अध्याय 9 : द्वितीय व्यवसाय (secondary business)
द्वितीय व्यवसाय (secondary business in hindi) : प्राथमिक व्यवसाय से प्राप्त कच्चे पदार्थ ये जहाँ परिवर्तन व परिमार्जन का काम होता है इससे इसके मूल्य में बढ़ोतरी हो जाती है , उसे द्वितीयक व्यवसाय कहते है।
उदाहरण : कपास से धागा – धागा से कपडा बनाना ऊर्जा उत्पादन विनिर्माण , उद्योग , प्रसंस्करण
विनिर्माण : वस्तु : अर्द्ध संरचना का निर्माण , मकान भवन निर्माण
उद्योग : किसी वस्तु के निर्माण से।
मशीनों के निर्माण से।
उद्योग : आर्थिक उत्पादन के लिए किया जाने वाला आर्थिक कार्य ही उद्योग कहलाता है। आद्योगिक विकास या उद्योग द्वारा किया गया कार्य किसी देश की आर्थिक संपदा का पाये दृढ होता है।
उद्योगो को 10 भागो में बाँटा गया है –
- इंजीनियरिंग
- निर्माण
- इलेक्ट्रॉनिक
- रासायनिक
- शक्ति
- वस्त्र
- भोजन व पेयजल
- धातुक्रम
- प्लास्टिक उद्योग
- परिवहन संचार
उद्योगों के स्थानीकरण को प्रभावित करने वाले कारक :
1. कच्चे पदार्थो की निश्चित आपूर्ति
उदाहरण : चीनी मिल – गन्ना
2. तकनिकी व प्रोद्योगिकी :
उदाहरण : सूती वस्त्र उद्योग सबसे पहले मुंबई में शुरू हुआ था क्योंकि वहां आसानी से मशीने प्राप्त हो जाती है।
3. श्रम की उपलब्धता : सस्ते व सुलभ मानव श्रम की आवश्यकता उद्योग को स्थापित करने के लिए कच्चा पदार्थो , सस्ता श्रम , परिवहन की उपलब्धता संचार की उपलब्धता यह सब जम्शेर्दपुर जहाँ लोहा इस्पात उद्योग है।
4. परिवहन व संचार के साधन के साधन की उपलब्धता :
उदाहरण : कोलकाता व जमशेदपुर तक रेल का जाला बिछा है।
इस रेल व सडक के द्वारा कच्चा पदार्थ मशीन , तकनीके प्रोधोगिकी का आसानी से आयात व निर्यात होता है और जो राउलकेला व जमशेदपुर तक भी रेल का जाल बिछा है इससे राउलकेला लोहा तो दे आता है व कोयला ले आता है।
5. बाजार की निकटता :
उदाहरण : कपास – वस्त्र
उद्योग से प्राप्त उत्पाद आसानी से बाजार में बिक जाए जिससे उन्हें जल्दी ही मुनाका हो जाए इसीलिए बाजार के निकट स्थापित किये जाते है।
6. शक्ति के साधन : सबसे अधिक ऊर्जा एल्युमिनियम उद्योग में लगती है।
7. पूँजी : कच्चे पदार्थो मशीनों व तकनिकी प्रोद्योगिकी के लिए पूंजी के आवश्यकता होती है।
8. जलपूर्ति : जल विद्युत और जल से हम उद्योग में विभिन्न कार्यो में आसानी से उपयोग में ले सकते है।
9. जलवायु : अनुकूल जलवायु वाले क्षेत्रो में कार्य करने की क्षमता अधिक होती है।
10. सरकार की निति : अगर सरकार अनुदान दे तो उद्योग आसानी से स्थापित हो सकता है।
उद्योगों का वर्गीकरण : यह चार प्रकार का होता है –
(i) स्वामित्व
(ii) आकार
(iii) कच्चा माल
(iv) उत्पाद
(ii) आकार :
(a) कुटीर
(b) लघु
(c) मध्यम
(d) वृहत बड़े पैमाने के उद्योग
(a) कुटीर : कुटीर उद्योगों में परिवार के ही श्रमी काम करते है।
उदाहरण : टोकरी बनाना
(b , c) लघु मध्यम : छोटे पैमाने के उद्योगों में कच्चा माल आस-पास के क्षेत्रों से लिया जाता है या प्राप्त किया जाता है और इस अपने ही स्थानीय या निकट के बाजार में बेचकर पैसे कमाते है इसमें परिवार के अलावा भी लोग काम करने आते है।
उदाहरण : सरसों के तेल निकालना
(d) वृहत : यह बड़े पैमाने उद्योग कहलाते है। इसमें कच्चा माल बहुत दूर-दूर से आता है और इसमें कुशल श्रमिक की आवश्यकता होती है व तकनीके प्रोद्योगिक की व पूंजी की अधिक आवश्यकता होती है।
प्रश्न 1 : विश्व में लोहा उद्योगों का मानचित्र बनाकर वर्णन कीजिये।
उत्तर : लोहा इस्पात : यह विकसित देश में किया जाता है इससे बहुत बड़ी पूंजी निवेश करनी पडती है उच्चतम तकनिकी व प्रोधोगिकी की आवश्यकता होती है इसमें अधिक संख्या में श्रमिक की भी आवश्यकता होती है यह वहां विकसित होता है जहाँ –
- इस कच्चा माल आसानी से प्राप्त हो।
- सस्ते श्रमिको की उपलब्धता
- परिवहन व संचार की उपलब्धता
- बाजार के निकटता
- शक्ति के साधन
- पूँजी
- अनुकूल जलवायु
- जलपूर्ती
- एक बड़े क्षेत्र में
- सरकार की निति