आदिम ज्ञान किसे कहते है | आदिम ज्ञान की परिभाषा क्या है Primitive knowledge in hindi meaning

Primitive knowledge in hindi meaning definition आदिम ज्ञान किसे कहते है | आदिम ज्ञान की परिभाषा क्या है ?

उत्तर : प्राचीन ज्ञान को आदिम ज्ञान कहा जा सकता है | जैसे प्राचीन समय में अन्तरिक्ष को लेकर हमारे पूर्वजों के पास जो ज्ञान या जानकारी थी उसे आदिम ज्ञान कह सकते है |

क्या आदिम ज्ञान विज्ञान के समान था?
मलिनॉस्की ने एक प्रश्न कियाः जो अनुभव पर आधारित और तर्कपरक आदिम ज्ञान को क्या विज्ञान की प्रांरभिक अवस्था कहा जा सकता है या यह विज्ञान से बिल्कुल भी संबंधित नहीं है? इस प्रश्न का उसने सीधा उत्तर यह दिया कि अगर हम विज्ञान को अनुभव और तर्क पर आधारित व्यवस्था मानें तो हमें यह स्वीकार करना होगा कि आदिम लोगों के पास विज्ञान का प्रांरभिक ज्ञान था।

दूसरे, यदि हम विज्ञान को एक मानसिक अभिवृत्ति (mental attitude) के रूप में देखें तो इस बारे में मलिनॉस्की का कहना है कि आदिम लोगों की अभिवृत्ति पूर्णतया अवैज्ञानिक नहीं है। यह हो सकता है कि उनमें ज्ञान प्राप्त करने की तीव्र अभिरूचि न हो। यह भी हो सकता है कि जिन विषयों में यूरोप के लोगों को गहरी दिलचस्पी हो उन्हें वे नीरस समझते हों। इसका कारण यह है कि किसी की रूचि का निर्धारण उसकी सांस्कृतिक परंपराओं से होता है। उनकी अपने आसपास के वातावरण से संबंधित प्राणियों के जीवन, समुद्री जीवन और वनों आदि में गहरी दिलचस्पी है। मलिनॉस्की अपने इस निबंध में आदिम ज्ञान की प्रकृति और उसके आधार से संबंधित प्रश्नों में नहीं गया है। वस्तुतः उसकी रुचि इस बात को जानने में अधिक है कि क्या आदिम लोगों के जीवन का कोई ऐसा क्षेत्र है, जहां जादू-टोना, विज्ञान और धर्म एक रूप हों, या वे इन तीनों पक्षों को सामाजिक जीवन के अलग-अलग क्षेत्र मानते हों। उसने यह दिखाने का प्रयास किया है कि ट्रॉब्रिएंड द्वीपवासियों के लिए व्यावहारिक क्रियाकलापों और तर्कपरक अभिवृत्तियों के क्षेत्र का एक दायरा है। उसने यह भी बताया कि उनकी यह दुनिया जादू-टोने और धार्मिक क्रियाकलापों की दुनिया से अलग है। आइए, अब पवित्र क्षेत्र के बारे में विचार करें, जिसमें धर्म और जादू-टोना दोनों शामिल हैं। परंतु पहले सोचिए और करिए 2 को पूरा करें। इस अभ्यास को करने से आपको जादू-टोने तथा धार्मिक आचार-व्यवहार पर थोड़ा सा चिंतन करने का अवसर मिलेगा।

सोचिए और करिए 2
अपने रोजमर्रा के जीवन से कुछ ऐसे उदाहरण दीजिए, जिनमें हम जादू-टोने और धार्मिक आचार-व्यवहार दोनों का आश्रय लेते हों। चार पृष्ठों की एक टिप्पणी लिखिए।

 पवित्र क्षेत्र – धर्म
अपने निबंध के इस भाग में मलिनॉस्की (1948ः36) ने निम्नलिखित बातों पर विचार किया है
प) तथ्यों को तरतीबवार करना (अब तक आपको यह बात मालूम हो गई होगी कि मलिनॉस्की के लिए यह हमेशा सबसे महत्वपूर्ण काम रहा है),
पप) पवित्र क्षेत्र की विशेषता का सही तरीके से निर्धारण और इसको लौकिक से अलग करना, और
पपप) जादू-टोने और धर्म के बीच संबंध को बताना।

उसने अंतिम बात से शुरू करते हुए बताया कि जादू-टोने और धर्म के बीच एक स्पष्ट अंतर यह है कि जादू-टोने के अनुष्ठानों का एक स्पष्ट उद्देश्य होता है और आगे आने वाली घटनाओं से उसके परिणाम का पता लगता है। धार्मिक अनुष्ठानों में विशिष्ट प्रयोजन और घटना की दृष्टि से परिणाम का पूर्व विचार नहीं देखने को मिलता। मलिनॉस्की ने आदिम लोगों में धार्मिक विश्वासों और व्यवहारों की प्रकृति के संबंध में जो चर्चा की है, वह इसी मुख्य अंतर पर आधारित है (आगे चलकर आपको धर्म और जादू-टोने के बीच समानताओं और असमानताओं के बारे में और जानकारी भी मिलेगी)। उसने धर्म के क्षेत्र को स्पष्ट करने के लिए लेख में आदिम लोगों में दीक्षा समारोहों का उदाहरण दिया है। दीक्षा समारोहों की प्रकृति, धार्मिक व्यवहार और इसके प्रकार्य की व्याख्या की है। मलिनॉस्की के धर्म पर विचार को समझने के लिए आइए हम इस विशिष्ट उदाहरण के बारे में विस्तार से चर्चा करें।

 दीक्षा अनुष्ठान समारोह
दीक्षा अनुष्ठान के नीचे दिये गए कुछ सामान्य अभिलक्षण (features) मलिनॉस्की (1948ः 38) ने दिए हैं।
प) दीक्षा पाने वाले व्यक्तियों को कुछ समय के लिए अकेले रहने पड़ता है। इस अवधि में वे अपने आपको अनुष्ठान के लिए तैयार करते हैं।
पप) दीक्षा अनुष्ठान के दौरान युवकों कई कठिन परीक्षाओं में से गुजरना पड़ता है। इनमें अंग-भंग भी शामिल है। कभी-कभी यह केवल दिखावा मात्र होता है, वास्तव में अंग-भंग नहीं किया जाता।
पपप) इन कठिन परीक्षाओं का मतलब प्रतीकात्मक रूप में आनुष्ठानिक मृत्यु है और इसके बाद, दीक्षा प्राप्त व्यक्ति का एक तरह से पुनर्जन्म होता है।
पअ) ये अभिलक्षण अनुष्ठानों के नाटकीय पक्ष का प्रतिनिधित्व करते है। इसमें पवित्र मिथकों (पुराण कथा) और परंपरा की व्यवस्थित शिक्षा मिलती है जिसमें जनजातीय रहस्यों का परदा क्रमशः उठाया जाता है। इस तरह, दीक्षित व्यक्तियों का परिचय पवित्र वस्तुओं से होता है।
अ) इन अनुष्ठानों के दौरान कठिन परीक्षा और शिक्षा के कार्य पुरखों या सांस्कृतिक पुरोहितों अथवा अलौकिक शक्ति सम्पन्न व्यक्ति के तत्वाधान में सम्पन्न कराए जाते हैं।

मलिनॉस्की ने धर्म, जादू, विज्ञान के बारे में जो प्रश्न बार-बार किए वे उनके समाजशास्त्रीय महत्व के बारे में थे। यहां वह फिर प्रश्न करता है कि आदिम संस्कृति को बनाए रखने में और उसके विकास में दीक्षा अनुष्ठान का क्या योगदान होता है? मलिनॉस्की के अनुसार, दीक्षा अनुष्ठानों की महत्वपूर्ण भूमिका है। इनमें युवकों को शारीरिक कष्ट की स्थिति में पवित्र परंपरा की सीख दी जाती है। ये अनुष्ठान महती शक्तियों के निरीक्षण में किये जाते हैं। स्पष्ट है कि अपने पुराने रीति-रिवाजों, परंपराओं में निहित ज्ञान की रक्षा ही इन अनुष्ठानों का उद्देश्य है। अनुष्ठानों के इस पक्ष पर जोर देते हुए मलिनॉस्की (1948रू 39) ने दीक्षा समारोह के निम्नलिखित प्रकार्यों का उल्लेख किया है।

प) वे अलौकिक शक्ति और आदिम जातियों की परंपराओं के मूल्य को आनुष्ठानिक और नाटकीय अभिव्यक्ति देते हैं।
पप) वे अलौकिक शक्ति और परंपराओं के मूल्यों की महत्ता को प्रत्येक पीढ़ी के लोगों को हदयंगम करवाते हैं।
पपप) वे जनजातीय लोक कथाओं को अगली पीढ़ी तक पहुंचाते हैं और इस तरह परंपरा को सुरक्षित रखते हैं। फलतः जनजातीय एकत्व बना रहता है।

इन संस्कारों के उपर्युक्त प्रकार्यो को बताने के साथ मलिनॉस्की एक अन्य पक्ष पर जोर देता है। यह है–दीक्षित नवयुवकों का एक स्थिति से दूसरी स्थिति में प्रवेश करना। दीक्षा समारोह ऐसे व्यक्तियों के लिए एक प्राकृतिक और जैविक घटना है अर्थात् वह उनके शारीरिक विकास की ओर संकेत करता है। शारीरिक ही नहीं, ये समारोह सामाजिक परिवर्तन के महत्व को भी प्रकट करते है। शारीरिक विकास की दृष्टि से दीक्षित युवक पुरुषत्व में प्रवेश करते हैं जिस अवस्था के साथ उन्हें कुछ कर्तव्य, अधिकार और पवित्र परंपराओं का ज्ञान हासिल होता है। ये समारोह उन्हें ऐसा अवसर प्रदान करते हैं जब वे पवित्र वस्तुओं और व्यक्तियों के संपर्क में आते हैं मलिनॉस्की (1948ः 40) इन धार्मिक संस्कारों में सृजनात्मकता को देखता है। दीक्षित युवकों के शारीरिक से सामाजिक और फिर आध्यात्मिक क्षेत्र परिवर्तन की प्रक्रिया में यह सृजनशीलता अभिव्यक्त होती है।

मलिनॉस्की के अनुसार दीक्षा अनुष्ठानों के मुख्य अभिलक्षणों और प्रकार्यों के बारे में उपरोक्त चर्चा से पता चलता है कि दीक्षा अनुष्ठान पूर्णतया धार्मिक कार्य है और इस संस्कार में ही इसका प्रयोजन भी निहित है। व्यापक परिप्रेक्ष्य में इस संस्कार का प्रकार्य उन मानसिकवृत्तियों और सामाजिक व्यवहारों का सृजन है, जिनका उस समूह के लोगों और उनकी सभ्यता के लिए अत्यधिक महत्व है। धर्म पर मलिनॉस्की के विचारों को जानने के लिए, आइए, हम एक और उदाहरण लें।

 मृत्यु से संबंधित अनुष्ठान
मलिनॉस्की के अनुसार जीवन की अंतिम घटना मृत्यु भी धर्म का स्रोत है। मलिनॉस्की के विचार में मृत्यु संबंधी अनुष्ठान पूरे विश्व में एक से ही होते हैं। सभी जगह ऐसा देखने में आता है कि जैसे-जैसे मृत्यु का समय पास आता है, उस व्यक्ति के निकट संबंधी, कभी-कभी तो उसके समुदाय या जाति के सभी लोग उसके यहां जमा हो जाते हैं। इस प्रकार, व्यक्ति के जीवन की नितांत निजी घटना एक सामाजिक घटना बन जाती है। इसकी पूरी श्रृंखलाबद्ध प्रतिक्रिया होती है। कुछ व्यक्ति मृत व्यक्ति के आसपास रहते हैं, जबकि अन्य लोग मृतक के अंतिम संस्कार की तैयारी में जुट जाते हैं। मलेनेशिया के कुछ भागों में विवाह-जन्य रिश्तेदार (ffaines) ही मृतक का संस्कार कराते हैं और मृतक के अपने नातेदार दूर रहते हैं। यह बड़ी दिलचस्प बात है कि कुछ ऑस्ट्रेलियाई जन-जातियों में इससे बिल्कुल उलटा होता है।

मृत्यु के बाद तत्काल मृतक को नहलाकर, तेल आदि लगाकर और सजाकर लोगों के दर्शन के लिए उसे रख दिया जाता है। इसके बाद शोक की शुरुआत नाटकीय ढंग से दुख भरे विलाप और चीखने-चिल्लाने से होती है। शोक प्रकट करने के लिए कहीं सिर मुंडाया जाता है तो कहीं लोग अपने बालों को अस्त-व्यस्त कर लेते हैं और कपड़े फाड़ लेते हैं। इसके बाद मृतक के शव के अंतिम संस्कार का समय आता है। मृतक के शव को खुली या बंद कब्र में दफना दिया जाता है या शव को किसी गुफा में थड़े (प्लेटफॉर्म) पर रख दिया जाता है अथवा किसी पेड़ के खोखले में या सुनसान स्थान पर खुले में छोड़ दिया जाता है। इसके अलावा, कहीं-कहीं शव को जलाया जाता है या खुली नाव में बहने दिया जाता है।

मलिनॉस्की ने बताया कि आदिम समुदायों में परस्पर विरोधी रीति-रिवाज हैं। कहीं शव को या उसके कुछ अंगों को परिरक्षित (preserve) किया जाता है और कहीं उसे पूरी तरह समाप्त कर दिया जाता है। एक ओर शव परिरक्षित करने के लिए ममी के रूप में रखना तो दूसरी ओर उसे जलाकर समाप्त करना – अंतिम संस्कार के दो परस्पर विरोधी उदाहरण हैं। मलिनॉस्की इस बात से सहमत नहीं है कि ऐसा विभिन्न क्षेत्रों में फैली सांस्कृतिक विशेषताओं के बीच संपर्क के कारण है। इसके विपरीत, उसका मत है कि ये रीति-रिवाज आदिवासियों की दो तरह की मानसिक अभिवृत्तियों के सूचक हैं। एक तो मृत व्यक्ति के प्रति लगाव की अभिवृति है और दूसरी उसकी मृत्यु के बाद होने वाले शरीर-क्षय से भय और जुगुप्सा या घृणा की अभिवृति है। मृतक के साथ पूर्ववत् संपर्क बनाए रखने की तीव्र इच्छा और दूसरी ओर इस संपर्क को समाप्त करने की समानांतर इच्छा – इन दोनों ही इच्छाओं की अभिव्यक्ति मृत्यु संबंधी संस्कारों में देखने को मिलती है। इसी वजह से मलिनॉस्की ने इन्हें धर्म के क्षेत्र में शामिल किया है। याद रखें कि हमने इस इकाई के आंरभ में कहा था कि जब संस्कार सम्पन्न करने की प्रक्रियाओं में ही उसका प्रयोजन भी निहित हो तो उसे धार्मिक व्यवहार का उदाहरण माना जा सकता है। ठीक यही बात मृत्यु से संबंधित अनुष्ठानों में होती है। उदाहरणार्थ, मृत व्यक्ति के शव के साथ संपर्क को प्रदूषणकारी और खतरनाक समझा जाता है। जो लोग शोक संबंधी कार्यक्रम में भाग लेते हैं, उन्हें नहाना और अपने आपको स्वच्छ करना पड़ता है। इसके अतिरिक्त, मृत्यु संबंधी संस्कारों के द्वारा शोकाकुल व्यक्ति जुगुप्सा या घृणा के अपने भाव पर विजय पाते हैं और डर को दूर भगाते हैं। मृत्यु की घटना से उत्पन्न भय पर विजय पाने की चर्चा हमें एक और पक्ष की ओर ले जाती है।

भावी जीवन या मृत्यु के बाद के जीवन पर लोगों के विश्वास से घृणा या जुगुप्सा के भाव पर विजय पाने और भय को हटाने में मदद मिलती है। इससे आत्मा की निरंतरता और अमरत्व की धारणा में विश्वास का संकेत मिलता है। मलिनॉस्की के अनुसार, आत्मा के अस्तित्व में विश्वास या अमरता का विचार गंभीर मनोभावात्मक आत्मदृष्टि का परिणाम है। मलिनॉस्की ने इसे आदिम दार्शनिक सिद्धांत के बजाय धर्म में माना है। उसके विचारानुसार आत्मा की अमरता में विश्वास से मनुष्य को नृत्यु पर विजय पाने में मदद मिलती है।

यहां हम देखते हैं कि मलिनॉस्की मृत्यु से संबंधित अनुष्ठान के प्रमुख अभिलक्षण को साम है। मृत्यु के तत्काल पश्चात् किए जाने वाले अनुष्ठानों और आत्मा की अमरता में विश्वास से दोनों पक्षों की महत्ता दिखाई देती है। एक ओर पूरे समूह को होने वाली क्षति और दूसरी ओर मृत्यु के बाद भी आत्मा के जीवित रहने की भावना का पता चलता है। इस प्रकार, एक प्राकृतिक घटना या जैविक तथ्य का एक सामाजिक घटना के रूप में विशेष महत्व हो जाता है।

बोध प्रश्न 3
प) आदिम लोगों में दीक्षा समारोह का मुख्य उद्देश्य एक पंक्ति में लिखिए।
पप) ऐसी बात क्या है जो व्यक्ति को मृत्यु के भय पर विजय पाने में सहायता करती है? एक – पंक्ति में उत्तर लिखिए।

बोध प्रश्न 3 उत्तर
प) दीक्षा अनुष्ठान का मुख्य उद्देश्य आदिम लोगों को उनके समूह की पवित्र पंरपरा के रहस्यों में दीक्षित करना है।
पप) आत्मा के अमरत्व की धारणा लोगों को मृत्यु के द्वारा होने वाले भय और दुख की भावना को जीतने में सहायक होती है।