छात्र असंतोष क्या है | छात्रों या युवाओं में असंतोष का कारण और निवारण किसे कहते है Student dissatisfaction in hindi

Student dissatisfaction in hindi छात्र असंतोष क्या है | छात्रों या युवाओं में असंतोष का कारण और निवारण किसे कहते है ?

छात्र असंतोष

युवा छात्रों में असंतोष की घटना छात्रों और प्राधिकारियों दोनों स्तरों की भावनाओं का महत्त्वपूर्ण सूचक है। हाल के दशकों में शैक्षणिक संस्थाओं में असंतोष की काफी घटनाएँ हुई हैं। अध्ययनों से पता चलता है कि युवा असंतोष और शैक्षणिक संस्थाओं का आपस में गहरा संबंध है।

देश में शैक्षणिक संस्थाओं के परिसरों में असंतोष पर किए गए एक समाजशास्त्रीय अध्ययन के अनुसार यह देखा गया था कि 1968 से 1971 की अवधि के दौरान देश के लगभग सभी राज्य छात्रों की हिंसात्मक कार्रवाइयों से प्रभावित हुए थे (विनायक, 1972)। छात्र असंतोष के 744 मामलों में से 80 प्रतिशत मामले हिंसात्मक थे और लगभग, 20 प्रतिशत शांतिपूर्ण थे। हिंसात्मक और शांतिपूर्ण आंदोलनों का अखिल भारतीय अनुपात 4: 5 से लेकर 1: 0 था और बिहार तथा मद्रास में 2: 3 से लेकर 1: 0 के बीच था। मध्य प्रदेश में 31: 0 से 0: 0 था। दक्षिणी राज्यों के विश्वविद्यालयों में अपेक्षाकृत अधिक शांति थी अथवा कम हिंसा हुई। छात्रों की हिंसात्मक कार्रवाइयों की सबसे अधिक संख्या दिल्ली में थी, इसके बाद उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल में। सबसे कम असंतोष वाले राज्य गुजरात, हिमाचल प्रदेश, जम्मू और कश्मीर, हरियाणा, तमिलनाडु और राजस्थान थे।

छात्र असंतोष के कारण

असंतोष और हिंसा के कारणों की मोटे तौर पर दो श्रेणियाँ बनाई जा सकती हैं, ‘‘परिसर के अंदर‘‘ और ‘‘परिसर के बाहर‘‘। परिसर के अंदर के मुद्दों में शैक्षणिक और गैर-शैक्षणिक दोनों प्रकार के मुद्दे होते हैं। परिसर के अंदर के मुद्दे परीक्षा, शुल्क, आवास सुविधाओं से संबंधित होते हैं। परिसर से बाहर के मुद्दे सहानुभूतिक हड़ताल (बंद) और छात्रों तथा गैर, छात्रों के बीच विवाद से जुड़े होते हैं।

विनायक ने अपने अध्ययन में पाया है कि 1968-71 की अवधि के दौरान असंतोष के 65 प्रतिशत से अधिक मामले परिसर से बाहर के मुद्दों पर थे। लगभग 24 प्रतिशत मामले शैक्षणिक मुद्दों के कारण थे और लगभग 11 प्रतिशत मामले अन्य कारणों से थे। राज्यवार विश्लेषण से पता चला है कि आंध्र प्रदेश में 66 मामले, असम में 25, बिहार में 44, दिल्ली में 128, गुजरात में 7, हरियाणा में 6, हिमाचल प्रदेश में 7, जम्मू और कश्मीर में 15, तमिलनाडु में 51, महाराष्ट्र में 14, उड़ीसा में 22, पंजाब में 50, राजस्थान में 18, उत्तर प्रदेश में 109 और पश्चिम बंगाल में 101 मामले घटित हुए। इस अध्ययन ने दर्शाया की 1968-71 के दौरान लगभग सभी राज्य छात्र हिंसा से प्रभावित थे। इस तथ्य को भी नकारा नहीं जा सकता है कि पिछले दशक के दौरान परिसरों में आंदोलनों के कई मामले दर्ज किए गए।

असंतोष के कारणों को समाप्त करने के लिए, कुछ विशिष्ट अध्ययन किए गए थे।

प) एक स्रोत के अनुसार असंतोष का अंतर्निहित कारण युवाओं में निराशा की सामान्य भावना है। शिक्षित छात्रों में यह विश्वास घर करता जा रहा है कि वर्तमान व्यवस्था की सरकारी नीतियों में गुण और योग्यता की उपेक्षा की जाती है।
पप) छात्र असंतोष का अन्य महत्तवपूर्ण कारण छात्र यूनियन संगठन के साथ राजनैतिक दलों का हस्तक्षेप रहा है। कई अध्ययनों ने इन विचारों का समर्थन किया है कि छात्र शाखा जैसे युवा कांग्रेस, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद, एस.एफ.आई. आदि के माध्यम से छात्रों को विभिन्न राजनीतिक दलों का सहयोग मिलता है। ये कई तरीकों में हिंसा भड़काने के लिए उत्तरदायी रहे हैं। राष्ट्रीय राजनीतिक दल और उनके स्थानीय निकायों में आने वाले चुनावों के लिए अपनी शक्ति परीक्षण के क्षेत्र के रूप मे छात्रों का उपयोग करने की प्रवृत्ति पाई जाती है।
पपप) असंतोष को प्रोत्साहित करने वाला तीसरा कारण बेरोजगारी है। यह सुपरिचित तथ्य है कि वर्तमान शिक्षा प्रणाली उपयुक्त रोजगार की गारंटी नहीं देती है। इसके बहुत से कारण है: उचित मार्गदर्शन, प्रशिक्षण, आजीविकोन्मुखी कार्यक्रम की कमी और रोजगार की अनुपलब्धता।

हाल ही में प्रवीण विसारिया (1985) द्वारा किए गए अध्ययन के अनुसार यह सुस्पष्ट है कि विभिन्न क्षेत्रों में प्रयासों के बावजूद जनसंख्या में वृद्धि के साथ-साथ बेरोजगारी की मात्रा भी लगातार बढ़ती जा रही है। विसारिया ने यह निष्कर्ष निकाला है कि शहरी क्षेत्रों में बरोजगार महिलाओं से बेरोजगार पुरुषों की संख्या अधिक है। इस अध्ययन ने ग्रामीण पुरुषों की बेरोजगारी दर में सीमांत वृद्धि का संकेत दिया है परंतु ग्रामीण महिलाओं की बेरोजगारी दर में तेजी से कमी का उल्लेख किया है। युवा जनसंख्या (15-24 आयु-वर्ग) के लिए यह प्रवृत्ति समान है। शहरी युवकों और युवतियों दोनों में बेरोजगारी की दर में वृद्धि हुई है और ऐसा ही ग्रामीण युवकों में भी देखा गया है।

 छात्र असंतोष के निहितार्थ

भारत में कुल बेरोजगार जनसंख्या में युवा अपेक्षाकृत काफी अधिक है। बेरोजगारी के कई कारण हैं और वे जनसंख्या वृद्धि, आर्थिक विकास और शिक्षा प्रसार से बहुत समय से जुड़े हुए हैं। युवाओं में बेरोजगारी वृद्धि के परिणाम स्वयं युवाओं के लिए और उनके परिवारों के लिए होते हैं। यह संकेत दिया गया है कि शिक्षित युवाओं की संख्या में वृद्धि और शिक्षा की गुणवत्ता की तटस्थता ने इसको और भी बिगाड़ दिया है, खास तौर पर छात्र असंतोष के लिए यह जिम्मेदार है।
सोचिए और करिए 1

भाग 18.5 को फिर से पढ़िए। हाल ही के वर्षों में विश्वविद्यालय परिसरों में असंतोष और हिंसा के पीछे कौन-कौन से मुद्दे रहे हैं, इनकी सूची बनाइए। अपने क्षेत्र में छात्र असंतोष के अपने स्वयं के अनुभव लिखिए। यदि संभव हो तो अपने अनुभवों की तुलना अपने अध्ययन केंद्र के अन्य विद्यार्थियों के साथ कीजिए।

 युवा समस्या के कुछ संभावित दृष्टिकोण

सच्चिदानंद (1988) के अनुसार युवाओं के प्रश्न पर चर्चा के लिए दो संभव और सम्पूरक दृष्टिकोणों पर विचार किया जा सकता है। यह या तो व्यक्ति विशिष्ट अथवा सामाजिक-आर्थिक परिप्रेक्ष्य जिसमें वह रहता है, पर आधारित हो सकता है।

विभिन्न प्रदेशों में युवाओं की विशेषताओं में विद्यमान अंतर के बावजूद और समान समस्याओं की पहचान की जा सकती है। पहला, जनसंख्या में ग्रामीण युवाओं का प्रतिशत काफी ऊँचा है। इस क्षेत्र को अपनी भूमिका अदा करने के अवसर दिए जाने चाहिए। इस संबंध में शिक्षा का अभाव एक बड़ी बाधा है जबकि शिक्षा स्वयं से ही सामाजिक-आर्थिक परिवर्तन लाने में सक्षम नहीं है। फिर भी, यदि परिवर्तन लाना है तो यह अपेक्षा की जाती है कि शैक्षिक अवसरों की पूर्ति की जाए। इसलिए भावी कार्यक्रम शिक्षा नीतियाँ विद्यमान क्षेत्रीय और स्थानीय परंपराओं की तुलना में लचीली और अधिक सुग्राह्य होनी चाहिए। इसके अलावा, विकास की गलत प्रक्रिया द्वारा युवा सबसे अधिक प्रभावित हुए हैं। इसलिए भावी शैक्षणिक नियोजन में अध्ययन से कार्य को जोड़ने की स्थिति तथा रोजगार की संभावना पर विशेष ध्यान रखा जाना चाहिए।

कोष्ठक 1

युवा सेवाएँ

राज्य व केंद्र सरकारों द्वारा विभिन्न युवा कार्यक्रम शुरू किए गए हैं। इन कार्यक्रमों में युवाओं को इस योग्य बनाया जाता है कि वे: क) अपनी कुशलता और व्यक्तित्व को बेहतर बनाएँ और विकास की प्रक्रिया में प्रभावी रूप से भाग ले सकें, और ख) उन्हें ऐसे अवसर उपलब्ध कराए जाएँ ताकि वे राष्ट्रीय विकास की प्रक्रिया में सहभागी बन सकें। हमने इनमें से कुछ कार्यक्रमों की जानकारी नीचे दी है।
प) राष्ट्रीय सेवा योजना (एन.एस.एस.)
इस योजना के उद्देश्य हेतु महाविद्यालयों के विद्यार्थियों को स्वैच्छिकता और चयन के आधार पर समाज सेवा एवं राष्ट्रीय विकास के कार्यक्रम में शामिल किया जाता है।
पप) नेहरू युवक केंद्र (एन.वाई.के.)
इस योजना के अंतर्गत गैर-विद्यार्थीगण एवं ग्रामीण युवाओं को यह ध्यान में रखते हुए सेवाएँ दी जाती हैं कि वे अपने व्यक्तित्व और रोजगार क्षमता को बेहतर बना सकें। ये केंद्र आयोजित करते हैं- युवा नेतृत्व व प्रशिक्षण कार्यक्रम, राष्ट्रीय एकीकरण कैम्प, बायोगैस संयंत्र प्रचालन, मधुमक्खी पालन, परासैन्य प्रशिक्षण आदि। बहत से स्थानों पर केंद्रों के माध्यम से स्वरोजगार के लिए ग्रामीण युवा प्रशिक्षण की योजनाएँ कार्यान्वित की जाती हैं।
पपप) स्काउट और गाइड
यह अंतर्राष्ट्रीय आंदोलन का एक भाग है जिसका उद्देश्य लड़के और लड़कियों का चरित्र निर्माण करना है।
बहुत-सी अन्य योजनाएँ-जैसे अंतर्राष्ट्रीय युवा प्रतिनिधि मंडल आदान-प्रदान, राष्ट्रीय एकीकरण संवर्धन, राष्ट्रीय स्वयंसेवी सेवा योजना, भारत में युवाओं से संबंधित युवा प्रदर्शन, युवाओं के लिए होस्टल, राष्ट्रीय युवा पुरस्कार योजना (इंडिया, 1990)।

दूसरा महत्त्वपूर्ण मुद्दा देश की सामान्य जनसंख्या संरचना में युवाओं की स्थिति से संबंधित है। भारत में पिछले पाँच दशकों में जीवन संभाव्यता में काफी वृद्धि हुई है। अगले बीस वर्ष में इसके और अधिक बढ़ने की आशा है। इसलिए युवाओं और पीढ़ी के बीच स्पष्ट विभाजन आवश्यक होगा। समाजशास्त्रीय शब्दों में इसका अभिप्राय है -दो व्यापक परंतु स्पष्ट समूह: वृद्ध और युवा। चूंकि भूमिका और उत्तरदायित्व व्यक्तियों से जुड़े होते हैं, इसमें एक पीढ़ी से अगली पीढ़ी में सत्ता का हस्तांतरण होता है अर्थात् बुजुर्गों से युवाओं में। इसलिए दो पीढ़ियों के बीच विचारों और कार्यों में संघर्ष और विरोध की संभावना रहती है। इस प्रकार का विरोध भावी वर्षों में सामने आ सकता है। फिर भी, संघर्ष की समस्या को हल करने के तरीके हैं। एक तो परिवार की विचारधारा में यथासंभव परिवर्तन संघर्ष का समाधान कर सकता है। लोकतांत्रिक स्वरूप के पारिवारिक वातावरण से यह संघर्ष टल सकता है। इसी प्रकार, अन्य सामाजिक संस्थाओं जैसे -नातेदारी और जाति प्रथा में भी आमूल परिवर्तन की आवश्यकता है।

बोध प्रश्न 3
1) छात्र असंतोष के मुख्य कारण क्या हैं? लगभग सात पंक्तियों में उत्तर दीजिए।
2) गलत कथन के सामने टिक ( ) निशान लगाइए।
हाल ही में हुए एक अध्ययन के अनुसार –
क) शहरी क्षेत्रों में बेरोजगार पुरुषों की संख्या बेरोजगार महिलाओं से अधिक है। ( )
ख) ग्रामीण पुरुषों के बेरोजगारी दर में बहुत कम वृद्धि हुई है जबकि ग्रामीण
महिलाओं की बेरोजगारी दर में तेजी से कमी हुई है। ( )
ग) शहरी युवाओं के बेरोजगारी दर में वृद्धि हुई है। ( )
घ) कोई भी कथन सही नहीं है। ( )
3) भारत में युवाओं विशेषतया ग्रामीण युवाओं की समस्या के संभावित दृष्टिकोणों की
संक्षेप में चर्चा कीजिए। लगभग सात पंक्तियों में उत्तर दीजिए।

 बोध प्रश्नों के उत्तर

बोध प्रश्न 3
1) छात्र असंतोष के कारणों को मोटे तौर पर दो श्रेणियों में रखा जा सकता है: परिसर के अंदर और परिसर से बाहर। परिसर के अंदर के मुद्दे परीक्षा शुल्क, आवास सुविधाओं आदि से संबंधित होते हैं। परिसर से बाहर सहानुभूति सूचक, हड़ताल (बंद) और छात्रों एवं गैर-छात्रों के बीच विवाद से जुड़े होते हैं। सामान्यतया छात्र असंतोष में निराशा की भावना, बेरोजगारी, राजनैतिक हस्तक्षेप आदि का भी काफी हाथ होता है।
2) घ
3) ग्रामीण युवाओं को अपनी भूमिका अदा करने के अवसर दिए जाने चाहिए। समाज में परिवर्तन लाने के लिए उन्हें पर्याप्त रूप से शिक्षा सुविधाएँ देनी होंगी। शिक्षा नीतियों को क्षेत्रीय परंपरा के अनुसार लचीला बनाना होगा। भावी शैक्षणिक नियोजन में अध्ययन से कार्य को जोड़ने तथा स्थिति के अनुसार रोजगार की संभावनाओं पर विशेष ध्यान देना चाहिए।