1. अवसादी परतें (stratification)
2. Lamination (स्तरिका)
3. graded bedding (क्रमित संस्तर)
4. current bedding (धारा संस्तर)
5. ripple marks (तरंग चिन्ह)
इनके अतिरिक्त कुछ और संरचनाएं है जैसे की :- वर्षा बिन्दु , पंक विदर (mud cracks) , खतरनाक जानवरों के पद चिन्ह इत्यादि। ये संरचनाएं पूर्व वातावरण के संकेत देती है।
1. स्तरीय या परतदार होना (stratification) : अवसादी शैलो की सबसे बड़ी विशेषता है स्तरीय या परतदार होना। विभिन्न स्तरों के बीच के तल संस्तरण तल कहते है। दो संस्तरण तलों के बीच आबद्ध परत यदि 1 सेंटीमीटर से अधिक मोती है तो उसे स्तर (stratum) या संस्तर (bed) कहते है।
अलग अलग परतों को समझने के लिए निम्न तथ्य है –
- खनिज संघटन में अंतर द्वारा
- उनके texture में बदलाव या आकार द्वारा
- रंग में अंतर द्वारा
- परत मोटाई में अंतर द्वारा
2. Lamination (स्तरिका) : वह पतली परत जिसकी मोटाई 1 सेंटीमीटर से भी कम हो स्तरिका कहलाती है। स्तरिका सामान्यत: बहुत महीन शैलो में पायी जाती है जैसे – शैल (shale)
स्तरिका संरचना हलचल से मुक्त गहरे जल में निक्षेपित सूक्ष्म कणीय शैलो में पायी जाती है।
3. क्रमिक संस्तरण (graded bedding) : यदि Bed के निचले भाग में मोटे कण हो तथा ऊपरी ओर कणों का आकार क्रमशः घटता जाए तो इस प्रकार के आवर्ती संस्तरो को क्रमिक संस्तर कहते है। क्रमिक संस्तर पानी में तीव्र अवसादन का परिणाम है। क्रमिक स्तर के ऊपरी स्तर में shale मुख्यत: होती है और निचले स्तर में coarse grit पायी जाती है।
4. current bedding (धारा संस्तरण) : दो समान्तर सामान्यतया क्षैतिज , संस्तरो के मध्य तिरछी रेखाओ की उपस्थिति पर निर्मित संरचना को तिर्यक संस्तरण कहते है। इन्हें धारा संस्तरण भी कहते है। तिरछी रेखाओ वाले भाग को अग्र समुच्चय (fore set) , निचले भाग को नितल समुच्चय (bottom set) तथा ऊपर वाले भाग को शीर्ष समुच्चय (top set) कहते है।