(spurge in hindi) अरण्ड / एरण्डी :
वानस्पतिक नाम : riccinus communis
कुल : Euphor biaceace
उपयोगी भाग : बीज तथा भ्रूण पोष
उत्पत्ति तथा उत्पादक देश :
- प्राचीन स्रोतों के अनुसार अरण्ड की उत्पत्ति भारत तथा उत्तरी अफ्रीका में हुई है।
- इस पादप को उष्णकटिबंधीय जलवायु वाले क्षत्रो में उगाया जाता है। इसे मुख्यतः ब्राजील , भारत , रूस , चीन , अर्जेंटीना , थाईलैंड , सूडान आदि में उगाया जाता है।
- भारत में इसकी कृषि प्रमुखत: आंध्रप्रदेश , गुजरात , कर्नाटक , मध्यप्रदेश , उड़ीसा और राजस्थान में उगाया जता है।
- इसे राजस्थान में प्रमुखत: सिरोही जिले में बोया जाता है।
पादप की बाह्य आकारिकी
- अरण्ड का तना मुख्यतः छोटा , खोखला तथा अधिक घना पाया जाता है।
- तने की औसतन लम्बाई 02 से 03 मीटर होती है।
- उपरोक्त पादप की पत्तियां सरल या संयुक्त प्रकार की पाई जाती है। सामान्यतया संयुक्त पत्तियाँ हस्ताकार तथा अपसारी , बहुशिरिय , जालिकावृंत शिराविन्यास युक्त होती है।
- उपरोक्त पादप से पुष्पक्रम संयुक्त प्रारूपिक असिमाक्षी प्रकार का पाया जाता है।
- सामान्यत: अरंड का पादप एक लिंगाश्रेयी होता है परन्तु एक ही पादप पर नर तथा मादा पुष्प की उपस्थिति के कारण यह स्थिति उभयलिंगी स्थिति कहलाती है।
- पादप के उपरी भाग पर नर पुष्प पाए जाते है वही निचले भाग पर मादा पुष्प पाए जाते है।
- अरण्ड के पादप में सामान्यतया पांच पुंकेसर एक स्थान पर समूह में पाए जाते है परन्तु यह शाखित रूप में व्यवस्थित रहते है।
- पुष्प के जायांग में त्रिअंडपी तथा त्रिकोष्ठीय स्थिति पायी जाती है [तीन स्त्रीकेसर व प्रत्येक अण्डाशय में तीन कोष्ठक]
- अरंड में प्रस्फुटन प्रकार का फल पाया जाता है जिसे Regma के नाम से जाना जाता है।
- प्रत्येक फल सामान्यत: तीन भागो में प्रस्फुटित होता है। प्रत्येक भाग से चिकने , धब्ब्देदार बिज प्राप्त किये जाते है अर्थात सामान्यत: एक फल से तीन बीज प्राप्त किये जाते है।
- प्रत्येक बीज में दो बीजपत्र पाए जाते है तथा उपस्थित भ्रूणपोष मांसल प्रकार का होता है अर्थात तेल का निष्कर्षण भ्रूणपोष भाग से किया जता है।
नोट : सामान्यतया द्विबिजपत्री पादपो के बीज अभ्रूणपोषी होते है परन्तु अरण्ड में अपवाद स्वरूप भ्रूणपोषी बीज पाए जाते है।
अरण्ड / एरण्डी तेल का संघटन
- अरण्ड के तेल का निष्कर्षण सामान्यत: मासल भ्रूणपोष से किया जाता है जो रंगहीन या हल्के पीले रंग का होता है।
- तेल की प्रकृति सघन होती है व अरण्ड का तेल पेट्रोलियम तथा इथर में अघुलनशील होता है।
- अरण्ड के तेल में पाए जाने वाली प्रमुख वसीय अम्ल निम्न प्रकार से है –
Resonelyic acid : 91-95%
Lenolic acid : 4.5%
अल्प मात्रा में palmatic acid व citrica एसिड भी पाई जाती है।
नोट : अरण्ड का पादप मुख्यतः वर्षा ऋतु में उगाया जाता है तथा यह पादप फल उत्पादित करने हेतु नौ से बारह माह में तैयार हो जाता है।
अरण्ड का आर्थिक महत्व
- अरंड के तेल को सामान्यतया कब्ज दूर करने हेतु उपयोग किया जाता है , इसके लिए तेल में उपस्थित resonelyic एसिड मंद विचेक प्रकार से कार्य करता है।
- अरण्ड के तेल को स्नेहक के रूप में उपयोग किया जाता है तथा इस कार्य के अंतर्गत इसे प्रमुखत: उद्योगिक मशीनों तथा हवाई जहाजो में उपयोग किया जाता है।
- अरण्ड का तेल पारदर्शी साबुन तथा टूथपेस्ट निर्मित करने हेतु उपयोग किया जता है।
- अरंड का तेल मुख्यतः अशुष्कन प्रकार का तेल है परन्तु इसे कृत्रिम रूप से पेन्ट तथा वार्निश के निर्माण हेतु उपयुक्त बना लिया जता है।
- अरण्ड का तेल किटनाशियो के निर्माण के लिए भी उपयोग किया जाता है।
- अरंड के तेल के उत्पादन के पश्चात् शेष बची खली (खल) को खाद के रूप में या प्राकृतिक कीटनाशी के रूप में उपयोग किया जता है।
- अरण्ड के तेल का हाइड्रोजनीकरण करके कुछ उत्पाद जैसे क्रिश व पोलिश तैयार किये जाते है।
- उपरोक्त सभी उपयोगो के अलावा अरण्ड के तेल को कृत्रिम चमड़े के निर्माण में , तेलिय वस्त्रो के निर्माण में तथा प्लास्टिक उत्पादन में भी उपयोग किया जाता है।