स्थिति एवं संवेग दोनों में अनिश्चितता के गुणनफल का मान h/4π के समान अथवा इससे अधिक होता है।
△x.△p ≥ h/4π
यहाँ
△x = कण की x अक्ष के सापेक्ष स्थिति में अनिश्चितता
△p = संवेग में अनिश्चितता
यदि कण की स्थिति में अनिश्चितता को कम किया जाए तो संवेग की अनिश्चितता बढ़ जाती है क्योंकि दोनों के गुणनफल का मान h/4π के बराबर होता है।
संवेग p = mv होता है अत:
△x. m△v = h/4π
△x.△v = h/m4π
अनिश्चितता सिद्धांत की व्युत्पत्ति
यदि विवर्तित फोटोन की तरंग दैर्ध्य λ’ , आघूर्ण h/λ’ हो तो इसके लिए निम्न समीकरण दी जा सकती है –
1. यदि फोटोन op की दिशा में विवर्तित हो तो उसका आघूर्ण होगा –
h/λ’ + hsinα/λ’
2. यदि फोटोन oy दिशा में विवर्तित हो तो उसका आघूर्ण होगा
h/λ’ – hsinα/λ’
अत: आघूर्ण की अनिश्चितता △p का मान
△p = op – oy
△p = (h/λ’ + hsinα/λ’ ) – (h/λ’ – hsinα/λ’)
△p = 2hsinα/λ’
अत: △x.△p = (2hsinα/λ’) . (λ’/2sinα)
हल करने पर
△x.△p = h
किसी भी वास्तविक आकलन में कम से कम संभावित मान से तो त्रुटी कुछ अधिक ही होती है।
अत: △x.△p ≥ h
हाइजेनबर्ग का अनिश्चितता का सिद्धांत केवल सूक्ष्म कणों पर लागू होता है। बड़े कणों जैसे क्रिकेट की गेंद आदि पर यह सिद्धांत लागू नहीं होता क्योंकि इनके द्रव्यमान m का मान अधिक होने से h/m का मान कम हो जाता है जिससे अनिश्चितता में भी कमी हो जाती है।