(soil erosion meaning in hindi) भूमि अपरदन , मृदा अपरदन किसे कहते है ? प्रकार , कारण , उपाय : भू-अपरदन से भूमि की उपजाऊ परत तथा रासायनिक अपरदन से रासायनिक पदार्थ नदी के माध्यम से सागर तक पहुँच जाते है। भू-अपरदन से तलछट एवं मिट्टी के कारण नदियों की गहराई कम और चौड़ाई अधिक हो जाती है।
इसलिए पानी की मात्रा अधिक होने से आसपास के क्षेत्रों में बाढ़ का रूप बढ़ जाता है और उपजाऊ परत पानी के साथ बहा ले जाता है।
औद्योगिक परिसर में स्थित छोटे बड़े कारखानों से निकले अपशिष्ट को निकटवर्ती देहातों अथवा जल स्रोतों में छोड़ दिया जाता है। इन अपशिष्टों में व्याप्त विषाक्त धातुएं जल और अवसाद में पहुँच कर जल प्रदुषण का कारण बन जाती है।
ऊपर बताये गए कारणों के अलावा जल प्रदूषण का एक बहुत ही महत्वपूर्ण कारण है – मल जल , जिसमे घरेलू कार्य से उत्पन्न जलों का समावेश है। इसमें भिन्न भिन्न प्रकार के कार्बनिक और अकार्बनिक कण पाए जाते है। इसमें कई तरह के रोगमूलक जीवाणु भी बहुतायत में पाए जाते है। मल-जल प्रदूषण भी रोगवाहक जीवाणुओं की सहायता से रोगों को जन्म देता है। प्रदूषित जल में विषाणु , जीवाणु , प्रोटोजोआ , कृमि , लेप्टोस्पाइस रोग जनक जीव पाए जाते है। इसके अलावा इसमें सोप तथा डिटर्जेंट की मात्रा अधिक होती है जो कि नहाने और कपडे धोने के पानी से आती है। इन विभिन्न प्रकार के अपजलों के अतिरिक्त जल प्रदुषण के कुछ स्थानीय कारण भी है। जैसे मृत शरीरों का नदियों में फेंकना , राख और हड्डियों का नदी में विसर्जन , अनेको पर्वो पर नदियों में स्नान और पूजा अर्चना , त्योहारों में प्रतिमाओं का विसर्जन करना , जानवरों को जल में नहलाना आदि।
सन 1991 में हुए कुवैत में खाड़ी युद्ध के दौरान तेल बहने की दुर्घटना सभी घटनाओं से अलग और भयानक थी। तेल बह जाने से 300 से अधिक तेल की झीले बन गयी जिनका क्षेत्रफल 50 वर्ग किलोमीटर से अधिक था। वहां से सभी समुद्री जीव जन्तु और वनस्पतियों का विनाश हो गया और समुद्र का पारिस्थितिकीय संतुलन डगमग गया। इस तेल से जो कीचड़ बना वह जमीन के निचे के पानी के भण्डारों तक पहुँच गया।
जल में अपशिष्ट पदार्थो के सड़ने से अमोनिया , हाइड्रोजन सल्फाइड आदि की उत्पत्ति अधिक होने से जीव जन्तु मौत के मुँह में चले जाते है। प्रदूषित जल में ऑक्सीजन की कमी से जलीय जन्तु विशेषकर मछलियाँ श्वसन हेतु ऑक्सीजन न मिलने पर मर जाती है। सूक्ष्म जीवों द्वारा प्रदूषित जल जन्य रोगों को पांच मुख्य वर्गों में बाँटा गया है –
1. विषाणु जन्य रोग
2. जीवाणु जन्य रोग
3. प्रोटोजोआ जन्य रोग ; अमीबा रुग्णता , जिआर्डिया
4. कृमि जन्य : गोल कृमि , कृषा कृमि , सूत कृमि
5. लेप्टोस्पाइस रुग्णता : नेलस रोग
यमुना नदी के भारी प्रदुषण के कारण 50 हजार लोगों को पीलिया हुआ था जिसमें सैकड़ों लोगों की जानें गयी थी। हाल ही में दिल्ली में फैले डेंगू रोग का कारण भी जल प्रदूषण ही है। जल को प्रदूषण से रोकने के लिए विभिन्न अपशिष्ट जल की गुणवत्ता आवश्यक है।