सिलिकॉन (silicones in hindi) | सिलिकॉन का उपयोग | सिलिकोन का वर्गीकरण संरचना गुण क्या है ?

(silicones in hindi) सिलिकॉन क्या होता है ? सिलिकॉन का उपयोग | सिलिकोन का वर्गीकरण संरचना गुण क्या है ? किसे कहते है ?

सिलिकोन (silicon)

सिलिकॉन , कार्बन और ऑक्सीजन के बहुलक यौगिकों को सिलिकोन कहा जाता है। ये उदासीन अणु होते है तथा इनकी संरचना में सिलिकन और ऑक्सीजन परमाणु एकांतर क्रम मे श्रृंखला , वलय या जाल के रूप में व्यवस्थित होते है और जिनके पाशर्व में कार्बनिक समूह जुड़े रहते है।

सिलिकॉन का वर्गीकरण (classification of silicone)

संरचना के आधार पर सिलिकोन का वर्गीकरण निम्नलिखित प्रकार से तीन वर्गों में किया जा सकता है –

  1. खुली श्रृंखला युक्त
  2. वलय युक्त
  3. क्रॉस बंधित जाल युक्त

SiCl4 के पूर्ण जल अपघटन में SiO2 बनता है जो एक कठोर त्रिविमीय संरचना होती है। इस अभिक्रिया से प्रेरित होकर कीपिंग ने डाइएल्किल डाइक्लोरोसिलेन के जल अपघटन से कीटोन जैसे सिलिकोन यौगिक बनाने चाहे परन्तु उन्हें लम्बी श्रृंखलायुक्त बहुलक प्राप्त हुए जिन्हें सिलिकोन कहा गया। वस्तुत: एक अणु  के दो हाइड्रोक्सी समूहों से जल का अणु निकलने के स्थान पर दो बिन्दुओं में से जल का अणु निकलता है तथा दोनों अणु संघनित होकर एक द्विलक बना लेते है।

इस प्रक्रम में एक Si-O-Si बंध बनता है जो कि एक बहुत ही मजबूत बंध होता है जैसे कि सिलिकेटों में पाया जाता है।  Si-O-Si बंधयुक्त आण्विक यौगिक को सिलोक्सेन कहते है।

इस प्रकार बने हुए द्विलक में चूँकि अभी भी दोनों तरफ दो OH समूह विद्यमान है इसलिए यह डाइ हाइड्रोक्सी सिलेन के अन्य अणुओं के साथ संघनित हो जाते है तथा यह प्रक्रिया चलती रहती है। परिणामस्वरूप बहुत बड़े बहुलक अणु बन जाते है।

इस प्रकार बने हुए उत्पाद में कई Si-O-Si बंध है इसलिए यह एक पोलीसिलोक्सेन है। पोली सिलोक्सेनों को ही सिलिकोन कहा जाता है। उपर्युक्त अणु एक सिलिकोन श्रृंखला का उदाहरण है। सिलिकोन वलययुक्त या चक्रीय सिलिकोन के रूप में निम्नलिखित उदाहरणों का उल्लेख किया जा सकता है।

क्रॉस बन्धयुक्त सिलिकोन जाल के रूप में RSiCl3 के जल अपघटन से प्राप्त बहुलक का उल्लेख किया जा सकता है।

संश्लेषण :

एल्किल हैलोसिलेन यौगिक जल अपघटित होकर सिलिकोन बहुलक बनाते है। भिन्न भिन्न प्रकार के सिलिकोन प्राप्त करने के लिए विभिन्न सिलेन का जल अपघटन करवाया जाता है , अत: सिलिकोन बनाने की क्रिया दो पदों में संपन्न होती है –

  1. कार्बनिक हैलोसिलेनों का संश्लेषण: इसके लिए निम्नलिखित विधियाँ है –

(1) सीधा सिलिकॉन प्रक्रम : औद्योगिक महत्व के मैथिल क्लोरोसिलेन बनाने के लिए यह एक महत्वपूर्ण विधि है। इस विधि में सिलिकोन चूर्ण के साथ लगभग 10% कॉपर चूर्ण मिलाकर उसके ऊपर 300 डिग्री सेल्सियस ताप पर मैथिल क्लोराइड की वाष्प को प्रवाहित किया जाता है। अभिक्रिया के परिणामस्वरूप कई यौगिकों का मिश्रण बनता है।

2MeCl + Si → Me2SiCl2(+ MeSiCl3 + Me3SiCl + . .. . . .. . .)

Me2SiCl2 मुख्य उत्पाद के रूप में प्राप्त होता है जिसकी उपलब्धि 50% से अधिक होती है। प्रभाजी आसवन द्वारा बाकी सबको पृथक कर लिया जाता है।

कुल मिलाकर अभिक्रिया ऊष्माक्षेपी होती है तथा सम्भवतया निम्नलिखित क्रियाविधि द्वारा संपन्न होती है –

MeCl + 2Cu → MeCu + CuCl

MeCu → Me + Cu

CuCl + Si → Cu + SiCl

Me + SiCl → MeSiCl

इस प्रकार क्रिया आगे बढती जाती है तथा सिलिकॉन के साथ अन्य एल्किल और हैलोजन मूलक जुड़कर अंततः उपर्युक्त वर्णित यौगिकों का मिश्रण बनाते है। इन समस्त अभिक्रियाओं में कॉपर पर एक उत्प्रेरक की भाँती कार्य करता है। इस अभिक्रिया में MeCl और HCl के मिश्रण को भी प्रयुक्त किया जा सकता है , उस स्थिति में मुख्य उत्पाद के रूप में MeSiCl3 बनता है परन्तु साथ में अन्य हाइड्रोजन युक्त सिलेन भी बनते है।

MeCl + 2HCl + Si → MeSiCl3 + MeSiHCl2 + . .. . . .. . ..

उच्च एल्किल हैलाइडो के साथ अभिक्रिया संतोषजनक नहीं होती तथा क्लोरोबेंजीन के साथ अभिक्रिया 500 डिग्री सेल्सियस पर संपन्न होती है। यदि उत्प्रेरक सिल्वर लिया जाए तो अभिक्रिया 400 डिग्री सेल्सियस पर ही सम्पन्न हो जाती है –

2PhCl + Si → Ph2SiCl2 + . . .. . . .

(2) ऐरोमैटिक सिलिकरण : एरोमेटिक सिलेन बनाने के लिए बेंजीन या अन्य एरोमेटिक हाइड्रोकार्बन की 230 से 300 डिग्री सेल्सियस ताप पर किसी ऐसी सिलिकोन यौगिक के साथ क्रिया कराई जाती है जिसमें Si-H बंध हो। अभिक्रिया में BF3 , BCl3 या AlCl3 जैसा कोई लुईस अम्ल उत्प्रेरक का कार्य करता है।

उदाहरण :

C6H6 + HSiCl3 → C6H5SiCl3 + [(C6H5)2SiCl2 , C6H5SiHCl2 . . . .. . . आदि ]

(3) सिलेन ओलीफिन योगात्मक क्रियाएं : Si-H बंधयुक्त सिलेन यौगिक असंतृप्त एल्किनों या एल्काइनों के साथ योगात्मक क्रिया करके कार्बनिक सिलेनों का निर्माण करते है .

उदाहरण :

Cl3SiH + H2C=CHR → Cl3SiH2C-CH2R

बिना उत्प्रेरक के अभिक्रियाएँ 200 से 300 डिग्री सेल्सियस पर संपन्न होती है तथा परॉक्साइड या सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में अभिक्रियाएँ कम ताप पर ही संपन्न हो जाती है , अत: उच्च ताप पर अस्थायी यौगिकों के लिए इन उत्प्रेरकों का उपयोग करते है। अभिक्रियाएँ संभवतया मुक्त मूलक क्रियाविधि द्वारा संपन्न होती है।

कुछ असंतृप्त यौगिक परॉक्साइड की उपस्थिति में शीघ्रता से बहुलकीकृत हो जाते है।

उदाहरण : स्टाइरीन , ऐक्रिलोनाइट्राइल आदि उन यौगिकों की क्रिया में प्लैटिनम या VIII समूह की किसी अन्य धातु को उत्प्रेरक के रूप में प्रयुक्त करते है।

उदाहरण : Cl3SiH + C6H5CH=CH2 → Cl3SiCH2-CH2C6H5

(4) ग्रिन्यार अभिकर्मकों से : इस विधि द्वारा SiCl4 का एल्किल या एरिल व्युत्पन्नों में आसानी से परिवर्तन किया जा सकता है। सामान्य परिस्थितियों में कई उत्पादों का मिश्रण बनता है परन्तु क्रियाकारकों के अनुपातों को नियंत्रित करके किसी एक उत्पाद को प्रमुख उत्पाद के रूप में प्राप्त किया जा सकता है।

SiCl4 + RMgX → R.SiCl3 + R2SiCl2 + R3SiCl + MgXCl

एलोक्सी सिलेन भी ग्रिन्यार अभिकर्मक के साथ क्रिया करके विविध संघटन वाले यौगिक बनाते है जिनका व्यवहार एल्किल क्लोरोसिलेन जैसा ही होता है तथा Si-OR बंध का जल अपघटन Si-Cl बंध की भाँती ही संपन्न होता है।

Si(OEt)4 + RMgX → RxSi(OEt)4-x + MgX(OEt)

(5) पुनर्वितरण विधि : हमने उपर्युक्त विधियों में देखा कि अधिकांशत: कार्बनिक सिलेनों का मिश्रण बनता है जिसमे से प्रमुख उत्पाद को प्रभाजी आसवन द्वारा पृथक किया जाता है। इनमें से कुछ औद्योगिक महत्व के होते है और कुछ नहीं। जो अधिक औद्योगिक महत्व के यौगिक नहीं होते उन्हें पुनर्वितरण विधियों द्वारा महत्वपूर्ण यौगिकों में परिवर्तित किया जाता है। इसके लिए पदार्थो को AlCl3 के साथ गर्म करते है –

Me3SiCl + MeSiCl3 → 2Me2SiCl2

इस विधि द्वारा एरिल व्युत्पन्नों को भी बनाया जा सकता है।

उदाहरण : (C6H5)4Si + SiCl4 → 2(C6H5)2SiCl2

II. कार्बनिक हैलोसिलेनों का जल अपघटन

R3SiCl प्रकार के यौगिक जल अपघटित होकर (R3Si)2O प्रकार के द्विलक बनाते है।

चूँकि इस द्विलक बनने के बाद इस अणु में कोई मुक्त OH समूह नहीं है अत: आगे इसका बहुलकीकरण नहीं होता।

R2SiCl2 प्रकार के यौगिकों में चूँकि दो हैलोजन परमाणु है अत: जल अपघटित होकर ये जो डाइहाइड्रोक्साइड बनायेंगे वे दोनों ओर से संयुक्त होकर चक्रीय या रेखीय बहुलक बना सकते है।

इन श्रृंखलाओं की लम्बाई को नियंत्रित करने के लिए R2SiCl2 के साथ कुछ मात्रा में R3SiCl भी डाल दिया जाता है। जल अपघटन पर बनी हुई श्रृंखला के सिरे के साथ यदि R3SiOH अणु संघनित होगा तो श्रृंखला आगे बढ़ना बंद हो जाएगी।

हम प्रारंभ में देख चुके है कि RSiCl3 प्रकार के यौगिक जल अपघटित होकर जटिल जालनुमा बहुलक बनाते है।

Si-O-Si बंध वैसे तो काफी मजबूत होते है परन्तु यदि इन पोली सिलोक्सेनों को प्रबल अम्ल या प्रबल क्षार के साथ गर्म करवाया जाए तो ये बंध टूट जाते है। इस गुण का लाभ उठाकर सममित सिलेक्सोनो से असममित सिलोक्सेनों को बनाया जाता है।

उदाहरण : (Me3Si)2O + (Et3Si)2O → 2Me3Si-O-SiEt3

सिलिकोंस का संरचनात्मक पहलु तथा विशिष्ट गुण

सिलीकोनों की संरचनाओं में कुछ विशेषताएँ है जिनके कारण इनमे कुछ विशिष्ट गुण आ जाते है जो इन्हें अत्यंत उपयोगी पदार्थ बनाते है। इनकी कुछ प्रमुख संरचनात्मक विशेषताएं निम्नलिखित है –

  1. इनमें स्थायी सिलिका (-Si-O-Si-O-Si-) जैसा ढांचा होता है।
  2. इनके प्रमुख बंध है Si-O और Si-C , दोनों ही बंध अत्यंत प्रबल होते है। Si-O बन्ध की ऊर्जा लगभग 502 kJ/mol होती है।
  3. बहुलकीय संरचना के चारों ओर एल्किल समूह है अत: इनकी बाह्य शक्ल हाइड्रोकार्बनों के जैसी होती है।

संरचना की इन विशेषताओं के कारण इनमें निम्नलिखित विशिष्ट गुण आ जाते है –

  • प्रबल Si-O और Si-C बन्ध होने के कारण ऊष्मा के प्रति ये यौगिक अत्यंत स्थायी होते है। वायु की अनुपस्थिति में 250 से 300 डिग्री सेल्सियस तक ये स्थायी रह सकते है। कार्बनिक समूहों का यदि ऑक्सीकरण कराया जाए तो 200 से 250 डिग्री सेल्सियस तक ये समूह ऑक्सीकृत होते है और फिर क्रॉस बन्धो द्वारा परस्पर ये जाल बना लेते है।
  • प्रबल बन्धो के कारण ही ये यौगिक सामान्य अभिकर्मकों और दुर्बल अम्लों एवं क्षारों से प्रभावित नहीं होते।
  • समस्त प्रबल सहसंयोजक बन्धो तथा मुक्त इलेक्ट्रॉनों के अभाव के कारण ये पदार्थ विद्युतरोधी होते है।
  • कार्बन सिलिकोन बंध की प्रकृति ध्रुवीय सह संयोजक होने के कारण इनके पृष्ठ तनाव के मान कम होते है
  • इनके चारों ओर स्थायी और उदासीन हाइड्रोकार्बन की सतह होने के कारण ये यौगिक किसी की ओर आकर्षित नहीं होते है अत: इनमें न चिपकने वाले गुण होते है।
  • चारों ओर स्थायी और उदासीन हाइड्रोकार्बन सतह के कारण ही ये जल के न तो धनावेशित हाइड्रोजन को आकर्षित करते है एवं न ही ऋण आवेशित ऑक्सीजन को , अत: ये जल से गिले नहीं होते अर्थात जल प्रत्याकर्षि की तरह व्यवहार करते है।
  • ऊष्मा के प्रति स्थायित्व की दृष्टि से विभिन्न कार्बनिक समूहों का घटता हुआ क्रम निम्नलिखित प्रकार होता है –

Ph > CH3 > C2H5 > C3H7

सिलिकॉन के अनुप्रयोग

उपर्युक्त विशिष्ट गुणों के कारण सिलिकोन अत्यंत उपयोगी पदार्थ बन जाते है।

सिलिकोन द्रव , तैलीय , ग्रीस , रबड़ या रेजिन हो सकते है। इनके प्रमुख उपयोग निम्नलिखित है –

  1. 20 से 500 इकाइयों तक के सीधी श्रृंखलायुक्त बहुलक सिलिकोन तरल होते है। विभिन्न उपयोगों में आने वाले सिलिकोनों का 63% भाग सिलिकोन तरल होता है। अधिक इकाई वाले सिलिकोनों के क्वथनांक और श्यानता के मान उच्च होते है। इकाइयों की संख्या बढ़ने के साथ ये जल जैसे हल्के द्रव , तेल या ग्रीस बनाते है। सिलिकोन द्रवों का उपयोग जल प्रत्याकर्षी के रूप में किया जाता है , अत: पुलों , दीवारों , कांच के बर्तनों , रेशों , कार पॉलिश , जूतों की पॉलिश आदि में इनका उपयोग जल से इनकी रक्षा करने के लिए किया जाता है। सिलिकोन द्रव अविषाक्त और कम पृष्ठ तनाव वाले होते है अत: ये झागरोधी पदार्थो के रूप में प्रयुक्त होते है। इसकी थोड़ी सी मात्रा मिलाने से ही गटर लाइन , टैक्सटाइल रंजन , किण्वन आलू की चिप्स बनाते समय खाद्य तेलों के झाग काफी कम हो जाते है।
  2. सिलिकोन तेलों का उपयोग उच्च विभव वाले ट्रांसफार्मरों में डाइ इलेक्ट्रिकरोधी पदार्थ के रूप में किया जाता है। इन्हें हाइड्रोलिक द्रव के रूप में भी प्रयुक्त किया जाता है। हल्के दाब वाले उपकरणों में इनका उपयोग स्नेहकों के रूप में किया जाता है। उच्च दाब से उनकी तैलीय झिल्ली टूट जाती है , अत: गियर बॉक्स जैसे उपकरणों में इन्हें प्रयुक्त नहीं किया जा सकता है। फेनिल प्रतिस्थापी युक्त सिलिकोन उत्तम स्नेहक होते है। इन तेलों को यदि लिथियम स्टीयरेट साबुन के साथ मिलाया जाए तो सिलिकोन ग्रीस बनती है।
  3. सिलिकोन रबड़ डाइमैथिल पोलीसिलोक्सेन होते है जिनमें 6000 से 600000 इकाइयां लम्बी श्रृंखला में जुडी रहती है जिसमें भराव के लिए थोडा सा महीन चूर्ण सिलिका अथवा कभी कभी ग्रेफाईट डालते है। सिलिकोन उत्पादन का लगभग 25% भाग सिलिकोन रबड़ का होता है। सिलिकोन रबड़ -90 डिग्री सेल्सियस से लेकर +250 डिग्री सेल्सियस तक प्रत्यास्थ बने रहते है। इनके स्थायित्व के क्रम के इतना चौड़ा होने के कारण प्राकृतिक रबड़ (पोलीआइसोप्रीन) की तुलना में ये अत्यंत उपयोगी पदार्थ है। बेन्जोइल परोक्साइड के साथ ये ऑक्सीकृत हो जाते है तथा कुछ मात्रा में इनके मध्य क्रॉस बंध बन जाते है जिससे वल्कनीकृत होकर ये कठोर रबड़ बना लेते है। कमरे के ताप पर वल्कनीकृत होने वाले सिलिकोन रबड़ भी उपलब्ध है। इनमें कोई ऐसा समूह होता है जो आसानी से जल अपघटित होने वाला हो।

उदाहरण : एसिटेट (-O.COCH3) समूह जो वातावरण की नमी से जल अपघटित होकर -OH समूह बना लेते है। ये दोनों समूह संघनित होकर दो श्रृंखलाओं के मध्य क्रॉस बंध बना लेते है , इस प्रकार है। ये दोनों समूह संघनित होकर दो श्रृंखलाओं के मध्य क्रॉस बंध बना लेते है , इस प्रकार रबड़ का वल्कनीकरण हो जाता है।

  1. सिलिकोन रेजिन बैकेलाइट की भाँती कठोर अथवा दृढ होते है। इन्हें बनाने के लिए PhSiCl3औरPh2SiCl2 को टोलुईन में घोलकर जल के साथ जल अपघटित करवाया जाता है। पूर्ण बहुलकीकरण से पूर्व जबकि पदार्थ मुलायम होता है , उसे धोकर एचसीएल से मुक्त कर दिया जाता है तथा फिर इच्छित आकार दिया जाता है। फिर चतुष्क अमोनिया लवण उत्प्रेरण की उपस्थिति में उसे और गर्म किया जाता है। बचे हुए OH समूह संघनित होकर कई क्रॉस बंध बना लेते है। जिससे अत्यंत कठोर और दृढ बहुलक रेजिन बन जाता है। सिलिकोन उत्पादन का लगभग 12 प्रतिशत सिलिकोन रेजिन के रूप में होता है। इनसे विद्युतरोधी बनाये जाते है। अतिरिक्त सामर्थ्य देने के लिए इन्हें अक्सर ग्लास फाइबर में मिलाया जाता है। इनका उपयोग प्रिंटेड परिपथ बोर्ड बनाने में भी किया जाता है। इन्हें रसोई के बर्तनों पर न चिपकने वाली (निर्लेप) सतह लगाने में प्रयुक्त किया जाता है।

सिलिकोन के औद्योगिक उपयोग

सिलिकोन औद्योगिक रूप से अत्यंत महत्व के यौगिक है। इनके कुछ प्रमुख औद्योगिक उपयोग निम्नलिखित है –

  1. इनका उपयोग जलरोधी कपड़ों और कागज के निर्माण में किया जाता है। यदि किसी कागज या कपडे को सिलिकोन वाष्प के सम्पर्क में लाया जाता है तो इनकी एक पतली सी तह कागज या कपडे पर फ़ैल जाती है तथा इस प्रकार उसे जलरोधी बना देती है।
  2. सिलिकोन से बनाई गयी वैसलीन जैसी ग्रीस -40 डिग्री सेल्सियस तक भी जम नहीं पाती है अत: इनका उपयोग वायुयानों में स्नेहक के रूप में किया जाता है। वायुयान जमीन के बहुत उच्च ताप से आसमान की ऊँचाइयों तक उड़ता है जहाँ तापमान बहुत कम होता है अत: इनके लिए ऐसा स्नेहक उपयोग होता है जो बहुत उच्च ताप पर पतला न होता हो तथा बहुत निम्न ताप पर भी जमने वाला न हो , सिलिकोन ग्रीस इन सारी शर्तों का पालन करता है।
  3. सिलिकोन रबड़ आवश्यक वल्कनीकरण के पश्चात् इस प्रकार की प्रकृति का हो जाता है कि उसकी आकृति और प्रत्यास्थता स्थायी हो जाते है , अत: इनका कई महत्वपूर्ण स्थानों पर उपयोग किया जाता है। अन्तरिक्ष यानों और जैट विमानों में और इमारतों को सीलन से बचाने के लिए और इन्हें वायुरोध बनाने के लिए सिलिकोन रबड़ के खिडकियों के गैसकेट बनाये जाते है। एकदम भिन्न ताप वाली चन्द्रमा की सतह पर कदम रखने वाले अपोलो एस्ट्रोनोट्स ने सिलिकोन रबड़ के तलुवे वाले जूते ही पहने थे। अन्तरिक्ष यांत्रियों की पोशाक भी सिलिकोन से बनाई जाती है।
  4. चूँकि सिलिकोन अत्यन्त उच्च ताप पर भी जलकर काले नहीं पड़ते , अत: विद्युत मोटर और विद्युत के अन्य उपकरणों में विद्युतरोधी के रूप में इनका उपयोग होता है।
  5. यदि रंग रंगन में थोडा सिलिकोन मिला दिया जाए तो वे धूप , पानी , गर्मी आदि से प्रभावित होकर फीके नहीं पड़ते , अत: लम्बे समय तक अच्छे बने रहते है।
  6. कांच के रेशे और कांच की रुई भी सिलिकोन से ही बनाये जाते है।