(aromatic hydrocarbons in hindi) , ऐरोमेटिक हाइड्रोकार्बन : एरोमेटिक हाइड्रोकार्बन ‘ऐरीन’ कहलाते है क्योंकि इनके यौगिको में ‘एरोमा’ (सुगंध) होती है।
इनका सामान्य सूत्र CnH2n-6Y होता है।
यहाँ y = अणु में बेंजीन वलयों की संख्या
n = कार्बन परमाणुओं की संख्या
वे चक्रीय यौगिक जो रासायनिक व्यवहार में बेन्जीन से समानता प्रदर्शित करते है , ऐरोमेटिक कहलाते है।
ऐरोमेटिको को प्राय: दो वर्गों में बाँटा गया है –
(1) बेन्जीनॉइड : वे चक्रीय यौगिक जिनमें कम से कम एक बेंजीन वलय उपस्थित होती है , बेन्जीनॉइड कहलाते है।
(2) नॉन बेन्जीनॉइड : वे चक्रीय यौगिक जिनमें बेंजीन वलय उपस्थित नहीं होती परन्तु रासायनिक व्यवहार में बेन्जीन से समानता प्रदर्शित करते है , नॉन बेन्जीनॉइड कहलाते है।
सामान्यतया: बेन्जीनॉइड यौगिको को ही एरोमेटिक यौगिक कहते है।
बेन्जीन (Benzene) C6H6 :
बेंजीन मोनो साइक्लिक ऐरोमेटिक हाइड्रोकार्बनो की समजातीय श्रेणी CnH2n-6 का प्रथम सदस्य है।
बेन्जीन की खोज सर्वप्रथम सन 1825 में फैराडे ने की थी।
अनुनाद का सिद्धांत
बेंजीन के X – किरण विवर्तन तथा बंध के मानों के आधार पर यह सिद्ध होता है कि इसके 6 कार्बन परमाणु एक सममित षट्भुज बनाते हुए एक ही तल में स्थिर रहते है।
बेन्जीन की अनुनादी ऊर्जा का मान 36 किलो कैलोरी प्रति मोल होता है।
अनुनादी ऊर्जा का मान जितना अधिक होता है , यौगिक का स्थायित्व भी उतना ही अधिक होता है।
ऐरोमैटिकता (aromaticity) : एक चक्रीय समतली निकाय में इलेक्ट्रॉन के विस्थानिकृत द्वारा कुल ऊर्जा कम होने के कारण स्थायीत्व आ जाता है , ये सभी चक्रीय निकाय ऐरोमेटिक निकाय कहलाते है तथा यह परिघटना ऐरोमेटिकता कहलाती है।
ऐरोमेटिकता की आवश्यक शर्तें
- यौगिक चक्रीय होना चाहिए।
- वलय के सभी परमाणु एक ही तल में होने चाहिए।
- अणु असंतृप्त एवं संयुग्मी होना चाहिए।
- वलय के पाई इलेक्ट्रॉन पूर्ण विस्थानीकृत होने चाहिए।
- ऐरोमेटिक यौगिक में प्रेरित वलय धारा होनी चाहिए।
- अणु में योग अभिक्रियाएँ होनी चाहिए।
- दो समीप वाले कार्बन परमाणुओं के बंध का बंध क्रम एक या दो के मध्य होना चाहिए।
- वलय पर वि-स्थानीकृत पाई-इलेक्ट्रॉन की संख्या हकल के नियमानुसार होनी चाहिए।
हकल का नियम : वे चक्रीय यौगिक जो (4n + 2)π इलेक्ट्रॉन का पालन करते है , वे एरोमेटिक यौगिक कहलाते है।
यहाँ n = 0 , 1 , 2 , 3 , 4 , 5 ……..
हकल के अनुसार ऐरोमेटिकता प्रदर्शित करने वाले यौगिक निम्न है –
[I] बेन्जीनॉइड :
[II] नॉन बेन्जीनॉइड
नोट : साइक्लो ओक्टाटेट्राइन ऐरोमैटिक नहीं है क्योंकि इसकी वलय में 8π इलेक्ट्रॉन है।
बेन्जीन की कक्षकीय संरचना : बेंजीन में प्रत्येक कार्बन परमाणु sp2 संकरित होता अर्थात प्रत्येक कार्बन परमाणु पर तीन sp2 संकरित कक्षक एक त्रिभुजाकार तल में स्थित रहते है जबकि एक p कक्षक लम्बवत तल में स्थित रहता रहता है।
sp2 संकरित कक्षक एक दुसरे के साथ 120 डिग्री का कोण बनाते है।
प्रत्येक कार्बन परमाणु के तीन संकर कक्षकों में से दो संकर कक्षक दुसरे कार्बन परमाणु के दो संकर कक्षकों के साथ दो सिग्मा बंध बनाते है तथा तीसरा sp2 संकर कक्षक हाइड्रोजन परमाणु की s कक्षक के साथ अतिव्यापन कर सिग्मा बंध बनाता है।
कार्बन परमाणु के पास 1-1 2p कक्षक बचता है जो कि समपाश्र्विक अतिव्यापन द्वारा पाई बन्ध बनाता है , इस अतिव्यापन में सभी 6 , 2p कक्षक एक होकर एक सतत पाई अणु कक्षक बनाते है जिसमें 6π इलेक्ट्रॉन होते है।
बेन्जीन के रासायनिक गुण (chemical properties of benzene)
[I] दहन : बेंजीन का वायु या ऑक्सीजन की उपस्थिति में दहन करने पर कार्बन डाई ऑक्साइड और जल बनते है।
[II] हाइड्रोजनीकरण : बेंजीन निकल उत्प्रेरक की उपस्थिति में 150-250 डिग्री सेल्सियस ताप तथा 25 वायुमण्डलीय दाब पर हाइड्रोजन के साथ क्रिया करके साइक्लो-हेक्सेन बनती है।
[III] हैलोजन से योग : सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में बेंजीन , क्लोरिन से क्रिया करके बेन्जीन हेक्सा क्लोराइड बनाती है , यह किटनाशक के रूप में काम में आती है।
[IV] इलेक्ट्रॉन स्नेही प्रतिस्थापन अभिक्रिया :
(A) हैलोजनीकरण : प्रकाश की अनुपस्थिति तथा निर्जल FeCl3
या FeBr3 की उपस्थिति में बेन्जीन , Cl या Br (ब्रोमाइड) से क्रिया करके क्लोरो बेंजीन या ब्रोमो बेंजीन बनाती है।
यह प्रतिस्थापन अभिक्रिया बेंजीन का क्लोरीनीकरण या ब्रोमीनीकरण कहलाती है।
(B) नाइट्रिकरण : बेंजीन सान्द्र H2SO4 की उपस्थिति में 50-60 डिग्री सेल्सियस ताप पर सान्द्र HNO3 (नाइट्रिक अम्ल) से क्रिया करके नाइट्रोबेंजीन बनाती है। यह प्रतिस्थापन अभिक्रिया बेन्जीन का नाइट्रिकरण कहलाती है।
इस अभिक्रिया में नाइट्रोनीयम आयन (NO3+) इलेक्ट्रॉन स्नेही अभिकर्मक है।
(C) सल्फोनीकरण : बेंजीन सान्द्र H2SO4 के साथ 80 डिग्री सेल्सियस ताप पर क्रिया करके बेन्जीन सल्फोनिक अम्ल बनाती है , यह प्रतिस्थापन अभिक्रिया बेंजीन का सल्फोनीकरण कहलाती है।
इस प्रतिस्थापन अभिक्रिया में सल्फर डाई ऑक्साइड इलेक्ट्रॉन स्नेही अभिकर्मक है।
(d) फ्रिडल क्राफ्ट अभिक्रिया : निर्जल AlCl3 की उपस्थिति में बेंजीन वलय में एल्किल या एथिल समूह का जुड़ना फ्रिडल क्राफ्ट अभिक्रिया कहलाती है।
(i) निर्जल AlCl3 की उपस्थिति में बेन्जीन मैथिल क्लोराइड से क्रिया करके टोलुइन बनाती है।
(ii) निर्जल AlCl3 की उपस्थिति में बेंजीन , एसिटिन क्लोराइड से क्रिया करके एसीटोफिनोन बनाती है।
[III] हैलोजन से योग : सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में बेंजीन , क्लोरिन से क्रिया करके बेन्जीन हेक्सा क्लोराइड बनाती है , यह किटनाशक के रूप में काम में आती है।
[IV] इलेक्ट्रॉन स्नेही प्रतिस्थापन अभिक्रिया :
(A) हैलोजनीकरण : प्रकाश की अनुपस्थिति तथा निर्जल FeCl3
या FeBr3 की उपस्थिति में बेन्जीन , Cl या Br (ब्रोमाइड) से क्रिया करके क्लोरो बेंजीन या ब्रोमो बेंजीन बनाती है।
यह प्रतिस्थापन अभिक्रिया बेंजीन का क्लोरीनीकरण या ब्रोमीनीकरण कहलाती है।
(B) नाइट्रिकरण : बेंजीन सान्द्र H2SO4 की उपस्थिति में 50-60 डिग्री सेल्सियस ताप पर सान्द्र HNO3 (नाइट्रिक अम्ल) से क्रिया करके नाइट्रोबेंजीन बनाती है। यह प्रतिस्थापन अभिक्रिया बेन्जीन का नाइट्रिकरण कहलाती है।
इस अभिक्रिया में नाइट्रोनीयम आयन (NO3+) इलेक्ट्रॉन स्नेही अभिकर्मक है।
(C) सल्फोनीकरण : बेंजीन सान्द्र H2SO4 के साथ 80 डिग्री सेल्सियस ताप पर क्रिया करके बेन्जीन सल्फोनिक अम्ल बनाती है , यह प्रतिस्थापन अभिक्रिया बेंजीन का सल्फोनीकरण कहलाती है।
इस प्रतिस्थापन अभिक्रिया में सल्फर डाई ऑक्साइड इलेक्ट्रॉन स्नेही अभिकर्मक है।
(d) फ्रिडल क्राफ्ट अभिक्रिया : निर्जल AlCl3 की उपस्थिति में बेंजीन वलय में एल्किल या एथिल समूह का जुड़ना फ्रिडल क्राफ्ट अभिक्रिया कहलाती है।
(i) निर्जल AlCl3 की उपस्थिति में बेन्जीन मैथिल क्लोराइड से क्रिया करके टोलुइन बनाती है।
(ii) निर्जल AlCl3 की उपस्थिति में बेंजीन , एसिटिन क्लोराइड से क्रिया करके एसीटोफिनोन बनाती है।