लुसीन लेवी ब्रुहल कौन है | Lucien Levy Bruhl in hindi लुसिएन लेवी ब्रुह के बारे में जानकारी दीजिये

Lucien Levy Bruhl in hindi लुसीन लेवी ब्रुहल कौन है , लुसिएन लेवी ब्रुह के बारे में जानकारी दीजिये ?

लौकिक क्षेत्र
मलिनॉस्की अपनी बात एक प्रश्न से शुरू करता है। प्रश्न है-क्या आदिम लोगों का दृष्टिकोण तर्क पर आधारित है? क्या उनका अपने आस-पास के वातावरण पर तर्कसंगत नियंत्रण होता है? उसने लेवी बुल (1926) के इस विचार को अस्वीकार किया कि आदिम मानव को तर्क से स्पष्ट अरुचि है दिखिए कोष्ठक 23.1)। मलिनॉस्की ने इस प्रश्न का उत्तर दिया कि हर आदिम समुदाय के लोगों के पास ज्ञान का काफी बड़ा भंडार है जो अनुभव और तर्क पर आधारित है। इसके समर्थन में उसने ट्रॉब्रिएंड द्वीपवासियों के कला, शिल्प और आर्थिक क्रियाकलापों से संबंधित व्यवहार का उदाहरण दिया। इन क्रियाकलापों से संबंधित व्यवहार स्पष्ट रूप से जादू-टोने और धर्म से अलग है। उनका यह अनुभवाश्रित ज्ञान तर्क-युक्ति में विश्वास पर आधारित है। मलिनॉस्की ने इसे जीवन का लौकिक पक्ष कहा है अर्थात् जो धार्मिक या जादू-टोने वाला नहीं है। उसने यह दिखाया कि आदिवासी स्वयं भी लौकिक क्षेत्र को धर्म और जादू-टोने से अलग रखते हैं। यहां हमने लौकिक क्षेत्र पर चर्चा के लिए मलिनॉस्की द्वारा उद्धृत बहुत से उदाहरणों में से दो उदाहरणों को चुना है। इन उदाहरणों से यह पता चलेगा कि आदिम लोगों में भी वैज्ञानिक ज्ञान का अस्तित्व होता है। ये उदाहरण मलिनॉस्की के ट्रॉब्रिएंड द्वीपसमूह में किए गए शोधकार्य से प्राप्त सामग्री से लिए गए हैं।

उदाहरणों को पढ़ने से पूर्व कोष्ठक 23.1 लेवी-बुल के प्रसंग को पढ़ लें।
कोष्ठक 23.1ः लूसीयिन लेवी-ब्रुल
लूसीयिन लेवी-बुल का जन्म 1857 में हुआ और मृत्यु 1939 में हुई। वह फ्रांसीसी समाजशास्त्री तथा नृजातिशास्त्री और दर्खाइम का सहयोगी था। उसकी सुप्रसिद्ध पुस्तकों में हाउ नेटिव्स थिंक (1926) और प्रिमिटिव मेंटलिटी (1923) शामिल हैं। इन दोनों पुस्तकों का फ्रेंच भाषा से अंग्रेजी में अनुवाद लिलियन ए. क्लेयन ने किया। फ्रेच में ये पुस्तकें 1912-1922 में प्रकाशित हुई। इन दोनों पुस्तकों में लेवी-बुल ने उन तमाम मानव मूल्यों, आचार-व्यवहार तथा विश्वासों का विवेचन किया, जिन्हें समाज के सभी सदस्य मानते हैं और कालांतर में अगली पीढ़ी को सौंप देते हैं। उसकी यह दृढ़ मान्यता थी कि आदिम लोगों की काल्पनिक मान्यताएं, विश्वास तथा अन्य विचार उनकी सामाजिक संरचना पर प्रकाश डालते हैं। उसका कहना था कि एक समूह के विचार दूसरे समूह के विचारों से भिन्न होते हैं। उसने यह भी सिद्ध किया कि किस प्रकार ये विचार तार्किक सिद्धांतों के रूप में प्रस्तुत किए जा सकते हैं। उसका मत था कि आदिम समाज की आध्यात्मिक पृष्ठभूमि आधुनिक समाज जैसी नहीं थी। वह आदिम समुदायों में पाई जाने वाली विचार-संरचना को पूर्व-तार्किक (pre&logical) मानता था क्योंकि उसके मतानुसार आदिवासी स्वाभाविक कार्य-कारण संबंध को नहीं समझ पाते हैं। यह समझना आवश्यक है कि लेवी-ब्रुल ने सामाजिक कार्यकलापों से जुड़े विचारों के अध्ययन पर अपना ध्यान केन्द्रित किया, जबकि दर्खाइम ने केवल सामाजिक कार्यकलापों का अध्ययन किया।

उद्देश्य
इस इकाई को पढ़ने के बाद आपके लिए संभव होगा
ऽ जादू-टोना, विज्ञान और धर्म के बारे में टाइलर, फ्रेजर और दर्खाइम के विचारों की चर्चा करना
ऽ मलिनॉस्की द्वारा दिए गए धार्मिक और जादू-टोना संबंधी व्यवहार के उदाहरणों के बारे में बताना
ऽ विज्ञान और जादू-टोने में तथा जादू-टोने और धर्म में अंतर स्पष्ट करना।

प्रस्तावना
पिछली इकाई अर्थात् इकाई 22 में आपने मानव-संस्कृति को समझने के लिए मलिनॉस्की के संकल्पनात्मक परिप्रेक्ष्य के बारे में पढ़ा था। इस इकाई में समुदाय विशेष के अध्ययन द्वारा संस्कृति के सार्विकीय पक्षों के प्रति उसके दृष्टिकोण का वर्णन किया गया है। मलिनॉस्की के दृष्टिकोण के सटीक उदाहरण के तौर पर हमने यहाँ उसके जादू-टोना, विज्ञान और धर्म पर निबंध को चुना है। इसमें आदिम संस्कृति के इन पक्षों में समानताओं तथा भिन्नताओं को बहुत ही सरस रूप में प्रस्तुत किया गया है (इस विषय में 1948 में प्रकाशित मैजिक, सांइस एंड रिलीजन एण्ड अदर ऐसेज नामक पुस्तक में रॉबर्ट रैडक्लिफ द्वारा लिखित प्रस्तावना देखिए)। इस निबंध की विषय-वस्तु के सूक्ष्म अध्ययन से आपको मलिनॉस्की की प्रतिभा का आभास इस दृष्टि से होगा कि कैसे उसने ट्रॉब्रिएंड द्वीपवासियों के समाज के अध्ययन में मानव संस्कृति के सार्विकीय तत्वों को देखने का प्रयास किया। दूसरे, आपको यह भी स्पष्ट होगा कि इस निबंध में मलिनॉस्की ने अपने आपको धर्म, विज्ञान और जादू-टोने के बारे में प्रचलित किसी एक परिप्रेक्ष्य तक सीमित नहीं रखा। उसने अपने विशिष्ट दृष्टिकोण के संदर्भ में पहले टाइलर, फ्रेजर, मैरेट और दर्खाइम के धर्म संबंधी विभिन्न विचारों की चर्चा की। इससे हमें उस काल में इन विषयों पर होने वाली परिचर्चाओं के बारे में उपयोगी विवरण मिल जाता है। इस इकाई में हमने मलिनॉस्की के विचारों का सारांश देने का प्रयास किया है। इस चर्चा के दौरान हमने उसके विचारों में पाई जाने वाली त्रुटियों और असंगतियों का भी उल्लेख किया है।

इस इकाई के आरंभ में हमने मलिनॉस्की के समय में प्रचलित जादू-टोना, विज्ञान और धर्म की धारणाओं का विवरण दिया है। इसके बाद उस क्षेत्र के बारे में विचार किया गया है जो मलिनॉस्की की दृष्टि में लौकिक (the profane) है। इसमें विज्ञान अथवा मानव द्वारा अपने पर्यावरण पर तर्कसंगत नियत्रण का उल्लेख है। मलिनॉस्की ने यह भी दिखाया है कि आदिम लोगों में अनुभव और तर्क पर आधारित व्यापक ज्ञान पाया जाता है। इस ज्ञान के प्रयोग से उन्हें अपने दैनिक जीवन के क्रियाकलापों को चलाने तथा कठिन पर्यावरण में भी अपना अस्तित्व बनाए रखने में मदद मिलती है।

इकाई के दूसरे चरण में हमने जादू-टोना, और धर्म के क्षेत्रों की चर्चा की है। मलिनॉस्की ने जादू-टोना और धर्म को पवित्र (the sacred) क्षेत्र के अंतर्गत रखा है। मलिनॉस्की के अनुसार आदिम मानव की दृष्टि में विज्ञान के संसार तथा जादू-टोना और धर्म के संसार के बीच स्पष्ट अंतर है। हमने यह देखने का प्रयास किया है कि किस प्रकार लौकिक और पवित्र ये दोनों क्षेत्र एक-दूसरे से अलग हैं। दूसरी ओर कैसे धर्म और जादू-टोने में आपस में अंतर है। इस प्रकार, मलिनॉस्की का यह अति सुगम सिद्धांत आपके सामने है जिसमें (I) वैज्ञानिक, जादू-टोने से संबंधित और धार्मिक व्यवहार की प्रकृति और उनके अंतर के बारे में विचार किया गया है (II) यहाँ दिखाया गया है कि किस प्रकार ये तीनों पक्ष मानवीय आवश्यकताओं को पूरा करते हैं और फलतरू समाज की सत्ता को बनाए रखने में सहायक होते हैं।