मेरी मोरिसावा का विवर्तन भ्वाकृतिक मॉडल क्या है marie morisawa Geomorphology in hindi

marie morisawa Geomorphology in hindi मेरी मोरिसावा का विवर्तन भ्वाकृतिक मॉडल क्या है ?

मेरी मोरिसावा का विवर्तन-भ्वाकृतिक मॉडल
मेरी मोरिसावा ने प्लेट संचलन के आधार पर स्थलरूपों के विकास की समस्याओं को, लिए ‘विवर्तन-भ्वाकृतिक मॉडल‘ का निर्माण किया है। इनके अनुसार स्थलखण्ड का उत्थान की दर बढ़ जाती है, क्योंकि ऊँचाई की अधिकता से स्थितिज ऊर्जा में वृद्धि हो जाता हैं। इन्होनें अहनर्ट (1973), हौलमैन (1968), रक्सटन एवं मैकडोगल (1967), योशिकावा (1974), आइजक (1973) आदि के विचारों का गहनता से अध्ययन कर निम्न मान्यताओं के आधार पर अपने सिद्धान्त का प्रतिपादन किया है।
1. स्थलरूपों में प्रायः भिन्नता परिलक्षित होती है। यह विभिन्नता मात्र अन्तर्जात एवं बजिर्जात प्रक्रमों के कार्य-दरों मे भिन्नता के कारण उत्पन्न होती है, क्योंकि स्थलरूपों पर बल की भिन्नता अथवा संरचना की मित्रता अथवा दोनों की भिन्नता का प्रभाव पड़ता है।
2. शक्ति एवं प्रतिरोधिता प्रायः असंतुलन की स्थिति में करती है, परन्तु पृथ्वी की अस्थिरता के कारण दीर्घकाल तक स्थलखण्ड है। स्थलखण्ड की अस्थिरता के कारण उत्थान, अपरदन एवं जमाव सिद्धान्त के आधार पर वर्तमान स्थलरूपों का सृजन होता है। यही कारण है कि स्थलरूपों की उपस्थति एवं विकास का विश्लेषण अत्यन्त जटिल होता है।
3. प्लेट संचलन से स्थलाकृतियाँ प्रभावित होती हैं। जलवायु का परिवर्तन इसी क्रिया की प्रमुख घटना है। जलवायु के परिवर्तन से कार्यरत प्रक्रमों में भिन्नता उत्पन्न हो जाती है जिस कारण स्थलरूपों में भिन्नता उत्पन्न हो जाती है। प्लेट संचलन के ज्ञान के आधार पर स्थलरूपों की व्याख्या प्रस्तुत की जाती है।
4. किसी स्थलखण्ड पर नवस्थलरूपों के सृजन के उपरान्त यदि स्थलखण्ड का उत्थान हो जाय, तो उस पर कार्यरत प्रक्रम की सक्रियता बढ़ जाती है। परिणामतः स्थलरूपों में परिवर्तन होना प्रारम्भ हो जाता है।
मेरी मोरिसावा ने ‘एक ही आधार– तल पर स्थित विभिन्न ऊँचाई वाली सरिताओं की स्थितिज उर्जा में अन्तर होता है‘, के आधार पर अपने सिद्धान्त को स्पष्ट करने का प्रयास किया है। दो नदियाँ (A , B) हैं, जिनका आधार-तल व्ग् इनकी ऊँचाई, h1 तथा h2 है (चित्र 2.2।)।
इन दोनों नदियों की स्थितिज ऊर्जा में अन्तर होता है। श्।श् नदी की स्थितिज ऊर्जा अधिक है। जिस कारण इसके द्वारा अपरदन अधिक किया जाता है। B नदी की स्थितिज ऊर्जा कम है, फलतः अपेक्षाकृत अपरदन कम होता है।
मेरी मोरिसाया ने समान ऊँचाई एवं समान आधार-तल लेकर तीन विभिन्न लम्बाई वाली नदियों के ढाल-प्रवणता में अन्तर के आधार पर स्थलरूपों में पड़ने वाले प्रभावों का विश्लेषण किया है | a, b, c, तीन समान ऊँचाई वाली नदियाँ हैं, जिनका आधार-तल OX समान है। विसर्जन की मात्रा भी समान है। नदियों की लम्बाई L1, L2, L3 है। समान ऊँचाई के कारण स्थितिज ऊर्जा समान है। नदियों के कार्य के लिए प्राप्य गतिज ऊर्जा अलग-अलग है। नदी का कार्य गतिज ऊर्जा बारा तय किया गया समय एवं दूरी द्वारा निर्धारित होता है। जिस नदी की लम्बाई अधिक होगी उनका ढाल उतना मन्द होगा (नदी a) तथा उसकी गतिज ऊर्जा कम होगी। जिस नदी की लम्बाई कम है, उसकी हाल-प्रवणता अधिक होगी तथा गतिज ऊर्जा की मात्रा अधिक होगी। इसके द्वारा अपरदनात्मक-निक्षेपात्मक कार्य अधिक किया जाएगा। ब नदी द्वारा a,b नदी की अपेक्षा अपरदन अधिक होगा।
मेरा मोरिसावा ने स्थितिज ऊर्जा ज्ञात करने का निम्न सूत्र सूत्र बताया –
स्थितिज उर्जा = M × G × H
M = जल विसर्जन,
G = बल, तथा
H = ऊँचाई
सरिता की लम्बाई द्वारा गतिज ऊर्जा प्रभावित होती है। यदि सरिता की लम्बाई अधिक है, तो ढाल मन्द होगा एवं जल को अधिक समय तक प्रतिरोध का सामना करना पड़गा, जिस कारण गतिज ऊर्जा कम होगी। इसके विपरीत सरिता की लम्बाई कम होती है तो जल-प्रवाह को कम दूरी तय करना पड़ेगा तथा प्रतिरोधों का समय भी कम होगा। परिणामतः गतिज ऊर्जा अधिक रहती है। ऐसी आधिक्य विद्यमान रहता है। अपरदन क्षमता की भिन्नता स्थलरूपों में भिन्नता प्रदान का कारण है कि किसी स्थान विशेष का स्थलरूप दूसरे स्थान के स्थलरूप से भिन्न होता है।
विवर्तनिक एवं अनाच्छादन बलों के अन्तर्सम्बनधों के आधार पर स्थलरूपों पर पड़ने वाले प्रभावों का विश्लेषण मेरी मोरिसावा ने करने का प्रयास किया है। जब ये दोनों बल समान होने साम्यावस्था की स्थिति होती है। यदि इन दोनों में कोई भी कम अथवा अधिक होता है तो भी स्थिति उत्पन्न हो जाती है तथा यह स्थिति अस्थायी होती है, क्योंकि ये सन्तुलन प्राप्त करने के लिए रहते हैं। विवर्तनिक बल अधिक होने पर उच्चावच का ह्रास तीव्रगति से होता है। स्थलखण्ड अनी सम्प्राय मैदान में परिवर्तित हो जाता है।
मेरी मोरिसावा प्लेट संचलन के आधार पर स्थलरूपों के उद्भव एवं विकास को स्पष्ट किया है। इनके अनुसार – विनाशात्मक प्लेट किनारों पर क्षेपण के फलस्वरूप पर्वत श्रेणियों का सृजन होता है। पर्वत के निर्माण के कारण नदियों में नवोन्मेष उत्पन्न हो जाता है तथा तीव्रता से ये निम्नवर्ती अपरदन करना प्रारम्भ कर देती हैं। परिणामतः अनेक वेदिकायें, गार्ज, प्रपात आदि का निर्माण होता है। सृजनात्मक किनारों के सहारे भ्रंशन का निर्माण होता है। साथ-ही-साथ लावा के प्रवाह के फलस्वरूप अनेक स्थलाकृतियों का निर्माण होता है। इस प्रकार मेरी मोरिसावा के प्लेट संचलन के आधार पर स्थलाकृतियों के उद्भव एवं विकास की समस्या हल हो जाती है।