वाट्सन तथा क्रिक मॉडल डीएनए का बताइए , watson and crick model of dna in hindi

watson and crick model of dna in hindi वाट्सन तथा क्रिक मॉडल डीएनए का बताइए ?

डीएनए की संरचना (Structure of DNA)

एक न्यूक्लियोसाइड में फास्फेट जुड़ने से न्यूक्लियोटाइड बनता है। डीएनए एक वृहद अणु (macro molecule) है जिसका निर्माण हजारों न्यूक्लियोटाइड्स (nucleotides) के परस्पर जुड़ने से होता है। ये न्यूक्लियोटाइडस निर्माण इकाईयाँ (building blocks) या मोनोमर (mono- mers) कहलाती है। न्यूक्लियोटाइड में डीऑक्सी राइबोस शर्करा के पांचवे कार्बन पर फॉस्फोरिक अम्ल का फॉस्फेट समूह एस्टर बंध (ester linkage) द्वारा जुड़ा रहता है। इस श्रृंखला में शर्करा तथा फॉस्फेट के अणु एकान्तर ( alter- nate) क्रम में व्यवस्थित रहते हैं। दो न्यूक्लियोटाइड फॉस्फोडाइस्टर बन्ध द्वारा जुड़े रहते हैं। एक न्यूक्लियोटाइड का फॉस्फेट अणु अगले न्यूक्लियोटाइड के डीऑक्सी राइबोस शर्करा अणु से जुड़ा रहता है तथा इस शर्करा के प्रथम कार्बन से नाइट्रोजनी क्षारक (nitrog- enous base) संलग्न रहता है। नाइट्रोजनी क्षारक एक दूसरे के ऊपर चट्टे ( stacks) में तथा बहुन्यूक्लियोटाइड श्रृंखला (polynucleotide chain) के लम्बवत् समकोण (right angles) बनाते हैं।

डीएनए की इसके जटिल संरचनात्मक संगठन में चार संरचनायें – प्राथमिक, द्वितीयक, तृतीयक व चतुर्थक पायी जाती हैं जिनका वर्णन इस प्रकार हैं-

  1. डीएनए की प्राथमिक संरचना (Primary Structure of DNA ) : डीएनए की प्राथमिक संरचना में न्यूक्लियोटाइड आपस में 5′ तथा 3′ कार्बन अणु के फॉस्फोडायस्टर बंध द्वारा जुड़ते हैं। न्यूक्लियोटाइड की लम्बी श्रृंखला मुख्यतः क्षार में प्रथम अक्षर द्वारा प्रदर्शित की जाती है। A-G-C-T-T-A-C-A जिसका 5′ सिरा बायीं ओर होता है।
  2. डीएनए की द्वितीयक संरचना (Secondary Structure of DNA ) : डीएनए की एकसूत्री श्रृंखला (प्राथमिक संरचना) के क्षार दूसरे डीएनए के सूत्र के क्षार के साथ हाइड्रोजन बंध के द्वारा क्षार युग्म (base pairing) निर्मित करके डीएनए की दो सूत्रीय सीधी श्रृंखला का निर्माण करता है। इसके निर्माण में इसको निर्मित करने वाले अणुओं के बन्ध कोण कभी भी 180° पंक्तिबद्ध नहीं होते अतः इनके रेखीय अणु रेखीय नहीं होते बल्कि लम्बाई के साथ-साथ एक हल्का मोड़ (curve) भी रखते हैं इसीलिये इनमें हेलिसिटी उपस्थित रहती है। इस सर्पिल (helical) संरचना में न्यूक्लियोटाइड की उपइकाईयाँ मौजूद रहती हैं। यह द्विकुण्डलित डीएनए हेलीकल संगठन द्वितीयक संरचना का उदाहरण है।
  3. डीएनए की तृतीयक संरचना (Tertiary Structure of DNA) : द्वितीयक संरचना से उच्च स्तर के कुण्डलन द्वारा 3-आयामी संरचना निर्मित होती है। जिसमें सभी अणु अच्छी तरह व्यवस्थित रहते हैं। तृतीयक संरचना में सीधी (linear) बहुलक संरचना के कुण्डलित होने से यह 3-आयामी आकार ग्रहण करती है। डीएनए का द्विकुण्डलित श्रृंखला तृतीयक संरचना होती है। इसके विभिन्न प्रारूप पाये गये है जैसे सामानय B- डीएनए. A – डीएनए, C डीएनए तथा Z – डीएनए इत्यादि ।
  4. डीएनए की चतुर्थक संरचना (Quaternary Structure of DNA) : द्विकुण्डलित डीएनए संरचना जो तृतीयक संरचना है पुनः अतिकुण्डलन द्वारा न्यूक्लियोप्रोटीन निर्मित करती है। इसमें न्यूक्लियोसोम उपस्थित रहते हैं तथा यह पुन: लूपिंग द्वारा अतिकुण्डलित संरचना जिसे क्रोमेटीन कहते है निर्मित करती है। क्रोमेटीन के रूप में डीएनए का हिस्टोन प्रोटीन के साथ उच्च स्तर का संगठन चतुर्थक संरचना (quaternary structure) कहलाता है। यह संरचना लूपिंग (looping) के साथ निर्मित होती है।
  5. न्यूक्लियोटाइड का बहुलीकरण एक सूत्री डीएनए का निर्माण (Polymerization of DNA-Formation of One Stranded DNA ) : एक जैविक अणु अनेक मोनोमर, जो सरल संरचनायें होती है, उनसे निर्मित होता है। डीएनए भी एक दीर्घ अणु है जिसका निर्माण हजारों न्यूक्लियोटाइड्स के परस्पर जुड़ने से होता है। यह न्यूक्लियोटाइड निर्माण इकाइयाँ अथवा मोनोमर कहलाती है जो पुनरावर्ती क्रम से जुड़ती जाती है और बहुलक (पॉलिमर) बनाते हैं। डीएनए में न्यूक्लियोटाइड डीऑक्सीराइबोटाइड पुनरावर्ती आपस में फॉस्फोडाइएस्टर बंध द्वारा जुड़ कर बहुलीकरण (polymerization) द्वारा एक लम्बी न्यूक्लियो अम्लों की श्रृंखला पॉलीन्यूक्लियोटाइड निर्मित करते हैं। यह डीएनए की प्राथमिक संरचना होती है।

फॉस्फोडायस्टर बन्ध में एक न्यूक्लियोटाइड डीऑक्सीराइबोटाइड के 5′ कार्बन से जुड़े फास्फेट के एक – OH समूह की दूसरे न्यूक्लियोटाइड की शर्करा के 3′ कार्बन से जुड़े – OH समूह की अभिक्रिया द्वारा एक अणु जल (H, O) बाहर निकल जाता है। यहीं पर शर्करा के 3′ कार्बन एवं 5′ फॉस्फोरस के मध्य बन्ध बनाकर दोनों न्यूक्लियोटाइड आपस में जुड़ जाते हैं। इसी तरह अनेक न्यूक्लियोटाइड जुड़ते चले जाते हैं।

इस डीएनए श्रृंखला में शर्करा फॉस्फेट रज्जु (back bone) के रूप में उपस्थित रहती है। पॉलीडीआक्सीराइबोटाइड (पॉलीन्यूक्लियोटाइड) की प्राथमिक संरचना में क्षार जैसे एडेनीन, सायटोसीन, गुआनीन व थायमीन इत्यादि शर्करा फॉस्फेट रज्जु से बाहर की ओर रहते हैं। यह शर्करा अणुओं में 1′ कार्बन से जुड़े होते हैं। इस एक सूत्री श्रृंखला में क्षार युग्म नहीं बनते हैं। यह द्विकुण्डलित संरचना में पाये जाते हैं । बहुन्यूक्लियोटाइड श्रृंखला के एक सिरे पर शर्करा का शेष रहा C-3′ कार्बन अणु व दूसरे सिरे पर शर्करा का C-5′ कार्बन अणु होते हैं जिनके आगे कोई न्यूक्लियोटाइड नहीं जुड़ा रहता है उनको क्रमश: 3′ तथा 5′ सिरे कहते हैं। यह एक सूत्री डीएनए श्रृंखला सीधी में होकर आकृति में सर्पिलाकार (helical) होती है।

डीएनए का वाटसन तथा क्रिक मॉडल (Watson and Crick model of DNA)

वाटसन तथा क्रिक ने मॉरिस तथा विल्किन्स द्वारा एक्सरे क्रिस्टलोग्राफी से तैयार चित्रों का, बारीकी से अध्ययन किया। उन्होंने देखा कि डीएनए की संरचना सर्पिलाकार (हेलिकल) है तथा इसका प्रत्येक कुण्डल (हेलिक्स) एकमान चौड़ाई 2nm लिये हुए है जिसमें प्यूरीन व पिरीमिडीन क्षार 0.34 nm की दूरी पर एक के ऊपर एक चट्टे की तरह (stacks) व्यवस्थित है। वास क्रिक ने अपने मॉडल में जो द्विकुण्डलित संरचना निर्मित की वह एक्सरे से प्राप्त नाप (measurements) को लेकर शर्करा फास्फेट को डीएनए अणु के अन्दर व नाइट्रोजन क्षार को बाहर की तरफ व्यवस्थित किया। परन्तु बाद में उन्होंने इसे उल्टा कर दिया जिसमें नाइट्रोजन क्षार अन्दर की तरफ व शर्करा फास्फेट’ बाहर की तरफ व्यवस्थित कर दिये। वांटसन तथा क्रिक्र को डीएनए की संरचना तथा उसका प्रतिरूप (मॉडल) प्रस्तुत करने के लिये 1962 में नोबल पुरस्कार मिला था।

वाट्सन तथा क्रिक मॉडल के अनुसार-

  1. प्रत्येक डीएनए अणु वास्तव में दो लम्बी समानान्तर आक्सीराइबोटाइड पॉलीश्रृंखलाओं से निर्मित होता है।
  2. यह दोनों श्रृंखलायें आपस में छोटी सीढ़ीनुमा छड़ ( crossbars) से जुड़ी रहती है। यह हाइड्रोजन बन्ध द्वारा जुड़ी रहती है।
  3. प्रत्येक पॉलीऑक्सीराइबोटाइड श्रृंखला अनेक मोनोमर डीऑक्सी राइबोटाइड्स पुनरावर्ती इकाई के एक दूसरे से फॉस्फोडाइएस्टर बन्ध द्वारा जुड़ने से निर्मित होती है।
  4. डीएनए की दोनों लम्बी पूरक श्रृंखलाये चक्रिक रूप से एक उभयनिष्ठ (common) अक्ष के चारों ओर नियमित तरीके से कुण्डलित रह कर 2nm व्यास की द्विकुण्डलित (twisted) संरचना बनाती हैं।
  5. डीएनए कुण्डलिनी ( helix ) की सम्पूर्ण लम्बाई पर एक संकरी ( narrow) तथा एक चौड़ी खांच पायी जाती है।
  6. प्रत्येक कुण्डल की चौड़ी खांच 2.2nm व छोटी खांच 1.2nm चौड़ी होती है। यह दोनों एकान्तर रूप से स्थित रहती है। प्रत्येक कुण्डल का एक चक्र 3.4 nm लम्बा होता है जिसमें 10 क्षार युग्म नियमित अन्तराल पर व 2.0 nm चौडा पाये जाते हैं।
  7. शर्करा तथा फॉस्फेट रज्जु बाहर की तरफ व क्षार द्विकुण्डल के भीतरी ओर पाये जाते हैं। 8. क्षार एक दूसरे के ऊपर चट्टे ( stacks ) में व्यवस्थित रहते हैं। जिससे डीएनए अणु एक चक्रिक सीढ़ी (twisted ladder) जैसा दिखाई देता है।

वैज्ञानिकों ने आज वाटसन तथा क्रिक के मॉडल में कुछ सूक्ष्म परिवर्तन किये परन्तु निम्न मुख्य प्रमुख गुण आज भी वहीं है।

  1. डीएनए एक द्विकुण्डलित श्रृंखला है जिसे दोनों सूत्र हाइड्रोजन बन्ध द्वारा जुड़े है ।
  2. क्षार निश्चित अन्तर पर उपस्थित है जिसमें A सदैव T तथा C हमेशा G के साथ युग्म बनाता है।
  3. A+ C की मात्रा T + G के बराबर रहती है (चारगॉफ नियम )
  4. अधिकतर डीएनए दाहिनी ओर ही कुण्डलित होते हैं परन्तु Z – डीएनए बायीं ओर कुण्डलित रहता है।
  5. डीएनए अणु की दोनों पूरक श्रृंखलायें एक दूसरे के प्रति समानान्तर ( anti parallel) रूप से व्यवस्थित होती है। प्रत्येक श्रृंखला में 5′-3′ सिरे होते हैं। एक श्रृंखला को 5′ सिरा दूसरी श्रृंखला के 3′ सिरे के सामने होता है क्योंकि दोनों शृंखला हाइड्रोजन बन्ध के द्वारा प्रति समानान्तर स्थिति में ही जुड़ सकती हैं।

डीएनए के विभिन्न प्रारूप (Various Conformations of DNA)

डीएनए की जो द्विकुण्डलित संरचना सर्वप्रथम विल्किन्स तथा सहयोगियों ने एक्सरे क्रिस्टलोग्राफी द्वारा दी थी वह सामान्य डीएनए अधिकांश जीवों में पाया जाता है जिसे बी – डीएनए (B-DNA) के नाम से जाना जाता है। इनमें विभिन्नता पायी गयी है। इनमें दो सूत्री श्रृंखला का कुण्डलन दायी या बायीं ओर, डीएनए अणु की श्रृंखला का व्यास, प्रत्येक क्षार युग्म के मध्य स्थित कोण व डीएनए श्रृंखला के प्रत्येक घुमाव में स्थित क्षार युग्मों की संख्या, हाइड्रेशन लेवल (hydration level) तथा धातु आयन की सान्द्रता इत्यादि के आधार पर अन्तर पाया गया है। डीएनए को आकारिकी (morphological) के आधार पर निम्न पांच प्रकार में विभाजित किया गया है। अधिकतर डीएनए में कुण्डलन दाहिनी ओर ही पाया गया है परन्तु Z – डीएनए में बायीं ओर कुण्डलन होता है।

  1. A – डीएनए – दाहिनी ओर कुण्डलन ( A-DNA Right Handed Coiling) : इस डीएनए का व्यास 2.3 nm व एक कुण्डल की लम्बाई 2. 8 nm होती है। कुण्डलन दाहिनी ओर होता है। एक कुण्डल में 11 न्यूक्लियोटाइड युग्म उपस्थित रहते हैं। युग्मों के उदग्र माध्यमिक दूरी 0.256 nm है। यह डीएनए की निर्जलीकृत ( dehydrated form ) है । यह जल की कम मात्रा व Nat आयन की अधिक सान्द्रता में पाया जाता है। यह डीएनए अधिक सुगठित व भारी ( bulky) होता है। बड़ी खांच (major groove ) बेहद पतली व बहुत गहरी होती है जबकि छोटी खाँच (minor groove) बहुत चौड़ी व कम गहरी होती है।
  2. B- डीएनए – दाहिनी ओर कुण्डलन (B-DNA Right Handed Coiling): यह साधारण परिस्थितियों में सभी यूकेरियोटिक जीवों के केन्द्रक में उपस्थित सामान्य डीएनए है। इसमें दाहिनी ओर कुण्डलन पाया जाता है। यह लवणों की कम सान्द्रता में तथा पानी की अधिकता में पाया जाता है। इसका व्यास 2.0 nm व एक कुण्डल की लम्बाई 3.4 nm है। एक कुण्डल में 10 न्यूक्यिोटाइड युग्म उपस्थित रहते हैं। युग्मों के उदग्र माध्यमिक दूरी 0.34 nm है। बड़ी खांच चौड़ी तथा गहरी होती है जबकि छोटी खांच पतली व गहरी होती है।
  3. C – डीएनए दाहिनी ओर कुण्डन ( C-DNA-Right handed DNA) : ऐसा डीएनए अधिक जल की उपस्थिति में भिन्नता दर्शाता है। इसमें दाहिनी ओर कुण्डलन पाया जाता है। इसका व्यास 1.9 nm एक कुण्डल की लम्बाई 3. 1 nm होती है। इसमें 9 न्यूक्लियोटाइड युग्म पाये जाते हैं। युग्मों के उदग्र माध्यमिक दूरी 0.332nm होती है। C- डीएनए A व B – डीएनए की अपेक्षा पतला व कम गठित होता है। यह 66 प्रतिशत सान्द्रता व माध्यम में लीथियम आयन की उपस्थिति में पाया जाता है।
  4. D. डीएनए – दाहिनी ओर कुण्डलन (D-DNA-Right Handed coiling ) : यह भी दाहिनी ओर कुण्डलित होता है। इनमें गुआनीन श्रृंखला से अनुपस्थित होता है तथा A- T क्षारयुग्म एकान्तरित क्रम से व्यवस्थित रहते है। D- डीएनए में 8 न्यूक्लियोटाइड प्रति कुण्डलन उपस्थित रहते हैं। यह D-डीएनए प्रवृत्ति में बेक्टीरियोफॉज T, में देखा गया है। यह विशिष्ट परिस्थितियों में ही दिखाई दिये है तथा स्वपात्रे नहीं पाये जाते। इसका व्यास 1.9 nm व एक कुण्डल की लम्बाई 2.4 nm दो युग्मों की उदग्र माध्यमिक दूरी 0.303 nm है।