(who is father of soil science in india in hindi) मृदा विज्ञान के जनक कौन है ?
मिट्टी (मृदा) (Soil and land) :
भारत देश में “डॉ. जे.डब्ल्यू.लैदर” (J. W. Leather) को मृदा विज्ञान एवं कृषि रसायन विज्ञान का जनक कहा जाता है |
पारिस्थितिकी विज्ञान के सिद्धांतों की सबसे अधिक महत्वपूर्ण भूमिका मिट्टी तथा भूमि के उपयोग में प्रभावी पाई गयी है। हमारे देश में इस दिशा में संतोषजनक प्रगति की गयी है। तथा अभी भी देशव्यापी योजनाओं पर व्यावहारिक कार्य शोध-कार्य किया जा रहा है। लगभग सभी राज्यों में भूमि तथा मृदा परिक्षण प्रयोगशालाएं किसानों को आवश्यक वैज्ञानिक जानकारी दे रही है। इसके अतिरिक्त केन्द्रीय सरकार द्वारा अनेकों भूमि एवं मिट्टी विकास और शोध योजनायें चलाई जा रही है। परिणामस्वरूप पिछले 10 वर्षों में भूमि के उचित प्रबंधिकरण तथा उपयोग से कृषि बागवानी एवं वन विकास में आश्चर्यजनक प्रगति हो रही है। विभिन्न स्थानों पर यद्यपि भू संरचना सामान्यतया स्थिर बनी रहती है , इस प्राकृतिक संतुलन को मानव की अनेकों अविवेकपूर्ण गतिविधियाँ जैसे अत्यधिक पशु चराई और कटाव तथा अन्य प्राकृतिक वनस्पतियों के विनाश आदि से यह बिगड़ा जा रहा है। केन्द्रीय अमेरिका , फारस , उत्तरी चीन एवं भारत सहित सिन्धु घाटी के देशो में अनेकों प्राचीन तथा वैभवशाली हरे भरे प्रदेश आज मात्र मरुस्थलों में परिवर्तित हो गए है।
वर्षा की मात्रा तथा वाष्पन दर के अनुपात पर ही मिट्टी की प्रकार निर्भर करती है। जहाँ वर्षा बहुत अधिक होती है (जैसे जंगल क्षेत्र) और जहाँ बहाव अच्छा हो वहां मृदा पतली होती है। उन क्षेत्रों में जहाँ वर्षा ठीक मात्रा में होती है तथा निक्षालय कम होता है , जैसे कि प्रेएरी बायोम में , वहां मृदा गहरी और उपजाऊ होती है।
किसी स्थान विशेष पर जल निरंतर प्रवाहित होता है तो भूमि की ऊपरी पर्त का कटाव करके बहा ले जाता है। परिणामस्वरूप बहुमूल्य खनिज पदार्थ तथा ह्यूमस आदि का अभाव उत्पन्न हो जाता है तथा भू संरचना परिवर्तन से भूमि कृषि , वृक्षारोपण तथा अन्य आर्थिक गतिविधियों के लिए अयोग्य हो जाती है।
मिट्टी तथा भूमि के विकास के लिए मुख्य रूप से जल और वायु की मुख्य भूमिका है , जिनका उचित नियंत्रण तथा प्रबंधिकरण अति आवश्यक है। जल तथा वायु प्रवाह एवं वेग को नियंत्रित करने का एक मात्र प्राकृतिक उपाय पर्याप्त वन तथा पेड़ पौधों का विकास है। अन्य प्रभावकारी उपाय जो कि इस समय प्रचलित है , निम्नलिखित है –
- यथासंभव वनों का विकास किया जा रहा है , विशेषकर पहाड़ों तथा ढलानदार क्षेत्रों में स्थायी एवं विशाल वृक्ष लगाये जा रहे है।
- भूमि की मूल संरचना बनाए रखने के लिए चक्रीय खेती अर्थात फसलों को उलट पलट कर बोया जा रहा है।
- चारागाह पर अनियंत्रित चराई नहीं कराई जाए , सरकार द्वारा इसकी तरफ कठोर कदम उठाये जा रहे है।
- बाढ़ नियंत्रण का प्रबंध करके तटवर्ती कटाव रोका जा रहा है।
- पहाड़ी क्षेत्रों में चट्टानों को नष्ट होने से बचाया जा रहा है।
- मरुस्थलों में वर्षा जल को नहरों से सींचकर वृक्षों के विकास की योजनायें क्रियान्वित की जा रही है।
- तटवर्ती क्षेत्र को बचाने के लिए समुद्र के किनारें कठोर चट्टानों और पत्थरों के बाँध बांधे जा रहे है।