मुगलकालीन स्थापत्य की विशेषताएं बताइए important features of mughal architecture in hindi

important features of mughal architecture in hindi मुगलकालीन स्थापत्य की विशेषताएं बताइए ?

उत्तर: कला एवं स्थापत्य की दृष्टि से मुगल काल अत्यन्त विकसित था। यह विकास क्रमिक चरणों में हुआ। समय तथा मगर सत्ता में परिवर्तन के साथ-साथ कला व स्थापत्य के क्षेत्र में भी परिवर्तन दिखाई देते हैं।
सल्तनत काल की तरह ही मुगल काल में भी प्रारम्भिक दौर की स्थापत्य कला में देशी व इस्लामी वास्तु शैलियों की मिश्रण था। बाबर ने ईरानी शैली में ज्यामितीय आधार पर बागों का निर्माण करवाया। अकबर काल के स्थापत्य का प्रथम उदाहरण हुमायूँ का मकबरा है जो कि विशाल द्विगुम्बदीय प्रणाली से निर्मित है। इसे ताजमहल का पूर्वगामी कहते हैं। अकबरकालीन स्थापत्य कला हिन्दू-मुस्लिम (ईरानी) शैलियों का सम्मिश्रण थी। हिन्दू व देशी विशेषताओं में राजपूत शैली बौद्ध विहार शैली, शहतीरों का प्रयोग, किलानुमा संरचना आदि प्रमुख हैं। जबकि दोहरा गुम्बद, मेहराब, नक्काशी, इस्लामिक पद्धति से चित्रांकन आदि ईरानी मुस्लिम शैली की विशेषताएं है। इस काल के स्थापत्य में गुम्बद, मेहराब, संगमरमर का कम प्रयोग व लाल बलुआ पत्थर का ज्यादा प्रयोग मितव्ययिता को दर्शाता है। इन भवनों के निर्माण का उद्देश्य आवश्यकता, भावना, व्यावहारिकता तथा आध्यात्मवाद पर आधारित था न कि अतिशय सौन्दर्य के प्रदर्शन हेतु। इस काल के प्रमुख भवन फतेहपुर सीकरी स्थित जामा मस्जिद, बुलन्द दरवाजा, मरियम महल, पंच महल आदि हैं। अकबर के पश्चात् मुगल स्थापत्य कला में इस्लामी पद्धति का प्रयोग बढ़ता ही गया। जहांगीर के काल में पच्चीकारी की नई विधि पित्रादुरा का प्रारम्भ हुआ। जिसके अन्तर्गत कीमती रत्नों व पत्थरों को संगमरमर पर जोड़ा जाता था। इसका उदाहरण एत्मादुद्दौला का मकबरा है। सिकन्दरा स्थित अकबर का मकबरा पाँच मंजिला इमारत है जोकि भारतीय बौद्ध विहारा व चीन की खमेर वास्तुकला से प्रेरित है।
शाहजहां का काल मुगल वास्तुकला का स्वर्णयुग था। इस युग में संगमरमर व पित्रादुरा का प्रयोग आम हो गया जिसके कारण शाहजहाँ ने अकबरकालीन बलुआ पत्थर की कुछ इमारतों को संगमरमर में परिवर्तित कराया। अमरूदी गुम्बद, दाँतेदार मेहराब, चारों कोनों पर मीनार, बाग व झरने, सम्मिलित संरचना आदि इस युग के भवनों की विशेषताएं थी। इस युग की इमारतों में शान-शौकत, भव्यता की वजह से मौलिकता, सजीवता की कमी रही। ताजमहल, लालकिला, जामी मस्जिद, मोती मस्जिद आदि इस काल के स्थापत्य कला के प्रमुख नमूने हैं।
औरंगजेब के युग में स्थापत्य कला का ज्यादा विकास नहीं हो सका। भवनों का इस्लामिक स्वरूप अधिक दृढ़ होकर उभरा। राबिया का मकबरा, बादशाही मस्जिद, लाल किले की मोती मस्जिद आदि मुख्य इमारतें हैं। इस स्थापत्य कला को भारतीय कला के सम्मिश्रण एवं ईरानी कला और इस्लामिक कला के प्रभाव के आधार पर ‘इण्डो-इस्लामिक शैली‘ या ‘मुगल शैली‘ के नाम से अभिहित किया जाता है। इस प्रकार से मुगल काल में कला व स्थापत्य का क्रमिक विकास हुआ जो कि समयानुसार परिवर्तन के साथ दिखाई पड़ता है। हिन्दू-मुस्लिम संस्कृति के आदान-प्रदान का प्रभाव मुगलकालीन कला व स्थापत्य के उदाहरणों से भी स्पष्ट होता है। इसके मिश्रण से एक नवीन और प्रशंसनीय शैली का विकास हुआ जिसने मुगलकालीन कला व स्थापत्य को अद्वितीय स्वरूप दिया।

प्रश्न: भारत की वास्तु परम्परा 309 अकबर युगीन स्थापत्य में मौलिकता, सजीवता एवं दृढ़ता प्रमुख विशेषताएं हैं। विवेचना कीजिए।
उत्तर: मुगलकाल में स्थापत्य कला के विकास में अकबर और शाहजहाँ ने सर्वाधिक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। अकबर के काल में यह अपने चरमोत्कर्ष तक पहुंच गयी।
अकबरकालीन स्थापत्य कला हिन्दू एवं ईरानी शैलियों का सम्मिश्रण थी। हिन्दू व देशी विशेषताओं में राजपूतों की स्थापत्य कला की विशेषताएँ, बौद्ध विहारों की शैली, शहतीरों का प्रयोग, दीवारों पर अलंकरण व नक्काशी, किलेनुमा संरचना इत्यादि प्रमुख है जबकि ईरानी, मुस्लिम शैली के अन्तर्गत दोहरा गुम्बद, मेहराब, नक्काशी इस्लामिक पद्धति पर आधारित दीवारों पर अलंकरण आदि महत्वपूर्ण हैं। भवनों की विशालता ईरानी गुणों की है तो बनावट व सजावट भारतीय गुणों की।
अकबरयुगीन स्थापत्य विलासिता से दूर सजीवता, दृढ़ता व मौलिकता के गुणों से परिपूर्ण है। स्थानीय शैलियों के प्रचुर मात्रा में प्रयोग से धार्मिक कट्टरता से परे धर्मनिरपेक्षता की भावना भी दिखाई देती है।
अकबरकालीन स्थापत्य कला की विशेषताओं में गुम्बदों का कम प्रयोग, मेहराबों का प्रयोग सिर्फ अलंकरण हेतु, ज्यादातर लाल बलुआ पत्थरों का प्रयोग तथा संगमरमर का सीमित प्रयोग मितव्ययिता को दर्शाता है। इन भवनों के निर्माण का उद्देश्य आवश्यकता, भावना, व्यावहारिकता तथा अध्यात्मवाद पर आधारित था न कि अतिशय सौन्दर्यता के प्रदर्शन हेतु। इस युग की सबसे पहली इमारत दोहरे गम्बद वाला विशाल हुमायूँ का दिल्ली स्थित मकबरा है जो कि ईरानी शैली पर आधारित है। इसमें चार बाग प्रणाली व कृत्रिम फव्वारों का प्रयोग हुआ है। इसमें लाल बलुआ पत्थर व संगमरमर का मिश्रित प्रयोग किया गया है। इसे ताजमहल का पूर्वगामी भी कहा जाता है।
अकबर के भवनों को आगरा व फतेहपुर सीकरी के आधार पर दो वर्गों में विभाजित किया जा सकता है। आगरा स्थित किला अत्यन्त विशाल है जो कि महान् सत्ता व शक्ति एवं राजपूतों के साथ मित्रवत् सम्बन्ध को दर्शाता है। इस पर भारतीय शैली की प्रमुखता दिखाई देती है। यह लाल बलुआ पत्थर से निर्मित तथा गुजरात, राजस्थान, बंगाल शैली पर आधारित है। गुम्बदों के प्रयोग से बचा गया है। इस किले में जहाँगीरी महल एवं दिल्ली दरवाजा प्रमुख हैं।
अकबर ने 1571 ई. में आगरा के पास फतेहपुर सीकरी को विकसित करके वहां अनेक भवनों का निर्माण करवाया, जिसे फर्ग्युसन ने ‘किसी महान् व्यक्ति के दिमाग की उपज‘ बताया है। लगभग सभी भवनों में बेहतरीन लाल बलुआ पत्थर का प्रयोग व परम्परागत शहतीर व कंगूरानुमा स्तम्भों वाली निर्माण पद्धति का प्रयोग किया गया है। फतेहपुर सीकरी के भवनों को धार्मिक व लौकिक आधार पर दो वर्गों में वर्गीकृत कर सकते हैं। धार्मिक भवनों में जामा मस्जिद व सलीम चिश्ती का मकबरा (वर्गाकार मेहराब का प्रथम प्रयोग) है जो कि श्रद्धा, भावना तथा. सन्तुलित सजावट का उत्तम समन्वय प्रदर्शित करते हैं।
लौकिक भवनों में विशाल बुलन्द दरवाजा गुजरात विजय का स्मारक है। इसमें प्रवेश द्वार पर विशाल मध्यवर्ती मेहराब हैं और यह अर्द्धगुम्बदीय ईरानी शैली में निर्मित है। ‘पंचमहल‘ या ‘हवामहल‘ पाँच मंजिली इमारत है जो कि ऊपर की ओर क्रमिक रूप से संकरी होती गई है। यह भवन नालन्दा के बौद्ध विहारों से प्रेरित है। इसके अलावा दीवान-ए-आम, दीवान-ए-खास, जोधाबाई महल, बीरबल महल, तुर्की सुल्ताना महल, मरियम महल आदि अन्य महत्वपूर्ण भवन यहां स्थित हैं।
प्रश्न: अकबर युगीन स्थापत्य की तुलना में शाहजहा युगीन स्थापत्य कला में क्या परिवर्तन आये ? समीक्षा कीजिए।
उत्तर: शाहजहाँ के काल में स्थापत्य कला में अपूर्व विशिष्टता आई। एक ओर जहां सगमरमर का प्रयोग व्यापकं रूप से हुआ वहीं दूसरी तरफ फूलों वाली आकृतियों में बहुमूल्य पत्थरों का प्रयोग, काले संगमरमर से कुरान की आयतें व ज्यामितीय अंकन का प्रयोग हुआ। शाहजहां के काल में गुम्बदों की संरचना और ज्यादा प्रभावी हुई जिसे अमरूदी गुम्बद कहते हैं। इस पर निर्मित कमलनुमा संरचना इसके सौन्दर्य में वृद्धि करता है। सुन्दर, अलंकृत व नक्काशीदार स्तम्भ भी शिल्पकला के शानदार उदाहरण है। विशेषकर दांतेदार मेहराब इस काल के स्थापत्य का प्रमुख उदाहरण हैं। चारों कोनों पर मीनारों का निर्माण, बाग व झरनों की प्रचुरता, सममितीय संरचना इस युग के भवनों की अन्य प्रमुखता है।
इस युग के मुख्य भवनों में संगमरमर से निर्मित ताजमहल, दिल्ली का लाल किला, दीवान-ए-आम, दीवान-ए-खास, जामा मस्जिद, आगरे का किला, मोती मस्जिद आगरा आदि प्रमुख हैं। शाहजहाँ ने अकबर द्वारा निर्मित आगरे के किले के कई भवनों को तोड़कर उन्हें पुनः लाल बलुए पत्थर की जगह संगमरमर से निर्मित करवाया। मोती मस्जिद शुद्ध रूप से संगमरमर से निर्मित है। जामी मस्जिद त्रिगुम्बदीय है जिसमें मध्यवर्ती गुम्बद विशाल है। लाल किला बलुआ पत्थर से निर्मित विशाल सरंचना है, जिसमें पश्चिम की ओर लाहौरी व पूरब की ओर दिल्ली दरवाजा है।
अकबर की तुलना में सजीवता, मौलिकता, दृढ़ता आदि गुणों की इस युग के भवनों में कमी है, किन्तु ये अतिव्ययपूर्ण प्रदर्शन एवं समृद्ध व कौशल सजावट से परिपूर्ण हैं। साथ ही धर्म निरपेक्षता की भावना का भी अभाव है। ज्यादातर भवन पूर्ण इस्लामिक पद्धति से निर्मित हैं। एक ओर जहां अकबरकालीन भवनों रूप में मुगल स्थापत्य का प्रारम्भिक काल था वहीं शाहजहां का काल मुगल स्थापत्य के चरमोत्कर्ष का काल था।