संस्कृति किसे कहते हैं स्पष्ट कीजिए | समाजशास्त्र में संस्कृति की परिभाषा क्या है culture definition in hindi

culture definition in hindi in sociology संस्कृति किसे कहते हैं स्पष्ट कीजिए | समाजशास्त्र में संस्कृति की परिभाषा क्या है ? प्रकार अवधारणा अर्थ मतलब ?

संस्कृति – कार्यशील समग्रता के रूप में
सांस्कृतिक आचरण के प्रति मलिनॉस्की का दृष्टिकोण उसके कतिपय विचारों पर आधारित था। मलिनॉस्की (1944ः36) ने संस्कृति शब्द का इस्तेमाल व्यापक अर्थ में किया, जिसमें “उपकरण, उपभोक्ता वस्तुएं विभिन्न सामाजिक समूहों के संघटन का आधार मानवीय विचार तथा शिल्प, विश्वास एवं प्रथाएं‘‘ शामिल हैं। एक सरल अथवा आदिम संस्कृति हो या जटिल और विकसित संस्कृति – मलिनॉस्की (1944ः 35) के लिए यह “एक विशाल तंत्र है, जो अंशतः भौतिक, अंशतः मानवीय और अंशतः आध्यात्मिक है, जिसकी मदद से मनुष्य अपने सामने आने वाली कठिन से कठिन समस्याओं से जूझ सकता है।‘‘ इस कथन से प्रतीत होता है कि मलिनॉस्की की संस्कृति की अवधारणा में

(प) भौतिक संस्कृति (material culture)

(पप) मानव कार्यकलापों की स्पष्ट श्रेणियाँ, और

(पपप) सामाजिक समूहों के संघटन का आधार एवं विश्वास शामिल थे।

प) पहली श्रेणी अर्थात् भौतिक संस्कृति में उपकरण एवं उपभोक्ता वस्तुएं सम्मिलित हैं। ये नाना प्रकार की कलात्मक या भौतिक वस्तुएं हैं। इनमें मानवीय कार्यकलापों से पैदा होने वाली सभी वस्तुएं और मानवीय आवश्यकताओं की पूर्ति करने वाले उपकरण शामिल हैं।
पप) दूसरे तत्व अर्थात् मानव कार्यकलापों की स्पष्ट श्रेणियों में वे प्रथाएं हैं, जिनमें सामाजिक संगठनों के पहलुओं को लिया जाता है।
पपप) तीसरे तत्व यानी सामाजिक समूहों तथा विश्वासों के संघटन आधार हैं, जिनमें सांस्कृतिक उपकरण तथा सामाजिक संगठन के कुछ पहलु शामिल हैं।

उपरोक्त वर्णन से प्रतीत होता है कि मलिनॉस्की ने मानव जीवन तथा उसके कार्यकलापों से संबंधित लगभग हर पहलू को संस्कृति माना और यह कहा कि ये पहलू मानव शरीर रचना की व्यवस्था का अंग नहीं है। इस प्रकार मलिनॉस्की की दृष्टि में संस्कृति मानव आचरण का वह रूप है, जिसे लोग सीखते हैं, जीवन पर्यन्त मानते हैं और फिर अगली पीढ़ी को सौंप देते हैं। इस तरह सीखे गए आचरण के विन्यासों से जुड़ी भौतिक संस्कृति भी इसमें समाहित हैं। हमने पाया कि मलिनॉस्की ने भौतिक पदार्थों में तथा प्रथाओं, विश्वासों और सामाजिक वर्गीकरण में अंतर किया है। भौतिक पदार्थों का प्रकार्य उपकरणों तथा उपभोक्ता वस्तुओं के रूप में था, जबकि प्रथाएं, विश्वास तथा सामाजिक वर्गीकरण उन लोगों की विशेषताएं मानी गई, जिनमें सामाजिक सांस्कृतिक आचरण की चर्चा की जा रही है। एक तरह से मलिनॉस्की ने संस्कृति को समाज अथवा सामाजिक प्रणाली के समतुल्य माना। अगले अनुभाग में हमने संस्कृति की मलिनॉस्की की परिभाषा की तुलना टाइलर द्वारा की गई परिभाषा से की है।

 मलिनॉस्की तथा टाइलर की संस्कृति की परिभाषाएं
एन्साइक्लोपीडिया ऑफ सोशल साइंसिस (1931ः 621-46) में संस्कृति शब्द की मलिनॉस्की की परिभाषा, दी गई। उसने लिखा “संस्कृति में विरासत में मिले कलाशिल्प, वस्तुएं, तकनीकी प्रक्रियाएं, विचार, आदतें, मूल्य शामिल है।‘‘ मलिनास्की के अनुसार सामाजिक संगठन स्पष्टतया संस्कृति का अंग है। इस दृष्टि से आपको संस्कृति की मलिनॉस्की की परिभाषा टाइलर की परिभाषा (1881) से एकदम मिलती-जुलती लगेगी। हमने अपने ऐच्छिक पाठ्यक्रमों में टाइलर की संस्कृति की परिभाषा का प्रायः उल्लेख किया है। उस परिभाषा को यहाँ एक बार पुनः दोहराया जा रहा है। टाइलर ने कहा कि संस्कृति “एक जटिल समग्रता है, जिसमें ज्ञान, विश्वास, कला, कानून, नैतिकता प्रथाएं तथा मनुष्य द्वारा समाज के सदस्य के रूप में अपनाई गई सभी अन्य क्षमताएं और आदतें शामिल हैं।‘‘ दोनों परिभाषाओं की तुलना करने पर यह स्पष्ट होता है कि टाइलर ने जटिलता के पहलू पर बल दिया, जबकि मलिनॉस्की ने संस्कृति की समता के पक्ष को अधिक महत्व प्रदान किया।

मलिनॉस्की ने संस्कृति शब्द का प्रयोग एक कार्यशील समग्रता के रूप में किया और उन विश्वासों, प्रथाओं, रीतियों तथा संस्थाओं के उपयोग अथवा प्रकार्य के अध्ययन का सिद्धांत विकसित किया, जिनके मूल से संस्कृति की समग्रता का निर्माण होता है। वह संस्कृति के विभिन्न पहलुओं को अनुभवपरक शोधकार्य की एक योजना के रूप में देखता था, जिसकी परख प्रेक्षण के जरिए की जा सकती है। इसी अर्थ में मलिनॉस्की को नृशास्त्र/समाजशास्त्र में क्षेत्रीय शोधकार्य का जनक माना जाता है। क्षेत्रीय शोधकार्य का अपना दृष्टिकोण विकसित करते हुए मलिनॉस्की ने प्रकार्यात्मक क्रांति का सूत्रपात किया और लिखा, “नृशास्त्र का प्रकार्यात्मक सिद्धांत मैंने विकसित किया और एक तरह से मैंने इसे स्वयं अपने को ही प्रदान किया।‘‘ इसमें कोई अंहकार की बात नहीं। मलिनॉस्की ने क्षेत्रीय शोधकार्य के अपने कष्टसाध्य अनुभवों का ब्योरा पहले पहले 1922 में अपने प्रबंध आर्गोनॉट्स ऑफ दि वेस्टर्न पैसिफिक में प्रकाशित किया। उसकी मान्यता थी कि किसी प्रथा अथवा संस्था के प्रकार्य को इस अर्थ में समझना चाहिए कि वह संस्कृति की समग्रता बनाए रखने में किस हद तक सहायक होती है। मलिनॉस्की (1931ः 621-46) ने कहा कि संस्कृति का अध्ययन अपने आप में एक स्वतंत्र अस्तित्व रखता है। उसका अध्ययन स्व-पर्याप्त यथार्थता (ेमस-िबवदजंपदमक तमंसपजल) की तरह किया जाना चाहिए।

मलिनॉस्की की इन बातों पर हमें उसके समय में प्रचलित दृष्टिकोणों की तुलना में विचार करना चाहिए। उस युग में विकासवादी तथा प्रसारवादी विचारक संस्कृति को विकासक्रम में समय विशेष के साथ अथवा प्रसारवादी नक्शे में स्थान विशेष के साथ जोड़ रहे थे (दखिए पोकॉक 1961ः 52)। मलिनॉस्की ने इन दृष्टिकोणों को अपूर्ण बताते हुए संस्कृति के विभिन्न पहलुओं की परस्पर निर्भरता को समझने की आवश्यकता पर बल दिया। उसने संस्कृति को एक समग्रता की तरह समझने का तर्क दिया, और कहा कि संस्कृति का अध्ययन प्रत्येक प्रथा के प्रकार्य के संदर्भ में किया जाना चाहिए (‘‘संस्कृति‘‘ शब्द के नृशास्त्रियों द्वारा बहुविधीय प्रयोग हेतु देखें कपर 2000)। उसने इस काम को करने के लिए कुछ विधियाँ विकसित की जिनकी चर्चा अगले अनुभाग में की जा रही है।

संस्कृति के अध्ययन की विधियाँ
मलिनॉस्की ने कार्यशील इकाई के रूप में संस्कृति का अध्ययन करने के लिए क्षेत्रीय शोधकार्य की विधियाँ विकसित की। क्षेत्रीय शोधकार्य की विधियों पर इतना अधिक जोर देने के फलस्वरूप प्रकार्यवाद की उसकी अवधारणा ने समूचे नृशास्त्र विषय में क्रांति ला दी। संस्कृति के विवेचन एवं विश्लेषण के लिए उन दिनों इस्तेमाल की जाने वाली शब्दावली में भी आमूल परिवर्तन हो गया। अब उस सामग्री के तीन प्रमुख प्रकारों का उल्लेख किया जा रहा है, जो मलिनॉस्की के अनुसार तथ्य एकत्रीकरण की विशेष विधियों के लिए आवश्यक हैं।
प) उसने संस्कृति विशेष की प्रथाओं और संस्थाओं को विस्तार से प्रस्तुत करने के लिए “ठोस प्रमाण के आधार पर सांख्यिकीय प्रलेख (ेजंजपेजपबंस कवबनउमदजंजपवद) की विधि प्रस्तुत की। उसका कहना था कि क्षेत्रीय शोधकर्ता को हर कार्यकलाप के सभी तत्वों को समझना चाहिए। साथ में, लोगों से प्राप्त ब्यौरों, मतों तथा वास्तविक प्रकरणों के प्रेक्षण से हर कार्यकलाप के भिन्न-भिन्न पहलुओं में संबंध को भी समझना चाहिए।
पप) रोजमर्रा के जीवन के सामाजिक कार्य-कलापों का बारीकी से प्रेक्षण किया जाए और उसके परिणाम विशेष नृशास्त्र डायरी में विस्तार से दर्ज किए जाएं। मलिनॉस्की लिखता हैः “स्थानीय प्रथा के नियम आदि समझने के लिए स्थानीय लोगों के कथनों तथा तथ्यों से स्पष्ट बोध विकसित करने से हमें मालूम होता है कि इस तरह से मिले बोध का वास्तविक जीवन से लम्बा-चैड़ा लेना-देना नहीं है क्योंकि जीवन कभी भी नियमों के एकदम अनुरूप नहीं चलता। हमें यह भी ध्यान से देखना होगा कि किसी प्रथा पर आचरण किस प्रकार से होता है और जिन नियमों का निर्धारण नृजातिविवरण देने वाले करते हैं, उनका पालन करने में स्थानीय लोगों का आचरण कैसा है। हमें अपवादों पर भी ध्यान देना है, क्योंकि समाजशास्त्रीय क्षेत्र में अपवाद हमेशा होते रहते हैं।‘‘
पपप) उसने क्षेत्रीय शोधकर्ताओं को सलाह दी कि वे स्थानीय लोगों के मनोविज्ञान को समझने के लिए नृजातिविवरणों, विशिष्ट उल्लेखों, कथनों तथा जादू-सिद्धांतों एवं लोक कथाओं के तत्वों को एकत्र करें। मलिनॉस्की स्थानीय लोगों के मन, वचन और कर्म में अंतर की जटिलता को समझने के पक्ष में था। दूसरे शब्दों में, शोधकर्ता को देखना चाहिए कि अपने कार्यकलापों के बारे में लोग क्या कहते हैं (अर्थात् ऊपर दी विधि प)। दूसरे, देखना चाहिए कि लोग वास्तव में क्या करते हैं (अर्थात् ऊपर दी विधि पप)। तीसरे, वे इसके बारे में क्या सोचते हैं (अर्थात् विधि पपप)। मलिनॉस्की की तरह हर प्रतिभाशाली क्षेत्रीय शोधकर्ता को जिन लोगों का अध्ययन करना है, उसे उनके साथ आत्मीयता विकसित करनी हैं। मलिनॉस्की संस्कृतियों को कार्यशील इकाइयों से मिलकर बनी समग्रता मानता है। उसके अनुसार संस्कृति के सभी पहलू सामाजिक समूह के सदस्यों को कोई न कोई अर्थ प्रदान करते हैं। एक तरह से वे लोगों की आवश्यकताओं की पूर्ति के साधन हैं। यही उनका एक साथ रहने का तार्किक आधार भी है। आवश्यकताओं के संदर्भ में संस्कृति की व्याख्या करने के लिए मलिनॉस्की को मनोविज्ञान के क्षेत्र में उतरना पड़ा। इस विषय पर चर्चा भाग 22.5 में होगी। भाग 22.5 को पढ़ने से पहले सोचिए और करिए 2 को पूरा करें।

सोचिए और करिए 2
कपर (1975ः 37-8) ने कहा है कि यद्यपि मलिनॉस्की ने संस्कृति के विभिन्न पहलुओं के बीच आपसी संबंधों पर जोर दिया, किन्तु वह स्वयं ट्रोबिएण्ड जनजाति की संस्कृति का समन्वित विवेचन प्रस्तुत करने में विफल रहा। कूपर के अनुसार ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि मलिनॉस्की को प्रणाली का बोध नहीं था। इसका अर्थ यह है कि उसने संस्कृति के प्रत्येक पहलू का वर्णन मात्र करके संस्कृति के हर भाग के साथ पारम्परिक संबंधों की व्याख्या करने की चेष्टा की। परन्तु द्वीपवासियों की संस्कृति के मूल सार को समझ पाने में वह सफल नहीं हो पाया। यह तो यही कहने जैसा हुआ कि बाँहें कंधे से जुड़ी हुई हैं और कंधा गर्दन से जुड़ा है। परंतु इस तरह के वर्णन से शरीर-रचना विज्ञान का सिद्धांत उभरकर सामने नहीं आता। यह मलिनॉस्की के नृजातिविवरण की विफलता का एक उदाहरण है। भाग 22.4 का आलोचनात्मक दृष्टि से अध्ययन करके क्या आपको आदिम संस्कृति की मलिनॉस्की की व्याख्या में कोई और दोष दृष्टिगत होते हैं? अपने विचारों पर एक पृष्ठ की टिप्पणी तैयार कीजिए।