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समाजवाद की परिभाषा क्या है , गुण विशेषताएं , सिद्धांत Socialism definition in hindi समाजवादी अर्थव्यवस्था

Socialism definition in hindi समाजवादी अर्थव्यवस्था समाजवाद की परिभाषा क्या है , गुण विशेषताएं , सिद्धांत ?
समाजवाद
(Socialism)
समाजवाद (Socialism) वर्तमान विश्व की सबसे प्रसिद्ध विचारधाराओं में से एक है किंतु इसे पूरी स्पष्टता के साथ परिभाषित करना सम्भव नहीं है। इसका कारण यह है कि हर समाजवादी विचारक ने समाजवाद की व्याख्या अपने दृष्टिकोण से की है। समाजवाद का अर्थ इतना अनिश्चित है कि एक विचारक सी.ई.एम. जोड को कहना पड़ा कि ‘‘समाजवाद उस टोपी की तरह है जिसे विभिन्न लोगों ने इतना अधिक पहना है कि अब उसका अपना कोई निश्चित आकार नहीं बचा है।‘‘
‘समाजवाद‘ शब्द का प्रयोग आमतौर पर तीन अर्थों में किया जाता है। पहले अर्थ में यह एक व्यापक विचारधारा है जो समाज के आर्थिक संसाधनों को समाज के सभी वर्गों में समतामूलक रीति से विभाजित करना चाहती है। इस दृष्टि से मार्क्सवाद भी समाजवाद का ही एक उपवर्ग है। दूसरे अर्थ में समाजवाद मार्क्सवाद के अंतर्गत इतिहास का वह चरण है जो पूंजीवाद के बाद क्रांति के परिणामस्वरूप आता है तथा जिसे ‘सर्वहारा की तानाशाही‘ भी कहा जाता है। तीसरे अर्थ में, समाजवाद का आशय मार्क्सवाद से भिन्न समाजवाद के उस रूप से है जो हिंसक क्रांति और वर्ग संघर्ष जैसे उपायों के स्थान पर लोकतंत्र के मार्ग से आर्थिक समानता साधना चाहता है। आजकल, जब समाजवाद की चर्चा की जाती है तो प्रायः समाजवाद का तीसरा अर्थ ही लिया जाता है जो बिना हिंसक उपायों के समतामूलक समाज की स्थापना से संबंधित है।
समाजवाद के इस रूप में सामान्यतः निम्नलिखित विशेषताएँ देखी जा सकती है-
1. सभी समाजवादी मानते हैं कि राज्य या सरकार का काम समाज में आर्थिक समानता (Economic equality) की स्थापना के लिए अधिकाधिक प्रयास करना है। इसलिये राज्य को ऐसे सभी कदम उठाने चाहिये जो इस उद्देश्य को साधने में सहायक हो सकते हैंय जैसे-प्रगतिशील कराधान (Progressive Taxtion), समाज के सभी सदस्यों को काम का अधिकार, निःशुल्क शिक्षा और निःशुल्क चिकित्सा जैसे अधिकार।
2. समाजवाद यह नहीं कहता कि व्यक्ति को निजी सम्पति (Private Property) अर्जित करने की बिल्कुल अनुमति न होय न ही वह इस बात का समर्थक है कि निजी उद्यमशीलता (च्तपअंजम म्दजतमचतमदमनतेीपच) को पूर्णतः अस्वीकार कर दिया जाए य किंतु वह चाहता है कि उत्पादन के प्रमुख साधन सार्वजनिक स्वामित्व (च्नइसपब व्ूदमतेीपच) में हों तथा उद्यमशीलता (Entrepreneurship) के नाम पर मुक्त बाजार-को खुली छूट न दी जाए।
3. समाजवाद के समर्थक औद्योगिक उत्पादन प्रणाली (Industrial Production System) का समर्थन करते हैं। उनका मानना है कि औद्योगिक प्रणाली के अधिकाधिक प्रयोग से मानव समाज की सभी भौतिक जरूरतों को पूरा किया जा सकता है।
4. समाजवादी सामान्यतः धर्म को एक रुढ़िवादी (Orthodox) विचार मानते हैं और चाहते हैं कि मनुष्य की चेतना (Consciousnesss) से धर्म समाप्त हो जाएय किंतु ये लोग मार्क्सवादियों की तरह धर्म को पूरी तरह खारिज नहीं करते।
यदि कोई व्यक्ति निजी जीवन में धर्म को मानना चाहे तो इन्हें कोई आपत्ति नहीं है।
जहाँ तक भारतीय राजनीति का प्रश्न है, उस पर कई समाजवादी चिन्तकों का असर है। स्वाधीनता संग्राम के दौर में आचार्य नरेन्द्र देव, जयप्रकाश नारायण, राम मनोहर लोहिया जैसे नेताओं के अलावा पंडित जवाहरलाल नेहरू भी. समाजवाद के समर्थकों में शामिल थे। भारतीय संविधान के निर्माण की प्रक्रिया में समाजवाद के प्रभाव से ही कई नीति निर्देशक तत्त्वों (Directive Principles) को स्वीकार किया गया। 1976 में संविधान के 42वें संशोधन में तो संविधान की प्रस्तावना (Preamble) में ही ‘समाजवाद‘ (Socialism) शब्द जोड़ दिया गया। वर्तमान में भारत के कई राजनीतिक दल खुद को समाजवादी विचारधारा का वाहक बताते हैं, जैसे समाजवादी पार्टी (SP) जनता पार्टी और उसके विभिन्न धड़े भी समाजवाद को ही अपनी मूल विचारधारा बताते हैं, जैसे जनता दल एकीकृत (JDU  Janta Dal United), राष्ट्रीय जनता दल (RJD  Rashtiya Janta Dal) इत्यादि।

समाजवाद के विभिन्न रूप (Various forms of Socialism)
समाजवाद के बहुत से रूप हैं। यूरोप के विभिन्न देशों में यह वहाँ की सामाजिक स्थितियों के अनुसार रूप बदलता रहा है। एक अर्थ में मार्क्सवाद भी समाजवाद का ही एक रूप है जो वर्ग संघर्ष और हिंसक क्रांति जैसे साधनों पर बल देता है। समाजवाद के कुछ रूप मार्क्सवांद के उद्भव से पहले दिखाई पड़ते हैं तो बहुत से अन्य रूप मार्क्सवाद के बाद। मार्क्स से पहले के समाजवाद को प्रायः स्वप्नदर्शी समाजवाद (Utopian Socialism) कहा जाता है। उन्हें यह नाम कार्ल मार्क्स ने ही दिया था क्योंकि उसके अनुसार, इन समाजवादियों के पास समाजवाद के अमूर्त सपने तो थे पर उन्हें पूरा करने के लिए कोई निश्चित और ठोस कार्ययोजना नहीं थी।
आगे चलकर, जब मार्क्सवाद यूरोप में काफी प्रसिद्ध हो गया तो कुछ विचारक दावा करने लगे कि समाजवाद का वास्तविक रूप मार्क्सवाद ही है। किंतु, 1860 के आसपास इंग्लैंड और अमेरिका जैसे देशों में उदार लोकतंत्र के माध्यम से वंचित वर्गों के पक्ष में कुछ बड़ी घटनाएँ घटी, जैसे अमेरिका में अब्राहम लिंकन ने मजबूत कदम उठाते हुए दास व्यवस्था को समाप्त कर दिया। इसी समय, इंग्लैंड में भी 1867 में मजदूरों को मताधिकार प्राप्त हुआ जिससे वे अपने पक्ष में कानून बनवाने में समर्थ हो गए। इन परिवर्तनों से लगने लगा कि समाजवाद लाने के लिए हिंसक क्रांति एकमात्र या अनिवार्य विकल्प नहीं है, अगर वंचित समुदायों के लोग राजनीतिक स्तर पर दबाव-समूहों के रूप में संगठित हो जाएँ तो लोकतांत्रिक प्रक्रिया के माध्यम से धीरे-धीरे समाजवाद की स्थापना की जा सकती है। इस दौर में जर्मनी और इंग्लैंड में समाजवाद के कुछ ऐसे रूप (जैसे जर्मन सामाजिक लोकतंत्र, संशोधनवाद. फेबियन समाजवाद, समष्टिवाद तथा श्रेणी समाजवाद) विकसित हुए जो अलग-अलग होते हुए भी इस बिंदु पर सहमत हैं कि समाजवाद की स्थापना शांतिपूर्ण तरीकों से की जा सकती है। सिर्फ फ्राँस में, वहाँ की विशिष्ट परिस्थितियों के कारण समाजवाद का एक ऐसा रूप (श्रमसंघवाद) विकसित हुआ जिसमें हिंसा को उचित माना गया।
जिस समय मार्क्सवाद के हिंसक साधनों के विरोध में समाजवाद के ये सभी रूप उभर रहे थे, उसी समय मार्क्सवाद के भीतर भी एक नया संप्रदाय विकसित हुआ जिसे नवमाक्र्सवाद कहा जाता है। नवमाक्र्सवाद भी वर्ग संघर्ष और हिंसक क्रांति को अस्वीकार करते है पर इनकें चिंतन का मूल अधार माक्र्सवाद ही है। ये विशेष रूप से युवा मावर्स के अलगाव (Alienation) जैसे विचारों से प्रभावित हैं और पूंजीवाद के बदलते हुए चरित्र के मूल में छिपे शोषणकारी पक्षों को उभारते है। माक्र्सवाद के भीतर जो विचारक क्रांति और वर्ग संघर्ष पर बल देते है, उन्हें पारंपरिक मार्क्सवादी (ब्संेेपबंस डंतगपेज) कहा जाता है। लेनिन स्टालिन और माओ को इसी वर्ग में रखा जाता है।
समाजवाद के इन सभी प्रकारों को निम्नलिखित रेखाचित्र से समझा जा सकता है। उसके बाद इन सभी प्रकारों का संक्षिप्त परिचय दिया जा रहा है। (मार्क्सवाद के दोनों प्रकारों का परिचय ‘साम्यवाद या मार्क्सवाद‘ टॉपिक में दिया जा चुका है। समाजवाद कें शेष प्रकारों का परिचय यहाँ दिया जा रहा है।)