सामाजिक गतिशीलता क्या है | सामाजिक गतिशीलता किसे कहते है परिभाषा प्रकार Social mobility in hindi

Social mobility in hindi meaning definition सामाजिक गतिशीलता क्या है | सामाजिक गतिशीलता किसे कहते है परिभाषा प्रकार अर्थ मतलब बताइए ? अवधारणा की विशेषता को समझाइए ? महत्व लिखिए ?

प्रस्तावना
सामाजिक गतिशीलता का अर्थ है कि व्यक्तियों का किसी एक सामाजिक स्थिति से दूसरी सामाजिक स्थिति में संचलन। सामाजिक स्थितियों में परिवर्तन का अभिप्राय प्रायः जीवनयापन और जीवन-शैली में होने वाले महत्वपूर्ण बदलावों से है। सामाजिक गतिशीलता की संकल्पना की आदर्श परिभाषा पिटरीम ए. सोरोकिन द्वारा दी गई है। सोरोकिन के अनुसार सामाजिक स्थितियों में परिवर्तन एक व्यक्ति, सामाजिक उद्देश्य या सामाजिक मूल्यों में होने वाले परिवर्तनों द्वारा समझा जा सकता है। कहने का अभिप्राय यह है कि कोई भी वस्तु जिसे मनुष्य ने बनाया या परिवर्तित किया है, सामाजिक गतिशीलता का अनुभव कराती है।

समाजशास्त्र में एक संकल्पना के रूप में सामाजिक गतिशीलता का महत्व एकदम स्पष्ट है। किसी व्यक्ति अथवा समूह द्वारा समाज की स्थिति में अनुभव किया गया कोई परिवर्तन न केवल उस व्यक्ति या समूह पर प्रभाव डालता है बल्कि संपूर्ण समाज पर भी उसका प्रभाव पड़ता है।

सामाजिक गतिशीलता की संकल्पना की व्याख्या परोक्ष रूप से समाज में वर्गीकरण की पहचान कराती है। यह वर्गीकरण सामान्यतः शक्तिं, हैसियत और विशेषाधिकार के संदर्भ में किया जाता है। इससे किसी समाज में किसी व्यक्ति या समूह द्वारा शक्ति, हैसियत और विशेषाधिकारों को प्राप्त करने या खोने की समाजशास्त्रीय जाँच की संभावनाओं का मार्ग खुल जाता है। अन्य शब्दों में, अधिकारी-वर्ग की सीमा-रेखा से किसी के ऊपर जानें या नीचे आने से सामाजिक स्थिति अर्थात् सामाजिक गतिशीलता का पता लगता है।

सामाजिक स्थिति पर प्रभाव डालने में लगने वाला समय अलग-अलग समाज में अलगअलग होता है। सामाजिक गतिशीलता के अनेक आयाम हैं। सामाजिक गतिशीलता का समाजशास्त्र ऐसे विद्वानों के योगदानों से भरपूर है जिन्होंने अपने संबंधितं अध्ययन क्षेत्रों और एकत्रित आँकड़ों के आधार पर इस संकल्पना के बारे में सिद्धांत प्रतिपादित किए हैं।

यह एकदम स्पष्ट है कि किसी स्थिति में परिवर्तन या तो सम-स्तरीय या फिर सोपानात्मक हो सकता है। अतः सामाजिक स्थिति में परिवर्तन को दो आरंभिक प्रकारों अर्थात् सम-स्तर गतिशीलता और ऊर्ध्व गतिशीलता के विश्लेषणात्मक रूप में समझा जा सकता है।

गतिशीलता के प्रकार और रूप
अब हम सामाजिक गतिशीलता के प्रकारों और रूपों का वर्णन करेंगे।
 समस्तर गतिशीलता
सम-स्तरीय सामाजिक गतिशीलता का अर्थ है किन्हीं व्यक्तियों या समूहों द्वारा किसी समाज में एक स्थिति से ऐसी दूसरी स्थिति में जाना जो स्तर में उच्च या निम्न न हो। सोरोकिन के अनुसार, सम-स्तर सामाजिक गतिशीलता का अर्थ है किसी एक सामाजिक समूह से किसी व्यक्ति या समूह का समान स्तर वाले किसी अन्य समूह में जाना। अमेरिकी समाज के संदर्भ में बैपटिस्ट धार्मिक समूह से मैथोडिस्ट धार्मिक समूह में व्यक्तियों का गमन एक नागरिकता से दूसरी नागरिकता, तलाक या पुनर्विवाह के द्वारा एक परिवार से दूसरे परिवार (पति या पत्नी के रूप में) एक कारखाने से उसी व्यावसायिक स्तर पर दूसरे कारखाने में जाना आदि सभी सम-स्तर सामाजिक गतिशीलता के उदाहरण हैं।

चूँकि सम-स्तर गतिशीलता में बड़े क्रमिक सोपानात्मक उतार-चढ़ाव नहीं होते। अतः सामाजिक गतिशीलता का सम-स्तरीय आयाम किसी समाज में स्थित स्तरीकरण की स्थिति पर अधिक प्रकाश नहीं डाल सकता। फिर भी यह समाज में स्थित विभाजन की प्रकृति का संकेत तो कर ही देता है। ऐसे विभाजन समाज में स्थिति के बड़े अंतर का आरंभिक संकेत नहीं देते। अधिक समकालीन समाजशास्त्री एंटोनी गिड्डन का विचार है कि आधुनिक सभ्यताओं में गतिशीलता की अनेक उप-दिशाएँ हैं। वह समस्तर गतिशीलता को ऐसी पार्श्व गतिशीलता के रूप में परिभाषित करता है जिसमें पड़ोसी नगरों या क्षेत्रों के बीच भौगोलिक संचलन शामिल हों।

 ऊर्ध्व गतिशीलता
समाजशास्त्र के साहित्य में ऊर्ध्व गतिशीलता पर अत्यधिक ध्यान दिया गया है। यह साधारणतः किसी व्यक्ति या समूह के स्तर में ऊपर या नीचे की तरफ होने वाले परिवर्तन पर है। ऊर्ध्व गतिशील के अनेक उदाहरण हैं। उन्नति या अवनति, आमदनी में परिवर्तन, किसी ऊँची या नीची हासयत वाले व्यक्ति से शादी तथा किसी अच्छे या बुरे पड़ोस में गमन आदि सभी ऊर्ध्व गतिशीलता के उदाहरण हैं। ऊर्ध्व गतिशीलता में ऐसा संचलन अवश्य शामिल होता है जो स्तर में वृद्धि या कमी सुनिश्चित करता हो। यह याद रखना महत्वपूर्ण है कि कुछ संचलन एक ही समय में समस्तर तथा ऊर्ध्व दोनों ही हो सकते हैं।

पी.सोरोकिन ऊर्ध्व सामाजिक गतिशीलता को बेहतर ढंग से इस प्रकार परिभाषित करता है कि इसमें किसी व्यक्ति (या सामाजिक वस्तु) का एक सामाजिक स्तर से दूसरे सामाजिक स्तर में संचलन हो। संचलन की दिशाओं के अनुसार दो प्रकार की सामाजिक गतिशीलताएँ होती हैं-(1) ऊपर की तरफ, तथा (2) नीचे की तरफ या क्रमशः ‘सामाजिक उत्थान‘ और ‘सामाजिक पतन‘।

एंटोनी गिड्डन ऊर्ध्व गतिशीलता को ऊपर या नीचे की तरफ सामाजिक आर्थिक मानदंड संचलन के रूप में परिभाषित करता है। उसके अनुसार जो सम्पत्ति, आमदनी या हैसियत प्राप्त करते हैं वे ऊपर की तरफ गतिशील माने जाते हैं तथा जो इसके विपरीत संचलन करते हैं वे नीचे की तरफ गतिशील माने जाते हैं।

गिड्डन के अनुसार आधुनिक सभ्यताओं में ऊर्ध्व तथा समस्तर (पार्श्व) गतिशीलता प्रायः एक-साथ होती है। प्रायः एक गतिशीलता से दूसरी गतिशीलता पैदा होती है। उदाहरण के लिए किसी शहर में एक कंपनी में कार्य करने वाला व्यक्ति किसी अन्य शहर या देश में स्थित उस कंपनी की शाखा में पदोन्नति प्राप्त कर सकता है।

गतिशीलता के रूप
विश्लेषण के रूप में किसी व्यक्ति या समूह द्वारा अनुभूत सामाजिक स्थिति के परिवर्तन का कोई व्यक्ति विभिन्न तरीकों या रूपों में संकल्पनात्मक विवेचन कर सकता है। अमरीकी समाज के साक्ष्य देकर पी.सोरोकिन कहता है कि ऊपर तथा नीचे की तरफ आर्थिक, राजनीतिक तथा व्यावसायिक गतिशीलता दो मुख्य रूपों में निहित है। ये हैं
1) निचले स्तर के व्यक्तियों का विद्यमान उच्च स्तर में प्रवेश करना।
2) ऐसे व्यक्तियों द्वारा एक नए समूह की स्थापना। यह समूह इसी प्रकार के विद्यमान अन्य समूहों के साथ मिलने की अपेक्षा एक उच्चतर समूह में सम्मिलित हो जाता है।
इसी प्रकार, नीचे या उतार वाली गतिशीलता के भी दो मुख्य रूप हैं
1) व्यक्तियों का विद्यमान उच्च सामाजिक स्थिति से बिना किसी अपकर्ष या संबंधित उच्च समूह के विघटन के विद्यमान निचली सामाजिक स्थिति में जानाय और
2) अन्य समूहों में किसी समूह की स्थिति की अवनति होने के कारण या एक सामाजिक इकाई के विघटन के कारण किसी संपूर्ण सामाजिक समूह की स्थिति का पतन होना।
गतिशीलता के रूपों या प्रकारों के संबंध में नवीनतम कार्य रालफ एच.टर्नर द्वारा किया गया है। ब्रिटेन तथा संयुक्त राज्य अमेरिका में गतिशीलता के प्रधान प्रकारों के विपरीत टर्नर ने उच्च गतिशीलता के दो आदर्श विशिष्ट नमूनों का सुझाव दिया है। ये हैं
1) प्रतियोगात्मक गतिशीलता: यह एक व्यवस्था है जिसमें खुली प्रतियोगिता में श्रेष्ठ स्थिति एक पुरस्कार होती है जिसे महत्वाकांक्षी लोगों द्वारा कोशिश करके प्राप्त किया जाता है। ‘इलीट‘ शब्द का प्रयोग टर्नर द्वारा सरल अर्थ में किया गया है जिसका अर्थ है-उच्च श्रेणी वर्ग (कुलीन)। ‘प्रतियोगिता‘ में सही खेल के कुछ नियम लागू होते हैं। उम्मीदवार अपनी पसंद की नीतियाँ अपना सकते हैं। चूँकि सफल उच्च गतिशीलता का पुरस्कार देना किसी उच्च वर्ग के हाथ में नहीं होता, अतः यह कोई निर्णय नहीं करइसकता कि कौन इस पुरस्कार को प्राप्त करेगा और कौन नहीं।
2) प्रायोजित प्रतियोगिता: इसमें स्थापित उच्च वर्ग या उनके एजेंट व्यक्तियों को अपने समूह में नियुक्त करते हैं। इस स्थिति में बनाई गई उच्च श्रेणी की श्रेष्ठता कुछ मानदंडों के आधार पर दी जाती है, जिसे किसी प्रकार के प्रयत्नों या नीति से प्राप्त नहीं किया जा सकता। उच्च गतिशीलता किसी निजी क्लब में प्रवेश पाने की तरह है जहाँ प्रत्येक उम्मीदवार एक या अनेक सदस्यों द्वारा प्रायोजित किया जाता है। अंत में, उसके सदस्य उच्च गतिशीलता प्रदान करने या प्रदान न करने का निर्णय इस आधार पर करते हैं कि उस व्यक्ति में उनके साथी सदस्यों में पाए जाने वाले गुण हैं या नहीं।

जब तक किसी समाज में सामाजिक स्थितियों का श्रेणीकरण है तब तक एक सामाजिक स्थिति से दूसरी सामाजिक स्थिति में संचलन की कम से कम सैद्धांतिक संकल्पना की संभावना होती है। ये परिवर्तन किसी व्यक्ति, समूह या यहाँ तक किसी सामाजिक मूल्य/ वस्तु द्वारा किए/महसूस किए जाते हैं। सामाजिक स्थिति के ऐसे परिवर्तनों को सामाजिक गतिशीलता कहा जाता है।

अभ्यास 1
जिन लोगों को आप जानते हैं उनमें समस्तर गतिशीलता तथा ऊर्ध्व गतिशीलता के उदाहरण खोजिए। परिणामों को अपनी नोटबुक में लिखिए और फिर अपने अध्ययन केंद्र में अन्य विद्यार्थियों के साथ चर्चा कीजिए।

यह परिवर्तन यदि नवीनतम रूप में महसूस किया जाता है तो इसे समस्तर सामाजिक गतिशीलता कहा जाता है। यदि संचलन सोपानात्मक हो तो उसे ऊर्ध्व गतिशीलता कहा जाएगा। समाजशास्त्र में सोपानात्मक गतिशीलता जो ऊपर की तरफ या नीचे की तरफ होती हुई विभिन्न पहलुओं पर अधिक ध्यान दिया जाता है।

सामाजिक गतिशीलता के विभिन्न रूपों का विश्लेषण भी किया जा सकता है। कुछ महत्वपूर्ण रूप हैं-प्रतियोगी गतिशीलता और प्रायोजित गतिशीलता। प्रतियोगी गतिशीलता व्यक्ति या समूह अपने प्रयत्नों और उपलब्धियों द्वारा अपनाता है। जबकि प्रायोजित गतिशीलता में अवनत वर्ग के संघर्ष और प्रयत्नों के स्थान पर यह पहले से स्थापित उच्च सामाजिक समूहों या सरकारध्समाज द्वारा कुछ मुख्य मानदंडों के आधार स्वीकृत या प्रदान किए जाते हैं।

 गतिशीलता के आयाम और तात्पर्य
सामाजिक गतिशीलता की संकल्पना का विश्लेषण करने और इसके विभिन्न रूपों का अध्ययन करने के लिए हमें इसके विभिन्न आयामों की चर्चा करनी होगी। इसके पश्चात् इन आयामों का किसी समाज के बुनियादी रूप के साथ मिलान किया जाना अपेक्षित है। इस भाग में हम सामाजिक गतिशीलता के महत्वपूर्ण आयामों का पता लगाएँगे तथा व्यापक सामाजिक संरचना के परिप्रेक्ष्य में उनके तात्पर्य की भी बात करेंगे।

 परिवर्तित पारस्परिक गतिशीलता और अंतःपारंपरिक गतिशीलता
सामाजिक गतिशीलता के अध्ययन के दो तरीके हैं। एक तो कोई भी व्यक्ति इस बात का अध्ययन कर सकता है कि एक व्यक्ति अपने कार्य जीवन के दौरान अपने व्यवसाय में सामाजिक मानदंड के अनुसार कितना ऊपर या नीचे जाता है। इसे प्रायः परिवर्तित पारंपरिक गतिशीलता कहा जाता है।

विकल्प के रूप में विश्लेषण किया जा सकता है कि बच्चे अपने पिता या दादा की तरह उसी प्रकार के कार्य में कहाँ तक जाते हैं। पीढ़ी के बाद गतिशीलता को अंतःपारंपरिक गतिशीलता कहा जाता है।

दूसरे शब्दों में, किसी व्यक्ति के जीवन-काल में परिवर्तनों के किसी एक बिंदु से किया गया अध्ययन परिवर्तित पारंपरिक गतिशीलता के अध्ययन का विषय है। यदि अध्ययन दो या तीन पीढी के बाद परिवार में हुए परिवर्तनों के किसी एक बिंदु से किया जाए तो यह अंतःपारंपरिक गतिशीलता का विषय है।

परिवर्तित पारंपरिक गतिशीलता को प्रमुख रूप से व्यावसायिक गतिशीलता के रूप में भी जाना जाता है। व्यावसायिक गतिशीलता के बारे में जानकारी लेने के लिए लोगों से अपने जीवन में किए गए कार्यों के बारे में पूछा जाता है।

अमेरिकी व्यावसायिक संरचना का अध्ययन करते समय ब्लो और डंकन (1976) ने पाया कि किसी व्यक्ति का अपने कार्य की सोपान पर ऊपर चढ़ने में निम्नलिखित बातों का बहुत प्रभाव पड़ता है
1) शिक्षा की मात्रा
2) व्यक्ति के प्रथम कार्य की स्थितिय और
3) पिता का व्यवसाय।
ब्लो और डंकन की गतिशीलता के मॉडल का चित्रांकन इस प्रकार किया जा सकता है

इस उदाहरण में प्रभाव की दिशा तीर द्वारा तथा प्रभावों का महत्व तीर बनाने वाली पंक्तियों की बढ़ती संख्या द्वारा दर्शाया गया है।

व्यावसायिकता को अपनाने में कुछ परोक्ष तथ्य भी भूमिका निभाते हैं। छोटे परिवार प्रत्येक बच्चे को अधिक संसाधन, ध्यान तथा प्रेरणा प्रदान कर सकते हैं। शीघ्र विवाह करने वालों की अपेक्षा विलंब से विवाह करने वालों के सफल होने की अधिक संभावना है। विलंब से विवाह करने की स्वीकृति एक दबे हुए व्यक्तित्व की विशेषता का संकेत हो सकती है, आदि।

जीविका-संबंधी गतिशीलता या परिवर्तित पारंपरिक गतिशीलता का अध्ययन जिसमें कार्यजीवन के दौरानं व्यक्ति के परिवर्तनों का अध्ययन किया जाता है अपेक्षाकृत छोटी अवधि को शामिल करता है तथा वंश परंपरा को उस वर्ग ने कैसे अपनाया इसपर अधिक प्रकाश नहीं डालता। इस तरह के अध्ययन से इस प्रकार के समाज पर भी अधिक रोशनी नहीं पड़ती। कोई समाज किस सीमा तक मुक्त या बंद है, इसका निर्णय करने के लिए अभिभावकों तथा बच्चों में अपने व्यवसाय के एक जैसे बिंदुओं पर या समान आयु में तुलना करना हमेशा सही होता है। इस प्रकार, समाजशास्त्रीय अनुसंधान में अंतःपारंपरिक गतिशीलता अधिक उपयोगी है।

गतिशीलता की सीमा
जब व्यक्ति सामाजिक पैमाने से ऊपर या नीचे की ओर जाते हैं तो वे एक या अनेक स्तरों से गुजर सकते हैं। इस प्रकार तय की गई सामाजिक सीमा को रेंज (सीमा) का नाम दिया गया है। इस तरह के संचलन में सीमित सामाजिक सीमा अर्थात् कम दूरी तक परिवर्तन हो सकता है। इसी प्रकार, अनेक स्तरों (ऊपर या नीचे) की थोड़ी बड़ी सामाजिक दूरी भी संभव हो सकती है। उदाहरण के लिए, जब ब्लो और डंकन ने राष्ट्रीय स्तर पर 20,000 पुरुषों के नमूने से सूचना एकत्रित की तो पाया कि अमेरिका में अधिक सोपानात्मक गतिशीलता है।

यह जानना रुचिकर होगा कि लगभग सभी एक-दूसरे के निकट व्यावसायिक स्थितियों के बीच हैं। अधिक सीमा वाली (लाँग रेंज) गतिशीलता न के बराबर है। इसके विपरीत, फ्रेंक पार्किन ने अपने अध्ययन (1963) में हंगरी में पूर्व-साम्यवादी शासन में अधिक सीमा वाली (लाँग रेंज) गतिशीलता के अधिक उदाहरण देखे।

नीचे की तरफ गतिशीलता
एंटोनी गिड्डन का मानना है कि नीचे की तरफ गतिशीलता ऊपर की तरफ वाली गतिशीलता से कम प्रचलित है, तो भी यह सर्वव्यापक है। उसके निष्कर्षों के अनुसार, इंगलैंड में 20 प्रतिशत से अधिक व्यक्ति नीचे की तरफ अंतःपारंपरिक रूप से गतिशील हैं। लेकिन अधिकांश गतिशीलता सीमित है। नीचे की तरफ परिवर्तित गतिशीलता भी आम है।

यह प्रवृत्ति प्रायः मनोवज्ञानिक समस्याओं और चिंताओं से जुड़ी है जहाँ व्यक्ति अपनी आदतन जीवन-शैली को बनाए रखने में असफल हो गया। नीचे की तरफ गतिशीलता अत्यधिकता के कारण भी हो सकती है। उदाहरण के तौर पर, अधेड़ अवस्था के वे व्यक्ति जिनका कार्य छूट जाता है, उन्हें दूसरा रोजगार नहीं मिल पाता। अतः वे पहले से कम आमदनी वाला कार्य करने लगते हैं।

किसी भी प्रकार की परिवर्तित गतिशीलता के संदर्भो में नीचे की तरफ गतिशीलता में अधिकांशतः महिलाएँ होती हैं। ऐसा इसलिए है कि अधिकांश महिलाएँ अपना अभीष्ट व्यवसाय प्रसव के समय छोड़ देती हैं। परिवार का पालन करने के कुछ वर्षों बाद विलंब से वे वेतनभोगी कार्य करने लगती हैं, जो प्रायः पहले से कम आमदनी वाला होता है।

ऊपर की तरफ गतिशीलता
आधुनिक समाजों में धन और सम्पत्ति प्राप्त करना उत्कर्ष के लिए मुख्य साधन है। लेकिन कुछ अन्य माध्यम भी हैं। सम्मानजनक कार्य (जैसे, न्यायाधीश आदि) करना, डॉक्टर की उपाधि प्राप्त करना, या फिर वैभवशाली परिवार में विवाह करना ऐसे ही कुछ माध्यम हैं।

प्रायः यह माना जाता है कि परिवार एक सामाजिक इकाई है जिसके माध्यम से व्यक्ति को सामाजिक वर्ग संरचना में रखा जाता है। परिवार के माध्यम से बच्चा गैर-औद्योगिक समाजों में ये चीजें व्यक्ति की सामाजिक संरचनात्मक स्थिति का पता लगाने के लिए बड़ी प्रक्रिया का निर्माण कर सकती है। औद्योगिक समाजों में वंशानुगत प्रक्रिया संबंधों के द्वारा लगभग उसी सीमा तक वही सामाजिक स्थिति संप्रेषण की गारंटी नहीं लेती। लेकिन तब भी यह समाज की इस महत्वपूर्ण प्रक्रिया को समाप्त नहीं करती। यहाँ पर यह जानना महत्वपूर्ण है कि उच्च उनि शैली और व्यवहार का अनुकरण (बहुत बार समय अपरिष्कृत या भिन्न होता है) पारंपरिक तथा आधुनिक समाजों में भी ऊपर की तरफ गतिशीलता के उपयोगी साधनों के रूप में कार्य करता है।

 गतिशीलता की संभावनाएँ
सामाजिक गतिशीलता का अध्ययन अनिवार्य रूप से समाज के खुलेपन और संकीर्णता के प्रश्न पैदा करता है। यदि किसी समाज की श्रेणीकृत संरचना में किसी संचलन की अनुमति नहीं है तो उसमें गतिशीलता संभव नहीं है। दूसरी तरफ, जो समाज लचीला होता है उसमें गतिशीलता आसानी से हो जाती है।

संकीर्ण समाज में ऊर्ध्व गतिशीलता न के बराबर संभव है। कोलम्बिया और भारत में आधुनिकता से पूर्व कमोबेश समाज इसी प्रकार के थे। इसके विपरीत, एक मुक्त समाज में अधिक ऊर्ध्व सामाजिक गतिशीलता होती है। फिर भी, खुले समाज में लोग एक स्तर से दूसरे स्तर में बिना प्रतिरोध के नहीं जा सकते। प्रत्येक समाज में एक स्थापित मानदंड होता है। यह मानदंड उपयुक्त शिष्टाचार परिवार का श्रेणी में स्थान, शिक्षा या जातीय संबंध आदि के रूप में हो सकता है, जिसे उच्च सामाजिक स्तर में जाने से पूर्व लोगों द्वारा पूरा करना होता है।

अधिकांश मुक्त समाजों में उच्च औद्योगीकरण की प्रवृत्ति होती है। ज्यों-ज्यों समाज औद्योगिक होता जाता है नए शिल्प और व्यवसाय आवश्यक हो जाते हैं। इस कारण पीछे वाले कार्य अनावश्यक हो जाते हैं। नए व्यवसायों का अर्थ है-अधिक वर्ग के लोगों के लिए गतिशीलता के अधिक अवसर। इसके अतिरिक्त, शहरीकरण से ऊर्ध्व गतिशीलता में वृद्धि होती है क्योंकि आरोपित मानदंड शहर के पहचान-रहित वातावरण में कम महत्वपूर्ण हो जाते हैं। लोग उपलब्धिपरक, प्रतिस्पर्धात्मक तथा अच्छी स्थिति के लिए प्रयास करते हैं। औद्योगिक समाजों में सरकार भी कल्याणकारी कार्यक्रम चलाती है जिससे गतिशीलता को बढ़ावा मिलता है।

वास्तव में गतिशीलता से व्यावसायिक ढाँचे में परिवर्तन, मध्य और उच्च वर्ग के व्यवसायों की श्रेणी और अनुपात में वृद्धि तथा निचली श्रेणी के व्यवसायों में कमी हो जाती है। समाज के व्यावसायिक ढाँचे में परिवर्तन से उत्पन्न गतिशीलता को संरचनात्मक गतिशीलता (कभी-कभी आरोपित गतिशीलता भी) कहा जाता है।

बॉक्स 29.01
यह बताना महत्वपूर्ण है कि आधुनिक समाज में कृषक समाज, औद्योगिक समाज से भी आगे चला गया है। आधुनिक औद्योगिक देशों ने अपने प्रमुख उत्पादन कार्यों से परे अर्थव्यवस्था की तीसरी शाखा अर्थात् व्यवसाय, परिवहन, संचार और वैयक्तिक तथा व्यावसायिक सेवाएँ विकसित कर ली हैं। कहने का अभिप्राय है कि आधुनिक औद्योगिक समाज में समग्रतः सेवा-क्षेत्र प्रमुख रूप से है। ऐसी भविष्यवाणी डेनियन बेल द्वारा लगभग तीन दशक पहले ही की जा चुकी थी। कृषि-रोजगार आनुपातिक तथा संपूर्ण रूप से कम रहा था जबकि उत्पादन-रोजगार आनुपातिक रूप से कम हो रहा था। इस परिवर्तन से अभिजात वर्ग तथा मध्यवर्गीय व्यवसायों में वृद्धि हो गई। ये विकास वैयक्तिक प्रयत्नों की अपेक्षा मुख्यतः सामाजिक गतिशीलता के कारण हुआ।

अनेक विद्वानों ने पता लगाया कि औद्योगीकरण के पूँजीवाद से व्यापक रूप से नीचे की तरफ गतिशीलता हुई। सफेदपोश व्यवसायों ने ऊपर की तरफ गतिशीलता के अधिकांश जनसंख्या को पर्याप्त अनुकूलता प्रदान नहीं की। मार्क्सवादी सिद्धांत ने विद्वानों को यह दर्शाने के लिए प्रेरित किया कि बाद के पूँजीवाद की विवशताओं के कारण श्रम के उत्कर्ष की अपेक्षा क्रमिक रूप से उसका पता हुआ। इसके परिणामस्वरूप अत्यधिक मात्रा में सभी प्रकार की नीचे की तरफ गतिशीलता हुई।

तुलनात्मक सामाजिक गतिशीलताएँ
एक बार सामाजिक गतिशीलता की संकल्पना स्पष्ट होने के बाद हम इसके सैद्धांतिक तात्पर्य के बारे में जान गए हैं।

अतः सामाजिक गतिशीलता के वास्तविक अनुभव-जन्य अध्ययनों पर ध्यान देना उपयोगी होगा। इन अध्ययनों के निष्कर्ष एवं अनुमान जिनमें विभिन्न समाजों को शामिल किया गया है, वास्तविक रूप से निर्धारित सामाजिक स्थिति को सामाजिक गतिशीलता की संकल्पना और रूपों के साथ संबंध स्थापित करने में हमारे लिए सहायक होंगे। हम सर्वाधिक प्रतिनिधित्व वाले अध्ययन कर सकते हैं।

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वास्तव में सोरोकिन के अध्ययन के माध्यम से मुख्यतः यह विश्वास किया जाता था कि अमेरिका में किसी भी यूरोपीय देश की अपेक्षा गतिशीलता के अधिक अवसर हैं। यूरोपीय महाद्वीप के अनेक उदाहरणों के द्वारा सिमौर लिपसेट तथा रियनहार्ड बैंडिक्स (1959) ने दर्शाया कि किसी भी औद्योगिक देश में कोई अंतर नहीं है। उन्होंने अपने आँकड़ों को अनेक औद्योगिक समाजों के हस्तचालित और मशीनी क्षेत्रों में विभाजित किया।

गिर्हार्ड लेंस्की (1965) ने विभिन्न स्रोतों से प्राप्त आँकड़ों के आधार पर हस्तचालित और मशीनी कार्य की एक निर्देशिका तैयार की। उसके अध्ययन ने दर्शाया कि पहले स्थान पर अमेरिका में गतिशीलता की दर 34 प्रतिशत है, लेकिन पाँच यूरोपीय देश लगभग उसके नजदीक हैं। ये ह-स्वीडन (32 प्रतिशत), इंगलैंड (31 प्रतिशत), डेनमार्क (30 प्रतिशत), नार्वे (30 प्रतिशत) तथा फ्रांस (29 प्रतिशत)। अतः हम देख सकते हैं कि औद्योगिक देशों में गतिशीलता दर एक-जैसा है।

फ्रैंक पार्किन ने सामाजिक गतिशीलता की नई ऊँचाइयों वाला अभी तक का एक उपयुक्त एवं सारगर्भित अध्ययन किया। उसने पूर्वी यूरोप के प्राचीन साम्यवादी समाज के आँकड़े एकत्रित कर एक तुलना प्रस्तुत की।
1) पूँजीवादी समाजों की तरह प्रभुत्व वाला प्रबंधक तथा व्यावसायिक वर्ग अपने बच्चों के लिए अपेक्षाकृत अधिक लाभ पहुंचाते हैंय और
2) विशेषाधिकार प्राप्त वर्ग अपने बच्चों के लिए उच्च स्थिति सुनिश्चित करते हैं। फिर भी इन समाजों में किसानों एवं हाथ से काम करने वाले श्रमिकों के लिए अधिक गतिशीलता है।

पार्किन ने हंगरी में एक अध्ययन के उदाहरण द्वारा सिद्ध किया कि 77 प्रतिशत प्रबंधक, प्रशासनिक तथा व्यावसायिक स्थिति वाले पुरुष और महिलाएँ किसान तथा मूलतः श्रमिक वर्ग के थे और 53 प्रतिशत चिकित्सक, वैज्ञानिक, तथा इंजीनियर भी ऐसे ही परिवारों से संबंधित थे।

औद्योगिक विस्तार से पूर्वी यूरोप में सफेदपोश स्थितियों में वृद्धि होने के कारण निचले स्तर में गतिशीलता प्रदान की जो अमेरिका और यूरोप से भी अधिक थी। इस तथ्य ने श्रमिक वर्गों में प्रेरणा भर दी।

ये अध्ययन बताते हैं कि सामाजिक गतिशीलता उसकी संभावनाएँ और तात्पर्य सभी विशिष्ट सामाजिक संदर्भो से जुड़े हुए हैं। अगले भाग में हम सामाजिक गतिशीलता के और अधिक नवीन अध्ययनों को देखेंगे जो अनुसंधान की सूक्ष्म तकनीकों का प्रयोग कर सामाजिक गतिशीलता की संकल्पना के व्यापक सिद्धांतों के आधार पर किए गए हैं।

सामाजिक गतिशीलता के किसी भी अध्ययन के अनेक आयाम होते हैं। यदि किसी व्यक्ति के जीवन काल में उसकी सामाजिक स्थितियों के परिवर्तन का पता लग जाए तो यह परिवर्तित पारंपरिक गतिशीलता का मामला है। यदि परिवर्तन दो या तीन पीढ़ियों के बाद होते हैं तो इसे अंतःपारंपरिक गतिशीलता का मामला माना जाएगा।

सामाजिक स्थिति में परिवर्तन छोटे या अधिक दूरी वाले हो सकते हैं। गतिशीलता की रेंज में इस तथ्य का ध्यान रखा जाता है।

प्रचलित विश्वास के विपरीत, आधुनिक औद्योगिक समाजों में भी नीचे की तरफ गतिशीलता भी काफी व्यापक है। आधुनिक औद्योगिक समाजों में उपलब्धिपरक मानदंड ही ऊपर की। तरफ गतिशीलता का मानदंड है। अधिकांश आधुनिक समाजों के बारे में माना जाता है कि वे अधिक खुली तथा अधिक सामाजिक गतिशीलता वाले होते हैं। फिर भी प्रत्येक समाज का अपना मानदंड है और गतिशीलता के प्रयासों में भी विभिन्न प्रकार से बाधाएँ आती हैं।

सामान्यतः कहा जाए तो सभी औद्योगिक समाजों में कमोबेश गतिशीलता की बराबर मात्रा होती है। साम्यवादी समाज में इतने बंद नहीं होते हैं जैसे कि सोचा जाता है।