डीएनए की भौतिक प्रकृति क्या है , physical properties of dna in hindi , nature

physical properties of dna in hindi , nature डीएनए की भौतिक प्रकृति क्या है ?

न्यूक्लिओसाइड की संरचना (Structure of Nucleoside)

नाइट्रोजन क्षारक (nitrogenous base) तथा डीऑक्सी राइबोस का एक अणु मिलकर न्यूक्लियोसाइड (nucleoside) बनाता है। इसमें फॉस्फेट समूह ( Phosphate group) का अभाव होता है। डीएनए अणु में निम्नलिखित चार प्रकार के न्यूक्लियोसाइड (nucleoside) मिलते हैं।

1.एडीनोसीन (Adenosine)- एडीनीन (ADENINE) + डीऑक्सी राइबोस (Deoxy ribose) ग्वानोसिन (Guanosine ) – 2. ग्वानीन ( GUANINE) + डीऑक्सी राइबोस (Deoxy ribose) साइटिडिन (Cytidine ) – साइटोसिन ( CYTOSINE ) + 3. डीऑक्सी राइबोस (Deoxy ribose) थाइमिडिन (Thymidine )

4.थाइमिन (THYMINE ) + डीऑक्सी राइबोस (Deoxy ribose)

न्यूक्लिओटाइड की संरचना (Structure of Nucleotide)

डऑक्सीराइबोस शर्करा फॉस्फोरिक अम्ल तथा नाइट्रोजनी क्षारक का एक अणु मिल कर न्यूक्लिओटाइड का निर्माण करते हैं। डीएनए के अणु में निम्न प्रकार के न्यूक्लिओटाइड मिलते हैं।

(1) डीऑक्सी एडीनिलिक अम्ल  एडीनीन + डीऑक्सी राइबोस शर्करा + फॉस्फोरिक अम्ल

(Deoxy Adenylic acid)    (Adenine) + (Deoxy ribose sugar) + (Phosphoric acid)

(2) डीऑक्सी ग्वानिलिक अम्ल   ग्वानीन + डीऑक्सीराइबोस शर्करा फॉस्फोरस अम्ल

(Deoxy Guanylic acid)   (Guanine) + (Deoxy ribose sugar) + ( Phosphoric acid )

(3) डीऑक्सी साइटिडिलिक अम्ल  साइटोसिन डीऑक्सी राइबोस + फॉस्फोरिक अम्ल

(Deoxy Cytidylic acid ) (Cytosine) + (Deoxy ribose) + ( Phosphoric acid)

(4) डीऑक्सी थाइमिडिलिक अम्ल  थाइिमिन डीऑक्सी राइबोस + फॉस्फोरिक अम्ल ।

(Deoxy Thymidilic acid)  (Thymine) + (Deoxy ribose) + (Phosphoric acid )

न्यूक्लियो क्षार का वर्गीकरण (Nucleobase Classification) : डीएनए में क्षार प्यूरीन C तथा A एवं पिरिमिडीन G तथा T उपस्थित रहते हैं। यह क्रमश: 6 सदस्यीय हीटरोसाइक्लिक यौगिक (compound) तथा 6 सदस्यीय कार्बन वलय उपस्थित रहती है। आरएनए निर्माण के समय थायमीन की जगह यूरेसिल (U) ग्रहण करता है।

डीएनए की भौतिक प्रकृति (Physical Nature of DNA)

डीएनए की द्विकुण्डलित संरचना में उच्च किस्म की लोच या प्रत्यास्थता ( इलास्टिसिटी) पायी जाती है। इसके विभिन्न प्रकार के अणुओं का इस प्रकार से संगठन होता है जिससे यह एक विशिष्ट अणु माना जाता है।

डीएनए को वैज्ञानिकों ने आण्विक टूल की तरह प्रयोग करते हुए अनेक भौतिकी के नियम व सिद्धान्त (theory) प्रतिपादित की है। इनमें एरगोडिक थ्योरम ( ergodic theorem) तथा इलास्टिसिटी का सिद्धान्त प्रमुख है। इसी प्रकार पदार्थ विज्ञान (material science) में भी डीएनए की खोज के पश्चात् अनेक वैज्ञानिकों ने रुचि ली है। डीएनए की बड़ी व छोटी खाँच में अनेक नैनो पदार्थ जुड़ कर नैनो- तकनीक से मनुष्योपयोगी नये-नये आविष्कार किये जा रहे हैं। डीएनए में विभिन्न प्रकार के भौतिक गुण मिलते हैं जो इस प्रकार हैं-

  1. प्रकाश का अवशोषण (Absorption of light) : डीएनए के क्षार पराबैंगनी प्रकाश को 260 nm तरंगदैर्ध्य (wavelength ) पर अवशोषित करते हैं। इस अवशोषण को स्पेक्ट्रोफोटोमीटर द्वारा ज्ञात किया जा सकता है। इससे विलयन में मौजूद डीएनए की सान्द्रता का पता चलता है। एक सूत्री डीएनए 1.37 इकाई 260 nm पर प्रकाश को अवशोषित करती है जबकि दो सूत्री डीएनए 1.00 इकाई 260 nm पर अवशोषित करती है।
  2. घनत्व (Density) : डीएनए को घनत्व के आधार पर CsCl, घनत्व परासेन्ट्रीफ्यूगेशन द्वारा अलग किया जा सकता है:

CsCl2  सेन्ट्रीफ्यूगेशन के पश्चात् घनत्व (gradient) निर्मित करता है। जिससे अधिक घनत्व वाला पदार्थ विलयन के तल की तरफ चला जाता है। डीएनए के वृहद अणु CsCl, के पास ही एकत्र हो जाते हैं क्यों कि इन दोनों का घनत्व एक समान होता है। अधिक घनत्व वाला डीएनए नीचे तल की तरफ व कम घनत्व वाला डीएनए ऊपर बैण्ड के रूप में उपस्थित रहता है। G+ C क्षार युग्म अधिक घनत्व वाले होते हैं A-T की अपेक्षा । अत: G-C तल की तरफ व A-T ऊपर की ओर बैण्ड बनायेगा। घनत्व के अध्ययन से सेटेलाइट डीएनए ( satellite DNA ) की उपस्थिति पता लगती है। अगर गुणसूत्रीय डीएनए को बराबर भागों में काट कर CsCl, घनत्व परासेन्ट्रीफ्यूगेशन से सेन्ट्रीफ्यूज किया जाये तो डीएनए के दो बैण्ड प्राप्त होंगे। पहला बैण्ड जीनोम के डीएनए 5% का होगा जबकि दूसरा 95% अधिकतर पुनरावृत्तिक अनुक्रम जीनोम डीएनए होगा।

  1. ताप तथा गलनांक (Temperature and Melting Point) : ताप की थर्मल ऊर्जा बढ़ने के साथ ही अणुओं के मध्य उपस्थित हाइड्रोजन बन्धों के टूटने की आवृत्ति भी बढ़ती जाती है। अत: ताप के बढ़ने के साथ ही डीएनए की द्विकुण्डलित शाखा खुल कर दो, एक सूत्री श्रृंखला में टूट जाती है।

डीएनए अणु का Tm अर्थात् गलन ताप (melting temperature) वह ताप है जिस पर डीएनए के आधे अणुओं का विकृतिकरण (denaturation ) हो जाता है। यह Tm डीएनए अणु में उपस्थित G+C की मात्रा ज्ञात करने में सहायक है। ऐसा इसलिये संभव है क्योंकि G-C क्षार युग्म के मध्य हाइड्रोजन के तीन बन्ध उपस्थित होते हैं जबकि A-T में दो ही होते हैं। अत: इन्हें डीएनए अणु जिसमें अधिक G+C की मात्रा है उसके विकृतिकरण के लिये अधिक ऊर्जा ( उच्च ताप) की आवश्यकता होगी।

  1. विलयन की जलावरोधकता (Hydrophobicity of Solvent) : ऐसे पदार्थ जो जलाभीत होते हैं वे डीएनए अणु की Tm को कम करते हैं। साथ ही यह डीएनए के क्षारकों को विलयन में घोलने में सहायक है। घुलने के साथ ही क्षार एक के ऊपर एक स्थित नहीं रह पाते इसके साथ ही हाइड्रोजन बंध दो डीएनए अणुओं के मध्य टूट जाते हैं।

ऐसे पदार्थ जो जलस्नेही (hydrophilic ) है वह डीएनए अणुओं की Tm को बढ़ा देते हैं। यह क्षारको को एक के ऊपर एक रखने में सहायक है तथा दो डीएनए सूत्रों के मध्य हाइड्रोजन बन्ध के लिये बहुत अनुकूल होते हैं।

  1. pH : pH < 1 न्यूक्लियोटाइड के मध्य स्थित फॉस्फोडाइएस्टर बन्ध को तोड़ देते हैं इसके साथ ही शर्करा व प्यूरीन क्षार के मध्य स्थित N – ग्लाइकोसाइडिक बन्ध को भी तोड़ देता है।

pH = 4 शर्करा व प्यूरीन के मध्य चयनात्मक रूप से तोड़ता है। प्यूरीन के हटने पर डीएनए को एप्यूरीनिक अम्ल (apurinic acid) कहते हैं।

  1. क्षार (Alkali) : क्षार में ऐसे समूह जिसमें हाइड्रोजन बन्ध होते हैं उनमें ध्रुवता (polarity) को परिवर्तित करने की क्षमता होती है। pH 11.3 पर हाइड्रोजन बन्ध समाप्त हो जाते हैं तथा डीएनए विकृत हो जाता है। pH 13 पर डीएनए जल अपघटन के प्रति प्रतिरोधक हो जाता है । परन्तु एप्यूरीनिक अम्ल का जल अपघटन हो सकता है।
  2. आयनिक क्षमता (Ionic Strength) : डीएनए की शर्करा- फॉस्फेट बैक बोन के फॉस्फेट ऋणात्मक रूप से आवेशित (negatively charged ) होते हैं। एक समान आवेश (charge) आपस में विकर्षित (repell) होते हैं।

लवणों की उपस्थिति फॉस्फेट समूह के आवेश (charge) को उदासीन (neutralize) कर देती है। अतः यह द्विकुण्डलित डीएनए को स्थिर ( stabilize) कर देती है जिससे इसका Tm बढ़ जाता है। G+ C की मात्रा (G + C content )

विभिन्नता (Variation) : उच्च जीवों में G+ C की मात्रा 0.5 होती है निम्न जीवों में 0.27 – 0.76 पायी गयी है।

  1. आकार (size) : डीएनए को विद्युत क्षेत्र में रखने पर यह ऋणात्मक आवेश (charge) होने से धनात्मक इलेक्ट्रोड की तरफ जायेगा। यदि डीएनए का इलेक्ट्रोफोरेसिस किया जाये तो छोटे खण्ड अधिक तेजी से स्थानान्तरित होंगे जबकि बड़े खण्ड धीमी गति से जैल में से पास होंगे। इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कॉपी (electron microscopy) द्वारा डीएनए के आकार को ज्ञात किया जा सकता है। अगरोस जैल डीएनए के बड़े खण्डों को अलग करने में प्रयोग किया जाता है । (5 मिलियन कुछ हजार क्षार युग्म) जबकि पॉलिएक्रिलेमाइड जैल का प्रयोग डीएनए के छोटे खण्डों को अलग करने के लिये काम में लेते हैं (2 से कुछ हजार क्षार युग्म) । डीएनए की लम्बाई को, ज्ञात लम्बाई वाले डीएनए के साथ जैल में से निकालने पर तुलना करके ज्ञात की जा सकती है।
  2. वेग अवसादन (Velocity Sedimentation) : घनत्व व आकार के आधार पर निर्भर · करता है। अधिक घनत्व वाला डीएनए सेन्टीफ्यूगेशन द्वारा शीघ्र ही अवसादित ( sediment) हो जायेगा। गोलाकार व सुगठित अणु सीधे अणुओं (linear moleculer) की अपेक्षा तीव्र गति से अवसादित होंगे।
  3. अन्तराण्विक बल ( Intermolecular Forces) : वाट्सन तथा क्रिक द्वारा प्रदर्शित डीएनए की संरचना अत्यन्त स्थिर है। यह स्थिरता विभिन्न अणुओं के मध्य उपस्थित निम्न विभिन्न बलों के कारण आती है-

(i) हाइड्रोजन बन्ध (Hydrogen Bonds) : डीएनए अणु के दोनों सूत्र वास्तव में अलग-अलग संरचनात्मक इकाई है। दोनों श्रृंखलाओं पर उपस्थित क्षार हाइड्रोजन बन्ध (A = T तथा G = C) द्वारा सुगठित रूप से जुड़ी रहती है तथा डीएनए की एक द्विकुण्डलित श्रृंखला निर्मित करती है।

(ii) जलाविरागी पारस्परिक क्रियायें (Hydrophobic Interactions ) : डीएनए में अनेक जलाविरागी घटक (components) उपस्थित रहते हैं जिनमें न्यूक्लियोटाइड क्षार जल विरागी (hydrophobic) प्रकृति के होते हैं जबकि फास्फेट व डीऑक्सीराइबोस शर्करा जल स्नेही (hydrophilic ) प्रकृति के है । यह ऋणात्मक रूप से आवेशित (negatively charged) होते हैं तथा श्रृंखला के बाहरी सिर पर स्थित रहते हैं और जलीय कोशिकीय वातावरण में रहते हैं जबकि क्षार श्रृंखला में अन्दर की ओर व्यवस्थित रहते हैं। जलाविरागी बल (hydrophobic forces) स्वत: ही डीएनए श्रृंखला की संरचना को स्थिर रखते हैं।

(iii) विद्युतस्थैतिक बल (Electrostatic Forces) : डीएनए श्रृंखला के बाहरी सिरे पर फॉस्फेट स्थित रहते हैं जो ऋणात्मक रूप से आवेशित (negatively charged) होते हैं। इन्हें उदासीन (neutral) करने हेतु धनात्मक आवेशित ( positively charged ) हिस्टोन प्रोटीन की श्रृंखला इन्हें आवरित करती है अन्यथा यह प्रतिकर्षण विद्युतस्थैतिक बल (repulsive electrostatic forces) द्वारा डीएनए की संरचना को अस्थिर कर सकते हैं।

(iv) चट्टे पारस्परिक क्रिया (Stacking Interactions ) : डीएनए पर उपस्थित क्षार एक के ऊपर एक स्थित होकर वनडर वॉल बल (Van der Waal’s forces) विकसित करते हैं तथा अतिरिक्त मजबूती से संरचना को स्थिर रखने में सहायक होता है।

  1. डीएनए का लचीलापन (Flexibility of DNA ) : डीएनए की फॉस्फेट से निर्मित बैक बोन पर अनेक पुनरावर्ती बन्ध उपस्थित रहते हैं जिनकी वजह से द्विकुण्डलित डीएनए श्रृंखला में लचीलापन आ जाता है। डीएनए श्रृंखला में दो न्यूक्लियोटाइड के मध्य 1-5 बन्ध मुक्त रूप से घूम (rotate) सकते हैं जो डीएनए की तृतीयक संरचना (tertiary structure) निर्मित करते हैं। बंध 6 को थोड़ा हिलाने से C-3′ वलय के बचे हुए अणुओं के तल (plane) से हट जाता है। C-2 को खींचने से संरचना में कोई परिवर्तन नहीं आता जबकि बन्ध 7 महत्वपूर्ण है जो शर्करा तथा क्षार (C- 1 तथा ग्लूकोसाइडल बन्ध) को जोड़ता है। इस बन्ध से घुमाने से सिन तथा एन्टी प्रारूप (sin and anti conformation) उत्पन्न होता है। पिरीमिडीन में मात्र एन्टीप्रारूप संभव है क्योंकि यह C-2 पर स्थित आक्सीजन के साथ सीमित ( restricted ) है जबकि प्यूरीन में सिन एवं एन्टी दोनों प्रकार के प्रारूप (conformation) बन सकते हैं। सिन प्रारूप (conformation) में शर्करा व क्षार एक ही साइड पर रहते हैं जबकि एन्टी (anti) में यह विपरीत दिशा (opposite side) पर रहते हैं।
  2. विकृतिकरण तथा पुनकृतिकरण (Denaturation and Renaturation) : डीएनए अणु अत्यन्त नाजुक होते हैं तथा विभिन्न प्रकार के विकिरण, भौतिक एवं रासायनिक अन्तरकोशिकीय दबावों का सामना करते हैं। इनमें ताप, पराबैंगनी प्रकाश, एक्सरे तथा अन्य किरणें शामिल हैं। यह सब डीएनए को विकृत कर देती हैं अर्थात् डीएनए के सूत्रों को अलग कर देती है। कोशिकाओं के डीएनए में सुधार की अन्तर्भूत क्षमता ने जैविक उद्विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है अत: डीएनए अणु में जो विकृति होती है कोशिका उसे पहचान कर सुधार लेती है यही पुनकृतिकरण कहलाता है।
  3. डीएनए हेलिसिटी (DNA Helicity ) : हेलीसिटी शब्द (term) द्रव यांत्रिकी (fluid mechanics) से सम्बन्धित हैं जिसमें कॉर्क स्क्रू (cork screw) की तरह गति सम्पन्न होती है। यदि द्रव का एक समूह (mass) गति कर रहा है और एक अक्ष जो कि गति की दिशा के समान्तर है तब इस अक्ष के चारों ओर घूर्णित ठोस – काय (solid body) गति (motion) ही हेलीसिटी को प्रदर्शित करती है।

एक कण की हेलिसिटी को एक चक्रण सदिश (spin vector) के जड़त्व सदिश (momentum vector) की दिशा में होने वाले क्षेपण (projection) से परिभाषित किया जा सकता है।

इसी कारण, यदि एक कण का चक्रण सदिश (spin vector) इसके जड़त्व सदिश (monemtum vector) की समान दिशा में निर्देशित (point) करता है तो हेलिसिटी को धनात्मक (positive) माना जाता है और यदि यह विपरीत दिशा में निर्देशित करते हैं तो हेलिसिटी को नकारात्मक (negative) माना जाता है। एक दांयी और वाली कुंडलिनी की P (plus), और बायीं ओर वाली को N (minus) कहा जाता है।

न्यूक्लिक एसिड की एक सर्पिल (helical) संरचना में न्यूक्लिओटाइड्स की उप इकाईयां उपस्थित होती हैं। यह कोशिका की भित्ति में उपस्थित रहती हैं। हेलिकल संगठन, द्वितीयक संरचना का उदाहरण है।