प्रोटीन का वर्गीकरण, संरचना ,α-हैलिक्स चित्र ,आवश्यक व अनावश्यक अमीनो अम्ल , विकृतिकरण

आणविक आकृति के आधार पर प्रोटीन का वर्गीकरण :

1. रेशेदार प्रोटीन : इसमें पॉलीपेप्टाइड की श्रृंखलाएं एक दूसरे के समानांतर होती है जिनके मध्य हाइड्रोजन बंध , डाई सल्फाइड बंध होते है।  यह जल में अविलेय होती है।
उदाहरण : किरेटिन – बाल , ऊन में
मायोसीन – मांसपेशियों में।
2. गोलिका का प्रोटीन : इसमें पॉलीपेप्टाइड की श्रंखला कुंडलित होकर गोलीय आकृति ग्रहण कर लेती है यह जल में विलेय होती है।
उदाहरण – इन्सुलिन , एल्बुमिन
प्रोटीन की संरचना एवं आकृति :
प्रोटीन की संरचना का अध्ययन चार स्तरों पर किया जाता है।
1. प्राथमिक संरचना : प्रोटीन की प्राथमिक संरचना इस तथ्य को निर्धारित करती है की पॉलीपेप्टाइड की श्रृंखला में कितने α- एमिनो अम्ल है तथा उनका क्रम क्या है यदि इनमे से एक भी एमिनो अम्ल अपने स्थान से हट जाता है और उसके स्थान पर दूसरा एमिनो अम्ल आ जाये तो नयी किस्म की प्रोटीन बन जाती है।
2. द्वितीयक संरचना : जब प्राथमिक संरचना विशेष आकृति लिए हुए होती है तो उसे द्वितीयक संरचना कहते है यह संरचना दो प्रकार की होती है।
  • α-हैलिक्स – यह सर्पिलाकार होती है इसकी आकृति को दक्षिणावर्ती पेच के समान माना जाता है इसमें अनेक हाइड्रोजन बंध बनते है।  उदाहरण – बाल – उन
  • β-प्लीटेड शीट संरचना – इसमें पॉलीपेप्टाइड की श्रृंखला एक दूसरे के पाश्र्व में स्थित होती है , ये श्रृंखलाएं अधिकतम विस्तारित व खींची हुई होती है।  उदाहरण – रेशम

3. तृतीयक संरचना : जब प्रोटीन की द्वितीयक संरचना में अनेक वलन (लिपटना) होते है तो तृतीयक संरचना का निर्माण होता है जिससे दो प्रकार की आणविक आकृतियां बनती है जैसे रेशेदार और गोलिकाकार

4. प्रोटीन की चतुष्मक संरचना :
यह त्रिविमीय होती है।
इसमें असंख्य वलन होते है।
इसकी संरचना को उलझे हुए धागे के समान माना जा सकता है।
पॉलीपेप्टाइड की श्रृंखला में निम्न बंध या बल पाए जाते है
  • हाइड्रोजन बंध
  • डाइसल्फाइड बंध
  • वांडरवाल बल
  • स्थिर वैधुत आकर्षण बल

 α-हैलिक्स का नामांकित चित्र बनाइये 

α-हैलिक्स

प्रश्न : आवश्यक व अनावश्यक एमिनो अम्ल क्या है उदाहरण दीजिये
उत्तर : 1. आवश्यक ऐमीनो अम्ल : वे ऐमीनो अम्ल जिनका संश्लेषण सजीव के शरीर में होता है उन्हें अनाश्यक ऐमीनो अम्ल कहते है।
उदाहरण – ग्लाइसिन , एलानिन , प्रोलीन
2. आवश्यक ऐमीनो अम्ल : मनुष्य तथा उच्च श्रेणी के जन्तुओ में कुछ ऐमीनो अम्लों का संश्लेषण नहीं होता शरीर में इनकी कमी शरीर रोग ग्रस्त हो जाता है , इन्हे आहार के रूप में बाहर से ग्रहण करना पड़ता है इन्हे आवश्यक ऐमीनो अम्ल कहते है।
उदाहरण – ट्रिप्टोफेन , वैलीन , मेथिओनीन , आइसोल्यूसिन , ल्युसीन ,लायसीन , फेनिल एलानिन , आर्जीनीन , थ्रिओनिन , हिस्टीडीन
प्रोटीन का विकृतिकरण :
प्रोटीन विशिष्ट संरचना युक्त तथा विशेष कार्य के लिए उत्तरदायी होती है , प्रोटीन को गरम करने , pH में परिवर्तन करने , रासायनिक क्रिया द्वारा इसका स्कंदन हो जाता है अर्थात प्रोटीन का विकृतिकरण हो जाता है।
प्रोटीन के विकृतिकरण से उसकी जैविक क्रिया समाप्त हो जाती है।
प्रोटीन के विकृतिकरण से प्राथमिक संरचना में कोई परिवर्तन नहीं होता परन्तु द्वितीयक , तृतीय , चतुष्क संरचनाएं नष्ट हो जाती है।
उदाहरण – दुग्ध का दही में बदलना , अंडे को उबालने पर प्रोटीन का स्कंदन होना।