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वर्गाकार समतलीय संकुल क्या है , square planar complexes in hindi coordination number 4

पढेंगे वर्गाकार समतलीय संकुल क्या है , square planar complexes in hindi coordination number 4 ?

वर्गाकार समतलीय संकुल

जिन धातु आयनों का इलेक्ट्रानिक विन्यास d8 तथा d8 होता है वे आयन इस प्रकार की संरचना प्रदर्शित करते हैं। Ni(II), Pd (II), Pt(II) Cu(II), Ag(II) तथा Au(III) के अधिकांश संकुलों में लिगण्डों की वर्गाकार समतलीय व्यवस्था पाई जाती है। इस बारे में विश्वसनीय जानकारी सर्वप्रथम वर्नर ने दी थी। उन्होंने संकुलों व ज्यामिति निर्धारित करने के लिए कठोर परिश्रम से एक उत्तम विधि सोच निकाली । उन्होंने प्रयोगशाला में किसी एक प्रकार के संकुल के अधिकतम संख्या में समावयव बनाये। इसके पश्चात् चतुष्फलकीय तथा वर्गाकार ज्यामितियों के लिए उस संकुल के लिए सैद्धान्तिक रूप से बनाये जा सकने वाले समावयवों की संख्या ज्ञात की। जिस ज्यामिति के लिए सैद्धान्तिक रूप से बन सकने वाले समावयवों की संख्या वास्तव में बनाये गये समावयवों की संख्या के समान आती है, उस संकुल की वही ज्यामिति स्वीकार करली गई। इस बिन्दु को आगामी विवेचन में स्पष्ट किया गया है।

Ma4 तथा Ma3b प्रकार के संकुलों के लिए चतुष्फलकीय तथा वर्गाकार समतलीय संरचनाओं के लिए सिद्धान्ततः एक-एक यौगिक ही सम्भव है। प्रयोगशाला में इस प्रकार का एक-एक यौगिक ही बनाया जा सकता है। अतः Ma4 तथा Ma3 b प्रकार के यौगिकों के अध्ययन से उनकी ज्यामितियों का पता नही चल सकता। लेकिन [Ma2 b2] की तरह के संकुलों में लिगण्डों की व्यवस्था के बारे में निश्चित मिलती है। 1893 में वर्नर ने (PtCI 2 (NH3)2] सूत्र के दो समावयवों को प्रयोगशाला में पृथक किया। यदि लिगण्डों की व्यवस्था चतुष्फलकीय मान ली जाये तो केवल एक यौगिक के बनने के बारे में ही पूर्वानुमान किया जा सकता है। जबकि वर्गाकार समतलीय विन्यास में लिगण्डों को दो प्रकार से व्यवस्थित किया जा सकता है पहली व्यवस्था सिस- यौगिक देती है जिसमें समान समूह पास-पास होते. हैं, जबकि दूसरी ट्रॉन्स में वे एक दूसरे के विपरीत होते हैं, जैसा कि चित्र 3.14 में दर्शाया गया है-

[PtCI2(NH3)2] संकुल के दो ही समावयवी बनाये जा सकते हैं। इससे स्पष्ट हो जाता है कि प्लॅटीनम के संकुलों की वर्गाकार समतलीय व्यवस्था होती है। ये समावयवी सिस व ट्रान्स हैं जिन्हें चित्र 3.15 में दिखाया गया है।

(ii) संकुलों की इस ज्यामिति के पक्ष में और अधिक प्रमाण [Mabcd] की तरह के संकुलों से मिलते हैं। चतुष्फलकीय व्यवस्था में दो समावयवों की अपेक्षा की जाती है जिनमें से एक दूसरे का दर्पण सर्व प्रतिबिम्ब (mirror image) होगा

वर्गाकार समतलीय व्यवस्था के लिए सिद्धान्तः अनुमानित समावयवों की संख्या तीन है, जो तीन लिगण्डों को एक-एक करके चौथे लिगण्ड की ट्रॉन्स स्थिति में रखने से प्राप्त होते हैं (चित्र 3.17) [Pt(NH3)BrCl(Py)] के वास्तव में तीन समावयवी बनाये गये हैं (चित्र 3.16 ) । इससे पुनः इस बात की पुष्टि होती हे कि 4- उपसहसंयोजकता वाले प्लेटीनम (II) संकुलों की ज्यामिति वर्गाकार होनी चाहिए

(iii) द्विदन्तुक लिगन्ड युक्त संकुल- [M (AA)b2], [M(AA)bc], तथा [M(AA)2] प्रकार संकुलों के एक-एक यौगिक ही बन सकते हैं। अतः इनके समावयवी नहीं पाये जायेंगे। यहाँ (AA) समान दाता परमाणुओं (A) वाला द्विदन्तुक लिगण्ड है। द्विदन्तुक लिगन्ड सदैव सिस स्थान ही ग्रहण करते है जैसा कि चित्र 3.19 में बताया गया है।

[M(AB)2] की तरह के संकुल, जहाँ (AB) असमान दाता परमाणुओं (A तथा B) वाला द्विदन्तुक लिगण्ड है, सिस तथा ट्रॉन्स रूपों में पाये जाते हैं (चित्र 3:20)।

उदाहरण के लिए [Pt(en) (NH3)2]2+, [Pt(en) (NH3)Cl] + तथा [ Pt(en) 2 ] + के समावयवी नहीं पाये जाते जबकि Pt(II) का ग्लाइसिन संकुल दो समावयवों के रूप में पाया जाता है जो दाता परमाणुओं की सिस तथा ट्रान्स व्यवस्था के कारण उत्पन्न होते हैं जैसा कि चित्र 3.21 में बताया गया हैं ।

(iv) प्रकाशिक समावयवी – बहुत ही कम ऐसे उदाहरण हैं जिनमें वर्गाकार समतलीय संकुल प्रकाशिक समावयवी बनाते हों । प्रकाशिक घूर्णकता (optical activity) असममित कीलेट वलयों के कारण उत्पन्न होते हैं । समतलीय संरचना का एक बहुत ही रोचक प्रकाशिक घूर्णक संकुल मिल्ज तथा क्विबेल द्वारा निम्न यौगिकों की अभिक्रिया से बनाया गया था, प्राप्त उत्पाद चित्र 3.22 में आगे दिया गया है-

आइसोब्यूटिलीनडाइऐमीनस्टिलबीनडाइऐमीनप्लेटीनम (II) आयन दो इकाई से मिलकर बना है। यदि केन्द्रीय धातु आयन के चारों ओर दाता N परमाणु चतुष्फलकीय रूप से व्यवस्थित हो तो इकाईयों के तल परस्पर लम्बवत् होंगे। यदि ये N परमाणु वर्गाकार के रूप से व्यवस्थित हैं तो ये दोनों वलय समतलीय होंगी जैसाकि चित्र 3.23 में दिखाया गया है। चूँकि यह संकुल प्रकाशीय घूर्णक है, सैद्धान्तिक विवेचना द्वारा संकुल की संरचना निर्धारित की जा सकती है। चतुष्फलकीय व्यवस्था में II इकाई को यदि इस पृष्ठ के तल में स्थित माना जाये तो I इकाई पृष्ठ के लम्बवत् होगी । ऐसी स्थिति में I वलय से गुजरने वाला तल II वलय के मध्य में से निकलेगा (चित्र 3.23 (a) द्वारा प्रदर्शित) तथा सम्पूर्ण संकुल आयन को दो सम भागों में विभाजित करेगा । अर्थात्, संकुल आयन में सममिति का तल (plane of symmetry) पाया जायेगा जिसके फलस्वरूप यह प्रकाशिक समावयवता प्रदर्शित नहीं करेगा। दूसरी ओर वर्गाकार व्यवस्था में यदि दोनों वलयों को पृष्ठ के तल में माना जाये तो इस तल के प्रति । इकाई ही सममित होगी, जबकि लम्बवत् तल के प्रति II इकाई सममित होगी। अर्थात् वर्गाकार ज्यामिति होने पर आयन में सममिति का तल नहीं पाये जाने के कारण प्रकाशिक समावयवता अपेक्षित है। मिल्स तथा क्विबेल ने संकुल के दोनों प्रकाशिक समावयवी बनाकर यह निर्णयात्मक प्रमाण प्रस्तुत किया कि प्लेटीनम(II) के उपसहसंयोजित संकुलों में वर्गाकार समतलीय ज्यामिति पाई जाती है।

(b) चतुष्फलकीय संकुल

al° विन्यास वाले धातु आयन जिनमें d कक्षक पूर्णरूप से भरे होते हैं, चतुष्फलकीय संकुल बनाते हैं जो sp3 संकरण के कारण है। Zn(II), Ca(II), Hg(II), Cu(I), Be(II) इत्यादि ऐसे उदाहरण हैं।

यह पहले ही बताया जा चुका है कि चतुष्फलकीय व्यवस्था में संकुलों के लिए ज्यामितीय समावयवता का अस्तित्व नहीं होता – [Mabcd] की तरह की संरचना के लिए प्रकाशिक समावयवता अवश्य अपेक्षित है। दर्पण प्रतिबिम्ब समावयवों को चित्र 3.17 में दिखाया गया है। यहाँ पर यह बताना आवश्यक है कि चतुष्फलकीय संकुलों में जहाँ कहीं भी त्रिविम समावयवता पाई जाती है, यह आवश्यक रूप से प्रकाशिक समावयवता ही होनी चाहिए। [Mabcd] के तरह के ये समावयवी इतने अधिक अस्थिर हैं कि उन्हें पृथक भी नहीं किया जा सकता। केवल असममित द्विदन्तुक लिगन्ड वाले चतुष्फलकीय संकुलों को ही वियोजित ( resolve ) किया जा सकता है । उदाहरण के लिए, बिस(बेन्जायलपाइरुवेटो) बेरिलियम (II) संकुल को दो ध्रुवण घूर्णक (optically active) रूपों में किया जा सकता है जो एक-दूसरे पर अध्यारोपणीय (superimposable) नहीं हैं। ये दोनों रूप चित्र 3.24 में दिखाये गये हैं ।

समन्वय संख्या 5

पहले बहुत कम संख्या में 5 समन्वय संख्या वाले उपसहसंयोजक यौगिक ज्ञात थे लेकिन अब इस प्रकार के बहुत से यौगिक बनाये जा चुके हैं जिनकी त्रिभुजीय द्विपिरेमिड तथा वर्गाकार पिरेडिम ज्यामितियाँ पाई जाती है। दोनों ही ज्यामितियों के लिए केन्द्रीय परमाणु dsp 3 संकरित होता है । अन्तर यह होता है कि त्रिभुजीय द्विपिरेमिड संरचना में d. 2 कक्षक तथा वर्गाकार पिरेमिड संरचना में कक्षक संकरण में भाग लेता है।

यद्यपि यह काफी पहले से ज्ञात है कि 5 – उपसहसंयोजित यौगिकों के लिए बहुत से प्रकाशिक तथा ज्यामितीय समावयवी संभव हैं, इस प्रकार के बहुत कम यौगिक बनाए जा सके हैं जिनमें से अधिकांश पिछले कुछ वर्षो में ही बनाये गये हैं ।

ज्यामितीय समावयवता- 5 – उपसहसंयोजित संकुलों में ज्यामितीय समावयवता मुख्यतः वर्गाकार . पिरेमिडीय संरचना तक ही सीमित रहती है। इस प्रकार की संरचना के लिए दो प्रकार की ज्यामितीय समावयवता देखने को मिलती है-

(i) वर्गाकार पिरेमिडी ज्यामिति में चारों आधारीय (basal) स्थितियाँ समतुल्य होती हैं जो शीर्षस्थ स्थिति से भिन्न पाई जाती हैं। अतः शीर्षस्थ स्थिति का दो भिन्न-भिन्न लिगण्डों द्वारा अधिग्रहरण किये जाने पर दो समावयव प्राप्त होंगे। उदाहरणार्थ [(Ph3P)2{(CF3)2C2S2}Ru(CO)] दो समावयवी, सन्तरी तथा बैंगनी, रूपों में पाया जाता है (चित्र 3.25) । सन्तरी समावयवी में CO लिगन्ड शीर्षस्थ स्थान पर होता है जबकि दूसरे रूप में यह आधारीय स्थान पर तथा Ph3P समूह शीर्षस्थ स्थान पर पाया जाता है ।

(ii) यदि दो समावयवों में शीर्षस्थ स्थान पर समान लिगण्ड उपस्थित है तो संकुलों में भिन्नता आधारीय लिगन्डों की सिस तथा ट्रॉन्स स्थितियों के कारण उत्पन्न होती है। उदाहरण के लिए,डाइब्रोमिडोडाइकार्बोनिलसाइक्लोपेन्टाडाइनिलरीनियम (III) के दोनों समावयवों में साइक्लोपेन्टाडाइनिल वलय वर्गाकार पिरॅमिड के शीर्षस्थ स्थान पर होती है जबकि एक से लिगण्ड आधार में सिस तथा ट्रॉन्स रूप से व्यवस्थित होते हैं जैसा कि चित्र 3.26 से स्पष्ट है ।

त्रिभुजीय द्विपिरेमिडी (TBP)-वर्गाकार पिरेमिडी (SP) समावयवता- कुछ ऐसे संकुल बनाये जा चुके हैं जो दोनों ही ज्यामितियों में पाये जाते हैं। उदाहरण के लिए, [Co(dpe)2Cll (dpe = डाइफेनिलफॉस्फीनोएथेन) दो रूपों में क्रिस्टलित होता है जिनमें से लाल ठोस रूप में वर्गाकार पिरेमिडी आयन होते हैं जबकि हरा रूप त्रिभुजीय द्विपिरेमिडी आयनों द्वारा निर्मित होता है (चित्र 3.27) |

प्रकाशिक समावयवता- 5- उपसहसंयोजित यौगिकों में प्रकाशीय सक्रियता अति दुर्लभ होती है। इस प्रकार का एक उदाहरण डाइकार्बोनिलसाइक्लोपेन्टाडाइनिलमॉलिब्डेनम (II) आयन का शिफ क्षार संकुल (Schiff’s base complex) है जिसमें कोई सममिति का तल नहीं पाया जाता है। फलतः यह पदार्थ प्रकाशीय घूर्णक है (चित्र 3.28 ) ।

(v) समन्वय संख्या 6

छः समन्वय संख्या वाले संकुल सर्वाधिक सामान्य है। इनका ही सबसे अधिक विस्तृत रूप से अध्ययन किया गया है। अतः इस समन्वय संख्या के लिए त्रिविम समावयवता का ज्ञान भी सबसे अधिक उपलब्ध है। चूँकि [Ma6] तथा [Ma5b] की तरह के संकुलों में समावयवता नहीं पाई जाती, केवल ऐसी ज्यामितीयों पर विचार किया जाना चाहिए जिनमें सभी छः स्थान समतुल्य हों। एक केन्द्रीय बिन्दु के चारों और छः समतुल्य स्थान तीन तरीकों से व्यवस्थित किये जा सकते हैं। ये संभावनाएँ समतल षटकोणीय (बेन्जीन वलय जैसा), त्रिकोणीय प्रिज्मी तथा नियमित अष्टफलकीय ज्यामितियाँ है जो चित्र 3.29 में दिखाई गई हैं।

6-उपसहसंयोजित यौगिकों की ज्यामिती निकालने के लिए हम किसी एक प्रकार के संकुल के लिए प्रयोगशाला में बनाये जा सकने वाले अधिकतम समावयवों की संख्या ज्ञात करते हैं तथा उपर्युक्त तीनों में से प्रत्येक प्रकार की ज्यामिति के लिए समावयवों की सिद्धान्ततः अनुमानित संख्या से तुलना करते हैं। इन विन्यासों के मध्य अन्तर स्पष्ट करने के लिए [Ma4b2] की तरह के संकुलों को काम में लिया जा सकता है। समतल षटकोणीय (a) तथा त्रिकोणीय प्रिज्म (n) व्यवस्थाओं में, चूँकि 2,3 तथा 4 बिन्दु 1 से समान दूरी पर नहीं है, ‘b’ समूह को (1,2), (1,3) तथा (1,4) स्थानों पर रखकर दोनों संरचनाओं से तीन-तीन समावयव प्राप्त किये जा सकते हैं- प्रत्येक अवस्था में शेष चारों स्थानों को a समूह ग्रहण किये हुए होंगे। प्रत्येक दूसरा विन्यास इन तीनों विन्यासों में से किसी एक के समतुल्य अवश्य होगा। एक अष्टफलक (c) को एक वर्ग से बनी हुई आकृति माना जा सकता है जो वर्ग के केन्द्र के ठीक ऊपर तथा ठीक नीचे एक–एक बिन्दु को इस प्रकार रखने से प्राप्त होती है कि केन्द्र से सभी छः कोनों की दूरी बराबर रहे। स्पष्टतः हमारे पास 12 ऐसी स्थितियों हैं नामतः (1, 2), (1, 3), (1, 4), (1, 5), (2,60), (3, 6), (4, 6), (5, 6), (2, 3), (3,4), (4, 5) तथा (2, 5), जो सिस विन्यास देंगी। क्योंकि सभी संरचनाएँ तुल्य हैं, इन्हें किसी एक संरचना द्वारा प्रदर्शित किया जा सकता है। इसी प्रकार ट्रॉन्स व्यवस्थाएँ (I. 6), (2, 4) तथा (3, 5) भी आपस में तुल्य हैं तथा इन्हें भी एक संरचना द्वारा ही प्रदर्शित किया जा सकता है जो निश्चत ही सिस संरचना से भिन्न है । इन दो संरचनाओं को चित्र 3.30 में दिखाया गया प्रयोगशाला में [Ma4b2] की तरह के संकुलों के केवल दो ही समावयवी बनाये जा सकते हैं। चूँकि अष्टफलकीय ज्यामिति के लिए सिद्धान्ततः अनुमानित समावयवों की संख्या दो है जो प्रयोगशाला में वास्तव में बनाये जा सकने वाले समावयवों की संख्या के समान है। 6 समन्वय संख्या वाले संकुलों लिए यह संरचना स्वीकार्य है। इस प्रकार के संकुलों के लिए पूर्वानुमानित समावयवों की संख्या तथा वास्तव में बनाये जा सकने वाले समावयवों की संख्या की तुलना करने पर इसी बात की पुष्टि होती है।कि 6- उपसहसंयोजित संकुलों में केन्द्रीय धातु आयन के चारों ओर लिगण्ड अष्टफलकीय रूप से व्यवस्थित होते हैं । कुछ ऐसे संकुल भी ज्ञात है जिनमें समन्वय संख्या तो छः होती है, लेकिन ज्यामिति अष्टफलकीय न होकर त्रिभुजीय प्रिज्म पाई जाती है।