कभी भी बंद वक्र के रूप में नहीं होती है क्योंकि बल रेखा कभी भी एक ही आवेश से प्रारंभ तथा समाप्त नहीं होती है। यदि बल रेखा बंद वक्र के रूप में होगी तो बंद पथ के अनुदिश किया गया कार्य शून्य नहीं होगा और विद्युत क्षेत्र , संरक्षी क्षेत्र नहीं रहेगा।
  6. विद्युत बल रेखाएं तनी हुई प्रत्यास्थ डोरी की भाँती अनुदैर्ध्य दिशा में संकुचित होने की प्रवृत्ति रखती है। जिससे विपरीत आवेशो के मध्य आकर्षण होता है और पाशर्व में फैलने की प्रवृति होती है। जिससे समान आवेशो के मध्य प्रतिकर्षण होता है एवं आवेशित चालक के किनारों के पास बल रेखाओ के घुमाव (किनारा प्रभाव) होता है।
  7.  यदि बल रेखाएँ समान दूरी पर सरल रेखाएँ है तो क्षेत्र समरूप है और यदि बल रेखाएँ समान दूरी पर या सरल रेखाएँ अथवा दोनों ही नहीं है तो क्षेत्र असमरूप होगा।
  8. किसी चालक की सतह से बल रेखाएँ लम्बवत आरम्भ या अंत होती है। यदि कोई बल रेखा चालक की सतह पर अभिलम्बवत नहीं होगी तो चालक की सतह समविभव नहीं होगी जो सम्भव नहीं है क्योंकि स्थिर वैद्युतिकी के अनुसार चालक की सतह समविभव पृष्ठ होती है।
  9. किसी बिंदु पर एकांक क्षेत्रफल से अभिलम्बवत गुजरने वाली बल रेखाओ की संख्या उस बिन्दु पर विद्युत क्षेत्र की तीव्रता को व्यक्त करती है। पास में स्थित अधिक बल रेखाएँ तीव्र क्षेत्र को और दूर स्थित कम बल रेखाएँ क्षीण क्षेत्र की प्रदर्शित करती है।
  10. यदि आकाश के किसी क्षेत्र में कोई विद्युत क्षेत्र नहीं है तो वहाँ बल रेखाएं भी नहीं होंगी। यही कारण है कि किसी चालक के अन्दर या उदासीन बिंदु पर जहाँ विद्युत क्षेत्र की तीव्रता शून्य होती है। कोई बल रेखा नहीं होती है।
  11. विद्युत बल रेखा के किसी बिंदु पर खिंची गयी स्पर्श रेखा उस बिंदु पर विद्युत क्षेत्र की तीव्रता की दिशा को व्यक्त करती है। यह बल की दिशा को व्यक्त करती है अर्थात उस बिंदु पर धनावेश के त्वरण की दिशा को व्यक्त करती है न कि गति की दिशा को। गति के लिए स्वतंत्र धनावेश बल रेखा का अनुगमन कर सकता है एवं नहीं भी। यदि बल रेखा , सरल रेखा है तो यह अनुगमन नहीं करेगा क्योंकि वेग और त्वरण एक ही दिशा में होंगे और यदि बल रेखा वक्राकार है तो यह उसका अनुगमन करेगा क्योंकि वेग और त्वरण अलग अलग दिशा में होंगे। कण की गति की दिशा में या त्वरण की दिशा में अर्थात बल रेखा की दिशा में गति नहीं करेगा लेकिन ये समय के साथ v = u + at के अनुसार परिवर्तित होगा।

विद्युत बल रेखाओं की परिभाषा (electric field lines definition in hindi)

विद्युत क्षेत्र में स्वतन्त्रता पूर्वक छोड़ा गया धन परिक्षण आवेश जिस मार्ग का अनुसरण करता है , उस मार्ग को उस क्षेत्र की वैद्युत बल रेखा कहा जाता है। वैद्युत बल रेखाओ की विशेषताएँ निम्न प्रकार है –
  • वैद्युत बल रेखाएँ धन आवेश से ऋण आवेश की ओर चलती है।
  • विद्युत बल रेखा के किसी बिंदु पर खिंची गयी स्पर्श रेखा उस बिंदु पर परिणामी विद्युत क्षेत्र की दिशा को प्रदर्शित करती है।
  • दो बल रेखाएँ कभी एक दुसरे को नहीं काटती है क्योंकि यदि वे काटेगी तो कटान बिंदु पर दोनों वक्रो पर खिंची गयी स्पर्श रेखाएं दो परिणामी विद्युत क्षेत्र प्रदर्शित करेंगी जो कि संभव नहीं है इसलिए बल रेखाओं का काटना कभी भी संभव नहीं है।
  • विद्युत बल रेखाएं जहाँ से चलती है तथा जहाँ पर मिलती है , दोनों जगह पृष्ठ के लम्बवत होती है।
  • विद्युत बल रेखाएं खुले वक्र के रूप में होती है क्योंकि ये धनावेश से चलकर ऋण आवेश पर समाप्त हो जाती है।
  • किसी स्थान पर विद्युत बल रेखाओ का पृष्ठ घनत्व अर्थात एकांक क्षेत्रफल से गुजरने वाली बल रेखाओं की संख्या उस स्थान पर विद्युत क्षेत्र की तीव्रता के अनुपात में होता है अर्थात बल रेखाएं जितनी सघन (अधिक) होंगी वहां विद्युत क्षेत्र उतना ही प्रबल होगा। बल रेखाओं की संख्या के पदों में विद्युत क्षेत्र की तीव्रता की परिभाषा को निम्न प्रकार दिया दी जा सकती है –
किसी स्थान पर बल रेखाओ की दिशा के लम्बवत एकांक क्षेत्रफल से गुजरने वाली बल रेखाओ की संख्या उस स्थान पर विद्युत क्षेत्र की तीव्रता के तुल्य होती है।
  • ये खिंची हुई लचकदार डोरी के समान लम्बाई में सिकुड़ने का प्रयत्न करती है , इसी कारण विपरीत आवेशो में आकर्षण होता है।
  • ये अपनी लम्बाई की लम्ब दिशा में एक दूसरे से दूर रहने का प्रयास करती है अत: समान आवेशो के मध्य प्रतिकर्षण होता है।