Characteristic Features of DNA in hindi , डीएनए के लाक्षणिक गुण क्या है

जानिये Characteristic Features of DNA in hindi , डीएनए के लाक्षणिक गुण क्या है ?

आनुवांशिक पदार्थ (Genetic Material)

प्रस्तावना (Introduction)

डीएनए वास्तव में एक वृहत् अणु हैं जो असंख्य न्यूक्लिओटाइड्स को जोड़कर दो कुंडलित श्रृंखला निर्मित करता है। यह दोनों श्रृंखलायें द्विकुण्डलित अवस्था में रहती है। दोनों श्रृंखलायें हाइड्रोजन बन्ध से जुड़ी रहती हैं जिसके द्वारा दो नाइट्रोजन क्षार युग्म में व्यवस्थित रहते हैं। डीएनए का लम्बा बहुलक (पॉलीमर) डीएनए की छोटी उपइकाइयों न्यूक्लियोटाइड बना होता है। प्रत्येक न्यूक्लियोटाइड में शर्करा, फॉस्फेट तथा नाइट्रोजन क्षार होता है। यूकेरियोटिक में अनेक हजार मिलियन क्षार युग्म पाये जाते हैं।

डीएनए आनुवंशिक सूचना का संग्रहण करता है। इसमें सुधार कर सकने में सक्षम है व सूचनाओं को शरीर के अन्य भागों में पहुँचाता है तथा एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में स्थानान्तरण करता है।

डीएनए जीवनोपयोगी आनुवंशिक सूचना बहुलक परमाणुओं की लम्बाई पर संकेन्द्रित होती है। डीएनए केवल चार प्रकार के क्षारकों द्वारा निर्मित होता है जो विभिन्न प्रोटीन संश्लेषण में उपयोगी होते हैं तथा विभिन्न प्रकार के आरएनए पर नियन्त्रण रखते हैं।

डीएनए के लाक्षणिक गुण (Characteristic Features of DNA)

  1. डीएनए अत्यधिक अणु भार वाला वृहद अणु (macro molecule) है। इसका अणुभार लगभग 106–107 डाल्टन होता है। खुन (Khun, 1957) के अनुसार इसका आण्विक भार 6 x 106 डॉल्टन होता है। T, जीवाणुभोजी (Bacteriophage) का अणुभार 1.2 x 108 डाल्टन तथा ई. कोलाई (E.coli) जीवाणु का भार लगभग 2 x 109 डाल्टन होता है।
  2. प्रत्येक गुणसूत्र एक लम्बे डीएनए अणु से निर्मित होता है।
  3. प्रत्येक डीएनए का अणु गुणसूत्र में पैक्ड रहता है।
  4. डीएनए की द्विसूत्री संरचना को डुप्लेक्स (duplex) के नाम से जाना जाता है।
  5. संकरित डीएनए को विषम डुप्लेक्स (heteroduplex) भी कहा जाता है।
  6. जीव में गुणसूत्र की अगुणित संख्या (n) संजीन ( जीनोम ) कहलाती है।
  7. प्रत्येक संजीन में डीएनए की मात्रा स्थिर रहती है जिसे डीएनए की सी मात्रा (C-value) कहते हैं।
  8. जीवाणु ( ई. कोलाई) के जीनोम में डीएनए के 4.7 106 न्यूक्लियोटाइड युग्म उपस्थित रहते हैं। मनुष्य के जीनोम में 24 गुणसूत्रों में 3 x 109 यूक्लियोटाइड रहते हैं।
  9. डीएनए (आरएनए भी) 265 nm तरंगदैर्ध्य (wave length ) पर अत्यधिक अवशोषित होता है।
  10. डीएनए को सक्रिय गुणसूत्र के रूप में कार्य करने के लिये इसका प्रतिकृतिकरण आवश्यक है।
  11. प्रत्येक डीएनए के अणु द्वारा जो गुणसूत्र निर्मित होता है उसमें एक गुणसूत्र बिन्दु (centromere) अन्तस्थ खण्ड (telomers) तथा प्रतिकृतिकरण उद्गम स्थल उपस्थित रहता है।
  12. इनका पृथक्करण भी समसूत्री विभाजन के दौरान संभव होता है।
  13. एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में गुणसूत्रों का स्थानान्तरण भी गुणों के संचरण के लिये आवश्यक होता है।
  14. यूकेरियोटिक डीएनए में पुनरावर्ती अनुक्रम मिलते हैं अर्थात् छोटे डीएनए अनुक्रमों की अनेक प्रतियाँ उपलब्ध रहती हैं।
  15. डीएनए अनुक्रम की एकमात्र प्रति जीवों में जीन को दर्शाती है परन्तु यह जरूरी है कि यह सभी सक्रिय अवस्था में हो।
  16. गुणसूत्र के अधिकतर डीएनए प्रोटीन अथवा आरएनए को कोडित नहीं करते।
  17. जीवों की कायिक कोशिकाओं में डीएनए की मात्रा स्थिर पायी जाती है। युग्मकों में डीएनए की मात्रा कायिक कोशिका के डीएनए की आधी मात्रा में उपस्थित रहती है।
  18. जीवों में बहुगुणिता (polyploidy) पायी जाती है। डीएनए की मात्रा उनमें स्थित गुणिता के हिसाब से, जैसे त्रिगुणित पादप में तीन, चर्तुगुणित में चार गुनी पायी जाती है।
  19. डीएनए के स्वभाव में उत्परिवर्तन (mutation) द्वारा परिवर्तन होते हैं जो जीवों में विभिन्नता पैदा करते हैं।

डीएनए की जैविक प्रकृति (Biological Nature of DNA)

न्यूक्लिक अम्ल आनुवंशिक सूचनाओं को वहन (carry ) करने वाले अनेक न्यूक्लिओटाइड से बने उच्च अणुभार वाले जैविक (biological) अणु हैं। यह सभी जैविक कोशिकाओं व विषाणुओं में पाये जाते हैं। इन जैविक अणुओं में जीवनोपयोगी आनुवंशिक सूचना बहुलक परमाणुओं की लम्बाई पर संकेन्द्रित होती है। डीएनए अणु पर जीन पाये जाते हैं जो डीएनए का ही एक भाग होते हैं व 75 से लेकर 2300 kb न्यूक्लिओटाइड की लम्बाई के हो सकते हैं। जीन में जो भी जैविक सूचना (biological information) पायी जाती है वह इसके न्यूक्लिओटाइड अनुक्रमों (sequence) में निहित होती है।

(I) डीएनए के प्रमुख जैविक संरचनात्मक गुण (Important Biological Structural Characteristics of DNA)

डीएनए में एक विशिष्ट संरचनात्मक संगठन पाया जाता है जो विभिन्न जैविक क्रियाओं को सम्पन्न करने में सहायक होता है। प्रमुख संरचनात्मक गुण इस प्रकार हैं-

1.डीएनए की अतिकुण्डलन ( Super Coiling of DNA) : डीएनए सीधा व कुण्डलित दोनों अवस्थाओं में मिलता है। डीएनए अत्यधिक लम्बा होता है तथा छोटी कोशिकाओं के न्यूक्लियस में व्यवस्थित होने के लिये इसको अपने आकार को छोटा करने के लिये कुण्डलित व अतिकुण्डलित अवस्था में पैक करना आवश्यक होता है जिससे यह न्यूक्लियस में समा सके।

  1. क्षार युग्म (Base Pairing) : डीएनए के सूत्र पर नाइट्रोजन क्षार युग्मों में उपस्थित रहते हैं जो इसका एक विशिष्ट गुण है। इन्हीं के आधार पर डीएनए की कॉपी की प्रक्रिया समझी गयी । डीएनए में एडेनीन क्षार सदैव थायमीन के साथ ही युग्म बनायेगा। इसी तरह साइटोसीन सदैव गुआनीन के साथ युग्मित होगा। इस क्षार युग्म को पूरक क्षार युग्म (complementary base pairing) ) कहते हैं। यह साधारण परन्तु डीएनए को एक विशिष्टता प्रदान करता है जिससे यह विभिन्न जैविक प्रक्रियाओं जैसे प्रतिकृति, अनुलेखन इत्यादि करने में सक्षम होता है।
  2. डीएनए प्रारूप (DNA Conformation) : डीएनए के विभिन्न प्रारूप मिलते हैं। यह भिन्न-भिन्न प्रारूप डीएनए के विभिन्न प्रकार के कार्यों को सम्पन्न करने के लिये होते हैं। इनमें विभिन्न प्रकार के प्रोटीन्स बनते हैं तथा एन्जाइम के साथ प्रतिक्रिया करके डीएनए प्रोटीन बन्ध स्थल निर्मित करते हैं व डीएनए सुधार में भाग लेते हैं।
  3. खाँच (Grooves) : दो कुण्डलित श्रृंखलायें डीएनए को निर्मित करती है। दोनों श्रृंखलायें असमान्तर रूप से व्यवस्थित होकर अतिकुण्डलित होती है जिससे इनके घुमाव से बड़ी व छोटी खांच (major and minor groove) बनती है। यह दोनों खाँचे एक दूसरे के सामने (opposite) होती है व डीएनए के लम्बाई तक स्थित रहती है। यह खाँचे बेहद महत्वपूर्ण होती है। इनमें डीएनए बंध प्रोटीन (DNA binding proteins) आकर बन्धते हैं। यह प्रतिकृति व अनुलेखन में भाग लेते हैं।
  4. डीएनए सेन्स तथा एन्टीसेन्स (DNA Sense and Antisense ) : डीएनए में आरएनए निर्माण के लिये आनुवंशिक कोड उपस्थित रहते हैं। आरएनए पर उपस्थित अनुक्रम प्रोटीन निर्माण हेतु अमीनों अम्ल के लिये कोड करते हैं। डीएनए श्रृंखला का वह सूत्र जिसमें आरएनए के बन्धन हेतु महत्वपूर्ण सूचना निहित रहती है एन्टीसेन्स सूत्र ( antisense strand) कहलाता है। इसी एन्टीसेन्स सूत्र के कारण प्रोटीन निर्माण होता है। डीएनए का वह सूत्र जो आरएनए के लिये कोड नहीं करता (sense strand) कहलाता है।
  5. C-मान तथा C-मान विरोधाभास (C-Value and C Value Paradox) : डीएनए अणु की लम्बाई को उसमें उपस्थित न्यूक्लियोटाइड की संख्या से वर्णित किया जाता है। यह नम्बर विभिन्न जीवों में भिन्न-भिन्न पाया जाता है। ई. कोलाई में 4 मिलियन क्षार युग्म, वायरस में कई हजार क्षार युग्म उपस्थित रहते हैं। गुणसूत्र के अगुणित समूह में मौजूद कुल डीएनए को C-मान कहते हैं। इसका मान यूकेरियोटिक जीवों में प्रोकेरियोटिक जीवो की तुलना में 5-10 हजार गुना ज्यादा होता है। इसी प्रकार मानव में जीन की संख्या 10,000-50,000 तक हो सकती है जबकि जीवाणु में यह मात्र 4000 ही पायी गयी है।

यहाँ मुख्य बात है कि कुल डीएनए यूकेरियोट की तुलना में कई हजार गुना अधिक है परन्तु इनमें उपस्थित जीन प्रोकेरियोट की तुलना में मात्र 10 गुना अधिक है। यूकेरियोट के कुल डीएनए में जीन की संख्या कोडिंग करने के लिये आवश्यक जीनों से अधिक होती है। इसे C-मान पेराडॉक्स कहा गया है। यह नॉन कोडिंग जीन अर्थात् इन्ट्रान्स ( introns) की उपस्थिति दर्शाता है। यूकेरियोटिक जीन में कोडिंग जीन एक्सॉन (exon) के बीच-बीच में नॉन कोडिंग जीन इन्ट्रॉन (intron ) उपस्थित रहते हैं।

  1. डीएनए की बहु श्रृंखला (Multi Stranded DNA) : हगस्टीन (Hoogstech) ने 1963 में त्रिकुण्डलित डीएनए श्रृंखला रिपोर्ट की । यह कम pH पर अधिक स्थिर पाया गया है जो

सायटोसीन के प्रोटोनेशन में सहायक है। इसे H-डीएनए का नाम दिया गया। यह त्रिकुण्डलित डीएनए है जिसमें ड्रगस्टीन क्षार युग्म उपस्थित है। ऐसी डीएनए श्रृंखला जो गुआनीन का अधिक प्रतिशत दर्शाता हो वह चार कुण्डलित डीएनए श्रृंखला निर्मित कर सकता है। इसमें एक श्रृंखला का गुआनीन पास की श्रृंखला के गुआनीन के साथ जुड़कर अन्य दो गुआनीन युग्म के साथ जुड़ कर गुआनीन चतुष्क बनाकर चार सूत्रीय डीएनए निर्मित करता है।

  1. बहुशाखीय डीएनए (Multibranched DNA ) : डीएनए के फ्रेयड सिरे पर ऐसे अनुक्रम उपस्थित रहते हैं जो एक दूसरे के पूरक नहीं होते हैं। ऐसे मिस मेच ( mismatch) न्यूक्लियोटाइड के उपस्थित रहने से उनमें हाइड्रोजन बन्ध नहीं बनते अतः रस्सी के दो खुले सिरों को फ्रेयड सिरे (fraved end) कहते हैं। ऐसे सिरों पर उपस्थित क्षारकों के पूरक क्षार वाले डीएनए यदि उपलब्ध हो तो बहुशाखित डीएनए बनता है। ऐसा तीन सूत्रीय डीएनए बनता है अधिक शाखायें भी संभव है। शाखित डीएनए का उपयोग नैनो तकनीक में किया जा सकता है।

(II) डीएनए की जैविक भूमिका (Biological Role of DNA)

डीएनए सभी जीवित जीवों एवं पादपों के लिये आवश्यक आनुवंशिक पदार्थ है। यह आनुवंशिक सूचना एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में पहुँचाने में सहायक होते हैं। प्रोटीन को कोडित करते हैं। जीवों की विभिन्न प्रक्रियाओं को संचालित करने में सक्षम है। प्रत्येक जीव की समस्त कोशिकाओं के विकास, प्रजनन तथा मृत्यु के लिये निर्देश डीएनए में निहित होते हैं। इसीलिये यह अति आवश्यक जैविक आनुवंशिक पदार्थ माना गया है।

डीएनए द्वारा निम्नलिखित जैविक प्रकार्य सम्पन्न किये जाते हैं-

  1. प्रोटीन्स का निर्माण (Synthesis of Protein ) : डीएनए में प्रोटीन को कोडित करने की सूचना निहित रहती है जो निम्न प्रक्रिया द्वारा सम्पन्न होती है-

(i) अनुलेखन (Transcription ) : इस प्रक्रिया द्वारा डीएनए के एक अणु पर अंकित क्षार अनुक्रम द्वारा निहित सूचना एक दूसरे अणु m – आरएनए पर इनके पूरक अनुक्रमों द्वारा लिखी जाती है। यह m-आरएनए पूरक अनुक्रमों द्वारा डीएनए से स्थानान्तरित सूचना को लेकर कोशिका के दूसरे भागों में लेकर जाता है।

(ii) अनुवाद (Translation) : यह प्रक्रिया राइबोसोम द्वारा सम्पन्न होती है। यह अनुवादक (translator) का कार्य करते हैं। यह एमआरएनए (mRNA) पर अंकित कोड ( message code) को अमीनो अम्ल की श्रृंखला के रूप में अनुवाद करते हैं जो प्रोटीन का निर्माण करते हैं। आरएनए पर स्थित तीन क्षार का समूह प्रत्येक अमीनो अम्ल का निर्माण करता है।

(iii) प्रोटीन की कोडिंग (Coding for Protein ) : डीएनए को m-आरएनए द्वारा पढ़ा जाता है। पहले द्विकुण्डलित डीएनए की श्रृंखला एक सूत्री श्रृंखला में टूट जाती है तथा फिर आरएनए पर कॉपी हो जाती है। आरएनए डीएनए पर स्थित क्षार अनुक्रमों के पूरक कॉपी करता है। उदाहरण के तौर पर डीएनए पर उपस्थित C आरएनए सूत्र पर G अंकित होगा। प्रत्येक तीन क्षार का समूह एक अमीनो अम्ल का निर्माण करता है।

  1. डीएनए प्रतिकृति (DNA Replication) : कोशिकाओं की निरन्तर वृद्धि होती रहती है। इसके लिये डीएनए भी अपनी प्रतिकृति (replication) निर्मित करता है ।

डीएनए की प्रतिकृति द्वारा कोशिका के प्रमुख प्रकार्य संचालित होते हैं जैसे प्रजनन व कोशिकाओं की निरन्तर वृद्धि; ऊतकों का निर्माण इत्यादि । इस प्रक्रिया में डीएनए का द्विकुण्डलित श्रृंखला जिप (chain) की तरह खुल कर एक सूत्री डीएनए टेम्पलेट बनाती है। इस पर पूरक अनुक्रमों द्वारा एक नया डीएनए सूत्र निर्मित हो जाता है। दो पुत्री डीएनए सूत्रों में एक जनक व दूसरा नवनिर्मित सूत्र उपस्थित होता है।

  1. डीएनए आनुवंशिकी (DNA Inheritance) : डीएनए में जैविक सूचनाओं का भंडार रहता है। डीएनए की फॉस्फेट बेकबोन मजबूत रहती है तथा दो सूत्री संरचना के दोनों सूत्रों पर समान जैविक सूचना अंकित रहती है। आनुवंशिकी दृष्टि से डीएनए बहुत महत्वपूर्ण है। यह सभी आनुवंशिक सूचनाओं को पैक करके रखता है तथा एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में स्थानान्तरित करता रहता है। डीएनए जीन से निर्मित होता है और जीन गुणसूत्रों का निर्माण करते हैं। सूचना स्थानान्तरण का यही मूलभूत आधार है। जीवों में गुणसूत्र युग्म में उपस्थित रहते हैं जैसे मानव में 23 युग्म गुणसूत्र पाये जाते हैं। इनमें 22 गुणसूत्र एक समान नर व मादा में समान होते है तथा XX मादा में व XY गुणसूत्र नर में पाये जाते हैं। लैंगिक जनन के दौरान युग्मक बनते हैं जिसमें अगुणित गुणसूत्र उपस्थित रहते हैं। नर व मादा के युग्मकों के युग्मित (pairing ) होने से यह द्विगुणित हो जाते हैं।
  2. उत्परिवर्तन (Mutation) : डीएनए के क्षार अनुक्रमों में आनुवंशिक परिवर्तन होने से इनमें विरूपता आ जाती है। इनमें आनुवंशिक स्तर पर जीन में परिवर्तन होने से स्थायी रूप से विभिन्नतायें उत्पन्न हो जाती हैं। उत्परिवर्तन जन्य कारक जैसे कॉल्चीसीन, डीएनए में नाइट्रोसेमीन इत्यादि से डीएनए में उत्परिवर्तन उत्पन्न हो जाते हैं। ये परिवर्तन वंशानुगत होते हैं।
  3. आनुवंशिक कोड (Genetic Code) : युग्मनज के गुणसूत्र के डीएनए में मौजूद आनुवंशिक कोड उसकी पूरी जिन्दगी के दौरान होने वाली वृद्धि के लिये प्रोटीन निर्माण हेतु कोड करते हैं। यह कोड विशिष्ट तीन क्षार अनुक्रमों द्वारा 20 अमीनो अम्ल के लिये निर्धारित हैं। प्रत्येक तीन विशिष्ट क्षार अनुक्रम एक अमीनो अम्ल को कोड करता है।
  4. डीएनए बंध प्रोटीन ( DNA Binding Protein ) : डीएनए संरचनात्मक प्रोटीन के साथ सम्मिश्र निर्मित करता है। डीएनए बंध प्रोटीन एक विशिष्ट समूह है जो एक सूत्री डीएनए के साथ बंध कर इसे स्थिर रखता है तथा अन्तराण्विक लूप बनाने से रोकता है अथवा न्यूक्लिएज द्वारा टूटने से बचाता है। डीएनए मुड़ाव ( bending), प्रोटीन्स का विशिष्ट संरूपण (specific conformation) में उपस्थित ढीली संरचनाओं को स्थायित्व प्रदान करने के लिए होता है तथा यह न्यूक्लिओप्रोटीन के जटिल अणु पैकेजिंग में सहायता करते हैं एवं यह जीन अभिव्यक्ति (expression ) तथा प्रोटीन डीएनए बंधन के नियम (regulation) के लिए भी महत्वपूर्ण होते हैं।
  5. आनुवंशिक पुनर्वियोजन (Genetic Recombination) : दो अर्द्धगुणसूत्रों में जीन विनिमय होता है जिन्हें विनिमयज (crossover ) कहते हैं। इस प्रक्रिया में एक अर्द्धगुणसूत्र का कुछ भाग दूसरे से तथा दूसरे समजात भाग का कुछ भाग पहले वाले गुणसूत्र से जुड़ जाता है। इस प्रकार जीन विनिमय द्वारा जीन का आदान-प्रदान होता है तथा आनुवंशिक पुनर्वियोजन द्वारा पुत्री कोशिकाओं में जनक कोशिका से आनुवंशिक रूप से भिन्नतायें उत्पन्न होती है।
  6. डीएनए कुण्डलन (DNA Helicity ) : कुंडलन न्यूक्लिक अम्लों में पाई गई है। इन जैव अणुओं के निर्माण में इनको बनाने वाले अणुओं के बंध कोण कभी भी 180° पर पंक्तिबद्ध (align) नहीं होते हैं। यही कारण है कि न्यूक्लिक अम्लों के रेखीय अणु कभी भी रेखीय (linear ) ना होकर अणु की लम्बाई के साथ-साथ एवं एक हल्का मोड़ ( curve) भी रखते हैं तथा यही आधारभूत कारण है कि इन अणुओं की संरचना में कुण्डलन उपस्थित होता है।
  7. डीएनए लूपिंग (DNA Looping) : कोशिकाओं में विशाल आकार के डीएनए अणुओं को पैक करने के लिए लूपिंग उपस्थित होती है ताकि यह केन्द्रक के भीतर रह सकें। डीएनए लूपिंग का निर्माण डीएनए अणु के विभिन्न स्थलों पर प्रोटीन या प्रोटीनों के जटिल ( complex) साथ-साथ बंधित होने से होता है जिसके परिणामस्वरूप डीएनए में अन्तमुथित ( intervening) एक से दस हजार तक क्षार युग्म (base pairs) बाहर की ओर विस्तारित (loop out) हो जाते हैं अर्थात् लूप के रूप में बाहर निकल आते हैं। यह सरल घटना डीएनए के अधिकांश जैव रासायनिक अर्न्तक्रियाओं के नियमन का आधार है।

डीएनए लूप निर्माण विभिन्न कोशिकीय प्रकरणों में विविध कार्य कर सकते हैं कुछ उदाहरणों लूप स्वयं नियम के लिए आवश्यक होते हैं जबकि अन्य में यह प्रोटीन की प्रभावी स्थानीय सान्द्रता (local concentration) को बढ़ाते हैं ।

लैम्पब्रश क्रोमोसोम में तथा यूकेरियोटिक गुणसूत्रों में लूपिंग डोमेन उपस्थित होते हैं।

डीएनए की रासायनिक प्रकृति (Chemical Nature of DNA)

रासायनिक विश्लेषण से ज्ञात हुआ है कि डीएनए तीन भिन्न यौगिकों जैसे शर्करा, फॉस्फोरस तथा नाइट्रोजनी क्षार से मिल कर बनते हैं। न्यूक्लिक अम्ल में आरएनए व डीएनए दोनों सम्मिलित है जो रासायनिक दृष्टि से समान होते हैं।

न्यूक्लियोटाइड के प्रमुख तीन निम्न घटक होते हैं-

  1. नाइट्रोजन क्षार

(i) एडेनीन (Adenine)

(ii) गुआनीन (Guanine)

(iv) थायमीन (Thiamine ) : यह डीएनए में उपस्थित रहता है।

(v) यूरेसिल (Uracil): यह आरएनए में ही पाया जाता है।

  1. 5 – कार्बन शर्करा-

(iii) सायटोसीन (Cytosine)

डीएनए में यह डीआक्सीराइबोज व आरएनए में राइबोज पायी जाती है।

  1. फॉस्फेट समूह-

एक या तीन तक फॉस्फेट समूह जुड़े रहते हैं।