ए. मेयर कौन थे समाजशास्त्र में हिंदी में | a. mayer in hindi in sociology who studied ALBERT MAYER

a. mayer in hindi in sociology ए. मेयर कौन थे समाजशास्त्र में हिंदी में ? ALBERT MAYER book and village name ?

ए. मेयर
मेयर ने मध्य प्रदेश के रामखेड़ी नामक गांव का अध्ययन किया। वर्ण क्रम-परंपरा के प्रभावों को समझने के लिए मेयर ने जातियों के बीच होने वाले आपसी-व्यवहार को इन बातों की रोशनी में देखाः
1) भोजन, पानी पीना और धूम्रपान में सहभोजिता-यानी भोजन, पानी और धूम्रपान साथ करना
2) आदान-प्रदान में स्वीकार किए जाने वाला भोजन किस किस्म का है-वह ‘कच्चा‘ है, या ‘पक्का‘
3) भोजन करने का अवसर-कोई अनुष्ठान या सामान्य अवसर
4) भोजन के अवसर पर बैठने की व्यवस्था
5) भोजन कौन परोसता है और भोजन किसने बनाया है
6) पानी का पात्र कैसा है-धातु का या मिट्टी का।

सहभोज क्रम-परंपरा इस विश्वास पर आधारित है कि उपरोक्त सभी कारको या इनमें से कोई भी एक कारक किसी भी जाति के लिए कम या ज्यादा दूषण का कारण बन सकता है, जिससे क्रम-परंपरा व्यवस्था में उसकी पहचान और श्रेणी प्रभावित होती है। अब इस क्रम-परंपरा के शीर्ष पर विद्यमान जाति यह सुनिश्चित करेगी कि उसे सिर्फ एक ही जाति के हाथों से भोजन या फिर इस किस्म का भोजन और जलपात्र मिले, जिससे वह अपवित्र न हो पाए। उदाहरण के लिए ‘पक्का‘ भोजन निम्न जाति के हाथों से स्वीकार तो किया जाएगा मगर कच्चा भोजन सिर्फ अपनी जाति या उपजाति में ही स्वीकार्य होगा।

सारांश
इस इकाई में हमने जाति श्रेणी और जातिगत पहचान के विभिन्न पहलुओं के बारे में जाना। इसके शुरू में हमने जाति की धार्मिक और समाजशास्त्रीय व्याख्याओं समेत उसकी आरंभिक व्याख्याओं पर रोशनी डाली। इसके पश्चात हमने घुरये, हटन और श्रीनिवास जैसे समाजशास्त्रियों द्वारा प्रतिपादित विशेषताबोधक सिद्धांत के बारे में आपको अवगत कराया। फिर हमने जाति श्रेणीकरण और पहचान की व्याख्या के लिए अन्योन्यक्रिया के वैकल्पिक सिद्धांत के बारे में बताया जिसमें बैली, मेयर, मैरियोट और द्युमोंत के अध्ययन कार्य शामिल किए गए। इसके बाद हमने दोनों सिद्धांतों का मूल्यांकन किया और देखा कि दोनों में कुछ न कुछ समस्याएं हैं। मगर इससे इतना स्पष्ट तो हो ही जाता है कि हमने जिन अध्ययन कार्यों की चर्चा इस इकाई में की है वे जाति क्रम परंपरा और श्रेणीकरण की आरंभिक धार्मिक और समाजशास्त्रीय व्याख्याओं से बेहद उन्नत हैं।

बोध प्रश्न 3
1) द्युमोंत के अन्योन्य-क्रियात्मक जाति श्रेणीकरण सिद्धांत के बारे में 10 पंक्तियों में बताइए।

बोध प्रश्न 3 उत्तर
1) द्युमोंत के अनुसार पवित्रता और दूषण की विचारधारा एक सामान्य विचारधारा है जो किसी एक स्थान के संदर्भ तक सीमित नहीं है। उनके अनुसार जाति आर्थिक, राजनीतिक और नातेदारी व्यवस्थाओं के बीच विद्यमान संबंधों का समुच्चय है। क्रम-परंपरा वर्ण-व्यवस्था के मूल में निहित मूल्य है और यही मूल्य हिन्दू समाज को एक करते हैं। पवित्र अपवित्र से श्रेष्ठ है और उसे पृथक रखा जाना जरूरी है। द्युमोंत के अनुसार सत्ताधिकार प्रस्थिति का अधीनस्थ है और इसीलिए राजा पुरोहित से नीचे होता है। इस प्रकार क्रम-परंपरा आनुष्ठानिक होती है और उसे धर्म आधार प्रदान करता है।

शब्दावली
सहजगुण: गुण और रूपाकार
सहभोजिता: साथ बैठकर भोजन करना
प्रबल जाति: वह जाति जो किसी गांव में अपनी आर्थिक और राजनीतिक शक्ति के कारण प्रभावशाली है।
सगोत्र विवाह: एक जाति समूह विशेष के भीतर विवाह रचाना
विचारधारा: विचारों की एक सुसंगत धारा
जजमानी प्रथा: प्रबल जातियों पर आश्रित जातियों द्वारा उन्हें आनुष्ठानबद्ध, निजी, विशिष्ट सेवाएं प्रदान करने का रिवाज
कच्चा भोजन: ऐसा खाना जो कच्चा या पानी में पका हो
पक्का भोजन: ऐसा खाना जो घी या तेल में बना हो
दूषण: गंदी वस्तुओं या जातियों के संपर्क में आने से उत्पन्न होने वाली स्थिति
पवित्रता: आनुष्ठानिक स्वच्छता या सभी दूषित करने वाली वस्तुओं और व्यक्तियों से मुक्त रहने की दशा