WhatsApp Group Join Now
Telegram Join Join Now

आधुनिक काल में विज्ञान प्रौद्योगिकी का विकास क्या है , उपलब्धियां , science and technology in modern india in hindi

science and technology in modern india in hindi आधुनिक काल में विज्ञान प्रौद्योगिकी का विकास क्या है , उपलब्धियां ?

भारत में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी का विकास
विशुद्ध एवं अनुप्रयोगात्मक विज्ञानों में शिक्षा एवं प्रशिक्षण का एक लंबा इतिहास रहा है। भारत में वैज्ञानिक अनुसंधान एवं तकनीकी विकास की समृद्ध परम्परा 2600 वर्षों से भी अधिक प्राचीन रही है। तक्षशिला, (छठी शताब्दी ईसा पूर्व) जो कि विश्व के सबसे पहले विश्वविद्यालय में से एक था, ने कई देशों एवं महाद्वीपों के विद्यार्थियों को आकर्षित किया। तक्षशिला में पढ़ाए जागे वाले मुख्य विषयों में गणित, खगोलशास्त्र, औषधि,शल्यक्रिया और धातुकर्म शामिल थे। दुर्भाग्यवश, ज्ञान का अधिकतर संग्रह मध्यकाल के दौरान विनष्ट हो गया। मौलिक चिंतन की गौरवमयी परम्परा, नई सोच का साहस और सृजनात्मक नवोन्मेष पूरी तरह से छिन्न-भिन्न हो गई।
प्राचीन एवं मध्यकाल के भारत में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी ने मानव ज्ञान एवं गतिविधियों की सभी मुख्य शाखाओं को शामिल किया। प्राचीन भारत कथाओं, राजाओं एवं संतों के साथ-साथ विद्वानों एवं वैज्ञानिकों की भी भूमि थी।
आधुनिक काल में विज्ञान एवं नवाचार
भारत में आधुनिक विज्ञान का विकास पूर्व की परम्परा का जैविक विस्तार नहीं है। इसका आरोपण ब्रिटिश साम्राज्य द्वारा भाषा में किया गया जो भारत के लोगों के लिए विदेशी भाषा थी। अन्य आरोपणों की तरह, समाज में इसके पोषण और वृद्धि हेतु अवशोषण की आवश्यकता थी। विज्ञान की शिक्षा का अभाव था और विज्ञान को ब्रिटिश साम्राज्य द्वारा अपने लाभ के लिए उपांग या संलग्न पिपासा के तौर पर देखा जाता था।
भारत में आधुनिक या पश्चिमी विज्ञान के संस्थानीकरण की शुरुआत 1784 में शुरू एशियाटिक सोसायटी आॅफ बंगाल के प्रेरित आवेग के अंतग्रत भूर्गीाीय, वानस्पतिक एवं क्षेत्रमितीय पर विशाल सर्वेक्षणों की अवस्थापना के साथ हुई। इसके पश्चात् 1857 में बाॅम्बे, कलकत्ता एवं मद्रास में विश्वविद्यालयों की स्थापना की गई। भारत में ब्रिटिश शासन प्राथमिक तौर पर अपने बेहतर उत्पादन पद्धति बेहतर तकनीक, संगठनात्मक योग्यताओं इत्यादि पर आधारित था, और औपनिवेशिक सरकार के लिए उनकी उत्कृष्टता को बना, रखना बेहद महत्वपूर्ण था, यदि वे शासकों के साथ निरंतर संबंध बना, रखना चाहते थे। जैसाकि भारत शासन करने के लिएएक बड़ा देश था, ब्रिटिश शासन ने महसूस किया कि यह बेहद महत्वपूर्ण है कि विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी सहित सभी क्षेत्रों में सुप्रशिक्षित भारतीयों का एक कैडर हो जिससे वे भारत में अच्छी प्रकार से शासन एवं नियंत्रण कर सकें। इसलिए, ब्रिटिश साम्राज्य ने 19वीं शताब्दी में ब्रिटिश पद्धति पर आधारित विश्वविद्यालय स्थापित किए। वास्तव में, 1850 तक, भारत में केवल एक विश्वविद्यालय था, जिसकी स्थापना 1818 में डेन्स समूह ने कलकत्ता के पास सेरामपोर में की थी। प्राथमिक तौर पर यह एक ब्रह्मवैज्ञानिक विश्वविद्यालय था। 1850 और 1900 के बीच पूरे देश को आच्छादित करने की मंशा से कलकत्ता, बाॅम्बे, मद्रास, इलाहाबाद और भूतपूर्व-अविभाजित पंजाब में पांच विश्वविद्यालयों की स्थापना की गई। 1835 में कलकत्ता और मद्रास में पहले दो मेडिकल काॅलेज खोले गए। 1876 में कलकत्ता में एक भारतीय, महेन्द्र लाल सिरकर, ने इंडियन एशोसिएशन फाॅर द कल्टीवेशन ऑफ साइंस (आईएसीएस) नामक प्रथम वैज्ञानिक अनुसंधान संगठन की स्थापना की। 19वीं सदी के अंत में, भारत में कुल 6 विज्ञान सम्बद्ध सोसायटीज (जिसमें 1804 में स्थापित एशियाटिक सोसायटी ऑफ़ बाॅम्बे भी शामिल है) थीं जिनमें से दो एग्रीकल्चरल ए.ड हाॅर्टीकल्चरल सोसायटी आॅफ इ.िडया (1820, कलकत्ता), और बाॅम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसायटी (1833) पेशेवर सोसायटीज थीं। हालांकि, हमें स्मरण रखना चाहिए कि आधुनिक विज्ञान का जन्म निर्वात में नहीं हुआ, अपितु हमारी ज्ञान की समृद्ध परम्परा रही है जिसमें सकारात्मक विज्ञान शामिल हैं और जिनमें से कुछ जैसे आयुर्वेद और खगोलशास्त्र तब और आज के आधुनिक विज्ञान की तुलना में शायद अधिक लोकतांत्रिक थे।
औपनिवेशिक सरकार ने उपनिवेश के शासन और शायद अधिक दक्ष तरीके से संसाधनों के निष्कर्षण के लिए संस्थानों द्वारा सृजित ज्ञान के प्रयोग के लिए वैज्ञानिक संगठनों का निर्माण शुरू कर दिया ताकि उपनिवेश के भू-भाग, जलवायु, वन एवं वनस्पति की बेहतर समझ प्राप्त की जा सके। यह तथ्य इस पृष्ठभूमि के विरुद्ध है कि पहली पीढ़ी के राष्ट्रवादी वैज्ञानिकों ने औपनिवेशिक सरकार की बिना किसी सहायता प्राप्त किए वैज्ञानिक संस्थानों के निर्माण एवं विज्ञान के लोकतंत्रीकरण का प्रयास किया। हमारे अभिजात्य वग्र द्वारा आधुनिकता एवं आधुनिक विज्ञान को अपनाने का उत्साह, हो सकता है औपनिवेशिक शासकों के गजदीक जागे का एक रास्ता भर हो। औपनिवेशिक सरकार की नीति थी कि भारतीय वैज्ञानिकों को ऊंचे पदों पर नियुक्ति से रोका जाए, यद्यपि उनमें से कई सक्षम थे, जिसने भारत में विज्ञान के लोकतंत्रीकरण को बाधित किया।
उन्नीसवीं सदी में भारत में अवधारणाओं पर अधिकतर अनुसंधान और आधुनिक विज्ञान के स्वागत का केंद्र बंगाल प्रांत एवं उत्तर भारत था। हालांकि, इसका निहितार्थ यह नहीं है कि भारतीय बुद्धिजीवियों ने अन्य क्षेत्रों में आधुनिक विज्ञान के प्रति रुचि नहीं दिखाई। उदाहरणार्थ, मद्रास प्रेजीडेन्सी के पास उपकरण थे, लेकिन प्रेक्षणशाला नहीं थी। ईस्ट इंडिया कंपनी ने 1870 में मद्रास में एक प्रेक्षणशाला की स्थापना की। आईटी यूरोप से बाहर पहली आधुनिक सार्वजनिक प्रेक्षणशाला थी जिसे आज के संदर्भ में, भारत में प्रथम आधुनिक अनुसंधान संस्थान के रूप में प्रयोग किया जाता है। कंपनी ने मद्रास प्रक्षेणशाला का उद्देश्य घोषित किया कि यह भारत में खगोलशास्त्र, भूगोल एवं नौवहन के ज्ञान के उन्नयन को प्रोत्साहित करेगी। विज्ञान संबंधी कार्य की अपेक्षा सिंचाई की सुविधाओं में सुधार करके कंपनी के राजस्व में वृद्धि करने जैसे अन्य महत्वपूर्ण कार्य भी कंपनी करती थी। जाॅन गोल्डिंगधाम और उनके सहायक वारेन, दोनों ही प्रशिक्षित खगोलशास्त्री, ने कई खगोलशास्त्रीय प्रेक्षण किए। जबकि ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी भारत में प्रेक्षणशालाओं की स्थापना को लेकर अनिच्छुक थी, 1908 में हैदराबाद राज्य में गिजामिया वेधशाला की स्थापना ने प्रकट किया कि गिजाम का शासन खगोलीय प्रेक्षणशालाओं की स्थापना एवं निरंतरता के प्रति उत्साहित था। यह इसलि, हुआ क्योंकि, देश के लाखों लोगों के लिए वैज्ञानिक एवं प्रौद्योगिकीय विकास एक मिथक ही बना रहा। मात्र कुछ खास सामाजिक समूह ही भारत के आधुनिक विज्ञान एवं तकनीक के परिचय के प्रति प्रत्युगार देने की स्थिति में थे।