पूर्ण उपादान उत्पादकता (टोटल फैक्टर प्रोडक्टिविटी) total factor productivity in hindi meaning definition

total factor productivity in hindi meaning definition पूर्ण उपादान उत्पादकता (टोटल फैक्टर प्रोडक्टिविटी) ?

पूर्ण उपादान उत्पादकता (टोटल फैक्टर प्रोडक्टिविटी)
पूर्ण उपादान उत्पादकता (TFP) की परिभाषा, कुल आदान की तुलना में उत्पादन के अनुपात के रूप में की जा सकती है जिसमें कुल आदान की परिभाषा विभिन्न आदानों के भारित समुच्चय के रूप में किया जाता है। मान लीजिए Y उत्पादन और I कुल आदान का द्योतक है। तब ज्थ्च् (पूर्ण उपादान उत्पादकता) को निम्नलिखित रूप में लिखा जा सकता है:
………….(1)
दूसरे रूप में, पूर्ण उपादान उत्पादकता वृद्धि (टी एफ पी जी) की परिभाषा उत्पादन की वृद्धि-दर और कुल आदान की वृद्धि-दर में अंतर के रूप में किया जा सकता है। कुल आदानों की वृद्धि-दर की परिभाषा विभिन्न आदानों की वृद्धि-दरों के भारित समुच्चय के रूप में किया जा सकता है।

मान लीजिए, उत्पादन का सिर्फ दो उपादान श्रम और पूँजी है। ळल उत्पादन की वृद्धि-दर और ळ1 कुल आदान की वृद्धि-दर बताता है। ळस श्रम में वृद्धि-दर और ळपूँजी में वृद्धि है। तब, पूर्ण उपादान उत्पादकता की वृद्धि-दर को इस प्रकार लिखा जा सकता है:
TFPG = Gy& G1 ………………(2)
TFPG = Gy – [WL] × Gl~ ़ WK × GK, ………….(3)
उपर्युक्त समीकरण में,WL और WK कुल आदान की वृद्धि-दर में श्रम और पूँजी के संयोजित वृद्धि-दर के भार हैं।

आप यहाँ पूछ सकते हैंः कुल आदान में भिन्न-भिन्न आदानों को संयोजित करने के लिए उपयोग किए जाने वाले ये भार क्या हैं? इन भारों को उत्पादन लोच बंधनों के बराबर होना चाहिए। इसे उत्पादन के उपादानों के सीमान्त उत्पाद पर आधारित होना चाहिए।

उपर्युक्त समीकरण (3) में बड़े कोष्ठक में दिए गए पद की व्याख्या उत्पादन वृद्धि में आदान वृद्धि के योगदान के रूप में की जा सकती है। इसलिए टी एफ पी वृद्धि आदान वृद्धि के योगदान के ऊपर उत्पादन वृद्धि के आधिक्य के बराबर है। उत्पादन में यह अतिरिक्त वृद्धि प्रौद्योगिकीय प्रगति और ऐसे ही अन्य कारकों के कारण हो सकती है।

यहाँ यह उल्लेखनीय है कि टी एफ पी वृद्धि की परिधि में न सिर्फ प्रौद्योगिकीय प्रगति का प्रभाव ही आता है अपितु इसमें क्षमता का बेहतर उपयोग, श्रम की बढ़ी हुई दक्षता इत्यादि भी सम्मिलित है। इसलिए यह प्रौद्योगिकीय परिवर्तन और दक्षता में परिवर्तन, जिसके साथ ज्ञात प्रौद्योगिकी का उत्पादन में उपयोग किया जाता है, का मिला-जुला माप है।

पूर्ण उपादान उत्पादकता वृद्धि अनेक कारकों से प्रभावित होता है। प्रौद्योगिकीय प्रगति उनमें से एक कारक है न कि एक मात्र। कुछ कारकों जैसे क्षमता का कम उपयोग अथवा तनावपूर्ण औद्योगिक संबंध या परिवहन संबंधी समस्याओं का उत्पादन वृद्धि पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। उत्पादन की वृद्धि-दर कुल आदान की वृद्धि-दर से कम हो सकती है जिससे पूर्ण उपादान उत्पादन वृद्धि नकारात्मक हो जाता है। आप पूर्ण उपादान उत्पादकता में गिरावट की व्याख्या किस रूप में करेंगे? पूर्ण उपादान उत्पादकता में गिरावट का अभिप्राय यह नहीं है कि फर्म प्रौद्योगिकी के मामले में पिछड़ रहा है; अपितु इसका अभिप्राय यह है कि फर्म ज्ञात प्रौद्योगिकी का उतनी दक्षता पूर्वक नहीं उपयोग कर रहा है जितना कि वह पहले कर रहा था।

 पूर्ण उपादान उत्पादकता और उत्पाद फलन
पूर्ण उपादान उत्पादकता की अवधारणा उत्पाद फलन की अवधारणा से अभिन्न रूप से जुड़ा हुआ है। वस्तुतः पूर्ण उपादान उत्पादकता वृद्धि दो समयों में उत्पाद फलन में हुए परिवर्तन को दर्शाता है।

उत्पाद फलन क्या है? उत्पाद फलन उपयोग किए गए आदान और उससे होने वाले उत्पादन के बीच संबंध है। यह विद्यमान प्रौद्योगिकी का उपयोग कर आदानों के दिए गए समूहों से किए जा सकने वाले उत्पादन की मात्रा (अधिकतम) को दर्शाने वाला समीकरण अथवा ग्राफ है। इस प्रकार उत्पाद फलन से उत्पादन की प्रौद्योगिकी का भी पता चलता है। प्रौद्योगिकी में प्रगति से उत्पाद फलन में परिवर्तन आता है।

उत्पाद फलन को सम मात्रा (आइसोक्वान्ट्स) रेखाचित्र द्वारा दिखलाया जा सकता है। आप सममात्रा रेखा के संबंध में अवश्य जानते होंगे विस्तार से आपने ई.ई.सी.-11 में पढ़ा होगा। सममात्रा रेखा आदान स्थान में एक ऐसा वक्र है जो आदानों के सभी संभव समुच्चयों को दर्शाता है जिससे दिए गए स्तर पर उत्पादन हो सकता है। उत्पादन के प्रत्येक स्तर के लिए एक सममात्रा रेखा है। प्रौद्योगिकीय प्रगति के कारण सममात्रा रेखा अन्दर की ओर खिसक जाती है। लेकिन यह अन्दर की ओर क्यों खिसकती है? सममात्रा रेखा अंदर की ओर इसलिए खिसकती है कि आधुनिक प्रौद्योगिकी के परिणामस्वरूप कम आदान से ही दिए गए स्तर पर उत्पादन करना अथवा आदान के उसी स्तर से अधिक उत्पादन करना संभव हो जाता है।

अब हम एक औद्योगिक फर्म पर विचार करते हैं और दो आदान उत्पाद फलन का सरल उदाहरण लेते हैं । यह फर्म 1000 इकाइयों का उत्पादन कर रहा है। दो आदान, श्रम और पूँजी हैं। इसे और सरल बनाने के लिए हम यह भी मान लेते हैं कि बड़े पैमाने की मितव्ययिता या बड़े पैमाने की अपमितव्ययिता नहीं है। दूसरे शब्दों में, हम मान लेते हैं कि समानुपातिक प्रतिफल है। इसका अर्थ है कि यदि श्रम और पूँजी दोनों आदानों में 10 प्रतिशत की वृद्धि होती है तब उत्पादन में 10 प्रतिशत की वृद्धि होगी।

आकृति 19.1 देखें। इसमें 1000 इकाइयों के उत्पादन को सममात्रा रेखाचित्र के सहारे दिखाया गया है। श्रम और पूँजी दो रेखाओं के द्वारा निरूपित की गई हैं। अवधि 1 में, फर्म बिंदु । पर कार्यशील है। अवधि 1 में, सममात्रा वक्र फफ द्वारा दिखलाया गया है। यह श्रम और पूँजी के सभी समुच्चयों को दिखलाता है जिससे 1000 इकाइयों का उत्पादन हो सकता है।

अब हम अवधि 2 में प्रौद्योगिकीय प्रगति के कारण सममात्रा वक्र के अंदर की ओर खिसकने पर विचार करते हैं। हम मान लेते हैं कि फर्म का उत्पादन स्तर उतना ही है। नई सममात्रा वक्र Ù’ है। अवधि 2 में, फर्म B बिन्दु पर कार्यशील है। बिन्दु A से बिन्दु B तक उतार चढ़ाव को दो भागों में बाँटा जा सकता है: (1)A से C रेखा उत्पाद फलन (प्रौद्योगिकीय प्रगति) में परिवर्तन को प्रदर्शित करता है। और (2) C से B रेखा उपादान प्रतिस्थापन को दिखलाता है। AC पूर्ण उपादान उत्पादकता वृद्धि को दर्शाता है।

सैद्धान्तिक रूप से, उत्पाद फलन में परिवर्तन की पहचान करना सरल है। किंतु, औद्योगिक फर्मों संबंधी वास्तविक आँकड़ों से उत्पादन फलन में बदलाव का अनुमान करने में कठिनाइयाँ हैं। हमारे पास अवधि 1 और 2 में उत्पादन और आदान संबंधी सही-सही आँकड़े होने पर भी ये हमें । और ठ बिन्दु दिखलाते हैं। हमें C बिन्दु नहीं मिलता है। इस प्रकार, पूर्ण उपादान उत्पादकता के अनुमान में महत्त्वपूर्ण प्रश्न यह है कि हम कैसे बिन्दु C खोजें ताकि हम उपादान प्रतिस्थापन्न के प्रभाव को उत्पाद फलन में परितर्वन के प्रभाव से अलग कर सकें।

अब आकृति 19.2 देखें। यह भिन्न प्रकार से उत्पाद फलन का रेखाचित्रीय प्रस्तुतीकरण है। इस आकृति में पूँजी-श्रम अनुपात ग् रेखा और उत्पादन-श्रम अनुपात ल् रेखा से दिखलाया गया है। अवधि 1 में उत्पाद फलन व्फ वक्र से पता चलता है। यह श्रम उत्पादकता और पूँजी गहनता के बीच संबंध (पूँजी-श्रम अनुपात) प्रदर्शित करता है। पूँजी गहनता में वृद्धि के साथ ही श्रम उत्पादकता भी बढ़ती है और इसका कारण है उपादान प्रतिस्थापन्न । अवधि 1 में फर्म बिन्दु । पर कार्य करता है।

अवधि 2 में, उत्पाद फलन में परिवर्तन प्रौद्योगिकीय प्रगति के कारण होता है। श्रम और पूँजी उसी स्तर से अधिक उत्पादन करना संभव हो जाता है। इस प्रकार, उत्पादन-श्रम अनुपात और पूँजी-श्रम अनुपात के बीच संबंध दिखलाने वाला वक्र उध्र्वगामी दिशा में खिसकता होता है। नया वक्र OR है। फर्म अवधि 2 में बिन्दु B पर कार्यशील है। । से ठ तक उतार-चढ़ाव को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है: पहला । से D तक जो उपादान प्रतिस्थापन्न है और दूसरा D से B तक जो उत्पाद फलन अथवा प्रौद्योगिकीय प्रगति में परिवर्तन के कारण है।

बोध प्रश्न 2
1) रिक्त स्थान की पूर्ति करें:
क) उत्पाद फलन एक समीकरण अथवा ग्राफ है जो विद्यमान प्रौद्योगिकी का उपयोग कर ……………के दिए गए समूह से किए जा सकने वाले…………… की अधिकतम मात्रा को दर्शाता है। पूर्ण उपादान उत्पादकता वृद्धि दो समयों में उत्पाद फलन में………………………… को दिखलाता है।
ख) सममात्रा रेखा आदान स्थान में एक ऐसा वक्र है जो ………………………. के सभी संभव समुच्चयों का दर्शाता है जिससे दिए गए स्तर पर हो सकता है। प्रौद्योगिकीय प्रगति के कारण सममात्रा रेखा की ……………..ओर खिसकती है।
ग) दो वर्षों के बीच उत्पादन-श्रम अनुपात में वृद्धि को ………………………भागों विभक्त किया जा सकता है: एक भाग उपादान …………………………………के कारण है, दूसरा भाग प्रौद्योगिकीय……………….. के कारण है।
2) समानुपाती प्रतिलाभ से आप क्या समझते हैं?

बोध प्रश्न 2 उत्तर
1) क) क्रमशः निर्गतय आदान; परिवर्तन ।
ख) क्रमशः आदान; निर्गत; अन्तर्मुखी ।
ग) क्रमशः दो; प्रतिस्थापन्न; प्रगति।
2) यदि सभी आदानों को X प्रतिशत बढ़ाया (घटाया) जाता है, तब निर्गत भी X प्रतिशत बढ़ता
(घटता) है। हालाँकि आपने यह ई.ई.सी.-11 में पढ़ा होगा। इसलिए इसकी व्याख्या करें।