टेराकोटा किसे कहते हैं | टेराकोटा कला की परिभाषा क्या होती है terracotta in hindi definition

terracotta in hindi definition टेराकोटा किसे कहते हैं | टेराकोटा कला की परिभाषा क्या होती है ?

टेराकोटा : सामान्यतया मिट्टी के बर्तन को टेराकोटा कहा जा सकता है जिन्हें चित्र में दिखाया गया है , अर्थात यह एक प्रकार की कला होती है जिसमे मिट्टी का प्रयोग किया जाता है |

टेराकोटा मूर्तियां बनाने के लिए पकी हुई मिट्टी के उपयोग को संदर्भित करता है। कांसे के मूर्तियों की तुलना में, टेराकोटा की मूर्तियां संख्या में कम हैं और आकार और रूप में भद्दी हैं। इन्हें पिचिंग विधि का उपयोग करके बनाया गया था और अधिकांशतः गुजरात और कालीबंगा के स्थलों से मिली हैं। सामान्यतः टेराकोटा का खिलौने, पशुओं की मूर्तियां, लघु गाड़ियां और पहिये आदि बनाने के लिए प्रयोग किया जाता था
उदाहरणः मातृदेवी, सींग वाले देवता का मुखौटा आदि।

मातृदेवी की मूर्तियां अनेक सैंधव स्थलों से मिली हैं। यह उन्नत वक्षस्थल पर लटके हुए कण्ठाहार से सज्ज्ति एक खड़ी महिला की अनगढ़ मूर्ति है। यह धोती/कटिवस्त्र और करधनी पहने हुए है। इसने पंखाकार मुकुट भी पहन हुआ है। चेहरे के रूपांकनों को भी बहुत भद्दे ढंग से दिखाया गया है और कुशलता का अभाव है।

पशुपति वाला मोहर :  मोहनजोदड़ो से मिली स्टेटाइट की मुहर में पालथी मारकर बैठी मानव आकृति या देवता को दर्शाया गया है। पशुपति के रूप में संदर्भित इस आकृति ने तीन सींगों वाली मुकुट पहना है और चारों ओर पशुओं से घिरी है। आकृति के दाईं ओर हाथी और बाघ हैं जबकि बाईं ओर गैंडा और भैंस दिखाई देते हैं। आकृति के आसन के नीचे दो हिरण दर्शाए गए हैं।

कांस्य मूर्तियां
हड़प्पा सभ्यता व्यापक पैमाने पर कांसे की ढलाई की प्रथा की साक्षी थी। कांसे की मूर्तियों को ‘लुप्त मोम तकनीक‘ या श्ब्पतम च्मतकनमश् का उपयोग करके बनाया जाता था। इस तकनीक में, मोम की मूर्तियों पर पहले गीली मिट्टी का लेपन किया जाता था और तब सूखने दिया जाता था। इसके बाद मिट्टी से लेपित मूर्तियों को गर्म किया जाता था जिससे अंदर की मोम पिघल जाती थी। फिर एक छोटे से छेद के माध्यम से मोम को बाहर निकाल दिया जाता था और खोखले सांचे के अंदर पिघली हुई धातु डाली जाती थी। धातु के ठंडा हो जाने और जम जाने के बाद, मिट्टी का लेप हटा दिया जाता था और जैसी मोम की आकृति होती थी उसी आकार की धातु की आकृति तैयार हो जाती थी। आज भी, इसी तकनीक का देश के कई भागों में प्रचलन है।
उदाहरणः मोहनजोदड़ो की कांसे की नर्तकी, कालीबंगा का कांसे का बैल आदि।
नर्तकी की मूर्ति विश्व की सबसे पुराने कांसे की मूर्ति है। ‘मोहनजोदड़ो‘ में मिली, चार इंच की इस मूर्ति में आभूषण पहने हुए एक नग्न महिला को दर्शाया गया है। इसमें बाएं हाथ में चूड़ियां और दाहिने हाथ पर कंगन और ताबीज सम्मिलित हैं। यह अपने कूल्हे पर दाहिने हाथ रखे हुए ‘त्रिभंग‘ नृत्य मुद्रा में खड़ी है।

मृद्भाण्डः
उत्खनन स्थलों से मिले मृद्भाण्डों को मोटे तौर पर दो प्रकारों में वर्गीकृत किया जा सकता है- सादे मृद्भाण्ड और चित्रित मृद्भाण्ड। चित्रित मृद्भाण्डों को लाल व काले मृद्भाण्डों के रूप में भी जाना जाता है क्योंकि इसमें पृष्ठभूमि को रंगने के लिए लाल रंग का प्रयोग किया जाता था और चमकदार काले रंग का प्रयोग लाल पृष्ठभूमि पर डिजाइन और आकृतियां बनाने के लिए किया जाता था। वृक्ष, पक्षी, पशुओं की आकृतियां और ज्यामितीय प्रतिरूप चित्रों के आवर्ती विषय थे।
पाए गए अधिकांश मृद्भाण्ड चाक पर बनाए गए अति उत्तम मृदभाण्ड हैं। इसके साथ ही कुछ हाथ से भी बने थे। रंग-बिरंगे मृद्भाण्डों के भी कुछ उदाहरण मिले हैं, हालांकि ये बहुत दुर्लभ हैं। मृद्भाण्डों का उपयोग तीन मुख्य उद्देश्यों के लिए किया जाता थाः
1. सादे मृद्भाण्डों का मुख्य रूप से उपयोग अनाज और पानी के भंडारण आदि जैसे घरेलू प्रयोजनों के लिए किया जाता था।
2. छोटे पात्रों, सामान्यतः आकार में आधे इंच से भी कम, का सजावटी प्रयोजनों के लिए प्रयोग किया जाता था। इन्हें इतने अद्भुत ढंग से तैयार किया जाता था कि ये आज भी प्रभावी लगते हैं।
3. तल में बड़े छेद और बगल में छोटे छेदों वाले कुछ छिद्रित मृद्भाण्ड भी होते थे। संभवतः इनका उपयोग शराब टपकाने के लिए किया जाता था।

आभूषणः
हड़प्पाई लोग आभूषण बनाने के लिए, मूल्यवान धातुओं और रत्नों से लेकर हड्डियों और यहां तक कि पकी हुई मिट्टी जैसी विविधतापूर्ण सामग्री का उपयोग करते थे। पुरुष और महिलाएं दोनों कण्ठाहार, पट्टिका, बाजूबंद और अंगूठियों जैसे आभूषण पहनते थे। करधनी, झुमके और पायल केवल महिलाएं ही पहनती थीं।
कोर्नलियन, नीलम, क्वार्ट्ज, स्टेटाइट चित्र-1.5ः हडप्पा सभ्यता से मिले विभिन्न आभूषण आदि से बने हुए मनके भी काफी लोकप्रिय थे और बड़े पैमाने पर इनका निर्माण किया जाता था। यह बात चहुंदड़ो और लोथल में मिले कारखानों से स्पष्ट है। कपड़ों के लिए, हड़प्पाई लोग कपास और ऊन का उपयोग करते थे। इन्हें अमीरों और गरीबों द्वारा समान रूप से काता जाता था। ‘तकुए‘ और ‘घिरनी‘ महंगी काचाभ (फायंस) के साथ-साथ सस्ती मिट्टी से भी बनाए जाते थे। साथ ही बाल और दाढ़ी की विभिन्न शैलियों से यह अनुमान लगाया जा सकता है कि उस समय के लोग फैशन के प्रति भी सजग थे।
इस प्रकार, हम देखते हैं कि हड़प्पा सभ्यता के शिल्पकारों और मूर्तिकारों ने स्थापत्य कला और मूर्तिकला के क्षेत्र में काफी प्रगति की थी। वैज्ञानिक नगर योजना से लेकर कलात्मक आकृतियों तक के रूप में इस प्राचीन सभ्यता ने कौशल और शिल्पकारिता की विरासत अपने पीछे छोड़ी है।
दाढ़ी वाले पुजारी की अर्द्ध-प्रतिमा (शरीर का ऊपर हिस्सा) सिंधु घाटी की सभ्यता में मिली पाषाण मूर्तियों के सर्वोत्कृष्ट उदाहरणों में से एक है। यह तिपतिया (टेरीफॉयल) पैटर्न वाली ‘शॉल‘ में लिपटे एक दाढ़ी वाले व्यक्ति की मूर्ति है। आंखें लम्बी हैं और आधी बंद हैं जैसे कि वह ध्यान मुद्रा में हो। इस मूर्ति के दाहिने हाथ पर एक बाजूबंद और सिर पर सादी बुनी हुई पट्टिका है।
पुरुष धड़ की लाल बलुआ पत्थर की मूर्ति पाषाण मूर्ति कला का एक और नमूना है। धड़ की दिशा आगे की ओर है। इसके कंधे अच्छी तरह से पके हुए हैं और पेट निकला हुआ है। संभवतः सिर और भुजाओं को जोड़ने के लिए गर्दन और कंधों में सॉकेट छिद्र हैं।