भारत की विविधता एवं विशेषताएँ लिखिए | भारत की विविधता में एकता हिंदी निबंध अद्भुत | diversity of india in hindi

diversity of india in hindi भारत की विविधता एवं विशेषताएँ लिखिए | भारत की विविधता में एकता हिंदी निबंध अद्भुत ?

भारत की विविधता (Diversity of India)
भारत विविधताओं और बहुलताओं का देश है। यहाँ के जीवन के प्रत्येक पहलू में विविधता विद्यमान है। यहाँ भौगोलिक जैविक भाषाई, धार्मिक, प्रजातीय, सांस्कृतिक आदि विविधताएँ सहज ही देखी जा सकती हैं। इन विविधताओं का संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है-

प्रजातीय विविधता (Racial Diversity)
प्रजाति से आशय ऐसे लोगों के समूह से है जिनमें त्वचा के रंग ताक के आकार, बालों के प्रकार आदि आधार पर कुछ स्थायी प्रकार की शारीरिक विशेषताएँ होती हैं। भारतीय प्रजातियों का सर्वप्रथम वर्गीकरण सर हरबर्ट रिजले (Herbert Risicy) ने सन् 1901 की भारतीय जनगणना में किया था। रिजले के अनुसार, भारतीय जनसंख्या में सात विभिन्न मानव प्रजातियाँ तुर्क-ईरानी, भारतीय आर्य, द्रविड़, आर्य-द्रविड़, सीथो-द्रविड़, मंगोल-द्रविड़ और मंगोल शामिल हैं। एक अन्य मानव शास्त्री जे. एच. हट्टन ने भारतीय प्रजातियों के ,बारे में अपना वर्गीकरण प्रस्तुत करते हुए कहा कि यहाँ नीग्रिटो, प्रोटो-ऑस्ट्रेलायड, पूर्व भूमध्यसागरीय, भूमध्यसागरीय, अल्पाइन, नार्डिक और मंगोल प्रजातियाँ पाई जाती हैं। सबसे मुख्य और सर्वमान्य वर्गीकरण बिरजा शंकर गुहा (Biraja Shanker Guha) द्वारा 1931 की जनगणना रिपोर्ट में प्रस्तुत किया गया है। उन्होंने भारत के लोगों को छह प्रकार की प्रजातियों में विभक्त किया। उनका वर्गीकरण इस प्रकार है-
1. नीग्रिटो (Negrito): यह कालोनी को वंची वाली और भारत आने वाली मुंबस राचीन प्रजाति है। चैड़ा सिर, धुंघराले बाल और मोटे होठ इनकी विशेषतागत है। अंडमान-निकोबार की जारवा, आग और दक्षिण भारत की कादार, इरूला और पनियन जैसी जनजातियों को इस संवर्ग रखा जा सकता है। इस प्रजाति का ज्यादा संबंध अफ्रीका महाद्वीप से हैं।
2. प्रोटो ऑस्ट्रेलायड (Proto Australord or Austrics): इस प्रजाति के लोग नीग्रो प्रजाति के बाद आये। भारत के मध्य क्षेत्र में रहने वाली कुछ प्रजातियाँ इसके अन्तर्गत आती हैं। इनमें हो, भील आदि आदिवासी समूहों को रखा गया है। इनकी प्रमुख विशेषताएँ बड़ा सिर छोटा साथी एव ठोड़ी छोटी लाक और गहरी भरी त्वचा है। माना जाता है कि इन्हीं लोगों ने भारतीय सभ्यता की नींव रखी।
3. मगोलायड (Mongoloid): मंगोलायड एशिया का एक मूल प्रजातीय समूह है। इसमें उत्तरी एवं पूर्वी एशिया के लोग शामिल है। भारत के उत्तर पूर्व में रहने वाले कई समुदायों को इस प्रजाति वर्ग में रखा गया है। इनकी प्रमुख विशेषताएँ पीली त्वचा भारी पलके छोटी आँखें और मध्यम ऊँचाई है।
4. भूमध्य सागरीय या द्रविड़ (Mediterranean or dravidian) : इस प्रजाति के लोग सिंधु सभ्यता से लेकर दक्षिण भारत तक में मिलती है। इनके तीन उप्रकार है वास्तविक भूमध्यसागरीय (True Mediterranean), पेलियो-भूमध्यसागरीय ( Paleo Mediterranean), और ओरियटल भूमध्ससागरीय (Oriental Mediterranean)
5. पश्चिमी लघुकपाल (Western Brachycephals) :अल्पाइन दिनरिक और आमनाईड प्रजाति के एक उपसमूह का नाम पश्चिमी लघुकपाल रखा गया है। इनमें से सूर का करी (Coorpis) और पारसी (Coorpis Parsis) समुदाय को रखा गय है।
6. नॉर्डिक या उदीच्य (Nordics): नॉर्डिक सबसे अंत में आने वाली प्रजाति है। इसकी प्रमुख विशेषताएँ लंबा कद, लंबा सिर, और नीली आँखें हैं। यह प्रजाति पश्चिमी यूरोप और मध्य एशियाई देशों में पाई जाती है। इन्हें पंजाब, हरियाणा, राजस्थान में देखा जा सकता है।

भौगोलिक विविधता (Geographical Diversity)
भौगोलिक दृष्टि से भारत विविधताओं का देश है। देश की भूगर्भिक संरचना को विविधता ने उच्चावच तथा भौतिक लक्षणों की विविधता को जन्म दिया है। भारत के सुदूर उत्तर में हिमाच्छादित शिखरों, विशाल हिमनदों तथा गहरी घाटियों से युक्त हिमालय पर्वत श्रेणी का विस्तार है। हिमालय के दक्षिण में सिन्धु, गंगा तथा ब्रह्मपुत्र नदी तंत्र द्वारा निर्मित विशाल उपजाऊ मैदान है। विशाल मैदान के दक्षिण में प्रायद्वीपीय पठार है जिस पर अपरदित शैलें, सोपानी स्थलाकृति तथा कहीं-कहीं शिखरों से युक्त अवशिष्ट श्रेणियाँ तथा घाटियाँ स्थित हैं। अरब सागर में लक्षद्वीप तथा बंगाल की खाड़ी में अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह स्थित हैं।
भारत की इस भौगोलिक विविधता के संबंध में डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने अपने भाषण में स्पष्ट कहा है कि –
‘यदि कोई विदेशी, जिसे भारतीय परिस्थितियों का ज्ञान नहीं है, सारे देश की यात्रा करे तो, वह यहाँ की भिन्नताओं को देखकर यही समझेगा कि, श्यह एक देश नहीं, बल्कि छोटे-छोटे देशों का समूह है और ये देश एक-दूसरे से अत्यधिक पिन्न हैं। जितनी अधिक प्राकृतिक भिन्नताएँ यहाँ हैं, उतनी अन्यत्र कहीं पर नहीं हैं। देश के एक छोर पर उसे हिम मंडित हिमालय दिखाई देगा और दक्षिण की ओर बढ़ने पर गंगा, यमुना एवं ब्रह्मपुत्र की घाटियाँ, फिर विन्ध्य, अरावली, सतपुड़ा तथा नीलगिरि पर्वत श्रेणियों का पठार इस प्रकार अगर वह पश्चिम से पूर्व की ओर जायेगा तो उसे वैसी ही विविधता और विभिन्नता मिलेगी। उसे विभिन्न प्रकार की जलवायु मिलेगी। हिमालय को अत्यधिक ठण्ड, मैदानों की ग्रीष्मकाल की अत्यधिक गर्मी मिलेगी। एक तरफ असम का समवर्धा वाला प्रदेश है, तो दूसरी ओर जैसलमेर का सूखा क्षेत्र. जहाँ बहुत कम वर्षा होती है। इस प्रकार भौगोलिक दृष्टि से भारत में सर्वत्र विविधता दिखाई पड़ती है।‘
इस तरह भारत को चार प्रमुख भौतिक प्रदेशों में बाँटा जा सकता है- (1) उत्तरी पर्वतीय क्षेत्र, (2) विशाल मैदान, (3) प्रायद्वीपीय पठार तथा (4) तट और द्वीपीय समूह
(विस्तृत व्याख्या के लिए सामान्य अध्ययन के ‘भूगोल‘ खंड का ‘भारत के भू-आकृतिक प्रदेश‘ अध्याय देखें।)
देश में जलवायु संबंधी विविधताएँ भी देखने को मिलती हैं। मेघालय के मॉसिनराम में 1200 से.मी. से अधिक वर्षा होती हैं । तो थार के मरुस्थल में 25 से.मी. से भी कमा लेह में -45°C तापमान दर्ज होता है तो चुरु (राजस्थान) में 50°C से भी अधिक। इस तरह भारत में विश्व स्तर की जलवायवीय विविधताएँ दृष्टिगोचर होती हैं।

जैव विविधता (Bio Diversity)
भारत में जैव विविधता भी पर्याप्त मात्रा में पाई जाती है। जैव विविधता को हम वनस्पति और जन्तु संबंधी विविधता में बाँट कर देख सकते है। भारत विश्व के 12 वृहद जैव विविधता वाले देशों में से एक है। यदि इन देशों की जैव विविधता को संयुक्त रूप् से देखा जाए तो यह विश्व भर को ज्ञात जैव विविधता को 60-70 प्रतिशत हिस्सा होगा। विश्व भर के भूमि क्षेत्रफल के 2.4 प्रतिशत हिस्से के साथ भारत ज्ञात प्रजातियों के 7-8 प्रतिशत हिस्से का आश्रयदाती है। अभी तक वनस्पतियों की 46000 से अधिक एवं प्राणियों को 8100 से अधिक प्रजातियाँ भारत में खोजी जा चुकी हैं।
भारत को फसलों की विविधता का केन्द्र माना जाता है। इसे चावल, अरहर, आम, हल्दी, अदरक गना, गूजबेरी आदि की 30000-50000 किस्मों की खोज का केन्द्र माना जाता है और दुनिया में कृषि को सहयोग प्रदान करने में भारत का सातवाँ स्थान है। दुनिया के ‘जैव विविधता हॉटस्पॉट‘ ऐसे क्षेत्र होते हैं जहाँ स्थानीय प्रजातियों की भरमार हो। ऐसे दो क्षेत्र भारत में हैं।

वनस्पति संबंधी विविधता (Botanical Diversity)
वन संपदा की दृष्टि से भारत काफी संपन्न है। उपलब्ध आँकड़ों के अनुसार वनस्पति विविधता की दृष्टि से भारत का विश्व में दसवाँ और एशिया में चैथा स्थान है। जलवायु विविधता के कारण भारत में जितने प्रकार की वनस्पतियाँ पाई जाती है, वे समान आकार के अन्य देशों में दुर्लभ ही देखने को मिलते है। भारत का आठ वनस्पति क्षेत्रों में बाँटा जा सकता है- पश्चिमी, हिमालय, पूर्वी हिमालय, असम, सिंधु नदी का मैदानी क्षेत्र दक्कन, गंगा का मैदानी क्षेत्र मालाबार तथा अंडमान और निकोबार द्वीप समूह।
पश्चिमी हिमालय क्षेत्र कश्मीर से कुमाऊँ तक फैली है। इस क्षेत्र के शीतोष्ण कटिबंधीय भाग में चीड़, देवदार, शंकुधारी (कोनिफर) और चैड़ी पत्ती वाले शीतोष्ण वृक्षों के वनों का बाहुल्य है। इससे ऊपर के क्षेत्र में देवदार, नीली चीड़, सनोवर वृक्ष और श्वेत देवदार के जंगल है। अल्पाईना क्षेत्र शीतोष्ण क्षेत्र को ऊपरी सीमा से 4750 मीटर या इससे अधिक ऊँचाई तक फैला हुआ है। इस क्षेत्र में ऊँचे स्थानों में मिलने वाले श्वेत वदार श्वेत भोजपत्र और सदाबहार वृक्ष पाए जाते हैं। पूर्वी हिमालय क्षेत्र सिक्किा से पूर्व की ओर शुरू होता है और इसके अंतर्गत दार्जिलिंग कुर्सियाग और उसके साथ लगे हिस्से आते हैं। इस शीतोष्ण क्षेत्र में ओक, बड़े फूलों वाला सदाबहार वृक्ष और छोटी बेंत के जंगल पाए जाते हैं। असम क्षेत्र में ब्रह्मपुत्र और सुरमा घाटियाँ आती हैं जिनमें सदाबहार जंगल हैं और बीच-बीच में घनी बाँसों तथा लंबी घासों के झुरमुट हैं। सिंधु के मैदानी क्षेत्र में पंजाब, पश्चिमी राजस्थान और उत्तरी गुजरात के मैदान शामिल हैं। यह क्षेत्र शुष्क और गर्म है और इसमें प्राकृतिक वनस्पतियाँ मिलती हैं। गंगा के मैदानी क्षेत्र का अधिकतर भाग कछारी मैदान है और इनमें गेहूँ, चावल और गन्ने की खेती होती है। केवल थोड़े से भाग में विभिन्न प्रकार के जंगल हैं। दक्कन क्षेत्र में जंगलों से लेकर तरह-तरह की जंगली झाड़ियों तक के वन हैं। मालाबार क्षेत्र के अधीन प्रायद्वीपीय तट के साथ-साथ लगने वाली पहाड़ी तथा अधिक नमी वाली पट्टी है जहाँ घने जंगल हैं। इसके अलावा, इस क्षेत्र में कई महत्त्वपूर्ण व्यापारिक फसलें जैसे नारियल, सुपारी, काली मिर्च, कॉफी, चाय, रबड़ तथा काजू की खेती होती है। अंडमान क्षेत्र में सदावहार, मैंग्रोव, समुद्र तटीय और जल प्लावन संबंधी वनों की अधिकता है। कश्मीर से अरुणाचल प्रदेश तक के हिमालय क्षेत्र (नेपाल. सिक्किम, भूटान, नागालैंड) और दक्षिणी प्रायद्वीप के क्षेत्रीय पर्वतीय श्रेणियों में ऐसे देशज पेड़-पौधों की अधिकता है। जो दुनिया में अन्यत्र कहीं नहीं मिलते।

जंतु संबंधी विविधता (zoological Diversity)
भारत में जलवायु और भौतिक दशाओं में अत्यधिक विविधता होने के कारण जंतुओं में भी प्रचुर मात्रा में विविधताएँ देखने को मिलती हैं, जिनमें प्रोटिस्टा, मोलस्का, एंथ्रोपोडा, एम्फीबिया, स्तनधारी, सरीसृप, प्रोटोकोर डाटा के सदस्य पाइसेज, एब्स और अन्य अकशेरूकीय शामिल हैं।
स्तनधारियों में शाही हाथी, गौर अथवा भारतीय बाइसन (जंगली भैसा), भारतीय गैंडा, हिमाचल का जंगली भेंड, हिरण, चीतल, नील गाय, चार सींगों वाला हिरण, भारतीय बारहसिंगा अथवा काला हिरण आदि शामिल हैं। बिल्लियों में बाघ और शेर सबसे अधिक विशाल हैंय अन्य शानदार प्राणियों में धब्बेदार चीता, साह चीता, रेखांकित बिल्ली आदि भी पाए जाते हैं। स्तनधारियों को कई अन्य प्रजातियाँ अपनी सुन्दरता, रंग य आभा और विलक्षणता के लिए उल्लेखनीय हैं। जंगली मुर्गी हंस, बत्तख , मैना, तोता, कबूतर, सारस, धनेश और सूर्य पक्षी जैसे अनेक पक्षी जंगलों और आर्द्र भू-भागों में रहते हैं।
नदियों और झीलों में मगरमच्छ और घड़ियाल पाये जाते हैं। खारे पानी का घड़ियाल पूर्वी समुद्री तट तथा अंडमान और निकोबार द्वीप समूहों में पाया जाता है। वर्ष 1974 में शुरू की गई घड़ियालों के प्रजनन हेतु परियोजना घड़ियाल को विलुप्त होने से बचाने में सहायक रही है। विशाल हिमालय पर्वत में जंतुओं की अत्यंत रोचक विभिन्नताएँ पाई जाती हैं जिनमें जंगली भेड़ और बकरियाँ, मारखोर, आई बेकस, थ्रू और टेपिर शामिल हैं। पांडा और साह चीता पर्वतों के ऊपरी भाग में पाए जाते हैं।
हालाँकि कृषि का विस्तार, पर्यावरण का नाश, प्रदूषण, सामुदायिक संरचना में असंतुलन. महामारो, बाढ़, सूखा आदि कारणों से वनस्पति और जन्तु समूह की हानि हुई है। स्तनधारियों की 39 प्रजातियाँ, पक्षियों की 72 प्रजातियाँ, सरीसृप वर्ग की 17 प्रजातियाँ, उभयचर को 3 प्रजातियाँ मछलियों को दो प्रजातियाँ और तितलियों, शलभों तथा भृगों को काफी संख्या को असुरक्षित और संकटग्रस्त माना गया है। लेकिन इसके बावजूद भारत में जन्तु संबंधी विविधताएं अद्भुत और अतुलनीय हैं।

भाषाई विविधता (Linguistic Diversity)
भारत में अनेक भाषाएँ एवं बोलियाँ बोली जाती है। भारत के विभिन्न प्रान्तों में अनेक भाषाएँ अस्तित्व में है जो भिन्न-भिन्न प्रान्तों को परस्पर अलग भी कर देती है। साइमन कमीशन की रिपोर्ट के अनुसार, यहाँ व्यवहार में लाई जाने वाली भाषाओं की संख्या लगभग 222 है। संविधान की आठवीं अनुसूची को अनुसार देशों में 22 भाषाओं को मान्यता प्रदान की गाई है। इनमें असमिया, बांग्ला, गुजराती हिन्दी कन्नड़, कश्मीरी, मलयालम, मराठी, उडिया, मुंजाबी संस्कृत तमिल तेलुगु उर्दू, सिंधी, नेपाली मणिपुरी, कोंकणी, बोडो, मैथिली, डोगरी और संथाली शामिल हैं। यहाँ की भाषाओं को विभिन्न लिपियों में लिखा जाता है जो भारत की विविधता का द्योतक है। लिपि से आशय शब्द या वर्ण लिखने के तरीके से है। भारत की कुछ प्रचलित लिपियों में देवनागरी, रोमन, गुरूमुखी, तेलुगु, मलयालम आदि है।
विश्व के भाषा परिवारों में से एक हिन्द यूरोपीय भाषा परिवार (Indo-European Family) का एक उपविभाजन हिन्द आर्य (Indo-Aryan or India) कहलाता है और उसमें भारत के उत्तरी हिस्से में बोली जाने वाली हिन्दी, पंजाबी, मराठी आदि भाषाएँ रखी गयी हैं। भारत की दो तिहाई से अधिक आबादी हिन्द आर्य भाषा परिवार की कोई न कोई भाषा विभिन्न स्तरों पर प्रयोग करती है जिसमें संस्कृत समेत मुख्यतः उत्तर भारत में बोली जाने वाली अन्य भाषाएं जैसे-हिन्दी, उर्दू, नेपाली, बांग्ला, गुजराती, कश्मीरी, डोगरी, पंजाबी, उड़िया, असमिया, मैथिली, भोजपुरी, मारवाड़ी, गढ़वाली, कोकंणी इत्यादि शामिल है।
द्रविड़ भाषा परिवार भारत का दूसरा सबसे बड़ा भाषाई परिवार है। इस परिवार का सबसे बड़ा सदस्य तमिलनाडु में बोली जाने वाली तमिल भाषा है। इसी तरह कर्नाटक में कन्नड़ एवं दक्षिण कर्नाटक में तुलु, केरल में मलयालम और आंध्रप्रदेश में तेलुगु इस परिवार की बड़ी भाषाएँ हैं। इसके अलावा इस वर्ग में कश्मीर के सीमावर्ती क्षेत्रों में प्रयुक्त होने वाली ब्राहुई भाषाओं को रखा गया है।
ऑस्ट्रो-एशियाटिक भाषा परिवार में संथाली आदि भाषाओं को रखा गया है। यह प्राचीन भाषा परिवार मुख्य रूप से झारखंड, छत्तीसगढ़, ओडिशा एवं पश्चिम बंगाल के ज्यादातर हिस्सों में बोली जाती है।
चीनी-तिब्बती भाषा परिवार की ज्यादातर भाषाएँ पूर्वोत्तर राज्यों में बोली जाती हैं। इस परिवार पर चीनी और आर्य परिवार की भाषाओं का मिश्रित प्रभाव पाया जाता है और सबसे छोटा भाषाई परिवार होने के बावजूद इस परिवार के सदस्य भाषाओं की संख्या सबसे अधिक है। इस परिवार की मुख्य भाषाओं में नगा, मिजो, म्हार, मणिपुरी, तांगखुल, खासी, दफला. तथा आओ इत्यादि भाषाएँ शामिल हैं। इन्हें ‘नाग परिवार‘ की भाषाएँ भी कहा गया है।
अंडमानी भाषा परिवार जनसंख्या की दृष्टि से भारत का सबसे छोटा भाषाई परिवार है। इसके अंतर्गत अंडमान-निकाबोर द्वीप समूह की भाषाएँ आती हैं, जिनमें प्रमुख हैं- अंडमानी, ग्रेड अंडमानी, ओंग, जारवा आदि। अंडमानी भाषा परिवार नवीनतम विभाजन है। इसके दो उपविभाजन किये गये हैं- ग्रेट अंडमानी (Great Andamanese) और ओंग (Ongan) भाषा समूह। इसमें ग्रेट अंडमानी को अका-जेरू (Aka Jeru) समुदाय के लोग प्रयुक्त करते हैं। इसके अलावा इस भाषा वर्ग में सेंटलीस (Sentinelese) को भी रखा गया है। ये तीनों भाषाएँ आपस में निकटतापूर्वक संबंध रखती हैं। इस प्रकार हम देखते हैं कि भारत में भाषाई विविधता भी बृहद स्तर पर है।

धार्मिक विविधता (Religious Diversity)
भारत के विभिन्न भागों में अलग-अलग धर्म यथा-हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई. बौद्ध, पारसी तथा जैन धर्म के अनुयायी रहते हैं। भारत की जनगणना 2001 के अनुसार देश की कुल जनसंख्या में हिन्दू 80.5 प्रतिशत, मुसलमान 13.4 प्रतिशत, ईसाई 2.3, सिख 1.9. बौद्ध 0.8, जैन 0.4, और अन्य धर्मो को मानने वाले का प्रतिशत 0.6 है। इनमें से प्रत्येक धर्म भी कई मतों में बँटा हुआ है। जैसे हिन्दू धर्म वैष्णव, शैव, शाक्त जैसे संप्रदायों में बँटा हुआ है। इन संप्रदायों के भी उनके उपसंप्रदाय हैं। जैसे शैव संप्रदाय के लोग वीरशैव, कालामुख आदि उपसंप्रदायों में विभाजित हैं। हिन्दू धर्म में कई सुधार आंदोलन चले जिसके कारण इसके और उपविभाजन सामने आये। इनमें से एक विभाजन सनातन और आर्य समाज में हुआ। इसके अलावा हिन्दू धर्म में रामभक्ति, कृष्ण भक्ति, कबीर पंथी और नाथ पंथी आदि की भी विशद परंपरा है। विचारधारा के स्तर पर भी कई मत सामने आये जिनमें रामानुजाचार्य के विशिष्टाद्वैतवाद और शंकराचार्य के अद्वैतवाद को ज्यादा स्वीकार्यता मिली। हिन्दू धर्म के तहत पनपी जाति और वर्ण संबंधी सामाजिक व्यवस्था भी हिन्दू धर्म में सामाजिक विविधता को दर्शाती है। हिन्दू धर्म में चार वर्ण-ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र स्वीकार किये गये। इन वर्गों में कई क्रमागत उपविभाजन हैं। प्रायः यही माना जाता है कि जाति इन्हीं उपविभाजनों को प्रदर्शित करती है। हालाँकि विद्वानों का एक समूह जिनमें एम एन श्रीनिवास प्रमुख हैं, मानता है कि जातियों के उपविभाजन को भारतीय स्तर पर समझने के लिए वर्ण का विचार सामने आया।
भारत में मुसलमानों का संकेंद्रण उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, गुजरात आदि राज्यों में ज्यादा है। यहाँ के मुसलमान भी शेष दुनिया की तरह मोटे तौर पर सन्नी और शिया संप्रदायों में विभक्त है। भारत में रहने वाले दो तिहाई मसलमान सुन्नी मत को मानते हैं। इन दोनो मतों के अपने कई उपसंप्रदाय भी हैं। सनी संप्रदाय हनफो शिफीही मालिका आदि उपसंप्रदायों में तथा शिया मुसलमान इस्माइली, जाफरी आदि उपशाखाओं में बँटे हुए हैं। भारत में विकसित हुए इस्लाम धर्म में सूफियों का बहुत बड़ा योगदान रहा है। भारत सूफियों को जो सम्मान हासिल है वह अन्यत्र कहीं देखने को नही मिलता।
भारत में ईसाई धर्म की उपस्थिती पूरे देश में है लेकिन उनका संकेद्रण केरल, तमिलनाडू, गोवा और पूर्वोत्तर राज्यों में ज्यादा है। यहाँ के ईसाई मुख्य तौर पर कैथोलिक और प्रोटेस्टेंट मतो में विभाजित है। कैथोलिक चर्च को ज्यादा महत्व प्रदान करते है जबकि प्रोटेस्टैंट कम। कैथोलिकों में मूर्तिपूजा का प्रचलन है जबकि प्रोटेस्टैंट में मूर्तिपूजा को स्वीकार नही किया गया है। भारत के ईसाई हिन्दू और मुस्लमानों की तरह सामाजिक विविधता को दर्शाते है। जैसे केरल का ईसाई समुदाय उच्च और निम्न हैसियत वालों दो वर्गो में बंटा हुआ है। उच्च सामाजिक प्रस्थिती वाले सीरियन ईसाई समुदाय कहलाते है जबकि दूसरी तरफ न्यू राईट ईसाई या लैटिन ईसाई है, जिन्हे हिन्दू धर्म के दलितों की तरह समझा जा सकता है।
सिख धर्म के अनुयायियों का संकेद्रण पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और जम्मू के क्षेत्रों में ज्यादा है। मूल तौर पर सिख धर्म में जाति प्रथा को अस्वीकार्य का दिया गया और प्रत्येक पुरूष को अपने नाम के आगे सिंह और प्रत्येक महिला को ‘कौर‘ लिखने को कहा गया। लेकिन समय बीतने के साथ सिखों में भी जाति व्यवस्था के अवगुण दिखने लगे। सामाजिक पदानुक्रम में निचले स्थान पर रहने वाले को मजहबी सिख कहा गया और पंजाब के ग्रामीण इलाकों में उनके लिए अलग गुरुद्वारे बने गये। सिख धर्म से विकसित हुई ‘डेरा परंपरा‘ का भी धार्मिक विविधता को बढ़ाने में योगदान रहा है।
बौद्ध धर्म भारत में कभी बेहद शक्तिशाली धर्म बन गया था और उसे अनेक प्रतापी वंशों और राजाओं का संरक्षण हासिल था। बाद में महात्मा बुद्ध की शिक्षाओं की व्याख्या पर उभरे मतभेदों के कारण इनके तीन उपसंप्रदाय हीनयान, महायान और वज्रयान अस्तित्व में आये। समय बीतने के साथ ही बौद्ध धर्म विलुप्त होने की हालत में आ गया। सन् 1953 में संविधान निर्माता डॉ. भीमराव अम्बेडकर की हिन्दू धर्म त्याग कर बौद्ध धर्म स्वीकार करने की घोषणा के साथ बौद्ध धर्म में एक नई हलचल देखी गयो। डॉ. अम्बेडकर ने हीनयान या महायान शाखाओं को अस्वीकार करते हुये कहा कि हमारा बौद्ध धर्म नया बौद्ध धर्म ‘नवयान‘ (Navayana) है। इन्हें नवबौद्ध या पश्चिमी बौद्धवाद की संज्ञा दी जाती है। नवबौद्धों का संकेंद्रण महाराष्ट्र और उत्तरप्रदेश में सर्वाधिक है।
जैन धर्म बौद्ध धर्म के समकालीन ही विकसित हुआ। इस धर्म के अनुयायी भी श्वेतांबरों और दिगम्बरों में बँटे हुए हैं। इनमें दिगम्बर संप्रदाय के लोग धर्म संबंधी मान्यताओं का कठारेता से पालन करते हैं। जैन धर्म के लोगों का संकेंद्रण महाराष्ट्र, राजस्थान और गुजरात में ज्यादा है।
देश में इन प्रमुख धर्मों के अलावा पारसी, यहूदी और आदिवासियों के धर्म सरना को मानने वाले भी बड़ी संख्या में रहते हैं। पारसी धर्म के लोग मूल रूप से ईरान से भारत आये और यहीं बस गये। यहूदी धर्म के अनुयायी बहुत कम संख्या में हैं। देश के अधिकांश यहूदी कोचीन और महाराष्ट्र में संकेंद्रित हैं। झारखंड व ओडिशा क्षेत्र में रहने वाले कुछ आदिवासी समुदाय सरना धर्म में विश्वास व्यक्त करते हैं। इस तरह भारत को धार्मिक विविधताओं का देश कहा जा सकता है।

सांस्कृतिक विविधता (Cultural Diversity)
भारत में विभिन्न स्तरों पर सांस्कृतिक विविधता दिखाई पड़ती है। राज्यवार देखें तो यहाँ के सभी राज्यों की संस्कृति एक-दूसरे से पर्याप्त भिन्न है। लोगों का खान-पान, रहन-सहन, वेश-भूषा, सोचने का तरीका, अभिवृत्तियाँ, नृत्य, संगीत और अन्य कलाएँ अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग तरह की हैं। दूसरे स्तर पर हमें एक ही राज्य के विभिन्न क्षेत्रों में हमें भिन्न संस्कृति के आयाम दिखने लगते हैं। जैसे उतराखंड राज्य में गढ़वाली और कुमाऊँनी संस्कृति क्षेत्र मिलते हैं। राजस्थान में मारवाड़, शेखावटी , ढूंढार, मेवाड़ आदिय उत्तरप्रदेश में ब्रज, पश्चिमी उत्तरप्रदेश, अवधी, बुंदेलखंड, बघेलखंड, रूहेलखंड आदिय गुजरात में सौराष्ट्र, कच्छ आदिय बिहार में भोजपुरी, मगही और मिथिला क्षेत्र एक ही राज्य में कई संस्कृतियाँ होने के प्रमुख उदाहरण हैं। इन सांस्कृतिक क्षेत्रों में भी कई उपक्षेत्र हैं जिनकी अपनी विशिष्टताएँ होती हैं।

राजनीतिक विविधता (Political Diversity)
देश का इतिहास बताता है कि ब्रिटिश उपनिवेशवाद के दौर से पहले तक यहाँ के सभी भूभागों में एक ही वंश का शासन कभी नहीं रहा। मौर्य, गुप्त और मुगलों का शासन भी देश के अधिकांश हिस्से पर अवश्य रहा लेकिन देश का संपूर्ण हिस्सा नियंत्रण में नहीं था। इससे स्पष्ट होता है कि देश का हमेशा से ही राजनीतिक विविधता बनी रही है। देश ने ऐसे दौर भी देखें हैं जब शक्तिशाली केंद्रीय सता की सत्ता की अनुपस्थिती के समय में यह विविधता और अधिक गहरी हो गई।
देश की आजादी के बाद संसदीय और लोकतांत्रिक व्यवस्था अस्तित्व में आई जिसके तहत हुए चुनावों में विभिन्न राजनीतिक विचारधाराओं से जुड़े लोग विधानसभा और संसद में पहुँचे। मौजूदा दौर में देश की विधानसभाओं में दक्षिणापंथी, वामपंथी, मध्यमार्गी सभी प्रकार की विचारधाराओं के दलों को देखा जा सकता है। वर्तमान समय में गठबंधन सरकार का दौर चल रहा है जिसमें विभिन्न दल मिलकर शासन संचालन का कार्य करते है। इसका प्रभाव यह हुआ है कि बेहद छोटे जनाधार वाले दलों को भी केंद्रीय सत्ता में भागीदारी का अवसर मिला है जिससे देश के राजनीतिक वातावरण में विविधता के रंग और अधिक हो गये है। दूसरी महत्वपूर्ण बात यह भी सामने आई है कि लोगों में राजनीतिक दलों के पाठन की प्रवृत्ति बढ़ी है और चुनाव आयोग में पंजीकृत दलों की संख्या निंरतर बढ़ती जा रही है।