ISKCON in hindi and full form meaning इस्कॉन मंदिर क्या है किसे कहते है अर्थ मतलब अंतरराष्ट्रीय कृष्ण चेतना समाज

अंतरराष्ट्रीय कृष्ण चेतना समाज (इसकॉन) (International Society for Krishna Consciousness (ISKCON) ISKCON in hindi and full form meaning इस्कॉन मंदिर क्या है किसे कहते है अर्थ मतलब ?

समकालीन समय में हिन्दू धर्म (Hinduism in the Contemporary Period)
हाल के वर्षों में हिन्दू धर्म ने अनेक नये आयाम ग्रहण किये हैं। इनमें सबसे महत्वपूर्ण हैं हिन्दू धर्म का अंतरराष्ट्रीयकरण, अनेक वैयक्तिक संप्रदायों का उदय और हिन्दू धर्म का राजनीतिकरण। नीचे हम इन्हीं के बारे में उदाहरण सहित चर्चा कर रहे हैं।

हिन्दू धर्म का अंतरराष्ट्रीयकरण (Internationalisation fo Hinduism)
हिन्दू धर्म के अंतरराष्ट्रीयकरण के लिए अनेक प्रयास हुए हैं, रामकृष्ण मिशन और अंतरराष्ट्रीय कृष्ण चेतना समाज (इसकॉन) ने इस दिशा में महत्वपूर्ण प्रयास किये हैं। इस पाठ्यक्रम की इकाई 28 में रामकृष्ण मिशन की गतिविधियों की विस्तार से चर्चा की गई हैं। यहाँ हम इसकॉन (ISKCON) का मामले के रूप में अध्ययन करेंगे।

अंतरराष्ट्रीय कृष्ण चेतना समाज (इसकॉन) (International Society for Krishna Consciousness (ISKCON)
इसकॉन को हरे कृष्ण संप्रदाय के नाम से भी जाना जाता है। इस संप्रदाय के अनुयायियों ने हिन्दू धर्म के भक्तिवाद को मिशनरी महत्वाकांक्षा के साथ इंग्लैंड, कनाडा और अमेरिका एवं अन्य पश्चिमी देशों में फैलाया। अब यह अंतरराष्ट्रीय आंदोलन बन चुका है। जिसके अनेक केंद्र पूरी दुनिया, विशेषकर अंग्रेजी भाषी देशों में खुल गये हैं। इस समाज के संस्थापक भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद थे। वह जन्म से बंगाली थे, भक्ति पंथ में उनकी दीक्षा 1922 में उनके गुरु भक्तिवेदांत सरस्वती के हाथों चैतन्य के भक्ति संप्रदाय के अनुसार हुई थी। उन्होंने 1954 में गृहस्थ जीवन छोड़ दिया और 1959 में वे संन्यासी हो गये थे। भक्तिवेदांत स्वामी श्रीमद् भगवद् गीता के संदेश का प्रसार करने के उद्देश्य से 1965 में अमेरिका गये। ‘‘धीरे-धीरे न्यूयार्क, लांस एंजल्स, बर्केले, बोस्टन और मांट्रियल में उनके अनुयायियों की संख्या बढ़ती गई। भक्तिवेदात स्वामी ने इन जगहों पर इसकॉन के कई केंद्र स्थापित किये और लांस एंजलस को अपना मुख्यालय बनाया । वहाँ उन्होंने अपने गुरु के पचास से अधिक मौलिक और अनूदित ग्रंथों का प्रकाशन किया।

इसकॉन आंदोलन के अनुयायियों की दृष्टि में मोक्ष के लिए भगवान श्रीकृष्ण के नाम का जाप महत्वपूर्ण था। इसलिए उन्होंने सार्वजनिक रूप से ‘‘हरे कृष्ण‘‘ मंत्र का जाप शुरू किया। इस तरह, अनेक वर्षों की अवधि में कृष्ण चेतना आंदोलन अंग्रेजी भाषी देशों में दिखायी देने लगा है।

भक्तिवेदांत ने इसकॉन के अनुयायियों के लिए कई रीतियां चलाई। जैसे, पुरुष भक्तों के लिए पारंपरिक भगवा पोशाक पहनना और सिर मुंडाना, भक्तिनों के लिए साड़ी पहनना, सुबह जल्दी उठना और समय पर साधना आदि करना। इसकॉन आंदोलन का प्रसार विश्व के प्रत्येक महाद्वीप तक है।

भक्तिवेदांत की 1977 में वृदांवन में मृत्यु हो गई। “अपनी मृत्यु से ठीक पहले उन्होंने गुरु की हैसियत से ग्यारह शिष्यों को दीक्षा दी, जिससे शिष्यों की चैतन्य श्रृंखला टूटने न पाये और शेष दुनिया में भी इस संप्रदाय का प्रचार-प्रसार हो। 1980 के दशक के प्रारंभिक वर्षों तक इसकॉन की शाखाएं तेजी से समुद्र पार फैल गई और वहाँ उन्हें अधिक सहिष्णुतापूर्ण वातावरण मिला‘‘ (शिव 1987ः267)।

यहाँ बताना अनिवार्य है कि इसकॉन मात्र एक उदाहरण है और जिसे हिन्दू धर्म आधारित संप्रदायों ने विश्व भर में फैलाया है।

 वैयक्तिक संप्रदाय (Individualised Cults)
हाल के वर्षों में हिन्दू धर्म में वैयक्तिक धार्मिक संप्रदायों का उदय हुआ है। इनमें से कुछ संप्रदायों ने अपने अनुयायियों का अत्यधिक ध्यान आकर्षित किया। सत्य साईं बाबा, आचार्य रजनीश और मुक्तांगन इनमें प्रमुख हैं। इस इकाई में इन सभी की चर्चा करना संभव नहीं है। यहाँ हम उदाहरण के तौर पर सत्य साईं बाबा के बारे में चर्चा करेंगे।

सत्य साईं बाबा (Satya Sai Baba)
भारत में आजकल सत्य साई बाबा हिन्दू धर्म के सबसे प्रसिद्ध देव संत हैं, उनके अनुयायी उनकी पूजा अवतार के रूप में करते हैं। हाल के वर्षों में उनके अनुयायियों की संख्या में जबर्दस्त वृद्धि हुई है।

सत्य साईं बाबा का जन्म आंध्र प्रदेश के पुत्तापारथी गाँव में हुआ था। वे राजू जाति के थे और उनके माता-पिता ने उनका नाम सत्यनारायण रखा था। वे अपने बचपन और स्कूली दिनों में ही भजनों और नाटकों को करने के शौकीन थे।

जैसा कि सत्य साईं बाबा ने स्वयं दावा किया और उनके अनुयायियों ने भी स्वीकारा और प्रचार किया है, वे शिरडी (महाराष्ट्र) के साईं बाबा के अवतार हैं। वे भगवान शिव और उनकी पत्नी शक्ति का एक ही आत्मा में अवतार रूप हैं। लॉरेंस बाबा के अनुसार “साईं बाबा अपनी दैवीय प्रस्थिति (अवतार होने) के दावे को ‘‘मैं‘‘ की माप में रखते हैं। वह इस बात को बड़ी निर्भिकता के साथ और बार-बार कहते हैं। वे कहते हैं कि वे दुष्टता और दुख के वर्तमान युग केवल व्यक्ति विशेष के कष्टों को दूर करने के लिए नहीं (हालांकि वे अपने भक्तों के लिए यह भी कहते हैं), बल्कि समूची दुनिया को सही करने के लिए ‘‘साईं युग‘‘ की स्थापना करने के लिए आये हैं। शिरडी के साईं बाबा के रूप में उनका ध्येय हिन्दू. मुस्लिम एकता स्थापित करना था। वर्तमान अवतार में वे बौद्धिक और शास्त्रीय धर्म की पुनर्स्थापना करेंगे। प्रेम साईं के रूप में उनका पुनर्जन्म कर्नाटक में होगा, और उस समय वह अपने कार्य को पूर्ण करेंगे (बाबा 1991ः284)। साई बाबा को मानने वाले केवल हिन्दू धर्म के ही नहीं हैं। बल्कि उनके प्रमुख भक्तों में मुस्लिम और ईसाई भी शामिल हैं।

वैसे तो वे सभी देवी-देवताओं का रूप हैं, फिर भी उनकी मुख्य पहचान शिव के रूप में है। उनका वर्णन शिव के साथ होता है। महाशिवरात्रि इस संप्रदाय का सबसे महत्वपूर्ण पर्व है। इस पर्व के अवसर पर सत्य साईं बाबा अपने हाथ से बड़ी मात्रा में भभूत और मुंह से शिवलिंग पैदा कर देते हैं (जो भगवान शिव का प्रतीक हैं)।

इस संप्रदाय में न केवल भारत बल्कि बाहर के देशों के भी अनेक लोग अनुयायी बने हैं। उनके अधिकांश भक्त शहरी मध्यम वर्ग के हैं। उनके भक्त उन्हें ‘‘भगवान‘‘ मानते हैं। लोग बाबा का व्यक्तिगत करिश्मा और उनके हाथों अक्सर होने वाले चमत्कार देखकर उनके अनुयायी बनते हैं। वे अपने भक्तों की बीमारियों को अपने ऊपर लेकर उन्हें चंगा कर देते हैं। फिर भी, बाबा अक्सर अपने भक्तों से दूरी बनाकर ही रखते हैं। और कभी-कभार ही दर्शन देते हैं।

सत्य साईं बाबा के उपदेशों की कुछ प्रमुख विशेषताएं ये हैं। वे अपने भक्तों पर आचार व्यवहार के कोई कड़े नियम नहीं थोपते। वे अपने अनुयायियों को इस बात के लिए उत्साहित करते हैं कि वे खान-पान में संयम बरतें और शाकाहार का सेवन करें, शराब और बीड़ी-सिगरेट आदि न पीएं, गृहस्थ जीवन जीएं और पचास की उम्र के बाद यौन प्रसंग से दूर रहे, सहिष्णु बनें, दूसरों के प्रति सज्जनता और दयालुता का व्यवहार करें, और अहिंसा को अपनाएं । वें आंतरिक शांति के लिए परमेश्वर की साधना की भी सलाह देते हैं (बाबा स्वयं परमेश्वर हैं)। बाबा के उपदेशों का एक महत्वपूर्ण पहलू यह है कि वे पश्चिमी सभ्यता के प्रभाव को भारत के लिए अहितकारी मानते हैं। उनका कहना है कि भारतीय लोक परंपराओं का त्याग नहीं करना चाहिए। इस तरह, वें एक सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की बात करते हैं।

सत्य साईं बाबा समाज में मौजूद असमानताओं को स्वीकार करते हैं। वें आज की स्थितियों से असंतुष्ट तो हैं, लेकिन मौजूद आर्थिक और सामाजिक संस्थाओं में किसी आमूलचूल परिवर्तन की हिमायत नहीं करते।

सामाजिक सेवा सत्य साईं बाबा के संप्रदाय का एक महत्वपूर्ण पहलू है। गरीबों को खाना खिलाना, राहत कार्यों में अधिकारियों की सहायता करना, शिक्षा का प्रसार और शिशु विकास इस संप्रदाय की सामाजिक सेवा के कुछ महत्वपूर्ण क्षेत्र हैं।

बोध प्रश्न 3
प) इसकॉन की गतिविधि कहाँ तक सीमित थी।
1) फ्रांसीसी भाषी देशों तक
2) अंग्रेजी भाषी देशों तक
3) हिन्दी भाषी देशों तक
4) गैर-अंग्रेजी भाषी देशों तक।
पप) सत्य साईं बाबा के दावे के अनुसार वे किसके अवतार हैं।
1) भगवान शिव
2) देवी शक्ति
3) भगवान शिव और देवी शक्ति
4) उपर्युक्त में से कोई नहीं।

बोध प्रश्न 3 उत्तर
प) 2)
पप) 3)