हैसियत किसे कहते है | वेबर के अनुसार स्थिति या हैसियत की परिभाषा क्या है अर्थ मतलब The status in hindi

The status in hindi sociaty or socialogy हैसियत किसे कहते है | वेबर के अनुसार स्थिति या हैसियत की परिभाषा क्या है अर्थ मतलब ?

स्थिति/हैसियत: सामाजिक प्रतिष्ठा का प्रभावशाली दावा । वेबर ने यह सिद्ध करने की कोशिश की कि स्थिति ध्हैसियत वर्ग अवरोधों को पार कर लेती है।

स्थिति या हैसियत
मार्क्स की तरह वेबर ने भी वर्ग और वर्ग चेतना में भेद किया था। जैसा कि हमने पीछे बताया है, मार्क्स के लिए वर्ग-चेतना वर्ग का एक महत्वपूर्ण पहल था। कोई वर्ग अगर यह जानता है कि वह एक विशिष्ट वर्ग है तो वह अपने हितों की पैरवी कर सकता है। वेबर ने भी वर्ग-चेतना की बात तो की है मगर वह वर्ग के अस्तित्व के लिए इसे जरूरी नहीं मानते। बल्कि इसके बजाए वह वर्ग-चेतना का विकल्प स्थिति या हैसियत में ढूंढते हैं। वेबर का मानना था कि एक व्यक्ति की वर्ग-स्थिति जरूरी नहीं कि उसे वर्ग-चेतन बनाए, मगर वह अपनी हैसियत, अपनी स्थिति के बारे में पहले से चेतन रहता है।

अभ्यास 2
अपने अध्ययन केन्द्र में सहपाठियों से चर्चा कीजिए कि स्थितिध्हैसियत का क्या मतलब है। क्या उनकी धारणाएं स्थिति पर वेबर के दृष्टिकोण से मेल खाती हैं? अपनी जानकारी को नोटबुक में दर्ज कर लीजिए।

वेबर के अनुसार वर्गों की रचना आर्थिक संबंधों के आधार पर होती है, उनके अनुसार स्थिति (स्टेटस) समूह साधारणतया ‘समुदाय‘ होते हैं। वेबर ने स्थिति को समाज में व्यक्ति को हासिल स्थिति के रूप में की है जो ‘प्रतिष्ठा‘ के सामाजिक मूल्यांकन से निर्धारित होती है। वर्ग और हैसियत परस्पर जुड़े होते हैं मगर कई स्थितियों में ये एक-दूसरे के विरोध में जा खड़े होते हैं। वर्ग का संबंध वस्तुओं और सेवाओं के । उत्पादन या उनके अर्जन से है। हैसियत या स्थिति उपभोग से तय होती है। इस प्रकार हैसियत का संबंध जीवन-शैली से है, जिसमें सामाजिक सहवास पर अंकुश लगे हों। वेबर का कहना था कि सबसे कठोर और सु-परिभाषित स्थितिगत सीमाएं हम भारत की वर्ण-व्यवस्था में देख सकते हैं। एक ब्राह्मण का संबंध श्रमिक वर्ग से हो सकता है, क्योंकि यह उसकी आजीविका का माध्यम है। मगर वहीं वह अपने आपको छोटी जाति के व्यक्ति से श्रेष्ठ समझता है। हालांकि दोनों की वर्ग-स्थिति समान होगी। यही नहीं इस ब्राह्मण श्रमिक का अपने से उच्च वर्ग के ब्राह्मणों से सामाजिक व्यवहार काफी ज्यादा हो सकता है। भारतीय समाज में अंतरजातीय विवाह को स्वीकार नहीं किया जाता है। हालांकि दोनों परिवार एक वर्ग के होंगे मगर वर्ण क्रम-परंपरा में उनकी हैसियत एक-दूसरे से भिन्न होगी।

वेबर के अनुसार एक स्तरित समाज में संपत्ति में अंतर वर्गों को जन्म देते हैं, वहीं प्रतिष्ठा संबंधी भेद स्थिति समूहों को जन्म देते हैं। इस प्रकार सामाजिक स्तरीकरण के मुख्य दो आधार हैं।

मार्क्स और वेबर में समानताएं और अंतर
उपरोक्त चर्चा से हमें स्पष्ट हो जाता है कि समाजशास्त्र के इन दोनों धुरंधर विद्वानों के सामाजिक स्तरीकरण के मत में कुछ समानताएं हैं, मगर वहीं दोनों में बड़े मतभेद भी हैं। मार्क्स के लिए सामाजिक स्तरीकरण का आधार वर्ग है। वर्ग की रचना इस अर्थ में वस्तुनिष्ठ होती है कि वर्ग का निर्माण महज इसलिए नहीं हो जाता है कि लोगों का एक समूह इकट्ठा होकर वर्ग बनाने का फैसला कर लेते हैं, बल्कि वर्ग का निर्माण समाज में प्रचलित उत्पादन संबंधों के कारण होता है। इसलिए वर्गीय ढांचे में किसी व्यक्ति को प्राप्त स्थान उत्पादन संबंधों में उसकी स्थिति पर आधारित होता है। अगर उसके पास पूंजी है या वह पूंजी पर अधिकार रखता है और दूसरे लोगों से काम लेता है तो वह पूंजीवादी है। जिन लोगों के पास संपत्ति नहीं होती वे उसके विरोधी श्रमिक वर्ग की रचना करते हैं। मार्क्स के विश्लेषण का महत्वपूर्ण पहलू वर्गों का परस्पर विरोध है। इसी विरोध के फलस्वरूप ही सामाजिक और आर्थिक बदलाव होता है। श्रमिकों के जवाब में पूंजीवादी नित नई तरकीबें ढूंढ निकालते हैं। जैसे वे नई प्रौद्योगिकी ला सकते हैं जिसके फलस्वरूप उत्पादन तकनीक उन्नत हो जाती हैं या श्रमिकों को शक्तिशाली बनने से रोकने के लिए वे नए कानून ला सकते हैं। मगर श्रमिक भी अपने संघर्ष में उतना ही अधिक संगठित रहते हैं। वे जब देखते हैं कि उनका मुख्य शत्रु कोई अन्य वर्ग का है तो वे आपसी मतभेद भुला देते हैं। इससे उनमें व्यापक एकता आती है। इस प्रकार मार्क्स के मत में वर्ग और वर्ग-चेतना समाज की श्रेणियां मात्र नहीं हैं। ये सामाजिक विकास की बुनियाद है।

एक स्तर पर वेबर भी मार्क्स की वर्गीय धारणा से सहमति रखते हैं। मगर ऐसा वह मार्क्स का समर्थन करने के लिए नहीं बल्कि उनके मत की कमजोरियाँ निकालने के लिए करते हैं। वह जोर देकर कहते हैं कि समाज को सिर्फ दो मुख्य वर्गों में विभाजित नहीं किया जा सकता है, बल्कि समाज इनसे ज्यादा वर्गों में बंटा होता है जिनका उदय बाजार स्थिति और व्यक्ति द्वारा किए जाने वाले कार्य की किस्म से होता है। इसलिए उनके अनुसार समाज में मुख्य चार वर्ग होते हैं। उनके अनुसार इससे वर्ग संबंधों को लेकर भ्रम की स्थिति पैदा होती है। इसलिए वेबर कहते हैं कि न तो वर्ग और न ही वर्ग चेतना सामाजिक स्तरीकरण की पूर्ण व्याख्या कर सकते हैं। अतः वह स्थिति या हैसियत (‘स्टेटस‘) पर अधिक बल देते हैं जबकि मार्क्स वर्ग-चेतना को अधिक महत्व देते हैं। वेबर ने यह दिखाने का प्रयत्न किया है कि वर्ग चेतना सामाजिक स्तरीकरण के लिए महत्वपूर्ण नहीं है। उनके विचार में इसका आधार स्थिति समूह हैं। उनके अनुसार वर्ग स्थिर और गतिहीन होते हैं जबकि स्थिति (स्टैटस) सभी वर्गों की दूरी को मिटा देती है।

दोनों दार्शनिकों की तुलना करते समय हमें ध्यान रखना चाहिए कि वेबर मार्क्स के विचारों के विरोधी थे। उन्होंने मार्क्स का विकल्प देने का प्रयास किया। सो दोनों दार्शनिकों की तुलना नहीं की जा सकती, क्योंकि वेबर का कार्य मार्क्स के कार्य का पूरक, उसकी कड़ी नहीं है (जिस प्रकार डेविस की स्तरीकरण की अवधारणा पारसंस की अवधारणा की पूरक है, जिसे हम आगे की इकाई में दिखाएंगे)। वेबर ने अपने सिद्धांत को मुख्यतः मार्क्स के विरोध में गढ़ा था। इस लिए दोनों में कुछ समानताएं तो हैं मगर उनका आधार एक-दूसरे से भिन्न है।

बोध प्रश्न 2
1) वर्गों और जीवन-अवसरों के बारे में वेबर ने क्या विचार रखे थे? पांच पंक्तियों में उत्तर दीजिए।
2) सामाजिक स्तरीकरण को लेकर वेबर और मार्क्स के दृष्टिकोण में क्या-क्या समानताएं और अंतर हैं? दस पंक्तियों में बताइए।

बोध प्रश्नों के उत्तर

बोध प्रश्न 2
1) वेबर ने वर्ग को निजी संपत्ति की कसौटी पर परिभाषित किया मगर उन्होंने वस्तुओं के स्वामित्व और प्रवीणता के स्वामित्व भेद किया। कारखाने का मालिक वस्तुएं देता है लेकिन उसके श्रमिक वेतन के बदले में अपनी श्रम शक्ति दे सकते हैं। वेबर के अनुसार जीवन-अवसरों का मतलब व्यक्ति को अपने जीवन के विभिन्न चरणों में प्राप्त होने वाले अवसर हैं। शिक्षा और पारिवारिक पृष्ठिभूमि जीवन-अवसरों को प्रभावित करते हैं। मगर जोर समूह पर होना चाहिए और ये उन्हें सुधार या बिगाड़ सकते हैं। जीवन-अवसर एक वर्ग विशेष के लिए समान होते हैं पर इसके अपवाद अवश्य देखे जा सकते हैं।
2) सामाजिक स्तरीकरण को लेकर मार्क्स और वेबर में वैचारिक समानता और मतभेद दोनों हैं। मार्क्स के विचार के मूल में उत्पादन साधनों के स्वामित्व पर आधारित वर्ग विरोध है। उनके अनुसार वर्ग और चेतना सामाजिक विकास के लिए आवश्यक हैं। वेबर के अनुसार समाज को सिर्फ दो वर्गों में ही नहीं बांट सकते। बल्कि उनके अनुसार हमारा समाज चार वर्गों में बंटा हैं वेबर स्थितिध्हैसियत को तो मार्क्स वर्ग चेतना को अधिक महत्व देते हैं। इस प्रकार दोनों दार्शनिक वर्ग को महत्व तो देते हैं मगर दोनों के विचार समान नहीं हैं।

शब्दावली
वर्ग: मार्क्स के अनुसार वर्ग लोगों का समूह है जो उत्पादन साधनों पर अपने अधिकार या स्वामित्व या उसकी कमी के कारण एक-दूसरे से भिन्न होते हैं। मगर वेबर के अनुसार वर्ग लोगों का समूह है जो उत्पादन स्वामित्व या अधिकार के चलते एक दूसरे से अलग होते हैं और जिन्हें समान जीवन-अवसर प्राप्त होते हैं।

कुछ उपयोगी पुस्तकें
टी.बी. बोटोमोर और एम रुबेल (संपा.) कार्ल मार्क्सः सेलेक्टेड राइटिंग्स इन सोशियोलाजी ऐंड सोशल फिलॉसफी, पेंग्विन बुक्स, 1963
एच.एच. गर्थ और सी.डब्लू मिल्स (संपा.) फ्रॉम मार्क्स वेबरः एसेज इन सोशियोलॉजी, रौटलेज ऐंड केगर पॉल, 1948