कम्पन्न या दोलनी गति क्या है , परिभाषा , उदाहरण , अन्तर (vibratory or oscillatory motion)

(vibratory or oscillatory motion) कम्पन्न या दोलनी गति क्या है , परिभाषा , उदाहरण ,अन्तर :  जब कोई वस्तु , कण या पिण्ड अपनी साम्यावस्था के इर्द्ध-गिर्द्ध गति करता है तो इस प्रकार की गति को दोलनी या कंपन्न गति कहते है।

जब इस गति का आयाम बहुत कम होता है अर्थात पिण्ड की इर्द्ध-गिर्द्ध गति की दूरी बहुत कम होती है तो इस गति को कम्पन्न कहते है , और जब इस गति का आयाम अधिक होता है अर्थात पिण्ड अधिक दूरी तक इर्द्ध-गिर्द्ध गति करता है तो इस गति को दोलनी गति कहते है।

उदाहरण : सरल लोलक की माध्य स्थिति के दोनों तरफ होने वाली गति को दोलनी गति कहते है |

जब घर्षण का मान शून्य हो तो पिण्ड को एक बार कम्पन्न या दोलनी गति देने के बाद वह पिण्ड हमेशा यह गति करता रहेगा।

कोई भी वस्तु या पिण्ड (कण) अपनी साम्यावस्था में विराम में रहता है लेकिन जब कोई बाह्य बल लगाकर की पिण्ड या कण की स्थिति को परिवर्तित कर दिया जाए तो इसके विपरीत एक बल लगता है तो पिण्ड को इसकी साम्यावस्था में ले जाने का प्रयास करता है , जो बल इसे साम्यावस्था में लाने का प्रयास करता है उसे प्रत्यानयन बल कहते है और इसी बल के कारण है पिण्ड में कम्पन्न या दोलनी गति प्रारम्भ हो जाती है।

नोट : प्रत्येक दोलनी गति को आवर्ती गति कहा जा सकता है लेकिन प्रत्येक आवर्ती गति को दोलनी गति नहीं कहा जा सकता।  उदाहरण : घूर्णन गति (गोले के चारों ओर की गति ) को आवर्ति गति कहते है लेकिन इसे दोलनी गति नही कह सकते।

एक पेंडुलम की गति दोलनी और आवर्ती , दोनों गति का उदाहरण कहा जा सकता है लेकिन लेकिन एक साइकिल के पहिये की गति को आवर्ती गति कहा जा सकता है , दोलनी गति नही कहा जा सकता। क्योंकि इस प्रकार की गति में पहिया अपनी साम्यावस्था के इर्द्ध-गिर्द्ध गति नहीं कर रहा है , वह घूर्णन गति कर रहा है।

कम्पन्न गति (vibratory motion)

दोलनी गति और कम्पन्न गति , दोनों एक ही है लेकिन दोनों में यह अन्तर होता है की दोलनी गति में साम्यावस्था से अधिक अधिक विस्थापन तक इर्द्ध-गिर्द्ध गति होती है जबकि कंपन्न गति में कम बहुत कम विस्थापन तक इर्द्ध-गिर्द्ध गति होती है।
अर्थात दोलनी गति का आयाम अधिक होता है जबकि कम्पन्न गति का आयाम बहुत कम होता है।