राज्यसभा अध्यक्ष की नियुक्ति कौन करता है | राज्य सभा अध्यक्ष कौन है who elect chairman of rajya sabha in hindi

who elect chairman of rajya sabha in hindi राज्यसभा अध्यक्ष की नियुक्ति कौन करता है | राज्य सभा अध्यक्ष कौन है ?

राज्य सभा अध्यक्ष
भारत का उप-राष्ट्रपति ही राज्य सभा का पदेन अध्यक्ष होता है, परंतु किसी भी कालावधि में जब उप-राष्ट्रपति राष्ट्रपति की भूमिका निभाता है अथवा राष्ट्रपति के प्रकार्यों को निष्पादित करता है, वह राज्य सभा के पीठासीन अधिकारी के रूप में कर्तव्यपालन नहीं करता। उप-राष्ट्रपति का चुनाव एक संयुक्त बैठक में एकत्र संसद के दोनों सदनों के सदस्यों द्वारा किया जाता है। यह एकल हस्तांतरणीय वोट के माध्यम से आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के अनुसार होता है और इस प्रकार के चुनाव में मतदान गुप्त मत-पत्र द्वारा होता है। उप-राष्ट्रपति संसद के किसी भी सदन का अथवा किसी भी राज्य विधानसभा का सदस्य नहीं होता वह अपने पद पर उस तिथि से जिस पर वह पदासीन हुआ, पाँच वर्ष की अवधि के लिए बना राता है अथवा जब तक वह अपने पद से त्याग-पत्र देता है अथवा राज्य सभा सदस्यों के बहुमत और लोक सभा की सहमति द्वारा पारित किसी प्रस्ताव द्वारा अपने पद से हटा दिया जाता है ! राज्य सभा अध्यक्ष के प्रकार्य और कर्तव्य बिलकुल लोक सभा अध्यक्ष जैसे ही हैं।

 संसदीय समितियाँ
कार्यकारिणी की संसद के प्रति उत्तरदेयता और कार्यकारी प्रकार्यों की कार्य-विधि के पर्यवेक्षण तथा संवीक्षण के संसद के अधिकार को स्वयंसिद्ध के रूप में स्वीकार किया जाता है। परंतु व्यवहार में कछ अपरिहार्य कारकों, जैसे कि संसद पर दवाब और उसकी व्यवहार्य प्रक्रियाओं की वजह से एक निकाय के रूप में संसद के लिए यह मुश्किल होता है कि वह दिन-प्रति-दिन प्रशासन तथा उसके वित्तीय लेन-देनों की संवीक्षा के बहुआयामी तथा जटिल ब्यौरों का कार्यभार अपने ऊपर ले। संसद ने यह समस्या सरकार के विभिन्न विभागों के कामकाज की संवीक्षा के आवश्यक अधिकार रखने वाली समितियों की एक श्रृंखला स्थापित करके हल की है।

सरकार के कार्यों, विशेषकर सार्वजनिक वित्तादि के क्षेत्र में, संवीक्षा करने वाली मुख्य समितियों में दो समितियाँ उल्लेखनीय हैं: सार्वजनिक लेखा समिति और आकलन समिति। इन व अन्य समितियों से अपेक्षा की जाती है कि वे कार्यकारिणी को अपने शिकंजे में रखें। वे इन सभी प्रस्तावित नीतियों की एक प्रभावी तथा विशद परीक्षा सुनिश्चित करती हैं। बहुधा, ये समितियाँ जनप्रचार की कोप-दृष्टि से दूर, एक पक्षनिरपेक्ष रीति से विवादास्पद तथा संवेदनशील मामलों पर चर्चा करने के लिए एक आदर्श संदर्भ प्रस्तुत करती हैं। वे उस अनुभव तथा योग्यता के सदुपयोग हेतु एक उपयोगी मंच प्रस्तुत करती हैं जो अन्यथा अप्रयोज्य ही रहें। वे भावी मंत्रियों तथा पीठासीन अधिकारियों हेतु एक बहुमूल्य प्रशिक्षण आधार तैयार करती हैं।

बोध प्रश्न 3
नोट: क) अपने उत्तर के लिए नीचे दिए गए रिक्त स्थान का प्रयोग करें ।
ख) अपने उत्तरों की जाँच इकाई के अन्त में दिए गए आदर्श उत्तरों से करें।
1) ‘प्रश्न-काल‘ क्या होता है?
2) ‘स्थगन प्रस्ताव‘ का महत्त्व बताएँ।

बोध प्रश्नों के उत्तर

बोध प्रश्न 3
1) किसी सदन की बैठक का पहला घण्टा जो प्रश्नों के पूछे जाने और उत्तर दिए जाने हेतु उपलब्ध होता है।
2) यह बेहद महत्त्वपूर्ण और पूरे देश को प्रभावित करके किसी मसले की ओर सदन का ध्यान आकृष्ट करने की असाधारण क्रिया-प्रणाली है। इस प्रस्ताव पर चर्चा करने के लिए सामान्य कार्यवाही एक तरफ रखी जाती है। और इस प्रस्ताव का स्वीकरण सरकार की निन्दा के बराबर होता है।

विधायिका
इकाई की रूपरेखा
उद्देश्य
प्रस्तावना
भारतीय विधायिका: ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
संघीय विधायिका
राष्ट्रपति
संसद: लोक सभा
संसद: राज्य सभा
राज्य सभा की विशेष शक्तियाँ
पीठासीन अधिकारी
लोक सभा अध्यक्ष
राज्य सभा अध्यक्ष
विधायिक प्रक्रिया
विधेयक
संसदीय विशेषाधिकार
कार्यपालिका पर नियंत्रण हेतु संसदीय युक्तियाँ
संसदीय समितियाँ
राज्य विधायिका
विधायिका का पतन
सारांश
कुछ उपयोगी पुस्तकें
बोध प्रश्नों के उत्तर

 उद्देश्य
इस इकाई में भारतीय संसद के उद्भव, प्राधार तथा कार्यप्रणाली की जाँच-पड़ताल है। इस इकाई को पढ़ने के बाद आप इस योग्य होंगे कि –
ऽ भारत में आधुनिक विधायिका का उद्भव तलाश सकें,
ऽ संसद के संगठन तथा प्रकार्यों पर चर्चा कर सकें, और
ऽ संसदीय प्रक्रियाओं को स्पष्ट कर सकें।