धर्म किसे कहते हैं हिंदी में | धर्म की परिभाषा किसे कहते हैं बताइए अर्थ मतलब religion in hindi meaning

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ग) धर्म
खासी की दृष्टि में का निअम आवश्यक तौर पर का रूकौम (अनुष्ठान) का पूरक है, इसलिए का निअम का रूकौम की उक्ति प्रसिद्ध है। का रूकौम धार्मिक प्रचलन के आनुष्ठानिक पहलुओं को परिलक्षित करता है, जिसे का निअम में निर्धारित रीति के अनुरूप होना चाहिए।

खासी धर्म मनुष्य एवं ईश्वर के बीच के रिश्ते को कहावतों तथा रहस्यवादी शब्दों के जरिये व्याख्यायित करता है।

खासी के अनुसार, धर्म उनके व ईश्वर के बीच का संबंध है और यह संबंध दो कारकों से निर्धारित रहता है, अर्थात का निअम एवं का जुटंग (कारण एवं शिष्टाचार)। मनुष्य के लिए प्रमुख कारण यह है कि वह ईश्वर की कृति है। इसी तरह शिष्टाचार यह है कि जब तक वह इस दुनिया में जीवित है, उसे ईश्वर के आदेशों का पालन करते हुए उस पर चलना चाहिए और धर्मपरायण रहना चाहिए- और ईश्वर की ओर से शिष्टाचार यह है कि ईश्वर को उसका ध्यान रखना चाहिए।

खासी लोगों का धर्म उनके वंश (बसंद) तथा सामूहिक जीवन का अभिन्न हिस्सा है। वंश धर्म का पालन धर्मगुरू, पूर्वज माता-पूर्वज, एवं पूर्वज चाचा/ताऊ के निर्देशन में करता है। ये चारों मिलकर परिवार के उद्देश्य की रचना करते हैं।

जब कोई परिवार दुख अथवा विपत्ति का सामना करता है, उस पर आर्थिक संकट, बीमारी अथवा परिवार का दुख अथवा पीड़ा पहुँचाने वाली कोई घटना घटती है, तो परिवार यह विश्वास करता है कि इन घटनाओं के पीछे कोई शाप लगा हुआ है। खासी इस बात में यकीन नहीं रखता कि घटनाएं बिना किसी कारण के ही हो जाती हैं।

वे चावल के दानों अथवा कौड़ियों या अन्य सामग्री के जरिये अनुमान अथवा संकेत का पता लगाते हैं और यदि उनसे कोई परिणाम न निकले तो वे अंडे तोड़ने अथवा मुर्गी की बलि के अनुष्ठान करते हैं। जब उन्हें कारण का पता चल जाता है तो वे कमियों को दूर करने के लिए बलि चढ़ाते हैं। ताकि वे उन अभिशापों से मुक्त हो सकें, जिन्होंने उन्हें जकड़ रखा है।

आमतौर पर, खासी धार्मिक अनुष्ठान एक परिवार के घरेलू परिवेश में होते हैं अथवा किसी ऐसे समूह के तहत किए जाते हैं, जिनका स्वयं का पूर्वज, मातृ-पूर्वज तथा पूर्वज चाचाध्ताऊ थे।

पुराने विश्वास एवं नई व्याख्याएं (Old Belief and New Interpretation)
ईसाई धर्मावलंबियों के जबर्दस्त हमले तथा खासी धर्म तथा समाज की मानवविज्ञानियों द्वारा गलत व्याख्याएं किए जाने की प्रतिक्रिया के तौर पर सेंग खासी को आगे बढ़ाने वाले लोगों ने अपने पुराने विश्वासों एवं रियाजों की नई व्याख्याएं प्रस्तुत की। सेंग खासी आन्दोलन के सबसे आदरणीय प्रणेता रिम्बई (1980) ने निम्नलिखित वक्तव्य दिया हैः

बॉक्स 18.2
खासी पनार यह विश्वास करते हैं कि ईश्वर सर्वशक्तिमान एवं सर्वव्यापक है। तदनुरूप ही वे ईश्वर को प्रतीकात्मक बनाने अथवा किसी भी आकार अथवा रूप में इसकी छवि उतारने को धर्म विरोधी मानते हैं। आरंभिक पाश्चात्य ईसाई धर्मावलंबियों ने, जिन्होंने खासी-फास्तों पनारों को भूतियों, लकड़ियों व पत्थरों की पूजा करने वाला बताया था, उस बात पर टिप्पणी की जिसके बारे में उन्हें कुछ भी मालूम नहीं था और जिसे समझने की उन्होंने तिरस्कारपूर्ण उपेक्षा की (ईश्वर उन्हें क्षमा करे)। वे इतने ही अधिक गलत उस समय भी थे जबकि उन्होंने खासियों पर हल्के ढंग से जीववादी का लेबल लगा दिया था क्योंकि वे पहाड़ों, नदियों अथवा पेड़ों पर कथित रूप से निवास करने वाले प्रेतों की पूजा नहीं करते हैं। और न ही खासी पनार पूर्वजों की पूजा करते हैं, जो कि पाश्चात्य धर्मावलंबियों की एक और गलतफहमी है जो कि उनके पूर्वजों के लिए उनकी श्रद्धा को लेकर है। वे यह विश्वास करते हैं कि वे उन्हें ऊँचे स्थानों पर बैठे देख रहे हैं।

खासी पुनारों का न तो कोई मंदिर हैं और न ही गिरजाघर अथवा उपासनागृह हैं। ईश्वर, जो कि सृष्टि का सृजनकर्ता है स्वर्ग व पृथ्वी सभी जगहों पर मौजूद है। इसलिए जमीन का हर भाग पवित्र है और किसी भी विशेष भाग को अन्य की तुलना में अधिक पवित्र नहीं माना जा सकता। उनके यहाँ संतों अथवा फकीरों अथवा स्थापित पुजारीपन की कोई व्यवस्था मौजूद नहीं है, क्योंकि उनकी मान्यता यह है कि प्रत्येक मनुष्य को अपनी रक्षा स्वयं अपने कार्यों द्वारा करनी चाहिए: न्यायपूर्ण ढंग से जीना, उसके माता-पिता के जरिये उसे बनाये गए ईश्वर के निर्देशों का पालन तथा उन पर वफादारी के साथ अमल करते हुए। खासी पनार एकेश्वरवादी हैं किन्तु वे समय की आवश्यकता के अनुरूप अनेक नामों से ईश्वर का आह्वान करते हैं, क्योंकि ईश्वर में अच्छाई के समस्त गुण तथा अच्छा करने की समस्त शक्ति निहित है।

खासी पनारों में ईसाइयों के रविवार, मुसलमानों के शुक्रवार अथवा यहूदियों के सब्बात की तरह एकत्रित होकर पूजा करने का कोई निश्चित दिन नहीं होता। यदि धार्मिक होने का
अथवा ईश्वर के बारे में प्रचार करते हुए उपदेश देना, अथवा सार्वजनिक रूप से उसकी पूजा करना, अथवा ढीले लिबास जैसे कपड़े पहनना और राख मलना है, तो एक खासी पनार को सभी मनुष्यों में सबसे कम धार्मिक व्यक्ति अथवा ऐसा व्यक्ति जिसका कोई धर्म ही न हो, माना जा सकता है। क्योंकि आप उन्हें यह सब करते नहीं देखते हैं। किन्तु वे, दरअसल, अत्यधिक धार्मिक लोग हैं क्योंकि उन्हें कमाइया का हक होना चाहिए जो कि वे ईमानदारी से काम करने, विचारों व वचनों में सत्यनिष्ठता तथा सभी तरह के लेन-देन में न्यायपूर्णता के माध्यम से ही, हासिल कर सकते हैं। इस तरह धर्म खासी पनार के जीवन के सभी पहलुओं को समेट लेता है क्योंकि जीवित रहने के लिए उसे काम करना चाहिए और ईमानदारी से किया गया काम ही पूजा है।

सेंग खासी की आत्मरक्षा में इस तरह हम पाते हैं:
प) जनजातीय धर्म को अति साधारण रूप से जीववादी की संज्ञा दे दिए जाने को नकारना,
पप) पूर्वजों की पूजा के जनजातीय प्रचलन को अमान्य करना, जनजातीय धर्म के अनेक ईश्वरवादी चरित्र को अमान्य करना,
पपप) जनजातीय धर्म का इस बात पर जोर कि कोई भी स्थान ईश्वर से खाली नहीं हो सकता और मनुष्य के जीवन को कोई क्षेत्र ऐसा नहीं है, जिसमें धर्म का निर्णायक स्थान न हो, तथा
पअ) जनजातीय धर्म का इस बात पर जोर कि “काम ही पूजा है‘‘ यह जीवन का मूलभूत सत्य है।

बोध प्रश्न 3
प) कोई जनजाति किस तरह से किसी नवदीक्षित धर्म की चुनौती का सामना करती है? मेघालय के खासियों का उदाहरण लीजिए। लगभग आठ पंक्तियों में उत्तर दीजिए।
पप) स्वयं अपनी व्याख्या के अनुसार किसी आदिवासी को क्या चीज सच्चे अर्थों में धार्मिक बनाती हैं ? लगभग दस पंक्तियों में उत्तर दीजिए।
पपप) रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए:
क) खासी धर्म तथा संस्कृति………………………………………..गतिविधियों के इर्दगिर्द घूमती थी। यह …………………की वह विधि थी जिसका पहले वे अनुसरण करते थे।
ख) पारंपरिक खासी समाज में गैर धार्मिक एवं धार्मिक नेतृत्व…………………………………नामक एक ही व्यक्ति के हाथों में केन्द्रित रहता था जो कि मिन्तरियों, लिंग्सखोरों, बसानों तथा इंगडोओं के साथ मिलकर
…………………..स्तर पर खासी दरबार लगाता था।
ग) देशी धर्म का………………………………नामक एक औपचारिक संगठन 1899 में खासी परंपराओं की रक्षा करने के उद्देश्य से बनाया गया।

बोध प्रश्न 3
प) जनजाति एक नवदीक्षित धर्म की चुनौती का मुकाबला: क) सेंग खासी नामक एक नये संगठन में पारंपरिक खासियों को पुनःसंगठित करके, ख) खासी धार्मिक संस्कारों व रिवाजों पर साहित्य का सृजन करके, ग) अनुष्ठानिक मुहावरों के जरिये पारंपरिक प्रतीकों एवं बोधातमक अभिव्यक्तियों को पुनर्जीवित करके, तथा घ) अपने पुराने विश्वासों को नई व्याख्याएं प्रदान करके, करता है।

पप) किसी आदिवासी को सच्चे अर्थों में धार्मिक बनाने वाली चीज गिरजाघरों अथवा मंदिरों में प्रार्थना सभाओं में शामिल होकर की जाने वाली पूजा नहीं, यहाँ तक कि तीर्थयात्रा भी नहीं, बल्कि जैसा कि खासी कहते हैं कमाईया का हक है। इसके मायने यह है कि कोई आदिवासी गंभीर रूप से धार्मिक तभी बनता है जबकि वह ईमानदारी से काम करे, धर्मपरायण सत्यनिष्ठ विचार व वाणी अपनाये तथा सभी तरह के लेन-देन में न्यायसंगत हो। धर्म आदिवासी के जीवन के सभी पहलुओं में बैठ जाता है क्योंकि जीवित रहने के लिए वह काम करता है और ईमानदारी से किया गया काम ही पूजा है।

पपप) क) झूम कृषि
ख) साइम, क्षेत्रीय
ग) सेंग खासी