एकाधिकार बाजार क्या है | एकाधिकार बाजार की विशेषता बताइए किसे कहते हैं Monopoly market in hindi

Monopoly market in hindi एकाधिकार बाजार क्या है | एकाधिकार बाजार की विशेषता बताइए किसे कहते हैं ?

प्रवेश और एकाधिकार पर अवरोध

एक एकाधिकार बाजार वह है जिसमें सिर्फ एक फर्म कार्य संचालन करती है। इस तरह की एकाधिकारी शक्ति का स्त्रोत प्रवेश पर रोक से संबंधित है। आर्थिक सिद्धान्त प्रवेश में बाधाओं को तीन प्रकार में बाँटते हैं:
प) कृत्रिम अथवा कानूनी अवरोध, जैसे कि पेटेंट
पप) सहज अवरोध, जैसे कि उच्च नियत लागत
पपप) रणनीतिक अवरोध; जैसे कि सीमित मूल्य निर्धारण

प्रतिबंधित प्रवेश जैसे नए उत्पाद के पहले आविष्कारक को पेटेंट अधिकार देने अथवा किसी एक वस्तु के उत्पादन और बिक्री के लिए सिर्फ एक ही फर्म को लाइसेन्स देने से एकाधिकारी स्थिति उत्पन्न हो सकती है। कभी-कभी उन स्थानापन्न वस्तुओं के संभावित उत्पादकों से परोक्ष प्रतिस्पर्धा को पहले ही समाप्त कर देने के लिए एकाधिकारी अपने उत्पादन के लिए नहीं अपितु स्थानापन्न उत्पादों के लिए पेटेंट करा सकता है। इन्हें निष्क्रिय पेटेंट कहा जा सकता है। दूसरे ढंग से प्रवेश में कोई कृत्रिम अवरोध नहीं हो सकता है किंतु प्रौद्योगिकी ऐसी हो सकती है जिससे सिर्फ एक फर्म का कार्य संचालन करना और उसके द्वारा गैर नकारात्मक (अधिसामान्य) लाभ अर्जित करना ही संभव हो जिससे कि कोई दूसरा फर्म बाजार में प्रवेश नहीं करता है। यह सहज (स्वाभावित) एकाधिकार की स्थिति है। एक फर्म द्वारा बाजार में एकाधिकार स्थापित करने का दूसरा तरीका यह है जिसमें फर्म (या तो पहला प्रवेशी अथवा विद्यमान फर्म) स्वयं किसी आक्रामक मूल्य रणनीति द्वारा प्रवेश में अवरोध खड़ा कर देती है।

संकल्पना स्तर पर, रणनीतिक अवरोध का बहुधा दो अन्य प्रकारों से भेद किया जाता है और इसे प्रवेश रोक कहा जाता है। प्रवेश-रोक और प्रवेश अवरोध में भेद समस्या रहित नहीं है। कई मामलों में, यह पता लगाना कठिन हो जाता है कि प्रवेश की दशाएँ फर्म से बाह्य हैं अथवा विद्यमान फर्मों द्वारा सृजित हैं।

आइए हम पेटेंट अधिकार के रूप में प्रवेश में कृत्रिम अथवा कानूनी बाधा के मामले में एकाधिकारी के मूल्य निर्धारण नियम से आरम्भ करते हैं। अनन्य उत्पाद पेटेंट अधिकार के रहने पर, चाहे जिस भी कारण से, एकाधिकारी निश्चयात्मक लाभ द्वारा आकृष्ट, जो वह अर्जित कर सकता है, किसी भी संभावित प्रवेशी के बारे में चिन्तित नहीं होता है। ऐसे प्रवेश अवरोध की स्थिति में, एकाधिकारी उस स्तर पर मूल्य और निर्गत निर्धारित करता है जो उसके लाभ को अधिकतम करता है और इस तरह का स्तर सीमान्त राजस्व और सीमान्त लागत के बीच समानता के अनुरूप होता है। यह देखने के लिए कि इससे लाभ अधिकतम क्यों होता है, यह ध्यान रखिए कि जब एक अतिरिक्त इकाई बेची जाती है तब कुल राजस्व में हुई वृद्धि सीमान्त राजस्व है जबकि उस अतिरिक्त इकाई के उत्पादन पर आने वाला अतिरिक्त लागत सीमान्त लागत है। यदि सीमान्त राजस्व सीमान्त लागत से अधिक हो जाता है, तो अतिरिक्त इकाई का उत्पादन और बिक्री लाभप्रद है और इस तरह लाभ में वृद्धि होती है। इस प्रकार एकाधिकारी उत्पादन का विस्तार करता है। दूसरी ओर, सीमान्त राजस्व सीमान्त लागत से कम है, तो फर्म को अतिरिक्त इकाई के उत्पादन और बिक्री से घाटा होता है। लाभ में कमी आती है और फर्म अपने उत्पादन में कमी करती है। जब सीमान्त राजस्व और सीमान्त लागत बराबर होते हैं तो लाभ में न तो वृद्धि होती है और न ही कमी और इसलिए एकाधिकारी को निर्गत स्तर में परिवर्तन करने के लिए कोई प्रोत्साहन नहीं होता है। रेखाचित्र 1 में एकाधिकारी के सन्तुलन को दर्शाया गया है। यह मूल्य को च्उ और निर्गत को ग्उ पर निर्धारित करता है, जो उस बिन्दु के समरूप होता है जहाँ सीमान्त राजस्व वक्र सीमान्त लागत वक्र को काटता है। यह जो लाभ अर्जित करता है वह आड़ी रेखा वाला क्षेत्र है।

इसी रेखाचित्र में दूसरी बाजार संरचना में भी संतुलन दर्शाया गया है। एक पूर्ण प्रतियोगी उद्योग में और बर्टेªण्ड प्रतियोगिता के अन्तर्गत (सजातीय अथवा समान उत्पाद के साथ), मूल्य सीमान्त लागत, ब, के बराबर हो जाता है और उद्योग निर्गत ग्चब (अथवा ग्इ) के बराबर हो जाता है। दूसरी ओर निर्गत (अथवा कूर्नो) प्रतियोगिता के अंतर्गत मूल्य निश्चित तौर पर सीमान्त लागत से अधिक किंतु एकाधिकारी मूल्य से कम होता है। इस प्रकार यद्यपि कि फर्म को निश्चयात्मक लाभ होता है, इस तरह के लाभ एकाधिकारी लाभ से कम होते हैं।

रेखाचित्र 1: अलग-अलग बाजार संरचना में संतुलन
M: एकाधिकार;C: कूर्नो;
B: बट्रेण्ड; PC: पूर्ण प्रतियोगिता
MR: सीमान्त राजस्व

रेखाचित्र 1 से पता चलता है कि एकाधिकारी बाजार में निर्गत न्यूनतम है। किंतु इस परिणाम के कुछ अपवाद भी हैं, विशेषकर जब एकाधिकारी उपभोक्ताओं अथवा उपर्युक्त समान मूल्य निर्धारण नियम की बजाए खरीदी गई प्रत्येक इकाई में लिए गए मूल्य की दृष्टि से भेद किया जाता है।

अनेक उद्योगों के लिए उत्पादन के कुल लागत में नियत लागत का अनुपात अधिक होता है। दूर संचार और विद्युत उद्योगों में संयंत्रों की स्थापना पर आने वाली लागत, रेल उद्योग के मामले में रेल पटरियाँ बिछाने, सिग्नल पोस्ट लगाने, स्टेशनों और ऊपरी पुलों के निर्माण पर आने वाली लागत, उत्पादन के अत्यधिक नियत लागत के उदाहरण हैं। ये लागत स्वयं ही प्रवेश के स्वाभाविक अवरोधक हैं और इसलिए एकाधिकारी शक्ति के स्रोत हैं। इस विचार को दृढ़ करने के लिए, एक बाजार पर विचार कीजिए जिसमें आरम्भ में एक फर्म थी जो प्रति इकाई 8 रु. के एकाधिकारी मूल्य पर 15 इकाइयों की आपूर्ति कर रही है और 100 रु. के बराबर सकल लाभ (कुल परिवर्ती लागत घटाकर कुल राजस्व) अर्जित कर रही थी। मान लीजिए नियत लागत 80 रु. है। इस प्रकार फर्म 20 रु. शुद्ध लाभ अर्जित करती है। यदि फर्म के पास कोई अनन्य उत्पाद पेटेंट नहीं है और कोई प्रवेश लागत नहीं है, तब इस निश्चयात्मक शुद्ध लाभ से आकृष्ट होकर अन्य फर्में उद्योग में प्रवेश करेंगी। मान लीजिए एक फर्म प्रवेश करने का निर्णय करती है। अब जब यह एक बार बाजार में प्रवेश कर जाती है इस स्थिति में मात्रा प्रतियोगिता बाजार मूल्य को कम कर देगा और इसलिए प्राप्त होने वाला सकल लाभ 100 रु. से कम हो जाएगा। यदि इस कम सकल लाभ से नियत लागत पूरा हो जाता है (अर्थात् यह 80 रु. से कम नहीं हो जाता है), तो संभावित प्रवेशी प्रवेश करेगा। अन्यथा यह प्रवेश नहीं करेगा और विद्यमान फर्म अप्रतिबंधित और लागत रहित प्रवेश के बावजूद अपनी एकाधिकार स्थिति बनाए रखती है। यह सहज एकाधिकार का मामला है। जैसा कि हम दूरसंचार उद्योग में देखते हैं। सहज एकाधिकारी का अर्थ है उच्च नियत लागत अर्थात् निरंतर गिरता हुआ औसत लागत वक्र। मान लीजिए विद्यमान फर्म (प्) बड़े पैमाने पर निर्गत उत्पादन कर रही है।
(प) यदि प्रवेशी इसकी बराबरी करता है, इसे कम लागत से लाभ होगा किंतु बाजार मूल्य गिर जाएगा। (पप) यदि यह छोटे पैमाने पर प्रवेश करता है, बाजार मूल्य में अधिक कमी नहीं आएगी किंतु यह लागत हानि से प्रभावित होगी।

किंतु जब मात्रा प्रतियोगिता के पश्चात् प्रवेशी के लिए सकल लाभ 80 रु. से अधिक है तो फर्म प्रवेश करती है। विद्यमान फर्म का शुद्ध लाभ गिरता है और मान लीजिए यह 5 रु. है। प्रवेश के पश्चात् लाभ में ऐसी कमी का पूर्वानुमान करके एकाधिकारी (वास्तव में प्रवेश होने से पूर्व) एकाधिकार मूल्य 8 रु. (जो यह किसी प्रवेश की अनुपस्थिति में ले सकता था) से कम मूल्य ले सकता है। इस तरह का मूल्य अल्पकालिक लाभ अधिकतम करने के व्यवहार के संगत नहीं हो सकता है किंतु निश्चित रूप से एकाधिकार की स्थिति बनाए रखने के दीर्घकालीन लक्ष्य के संगत हो सकता है। उदाहरण के लिए जब एक विद्यमान फर्म 6 रु. मूल्य नियत करता है और प्रवेश से पहले 18 इकाइयाँ बेचता है (इस प्रकार सकल लाभ के रूप में 98 रु. अर्जित करता है) ऐसे में एक फर्म का प्रवेश, मात्रा प्रतियोगिता द्वारा दोनों के लिए सकल लाभ को 80 रु. से कम कर सकता है। इस तरह के मामले में प्रवेशी फर्म का प्रवेश करना लाभप्रद नहीं होता है क्योंकि इससे उसे घाटा होगा। एक बार फिर विद्यमान फर्म को एकाधिकार स्थिति का लाभ मिलता है किंतु अब वह ऐसा मूल्य लेती है जो प्रवेश को निषिद्ध करता है। यह सीमित मूल्य निर्धारण (प्रवेश पर रणनीतिक अवरोध) का मामला है जिसकी चर्चा पहली बार बेन और सायलॉस-लाबिनी द्वारा की गई थी।

बोध प्रश्न 1
1) सही उत्तर पर ( ) निशान लगाइए:
क) पूर्ण प्रतियोगी बाजार में फर्म को शून्य अधिसामान्य लाभ होता है क्योंकि,
प) वे एक-सी वस्तु का उत्पादन करते हैं
पप) मुक्त प्रवेश और एक्जिट है
पपप) (प) और (पप) दोनों
पअ) बड़े पैमाने की मितव्ययिता

ख) जब दो फर्म विभेदित उत्पादों का उत्पादन करते हैं तथा मूल्यों में प्रतियोगिता करते
हैं, वे अर्जित करते हैं:
प) शून्य लाभ
पप) निश्चित रूप में निश्चयात्मकलाभ
पपप) उतना ही लाभ
पअ) सकारात्मक और अलग-अलग लाभ

2) विभिन्न प्रकार के प्रवेश अवरोधों की पहचान कीजिए। (एक वाक्य में उत्तर दें)
3) बताएँ क्या निम्नलिखित कथन सही हैं या गलत:
क) प्रथम श्रेणी का भेद मूलक एकाधिकारी उसी स्तर पर निर्गत का उत्पादन करता है जिस पर प्रतियोगी उद्योग। (सही / गलत)
ख) एक आयात कोटा घरेलू फर्म को एकाधिकारी में परिवर्तित कर देता है। (सही / गलत)

बोध प्रश्नों के उत्तर अथवा संकेत

बोध प्रश्न 2
1) उपभाग 17.2.4 पढ़िए।
2) समस्तरीय विलय, विषम स्तरीय विलय और संचित विलय ।
3) उपभाग 17.2.4 पढ़िए।