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सापेक्ष विन्यास पद्धति (relative configuration method) , E/Z method , निरपेक्ष विन्यास पद्धति (absolute configuration method) (R/S)

सापेक्ष विन्यास पद्धति (relative configuration method) : इसमें एक कार्बनिक यौगिक को आधार मानकर दूसरे कार्बनिक यौगिक का नाम लिखा जाता है।  इसे सापेक्ष विन्यास पद्धति कहते है।
यह पद्धति सर्वप्रथम रोजनाफ द्वारा 1906 में दी गयी।
इस पद्धति का विस्तार हुड्सन द्वारा 1949 में किया गया।
इस पद्धति द्वारा ग्लूकोस यौगिको के नाम glyceraldehyde के आधार मानते हुए दिए गए।

उपरोक्त के आधार पर ग्लूकोज के नाम निम्न प्रकार लिखे जाते है –

उदाहरण 2 : इसी प्रकार अमीनो अम्ल के नाम alanine आधार मानकर दिए जाते है –

प्रकृति में सभी एमिनो अम्ल L-विन्यास वाले ही होते है इसलिए इन्हें कभी D-विन्यास के रूप में नहीं लिखा जाता है।
इन यौगिको को अभिक्रियाओ में प्रमुख करने पर इनके विन्यास में कोई परिवर्तन नहीं होता परन्तु समूह बदल जाते है।
3. E/Z method : वे द्विबन्ध युक्त कार्बन जिन पर चार अलग-अलग समूह जुड़े हो तो ऐसे यौगिको का नामकरण जिस पद्धति द्वारा किया जाता है , उसे E/Z पद्धति कहते है।
E/Z पद्धति द्वारा भी ज्यामिति समावयवो के नाम लिखे जाते है।
इस पद्धति में समपक्ष यौगिक को जर्मन भाषा में भाषा में Z = Zusammen (साथ साथ) लिखा जाता है व विपक्ष समावयवी को E = entegen (विपरीत) के रूप में लिखा जाता है।
यह पद्धति तीन वैज्ञानिको द्वारा मिलकर दी गयी इसलिए इसे Cahn-Ingold -prelog (कॉन इन्गोल्ड प्रलोग) पद्धति भी कहते है।
यह पद्धति S कॉन इन्गोल्ड प्रलोग के अनुक्रम नियम पर आधारित है।
इसमें द्विबंध वाले कार्बन पर जुड़े समूह का निर्धारण परमाणु क्रमांक के बढ़ते क्रम के रूप में व्यवस्थित करते है।
यदि इसमें पहले तत्व का परमाणु क्रमांक समान है तो दुसरे तत्व को देखा जाता है।
इसमें कम परमाणु क्रमांक वाले समूह एक तरह हो तो उसे Z व विपरीत हो तो उसे E के रूप में लिखते है।
इस पद्धति में कुछ समूह को निम्न रूप में समझा जाता है।

निरपेक्ष विन्यास पद्धति (absolute configuration method) (R/S)

वे कार्बनिक यौगिक जिनमे दो कीरेल कार्बन पाया जाता है उन यौगिको का नामकरण जिस पद्धति द्वारा किया जाता है उसे निरपेक्ष विन्यास पद कहते है।
यह पद्धति भी कॉन-इन्गोल्ड प्रलोग अनुक्रम नियम के सिद्धांत पर आधारित है।
इस पद्धति में भी यौगिक में उपस्थित समूह को अणुभार (परमाणु क्रमांक का बढ़ता क्रम) के बढ़ते क्रम में व्यवस्थित करते है।
इस पद्धति समपक्ष को लेटिन भाषा में R = Reetus (दायाँ / clock wise) कहते है।  इस पद्धति में विपक्ष को S = sinister (बायाँ / anticlock wise) कहते है।
इस पद्धति में सबसे कम वरीयता वाले समूह को अपनी दृष्टा से दूर रखा जाता है।

फिशर प्रसेपण सूत्र से R/S पद्धति (R/S method in fisher projection)

इस पद्धति में फिशर प्रसेपण सूत्र के रूप में यौगिक को प्रदर्शित करते है।
इसमें सबसे कम वरीयता वाले समूह को उर्ध्वधर रेखा के ऊपर या नीचे रखते है।
यदि इसमें सबसे कम वरीयता वाला समूह क्षैतिज रेखा पर होता है तो उसे या तो विपरीत समावयवी के रूप में लिखते है या फिर तो अन्त परिवर्तन द्वारा उसे उर्ध्वधर रेखा पर लाया जाता है।

दो किरेल कार्बन युक्त यौगिक या two chiral carbon stereo compound

यह दो प्रकार का होता है –
1. दो अलग अलग समूह युक्त यौगिक
2. दो समान समूह युक्त यौगिक
1. दो अलग अलग समूह युक्त यौगिक :
उदाहरण : 2,3 dichlorobutanoic acid
संरचना I व II एक दुसरे के प्रतिबिम्ब समावयवता है जिन्हें प्रकाशिक समावयवता भी कहते है।
संरचना III व IV प्रतिबिम्ब समावयवी है , इन्हें प्रकाशिक समावयव भी कहते है।
संरचना I , संरचना III + IV के साथ अप्रतिबिम्ब समावयवी है जिन्हें विवरिम समावयवी भी कहते है।
संरचना II , संरचना III + IV के साथ अप्रतिबिम्ब समावयवी है , जिन्हें विवरिम समावयवी भी कहते है।
नोट :
(i) इन प्रतिबिम्ब समावयवी के भौतिक व रासायनिक गुण समान होते है परन्तु विवरिम समावयवों के रासायनिक गुण तो समान होते है परन्तु इनके भौतिक गुण समान नही होते है इसलिए इन विवरिम समावयवो को प्रभाजी आश्वन प्रभाजी क्रिस्टलन व वर्णलेखिकी विधियों द्वारा इन्हें प्रकाशिक समावयवों से पृथक कर सकते है।
(ii) इनमे प्रयुक्त Erythrose व Threose नाम चार कार्बन की कार्बोहाइड्रेट शर्करा के आधार पर लिखे हुए है।
(iii) इन यौगिको के प्रकाशिक समावयव व त्रिविम समावयव की संख्या चार होती है।

 

2. दो समान समूह युक्त यौगिक :
उदाहरण : Mesotaric acid
संरचना III व IV एक दुसरे के प्रतिबिम्ब समावयवी है जिन्हें प्रकाशिक समावयव भी कहते है।
इस यौगिक के प्रकाशिक समावयव तो दो (III व IV) व त्रिविम समावयव तीन (I , II , III व IV) है।
संरचना I व II में पाए जाने वाले दोनों कीरेल कार्बन की ध्रुवण घूर्णकता DC+ व LC- एक दूसरे के विपरीत पाए जाने के कारण आंतरिक प्रतिकार पाए जाने के कारण परिणामी विस्थापन शून्य हो जाता है तो ऐसे यौगिको को meso यौगिक कहते है।
मेसो यौगिको में यौगिक के बने दर्पण प्रतिबिम्ब को 180 डिग्री पर घुमाने से वह पुनः अपनी पूर्वत स्थिति में आ जाता है ऐसे यौगिक प्रकाशिक समावयवता नहीं दर्शाते है।
इस मेसो यौगिक में सममिति तल पाए जाने के कारण यह ध्रुवण अघूर्णक होता है व प्रकाशिक समावयवता नहीं दर्शाता है।