नारियल क्या है , नारियल का वानस्पतिक नाम , कुल , उत्पत्ति तथा उत्पादन देश , नारियल के तेल का संघटन , उपयोग

(coconut in hindi) नारियल :

इसे “श्रीफल” के नाम से जानते है।

वर्गीकरण :-

वानस्पतिक नाम : cocus nucifera

कुल : arecaceae या polmaceace

उत्पत्ति तथा उत्पादन देश

वैज्ञानिको के अनुसार नारियल की उत्पत्ति के सन्दर्भ में तीन मत दिए जो निम्न प्रकार से है –

(i) प्रथम मत के अनुसार नारियल की उत्पत्ति उत्तरी एंडीज में हुई है।

(ii) दुसरे मत के अनुसार नारियल की उत्पत्ति दक्षिणी या केन्द्रीय अमेरिका में हुई है।

(iii) तीसरे मत के अनुसार नारियल की उत्पत्ति दक्षिण-पूर्वी एशिया में हुई है।

(iv) नारियल को सामान्यतया आद्रता युक्त उष्णकटिबंधीय क्षेत्रो में उगाया जाता अर्थात इसे अत्यधिक संख्या में तटीय इलाको में बोया जाता है।

(v) सम्पूर्ण विश्व में यह प्रमुखत: इंडोनेशिया , फिलिपिन्स , भारत , केन्या , बांग्लादेश , तंज़ानिया , श्रीलंका तथा एक विशेष द्विप pap-u-gunea में बोया जाता है।

(vi) भारत में प्रमुखत: नारियल , केरल में उत्पादित किया जाता है तथा भारत में उत्पादित सम्पूर्ण नारियल का 46% केरल में उत्पन्न किया जाता है , इसके अतिरिक्त तमिलनाडु , कर्नाटक , आंध्रप्रदेश , गोवा , दमन एंड द्वीप , महाराष्ट्र , उड़ीसा , गुजरात , पश्चिम बंगाल है।

(vii) सम्पूर्ण विश्व में नारियल उत्पादन के सन्दर्भ में इंडोनेशिया प्रथम स्थान पर , फिलिपिन्स दुसरे स्थान पर तथा भारत तीसरे स्थान पर है।

(viii) राजस्थान में नारियल की व्यावसायिक खेती नहीं होती है।

(ix) नारियल के वानस्पतिक नाम से वंश का नाम पुर्तगाली ‘coca’ से लिया गया है जिसका अर्थ बंदर होता है।

नारियल के फल का बाह्य स्वरूप बंदर के सिर के समान दिखाई देता है , वही वानस्पतिक नाम के जाति शब्द का अर्थ दृढ फल धारण करने वाला है [नुसिफेरा जाति]

(x) नारियल को वंडर प्लांट (wonder plant) के नाम से जाना जाता है क्योंकि कपास के अतिरिक्त नारियल ही ऐसा दूसरा पादप है जिससे तेल , खाद्य पदार्थ तथा रेशे तीनो प्राप्त किया जाता है।

पादप का बाह्य स्वरूप

(i) नारीयल का तना ‘ताड़’ के नाम से जाना जाता है जिसकी लम्बाई लगभग 10 से 12 मीटर होती है परन्तु कुछ पादपो में यह लम्बाई 24 मीटर तक हो सकती है।

(ii) नारियल के ‘ताड़’ के शीर्ष भाग पर 30 से 40 समपिच्छाकार संयुक्त पत्ती पायी जाती है।

(iii) एक पत्ती की लम्बाई लगभग दो से छ: मीटर होती है तथा नारियल का वृक्ष उभयलिंगाश्रेयी होता है परन्तु पुष्प एक लिंगी पाए जाते है।

(iv) नारियल पर मुख्यतः असीमाक्ष प्रकार का पुष्प क्रम पाया जाता है।  [संयुक्त spadix]

(v) एक पुष्पक्रम पर लगभग तीस से चालीस पाशर्व शाखाएं पाई जाती है तथा एक पाशर्व शाखा पर 10 से 15 फल पाए जाते है अत: औसतन रूप से एक नारियल का पादप 300 से 600 पाशविर्य फल उत्पन्न करता है।

(vi) नारियल के फल को विकसित होने में लगभग 01 वर्ष लगता है तथा नारियल का फल अष्टिफल या drupe प्रकार का फल होता है।

(vii) नारियल के फल पर पाए जाने वाली फलभित्ति तीन भागो में विभाजित रहती है।

(A) बाह्य फल भित्ति EXOcarp कहलाती है जो चिकनी होती है।

(B) मध्य फल भित्ति mesocarp कहलाती है।

(C) अंत: फल भित्ति endocarp कहलाती है।

(viii) नारियल का फल सामान्यतया 15 से 30 cm लम्बा होता है तथा फल की मध्य फलभित्ति से एक व्यवसायिक रेशा प्राप्त किया जाता है जिसे coir के नाम से जानते है।

इस रेशे को मुख्यतः गद्दे तथा matresses के निर्माण में उपयोग किया जाता है वही अन्तफल भित्ति से तेल प्राप्त किया जाता है।

नारियल के तेल का संघटन

(i) नारियल का शुद्ध तेल रंगहीन या हल्के पीले रंग का होता है जो 23 से 24 डिग्री सेल्सियस तापमान पर तरल अवस्था में पाया जाता है परन्तु इससे कम तापमान पर अर्द्ध ठोस या ठोस अवस्था में पाया जाता है।
(ii) नारियल के तेल में प्रमुखत: पाए जाने वाले वसीय अम्ल निम्न है –
लोरिक अम्ल : 44-51%
माइरिसटिक अम्ल : 13-18.5%
पामिटिक अम्ल : 7.5-10.5%
(iii) नारियल का तेल प्रमुखत: अशुष्कन प्रकार का होता है जिसे वसीय तेल के नाम से भी जानते है।
नोट 1 : नारियल का एक परिपक्व भ्रूणपोष 60 से 70% वसीय तेल युक्त होता है।  यह भ्रूण पोष की अपरिपक्व अवस्था में तरल के रूप में पाया जाता है जिसे तरल भ्रूणपोष के नाम से जाना जाता है।  यह भ्रूणपोष अत्यंत पोषक होता है अर्थात इसे सामान्यत: पेय पदार्थ के रूप में उपयोग किया जाता है।
नोट 2 : नारियल के फल में पाया जाने वाला सफ़ेद रंग का ठोस कोशिकीय भ्रूणपोष गिरी या खोपरा के नाम से जाना जाता है जिसे खाद्य के रूप में उपयोग किया जाता है।
नोट 3 : नारीयल का फल वर्षभर प्राप्त होता है।
नोट 4 : परिपक्व भ्रूणपोष से नारियल के तेल का निष्कर्षण विभिन्न विधियों के द्वारा किया जाता है।

भारत में उपयोग की जाने वाली नारियल की उन्नत किश्मे :-

भारत में सामान्यत: अंडमान साधारण , आनन्दगंगा , चन्द्रलक्ष्य , VHC-I आदि उन्नत किश्मे उपयोग की जाती है।

नारियल का आर्थिक महत्व

(i) नारियल का तेल मुख्यतः खाद्य तेल के रूप में उपयोग किया जाता है।
(ii) नारियल की गिरी तथा तेल से कई खाद्य पदार्थ बनाये जाते है जैसे विभिन्न मिठाइयाँ , बिस्कुट आदि।  इसके अतिरिक्त कुछ विशेष पदार्थ जैसे – कृत्रिम मक्खन , मिश्रपट्टी और margerine आदि का निर्माण किया जाता है।
(iii) नारियल के तेल के द्वारा हाइड्रोजनीकरण की विधि से वनस्पति घी तैयार किया जाता है।
(iv) नारियल का तेल साबुन , क्रीम , शेम्पू , शेविंग क्रीम आदि के निर्माण में उपयोग किया जाता है।
(v) नारियल का तेल केस तेल के रूप में भी प्रचलित है।
(vi) नारियल के तेल के निष्कर्षण के पश्चात् बचे पदार्थ से एक खली (खल) प्राप्त की जाती है जिसे पुनेक के नाम से जाना जाता है , यह खली पशुओ के लिए एक उत्तम आहार है।

नारियल के अन्य उपयोग

(i) नारियल का फल विभिन्न धार्मिक , सांस्कृतिक तथा वैवाहिक कार्यकर्मो में उपयोग किया जाता है।
(ii) नारियल के ताड़ पर घाव लगाकर एक द्रव्य प्राप्त किया जाता है जिसे टोडी के नाम से जाना जाता है इस पेय पदार्थ का उपयोग मुख्यतः दक्षिणी भारत में किया जता है।
(iii) नारियल के फल की मध्य फल भित्ति से एक रेशा प्राप्त किया जाता है जिसकी सहायता से रस्सी , झाड़ू , गद्दे आदि तैयार किये जाते है।
(iv) नारियल के तरल भ्रूण पोष को कोकोनट मिल्क के रूप में उपयोग किया जाता है जो एक अत्यंत पोषक पेय पदार्थ है।
(v) नारियल के ताड़ से बल्लियों का निर्माण किया जाता है इन्हें इमारते की छत के निर्माण में उपयोग किया जाता है।
(vi) नारियल की अंत काष्ट से चारकोल तैयार किया जाता है।