देवी देवता किसे कहते हैं | हिन्दू के कितने देवी-देवता है परिभाषा क्या है अर्थ नाम how many god and goddess in hindu religion

how many god and goddess in hindu religion in hindi names देवी देवता किसे कहते हैं | हिन्दू के कितने देवी-देवता है परिभाषा क्या है अर्थ नाम ?

हिन्दू धर्म के मूल संप्रदाय और देवी-देवता (Basic Cults and Deities in Hinduism)

तिथ्य है कि हिन्दू धर्म के विभिन्न पंथों के अपने अलग धार्मिक ग्रंथ होते हुए भी, अधिकांश हिन्दु अपने धर्म के सबसे पुराने ग्रंथ ‘‘वेद‘‘ की पवित्रता को रवीकार करते हैं। “वैदिक धर्म लगभग संपूर्ण रूप से अग्नि यज्ञ की रीति से और इसके परिणामस्वरूप होने वाली विश्व की निरंतर सृष्टि से संबद्ध था। सूक्ष्म और विशाल विश्व को इस संस्कार से जोड़ने वाले संवाद के माध्यम से यज्ञ करने वाला साथ-साथ ब्रह्मडीय व्यवस्था के कल्याण के प्रति भी अंशदान करना था और अपने हितों की साधना भी करना था। इस प्रकार के संवाद की संभावना को दार्शनिक वैदिक ग्रंथ ‘‘उपनिषद‘‘ में टटोला गया था। उपनिषदों में मनुष्य को बार-बार की मृत्यु से मुक्ति दिलवाने के लिए ज्ञान की तलाश का जो रास्ता सुझाया गया था इसी के फलस्वरूप हिन्दू धर्म का आदिरूप बना । वेदों के प्रमुख देव सृष्टि करने वाले ‘‘ब्रह्मा‘‘ रक्षा करने वाले ‘‘विष्णु‘‘ और सृष्टिकर्ता, रक्षक और संहारक ‘‘शिव‘‘ हैं। यह महत्वपूर्ण है कि हिन्दू देवी-देवताओं के अनेक रूप हैं जो विशिष्ट धर्मशास्त्र पर आधारित हैं। उदाहरण के लिए विष्णु के अनेक अवतार हैं, जिनमें राम (मनुष्य) और कृष्ण (मनुष्य) प्रमुख हैं। देवी-देवताओं के अनेक रूप होने के पीछे धारणा यह है कि ईश्वर बुराई का नाश करने और धर्म की स्थापना करने के लिए समय-समय पर पृथ्वी पर जन्म लेता है।

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पूजा और भक्ति ईश्वरवादी हिन्दू धर्म के महत्वपूर्ण पक्ष हैं जिसने धीरे-धीरे वैदिक यज्ञ वाली रीति के स्थान पर किसी देवी-देवता की मूर्ति की पूजा और भक्ति को स्थापित किया। इस पूजा का मुख्य उद्देश्य इष्ट देवी या देवता के साथ संपर्क साधना है, जो साथ में साधक और देवी-देवता के बीच अधिक गहरे और स्थायी संबंध का रूप ले लेता है। इस तरह, ईश्वरवादी हिन्दू धर्म में पूजा पर आधारित तीन महत्वपूर्ण संप्रदायों का उदय हुआ: (क) वैष्णव संप्रदाय (विष्णु की उपासना)। इस संप्रदाय में एक स्नेही और उदार देवता के साथ व्यक्तिगत संबंध पर बल होता है। (ख) शैव संप्रदाय (शिव की उपासना)। इस संप्रदाय में संन्यास की ओर अधिक झुकाव मिलता है। वैसे, इस संप्रदाय में भी पूजा में योग की रहस्यमयी रीतियों को शामिल किया जाता है। (ग) शक्ति संप्रदाय (देवी की। उपासना)। यह ईश्वरवादी हिन्दू धर्म का एक महत्वपूर्ण अंग है। इसमें देवी दुर्गा, काली जैसी माँ देवियों की पूजा होती है। इस संप्रदाय के मानने वाले तांत्रिक विधियों से अपने अंदर की शक्ति को जगाते हैं। शक्ति की उपासना वैष्णव और शैव संप्रदायों में भी देखने को मिलती है जिनमें विष्णु की पत्नी लक्ष्मी और शिव की पत्नी पार्वती की पूजा भारत में अनेक स्थानों पर होती है। (‘‘द न्यू इनसाइक्लोपीडिया ऑफ ब्रिटैनिका 1985ः935)। शक्ति, दुर्गा, पार्वती, काली, लक्ष्मी, सरस्वती जैसी माँ, देवियाँ हिन्दू धर्म की लोकप्रिय देवियाँ हैं। इनके अतिरिक्त शिव और दुर्गा के पुत्र कार्तिकेय और गणेश और राम की वानर सेना के प्रमुख हनुमान भी लोकप्रिय देवता हैं।

हिन्दू पुराण में अनेक बड़े और छोटे देवी-देवताआ की चचा मिलती है। इनमे से अनेक देवीदेवता प्रकृति के देव हैं । जैसे, आकाश का देवता ‘‘इंद्र‘‘ आग का देवता ‘‘अग्नि‘‘ और पानी का देवता ‘‘वरूण‘‘। हिन्दू धर्म में देवी-देवताओं के वाहन पशु-पक्षियों और सूर्य, चंद्रमा, नक्षत्रों, नदियों, पर्वतों, झीलों, पशुओं और सर्प आदि की भी पूजा होती है। इसके अतिरिक्त हिन्दू धर्म में कुछ महत्वपूर्ण स्थानीय देवी-देवता भी हैं, जिनकी पूजा देश के विभिन्न भागों में होती है। जैसे काली और मंसा देवियाँ बंगाल में लोकप्रिय हैं। हिन्दू धर्म में कुछ स्थानीय देवी-देवताओं को समय के साथ-साथ सभी स्थानों और सभी व्यक्तियों में मान्यता मिल जाती है। उत्तर भारत की माता संतोषी और वैष्णों देवी और दक्षिण में तिरूपति के श्रीवेंकटेश इसके उदाहरण हैं।

कुछ देवी-देवताओं की स्थानीय स्तर पर अभिव्यक्ति और कुछ स्थानीय देवी-देवताओं को सभी स्थानों और सभी व्यक्तियों में मान्यता मिलने की प्रवृत्तियाँ समाजशास्त्र की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। हिन्दू धर्म की महान परंपरा में स्थानीय रूप लेने वाली संस्कृति के अत्यधिक बंधन हैं। ये बंधन अक्सर स्थानीय देवी-देवताओं की लोकप्रियता में और उन्हें व्यापक मान्यता मिलने के तरीकों में दिखाई पड़ते हैं। इस विषय में और जानकारी के लिए आप ईएसओ-12 के खंड 1 को पढ़ सकते हैं।