पूँजी गहनता की परिभाषा क्या है | पूँजी गहनता किसे कहते है ? Capital Intensity in hindi meaning

Capital Intensity in hindi meaning definition पूँजी गहनता की परिभाषा क्या है | पूँजी गहनता किसे कहते है ?

श्रम उत्पादकता, पूँजी उत्पादकता और पूँजी गहनता
इससे पूर्व कि हम पूर्ण उपादान उत्पादकता की प्रवृत्तियों पर विचार करें, हम भारतीय विनिर्माण क्षेत्र में श्रम और पूँजी उत्पादकता तथा पूँजी गहनता की प्रवृत्तियों पर चर्चा करेंगे।

परिभाषा :

पूँजी गहनता ः श्रम आदान की तुलना में पूँजी का अनुपात जिससे उत्पादन की प्रक्रिया में पूँजी और श्रम के सापेक्षिक महत्त्व का पता चलता है।

पूँजी गहनता
वर्ष 1951 से 1970 की अवधि और विशेषकर 1956-65 के दौरान भारतीय उद्योग में पूँजी गहनता में तेजी से वृद्धि हुई। पूँजी गहनता की औसत वृद्धि-दर लगभग चार प्रतिशत प्रतिवर्ष रही। अगले दशक में, अर्थात् 1970 के दशक में, पूँजी गहनता में वृद्धि की दर अपेक्षाकृत काफी कम थी। 1980 के दशक में, पूँजी गहनता में तेजी से वृद्धि हुई और वृद्धि की ऊँची दर 1990 के दशक में बनी रही। 1980 और 1990 के दशक में पूँजी गहनता की औसत वृद्धि-दर लगभग सात प्रतिशत प्रति वर्ष थी।

आप यह पाएँगे कि पूँजी गहनता की वृद्धि-दर में वृद्धि और गिरावट, श्रम उत्पादकता की वृद्धि-दर के समान है। 1970 के दशक के दौरान, श्रम उत्पादकता और पूँजी गहनता दोनों की वृद्धि-दरों में कमी आई और 1980 के दशक में वृद्धि-दरों में बढ़ोत्तरी हुई थी। इसकी व्याख्या इस तथ्य संदर्भ में की जा सकती है कि श्रम उत्पादकता में वृद्धि का बड़ा हिस्सा उपादान प्रतिस्थापन के कारण था। चूंकि पूँजी गहनता में वृद्धि हुई, पूँजी ने श्रम को प्रतिस्थापित किया। श्रम की तुलना में उत्पादन का अनुपात अर्थात् श्रम उत्पादकता में वृद्धि हो गई। वस्तुतः विगत पाँच दशकों में, भारतीय उद्योग में, पूँजी गहनता में वृद्धि के कारण श्रम उत्पादकता में आधे से भी अधिक वृद्धि हुई है।

आप यहाँ पूछ सकते हैं: पूँजी गहनता में वृद्धि के क्या कारण थे? यह आंशिक रूप से मजदूरी में तीव्र वृद्धि, जो पूँजी आदान के मूल्य में वृद्धि से कहीं अधिक तीव्र था के कारण था। चूंकि श्रम अधिक महँगा हो गया, उद्योगपति के सामने श्रम को पूँजी से प्रतिस्थापित करने का लाभकर विकल्प था। किंतु बढ़ती हुई पूँजीगहनता का सबसे प्रमुख कारण औद्योगिक संघटन में परिवर्तन है। 1950, 1960 और 1980 के दशक में, औद्योगिक संघटन में महत्त्वपूर्ण बदलाव हुए थे तथा पूँजी-प्रधान उद्योगों (इस्पात, मूल रसायन, पेट्रो रसायन, भारी मशीन) का महत्त्व बढ़ा और इससे भारतीय विनिर्माण क्षेत्र की पूँजी गहनता में वृद्धि हुई।

बोध प्रश्न 2
1) रिक्त स्थान की पूर्ति करें।
वर्ष 1950 और 1960 के दशकों के दौरान भारतीय विनिर्माण क्षेत्र में श्रमिक उत्पादकता लगभग ……….औसत वार्षिक दर से बढ़ी। 1970 के दशक में, औसत वृद्धि-दर काफी कम लगभग ……………. प्रतिवर्ष थी। 1980 और 1990 के दशकों में श्रम उत्पादकता की औसत वृद्धि-दर लगभग …………………… प्रतिवर्ष थी।
2) सही के लिए हाँ और गलत के लिए नहीं लिखिए।
प) विगत पाँच दशकों में श्रम उत्पादकता में उध्र्वगामी प्रवृत्ति थी। ( )
पप) विगत पाँच दशकों में पूँजी उत्पादकता में गिरावट की प्रवृत्ति थी। ( )

पपप) 1980 और 1990 के दशकों में, भारतीय उद्योग में श्रम पूँजी को प्रतिस्थापित कर रहा था। ( )

पअ) श्रम उत्पादकता में वृद्धि का बड़ा अंश भारतीय उद्योग में पूँजी श्रमिक उत्पादकता में वृद्धि का कारण था। ( )

3) भारतीय उद्योग की पूँजी गहनता को बढ़ाने वाले दो कारक लिखें।

बोध प्रश्न 2 उत्तर
1) क्रमशः चार प्रतिशत, एक प्रतिशत, छः प्रतिशत।
2) (प) हाँ, . (पप) हाँ (पपप) नहीं (पअ) हाँ ।
3) उपभाग 20.2.3 देखें।

उत्पादन वृद्धि और उत्पादकता वृद्धि
उत्पादकता संबंधी साहित्य में यह सुविदित है कि उत्पादन वृद्धि और उत्पादकता वृद्धि में निश्चित सकारात्मक संबंध हैं। इसे वेर्डरून के नियम (टमतकववदश्े स्ंू ) के नाम से जाना जाता है।

भारतीय उद्योगों के लिए, गोल्डार और आहलूवालिया ने उत्पादन वृद्धि और उत्पादकता वृद्धि में सकारात्मक संबंध पाया है। उनका अनुमान यह दर्शाता है कि निर्गत में एक प्रतिशत प्वाइंट की तीव्रतर वृद्धि के फलस्वरूप उत्पादकता में 0.4 प्रतिशत प्वाइंट तीव्रतर वृद्धि होता है।

हम उत्पादकता वृद्धि की उच्चतर दर के साथ निर्गत की उच्चतर वृद्धि-दर के संबद्ध होने की आशा क्यों करते हैं? प्रौद्योगिकीय प्रगति और बड़े पैमाने की मितव्ययिता को इस सकारात्मक संबंध का कारण माना जा सकता है। तीव्रतर उत्पादन श्रेष्ठतर प्रौद्योगिकियों के उपयोग को प्रोत्साहित करती है तथा इसे सुगम भी बनाती है। यह पुरानी मशीनों के स्थान पर बेहतर मशीन लगाने के लिए अनुकूल और उपयुक्त परिस्थिति पैदा करती है। उत्पादन में तीव्र वृद्धि से फर्म का उत्पादन उच्चतम स्तर तक पहुँचता है और बड़े पैमाने की मितव्ययिता का लाभ मिलता है।

यदि आप तालिका 20.3 में दिए गए निर्गत वृद्धि और पूर्ण उपादान उत्पादकता वृद्धि-दरों की तुलना करेंगे, तो आप पाएँगे कि अधिकांश उद्योग जिनका स्थान निर्गत वृद्धि की दृष्टि से ऊपर है वे पूर्ण उपादान उत्पादकता वृद्धि की दृष्टि से भी ऊपर है। इसी प्रकार यदि निर्गत में वृद्धि-दर कम है तो पूर्ण उपादान उत्पादकता में वृद्धि-दर भी कम है। जब श्रम उत्पादकता अथवा पूँजी उत्पादकता पर विचार करती है तो यही स्वरूप देखा जा सकता है। निर्गत वृद्धि और पूर्ण उपादान उत्पादकता के बीच सह-संबंध गुणांक 0.63 प्रतिशत है। निर्गत वृद्धि और श्रम उत्पादकता वृद्धि के बीच सह-संबंध गुणांक
0.74 है और निर्गत वृद्धि तथा पूँजी उत्पादकता वृद्धि के बीच सह-संबंध गुणांक 0.73 है।

 उत्पादकता वृद्धि में अंतर-उद्योग भिन्नता के कारण
गोल्डार और आहलूवालिया ने उत्पादकता वृद्धि में अंतर-उद्योग भिन्नता की व्याख्या करने के लिए ह्रासमान विश्लेषण का प्रयोग किया है। उन्होंने आयात स्थानापन्न और उत्पादकता वृद्धि की मात्रा के बीच प्रतिलोम संबंध पाया है। अन्य बातों के समान रहने पर, एक उद्योग के विकास में आयात स्थानापन्न का जितना अधिक योगदान होगा, उत्पादकता वृद्धि की दर उतनी ही कम होगी।

आयात स्थानापन्न की दो भूमिकाएँ होती हैंः बाजार संवर्द्धन की भूमिका और संरक्षणवादी भूमिका। अपने बाजार संवर्द्धन भूमिका में उत्पादकता पर आयात स्थानापन्न का वही प्रभाव होता है जो उत्पादन में वृद्धि पर होता है। किंतु अपने संरक्षणवादी भूमिका में, आयात स्थानापन्न का उत्पादकता वृद्धि पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। ऐसा इसलिए है कि विदेशी प्रतिस्पर्धा की मात्रा को कम करने और घरेलू उद्योग को संरक्षण प्रदान करने से, आयात प्रतिस्थापन्न लागत कम करने और उत्पादकता में सुधार करने के लिए प्रोत्साहन को कम करता है। ऐसा प्रतीत होता है कि भारत में आयात प्रतिस्थापन्न का सबल नकारात्मक प्रभाव रहा है।

हासमान विश्लेषण में, आहलूवालिया ने एक उद्योग की पूँजी गहनता और प्राप्त उत्पादकता वृद्धि-दर के बीच नकारात्मक संबंध पाया है। यह शायद सार्वजनिक क्षेत्र के औद्योगिक उपक्रमों की खराब उत्पादकता कार्य-निष्पादन को दर्शाता है क्योंकि पूँजी-गहन उद्योगों में सामान्यतया सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों का प्रभुत्व है।

आहलूवालिया ने यह भी पाया कि एक उद्योग में अनेक कारखानों में वृद्धि की दर और प्राप्त उत्पादकता वृद्धि-दर के बीच नकारात्मक संबंध होता है। इसकी व्याख्या उत्पादकता पर औद्योगिक विखंडन के नकारात्मक प्रभाव को दर्शाने वाले के रूप में की जा सकती है।

 शब्दावली
पूर्ण उपादान उत्पादकता ः कुल आदान की तुलना में निर्गत का अनुपात जिससे उत्पादन में समग्र दक्षता का पता चलता है।
आयात स्थानापन्न ः घरेलू उत्पादों द्वारा आयात प्रतिस्थानापन्न के माध्यम से औद्योगिक वृद्धि।
व्यापार उदारीकरण ः अन्तरराष्ट्रीय व्यापार से टैरिफ को कम करना तथा अन्य प्रतिबंधों को समाप्त करना।
सह-संबंध गुणांक ः दो चरों के बीच संबंध की मात्रा का सांख्यिकीय माप।
ह्रासमान विश्लेषण ः परिवर्तियों के बीच संबंध के विश्लेषण के लिए सांख्यिकीय तकनीक।