structure of nucleus density volume in hindi , नाभिक का आकार , नाभिक का आयतन , घनत्व , परमाणु द्रव्यमान मात्रक (a.m.u) :-
नाभिक का आकार : रदरफोर्ड के α प्रकीर्णन प्रयोग से यह ज्ञात हुआ की नाभिक का आकार 10-15 मीटर कोटि की त्रिज्या का होता है। रदरफोर्ड ने यह ज्ञात किया कि नाभिक का आयतन नाभिक की द्रव्यमान संख्या के समानुपाती होता है अर्थात –
4πR3/3 α A
R3 α A
R α A1/3
नाभिक की त्रिज्या
R α R0A1/3
यहाँ R0 एक समानुपाती नियतांक है , R0 = 1.2 x 10-15 मीटर या 1.2 fm (फर्मी) जिसका मान होता है |
नाभिक का आयतन :
नाभिक का आयतन V = 4πR3/3
V = 4π(R0A1/3)3/3
V = 4πR03A/3
नाभिक का घनत्व :
नाभिक का घनत्व (ρ) = नाभिक का द्रव्यमान / नाभिक का आयतन
नाभिक का घनत्व (ρ) = (amu x A)/(4/3πR03A)
चूँकि m = amu x A
मान रखकर हल करने पर –
चूँकि 1 amu = 1.67 x 10-27 किलोग्राम
नाभिक का घनत्व (ρ) = 2.18 x 1017 kg/m3
नाभिक का घनत्व उसकी द्रव्यमान संख्या पर निर्भर नहीं करता है।
नाभिक में उसके पृष्ठ से केंद्र की ओर जाने पर नाभिक का घनत्व बढ़ता है।
परमाणु द्रव्यमान मात्रक (a.m.u)
परमाणु द्रव्यमान मात्रक कार्बन-12 के एक परमाणु के द्रव्यमान के 12 वें भाग के बराबर होता है।
परमाणु द्रव्यमान मात्रक = (C-12 के एक परमाणु का द्रव्यमान ) x 1/12
चूँकि C-12 के NA परमाणुओं का द्रव्यमान = 12 ग्राम
चूँकि C-12 के एक परमाणु का द्रव्यमान = 12/NA ग्राम
1 amu = (12/NA) x 1/12 ग्राम
1 amu = 1/NA ग्राम
चूँकि NA = 6.023 x 1023
1 amu = 1/6.023 x 1023 ग्राम
1 amu = 1.67 x 10-24 ग्राम
1 amu = 1.67 x 10-27 किलोग्राम
एक amu के समतुल्य ऊर्जा :
आइन्स्टाइन के द्रव्यमान – ऊर्जा समीकरण के अनुसार ,
△E = (1amu) c2
△E = (1.67 x 10-27) x (3 x 108)2
△E = 1.67 x 9 x 10-11 J
चूँकि 1 ev = 1.6 x 10-19 J
△E = 1.67 x 9 x 10-11/1.6 x 10-19 J
△E = 9.31 x 108 ev
△E = 931 x 106 ev
चूँकि 106 = 1 मेगा
1 amu के समतुल्य ऊर्जा
△E = 931 Mev
द्रव्यमान क्षति (△m)
किसी नाभिक के संभावित द्रव्यमान तथा वास्तविक द्रव्यमान के अंतर को ही द्रव्यमान क्षति कहते है , अर्थात किसी नाभिक का वास्तविक द्रव्यमान उसके सम्भावित द्रव्यमान से हमेशा कम प्राप्त होता है तो द्रव्यमान में इस हानि या कमी को ही नाभिक का द्रव्यमान क्षति कहते है।
अर्थात
द्रव्यमान क्षति = संभावित द्रव्यमान – वास्तविक द्रव्यमान
△m = mc – ma
△m = {Zmp + (A-Z)mn} – ma
नाभिकीय बंधन ऊर्जा (△E) : किसी नाभिक को दी गयी वह न्यूनतम ऊर्जा जिसे ग्रहण करके नाभिक का प्रत्येक न्यूक्लियोन बन्धन से मुक्त हो जाए तो इस दी गयी न्यूनतम ऊर्जा को ही नाभिकीय बंधन ऊर्जा कहते है।
आइन्स्टाइन के अनुसार द्रव्यमान में क्षति नाभिकीय बंधन ऊर्जा के रूप में परिवर्तित हो जाती है।
अर्थात
नाभिकीय बंधन ऊर्जा = △mc2
△E = [{Zmp + (A-Z)mn} – ma]C2
प्रतिन्यूक्लियोन बंधन ऊर्जा (△E /A) : किसी नाभिक की नाभिकीय बंधन ऊर्जा तथा उसके द्रव्यमान संख्या के अनुपात को ही नाभिक की प्रति न्यूक्लिऑन बंधन ऊर्जा कहते है।
प्रतिन्यूक्लिऑन बंधन ऊर्जा = △E/A
△E/A = [{Zmp + (A-Z)mn} – ma]C2/A
जिस नाभिक की प्रतिन्यूक्लिऑन बंधन ऊर्जा जितनी अधिक होती है , वह नाभिक उतना ही अधिक स्थायी होता है तथा नाभिक की प्रतिन्यूक्लिऑन बंधन ऊर्जा कम होती है , वह नाभिक उतना ही अस्थायी होता है।
प्रतिन्यूक्लिऑन बंधन ऊर्जा वक्र : किसी नाभिक की प्रतिन्यूक्लिऑन बंधन ऊर्जा तथा द्रव्यमान संख्या के मध्य खिंचा गया वक्र प्रतिन्यूक्लिऑन बंधन ऊर्जा वक्र कहलाता है।
- वक्र से स्पष्ट है कि जैसे जैसे द्रव्यमान संख्या बढती है वैसे वैसे प्रतिन्यूक्लिऑन बंधन ऊर्जा पहले तो तेजी से बढती है उसके पश्चात् अधिकतम होकर धीरे धीरे कम हो जाती है।
- वक्र से स्पष्ट है कि प्रत्येक नाभिक की प्रतिन्यूक्लिऑन बंधन ऊर्जा धनात्मक होती है जिससे यह स्पष्ट होता है कि नाभिक से प्रतिन्यूक्लिऑनो को बाहर निकालने के लिए कुछ न कुछ ऊर्जा देनी होगी।
- बंधन ऊर्जा वक्र से स्पष्ट है कि Ni-62 की प्रतिन्यूक्लिऑन बंधन ऊर्जा सर्वाधिक 8.8 Mev होती है इसलिए Ni-62 सर्वाधिक स्थायी नाभिक होता है।
Fe व Co की प्रतिन्यूक्लिऑन बंधन ऊर्जा Ni-62 से थोड़ी सी कम होती है इसलिए पृथ्वी की क्रोड़ में प्रचुर मात्रा में Ni , Fe व CO पाए जाते है।
- मध्यवर्ती नाभिक जिनकी द्रव्यमान संख्या 30<A<170 होती है , उनकी प्रतिन्यूक्लिऑन बंधन ऊर्जा अधिक होने के कारण मध्यवर्ती नाभिक अधिक स्थायी नाभिक होते है।
- वक्र से स्पष्ट है कि जिन नाभिको की द्रव्यमान संख्या 4 , 12 व 16 है वे नाभिक अपने समीपवर्ती नाभिको की तुलना में अधिक स्थायी नाभिक होते है।
- वक्र से स्पष्ट है कि भारी नाभिक जिनकी द्रव्यमान संख्या 170 से अधिक होती है वे नाभिक स्थायी नाभिक में परिवर्तित होने के लिए या मध्यवर्ती नाभिको में परिवर्तित होने के लिए लगातार स्वत: α β γ विकिरणों का उत्सर्जन करते रहते है , नाभिको के इस गुण को रेडियो एक्टिवता कहते है।
- वक्र से स्पष्ट है कि वे भारी नाभिक जिनकी द्रव्यमान संख्या 170 से अधिक होती है , मध्यवर्ती नाभिको में परिवर्तित होने के लिए या स्थायित्व को प्राप्त करने के लिए दो या दो से अधिक मध्यवर्ती नाभिको में विभाजित हो जाते है जिस दौरान प्रचुर मात्रा में ऊर्जा प्राप्त होती है , इस प्रक्रिया को नाभिकीय विखण्डन कहते है।
- वक्र से स्पष्ट है कि वे हल्के नाभिक जिनके द्रव्यमान संख्या 30 से कम होती है , स्थायित्व प्राप्त करने के लिए दो या दो से अधिक हल्के नाभिक मिलकर स्थायी नाभिक का निर्माण करते है जिसके दौरान प्रचुर मात्रा में ऊर्जा प्राप्त होती है , इस प्रक्रिया को नाभिकीय संलयन कहते है।