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जर्मनी में नाजीवाद के उदय के कारणों को लिखिए। , मुख्य विशेषता क्या थी , nazism in germany in hindi

nazism in germany in hindi causes जर्मनी में नाजीवाद के उदय के कारणों को लिखिए। , मुख्य विशेषता क्या थी ?

जर्मनी में नाजीवाद
प्रश्न: होलोकास्ट
उत्तर: हिटलर, गोरिंग, हेड्रिच एवं अन्य नात्सी नेताओं ने यहदी-विरोधी नीति अपनायी जिसे होलोकास्ट कहते हैं। हिटलर, गोगि हेड्रिच एवं अन्य
नात्सी नेताओं ने यहूदी-विरोधी नीति अपनायी। नात्सी सरकार ने अप्रैल, 1933 में ही एक कानून बनाया जिसके अनुसार सभी अनार्यों,
विशेष रूप से यहूदियों को सभी शासकी एवं अर्द्धशासकीय सेवाओं से हुआ दिया गया बहुत से यहूदी बन्दी-शिविरों में भेज दिए गए। ऐसी
स्थिति में बहुत से यहूदी जर्मनी छोड़कर भागने लगे।
प्रश्न: न्यूरेम्बर्ग कानून
उत्तर: सितम्बर 1935 में हिटलर की सरकार ने कुछ अन्य यहूदी-विरोधी कानून बनाए, जिन्हें श्न्यूरेम्बर्ग कानूनश् (Nirante Lawsaws) के नाम से जाना जाता है। इन कानूनों के अनुसार, कोई भी व्यक्ति, जिसके पितामह या पितामही में से कोई यहूदी था, उसे यहूदी माना गया तथा सभी यहूदियों को नागरिकता से वंचित कर लिया गया।
प्रश्न: रोम-बर्लिन-टोकियो धुरी क्या थी ? इसका विश्व राजनीति पर क्या प्रभाव पड़ा ?
उत्तर: 1 नवम्बर, 1936 को मुसोलिनी ने बर्लिन-रोम-धुरी के निर्माण की चर्चा की। इसी दिन मुसोलिनी ने मिलान में घोषणा की कि बर्लिन और रोम के बीच एक धुरी (Axiss) स्थापित हो गई है। दिसंबर में दोनों राज्यों के बीच एक व्यापार समझौता भी हो गया। इस प्रकार रोम-बर्लिन धुरी का निर्माण हो गया।
हिटलर ने 25 नवम्बर, 1936 को जापान के साथ, ष्एंटी-कॉमिन्टन पैक्टश् (Anti-Comintern Pact) किया जिसमें दोनों देशों ने विदेशों में साम्यवाद का प्रसार करने वाली अंतर्राष्ट्रीय रूसी संस्था कॉमिन्टर्न के कार्यों के संबंध में एक-दूसरे को आवश्यक सूचनाएं देने, कामिन्टन के एजेन्टों के विरुद्ध निरोधक कार्यवाहियों में सहयोग देने और सोवियत संघ के साथ किसी प्रकार की राजनीतिक संधि न करने का वचन दिया। हिटलर के इस समझौते में ब्रिटेन को प्रसन्नता हुई। लगभग एक वर्ष बाद 6 नवम्बर, 1937 को इटली ने भी एंटी-कॉमिन्टन पैक्ट पर हस्ताक्षर कर दिए और इस प्रकार रोम-बर्लिन धुरी अब श्रोम-बर्लिन-टोकियोश् धुरी में परिणत हो गई। ये तीनों (जर्मनी, इटली और जापान), धुरीराष्ट्र (Aris Power) कहलाने लगे। बाद में हंगरी, मंचुकाओ और स्पेन भी इसमें सम्मिलित हो गए। अब परिस्थिति यह थी कि यूरोप स्पष्टतः दो गुटों में विभाजित हो गया – एक तरफ धुरीराष्ट्रों का गुट और दूसरी तरफ मित्रराष्ट्रों (फ्रांस, ब्रिटेन, रूस एवं अन्य मित्रराष्ट्र) का गुट। इन दोनों के सैद्धांतिक और व्यावहारिक मतभेद इतने गहरे थे कि मुसोलिनी यह कहा करता था कि ष्दोनों संसारों के मध्य संघर्ष किसी समझौते की अनुमति नहीं दे सकताय या तो हम रहेंगे या वें।ष्
प्रश्न: म्यूनिख समझौता
उत्तर: 29 सितम्बर, 1938 को म्यूनिख में 4 देशों जर्मनी (हिटलर, रिब्बन ट्रॉप), इटली (मुसोलिनी, चिआनो), ग्रेट ब्रिटेन (चेम्बरलेन), तथा फ्रांस
(दलादियर) के प्रतिनिधि एकत्रित हुए। रूस को इसमें निमंत्रित नहीं किया गया और चैकोस्लोवाकिया के प्रतिनिधि को इसमें बैठने नहीं दिया
गया। म्यूनिख के इस समझौते की प्रमुख व्यवस्थाएं ये थी –
1. जर्मन सेनाओं द्वारा स्यूडेटन प्रदेश पर अधिकार करने की अवधि 1 अक्टूबर से 10 अक्टूबर कर दी गई।
2. यह भी निश्चित हुआ कि स्यूडेटन प्रदेश खाली करने की शर्ते एक अंतर्राष्ट्रीय आयोग द्वारा निश्चित होंगी जिसमें जर्मनी, इटली, ब्रिटेन, फ्रांस और चैकोस्लोवाकिया के प्रतिनिधियों को स्थान दिया जाएगा।
3. इसका निर्णय 5 व्यक्तियों के अंतर्राष्ट्रीय आयोग को सौंपा गया कि जनमत-संग्रह किन प्रदेशों में किया जाए।
4. चेक सरकार 4 सप्ताह में सब जर्मन बन्दियों को रिहा कर देगी।
5. जनता को 6 महीने के अंदर दिए गए प्रदेशों को छोड़ने या उनमें बसने की स्वतंत्रता होगी। जनसंख्या के हस्ताक्षरण से संबंधित बातों का निर्धारण एक जर्मन-चेकोस्लोवाक आयोग करेगा।
6. ब्रिटेन और फ्रांस ने चैकोस्लोवाकिया की नई सीमाओं की सुरक्षा की गारंटी दी।
चर्चिल ने चेम्बरलेन को डपटते हुए यह सही भविष्यवाणी की थी, कि ष्म्युनिख समझौता सम्मान के साथ की गई साथ नहीं प्रत्युत्त उस युद्ध
का आह्वान है जो एक साल के लिए स्थगित कर दिया गया है।ष्
प्रश्न: मेन काम्फ
उत्तर: कारावास में हिटलर ने अपनी आत्मकथा श्मरा संघर्षश् या मेन काम्फ के प्रथम भाग की रचना की और कुछ समय पश्चात उसका दूसरा भाग पूरा किया। यह पुस्तकं 1925 ई. में प्रकाशित हुई। श्मेन काम्फश् के प्रथम भाग में उसने अपन पारंभिक जीवन और नात्सीदल के जन्म एवं विकास का वर्णन किया। इसके अतिरिक्त उसमें संसदीय प्रजातंत्र की निन्दा की, जर्मन जाति की सर्वश्रेष्ठता का दावा किया और यहूदियों के विरुद्ध कटुता एवं घृणा व्यक्त की। उस पुस्तक के दूसरे भाग में उसने नात्सी दल के उद्देश्यों, सिद्धांतों और भावी कार्यक्रम का विश्लेषण किया। उसने वर्साय की लज्जाजनक एवं अपमानजनक संधि के विरुद्ध आक्रोश व्यक्त किया और जर्मनी का पुनः शस्त्रीकरण करने का दृढ़ निश्चय व्यक्त किया। उसने लिखा था, कि राष्ट्रीय-समाजवाद का लक्ष्य, जर्मन राष्ट्र का इतना प्रादेशिक विस्तार करना है, जिसमें समस्त जर्मन जाति के लोग रह सके। नात्सी-दल के सदस्यों के लिए श्मेन काम्फश् बाईबिल या गीता के समान महत्वपूर्ण बन गयी।
प्रश्न: जर्मनी में नाजीवादी पार्टी एवं उसके कार्यक्रमों के बारे में बताइए।
उत्तर: प्रथम विश्व युद्ध की समाप्ति के बाद सन् 1918 में म्यूनिख आने पर हिटलर की नियुक्ति गुप्तचर विभाग में हुई। अपने काम के सिलसिले में
उसने पता लगाया कि एण्टन डेक्सलर द्वारा 1918 में स्थापित जर्मन श्रमिक-दल (जर्मन वस पार्टी) के नाम से 6 व्यक्तियों का एक गुप्त दल काम कर रहा है। हिटलर इस दल का सातवाँ सदस्य बन गया। वह शीघ्र ही उसका नेता बन गया। अप्रैल, 1920 में जर्मन वर्क्स पार्टी का नाम बदलकर श्राष्ट्रीय समाजवादी जर्मन श्रमिक-दल (National Socialist German Labour Party) जर्मन भाषा में इसे नेशनल सोजिअलिस्टिक ड्यूटस आर्बटर पार्टी (N.S.D.A.P.) कहा जाता था या संक्षेप में श्नाजी दलश् (Nazi Party) रख दिया।
सन् 1920 में ही दल की नीति और कार्यक्रम की प्रथम अधिकृत व्याख्या की गई।
(1) वर्साय संधि को अमान्यता, (2) जर्मनी से छीने गए प्रान्तों की पुनः प्राप्ति, (3) जर्मन सैन्य-शक्ति का प्रसार, (4) जर्मनीकरण को पूर्ण करना और विदेशी हस्तक्षेप को रोकना, (5) समाजवादियों, साम्यवादियों और यहूदियों को कुचलना, एवं (6) भ्रष्टाचार पर आधारित संसदात्मक शासन-प्रणाली का अन्त करना। कुल मिलाकर यह कार्यक्रम राष्ट्रवादी, यहूदी-विरोधी एवं साम्यवाद-विरोधी था। आगे चलकर हिटलर ने श्मेन काम्फश् (Mein Kamp)ि में इन्हीं विचारों को अधिक विकसित रूप में प्रस्तुत किया।
उसने दल के लिए नया ध्वज अपनाया, जिसमें श्लाल पृष्ठभूमि पर स्वास्तिक का चिह्नश् अंकित किया गया। सशस्त्र श्सैनिक दलोंश् का गठन किया, जिसकी दो शाखाएँ थीं। प्रथम शाखा आक्रामक सशस्त्र दलों की थी। जिन्हें “S.A.(एस. ए) (Sturm abteilung) के नाम से सम्बोधित किया जाता था। इन टुकड़ियों के सदस्य भूरे रंग की कमीज (ठतवूद ैीपतज) पहनते थे तथा अपनी बाँहों पर श्स्वास्तिक चिह्न वाले लाल पट्टेश् लगाते थे। दूसरी शाखा, सुरक्षा सैनिकों की . थी, जिसे ‘S.S. (Schuç Stffalen) कहा जाता था। इसमें कुछ चुने हुए सैनिक थे, जो खोपड़ी के चिह्न वाली काली कमीज (Black Shirts) पहनते थे।
प्रश्न: हिटलर और उसके नाजी दल के उत्कर्ष के क्या कारण थे? विवेचना कीजिए।
उत्तर: हिटलर और उसके दल ने इस प्रकार जो अप्रत्याशित सफलता अर्जित की उसके मूल में अनेक गम्भीर आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक कारण निहित थे।
1. वर्साय का अपमान : वर्साय की प्रादेशिक व्यवस्थाओं ने उसके उद्योग-धंधों और व्यापार को बिल्कुल चैपट कर दिया। क्षतिपूर्ति के लिए उसने कोरे चैक पर हस्ताक्षर कर दिए। वर्साय संधि की अपमानजनक शर्तों ने जर्मनों की राष्ट्रीय भावना पर आघात किया जिसके परिणामस्वरूप विजेताओं के प्रति उनका प्रतिशोधात्मक रुख और भी कठोर हो गया। जनता की इस प्रतिशोधात्मक प्रवृत्ति का लाभ उठाते हुए हिटलर ने जर्मनी के राष्ट्रीय गौरव की पुनःप्राप्ति का आकर्षक नारा लगाकर युवकों, सैनिकों, मध्यम और निम्न वर्ग के लोगों को अपने पक्ष में कर लिया।
2. जातीय परम्परा एवं चरित्र : हिटलर और उग्रवादी नाजी दल के उत्कर्ष का एक-दूसरा कारण स्वयं जर्मन जाति की परम्परा थी। जर्मन जाति के स्वाभाविक सैनिक मनोवृत्ति, अनुशासन एवं वीर पूजा की भावना ने हिटलर के उत्कर्ष का मार्ग प्रशस्त किया।
3. संसदात्मक शासन-प्रणाली के विरुद्ध अरुचि : नाजी दल की शक्ति के विकास का तीसरा कारण था प्रजातांत्रिक संसदात्मक शासन प्रणाली के विरुद्ध जर्मन जनता की अरुचि संसदात्मक शासन प्रणाली जिस ढंग से कार्य कर रही थी, अधिकांश जर्मन उसने असंतुष्ट थे क्योंकि उन्हें वे दिन याद थे जब संसद् में अनुशासन और व्यवस्था की दृढ व्यवस्था थी।
4. वाइमर गणतंत्र के प्रति असंतोष : जर्मनी की समस्याओं को हल करने में गणराज्य की अक्षमता भी जर्मनी में तानाशाही की स्थापना का एक प्रमुख कारण थी। नवीन गणराज्य का अपने जन्म के साथ ही वर्साय की अपमानजनक संधि पर हस्ताक्षर करने पड़े, क्षतिपूर्ति और निःशस्त्रीकरण के कड़वे पूंट पीने पड़े, रूर पर फ्रांसीसी अधिकार तथा मुद्रास्फीति का दारूण सहन करना पड़ा।
5. सन 1930 की आर्थिक मंदी : उपर्युक्त कारणों के होने पर भी नाजी पार्टी को वैसी सफलता न मिल पाती, यदि जर्मनी में सन 1930 का भीषण आर्थिक संकट, जो वर्साय संधि का ही एक परिणाम था, उत्पन्न न हुआ होता। वास्तव में गेथार्न हार्डी (Gathorne Hardy : A Short History of International ffAairs) के मतानुसार हिटलर की सफलता का प्रधान कारण वर्साय का अपमान नहीं वरन् हिटलर का राजनीतिक नेतृत्व का गुण तथा आर्थिक संकट की सहवर्ती निराशा थी।
जर्मनी का मध्यम वर्ग और बेकार लोग कटर यहदी-विरोधी थे, क्योंकि उनमें यह भावना घर कर गई थी कि जर्मनी की पराजय यहूदियों के कारण ही हुई थी। हिटलर ने उनकी इस यहूदी विरोधी भावना को उभाड़ा। इसलिए हिट यहूदियों के विरोध के कारण जर्मन नाजी दल की ओर आकृष्ट हुए। वास्तव में आर्थिक संकट ने हिटलर और उसके बाद । को संजीवनी बूंटी प्रदान की। नाजियों ने अधिकांश जर्मनों पर यह छाप छोड़-दी कि नाजी दल ही एक मात्र ऐसा जो जर्मनी को आर्थिक संकट से शीघ्रातिशीघ्र उबारकर उसे उत्तम स्थिति प्रदान कर सकता है।
6 हिटलर का व्यक्तित्व : हिटलर और नाजी दल की शक्ति के विकास का एक सर्वाधिक प्रभावशाली कारण हिटलर का असाधारण व्यक्तित्व था। वह अतिशय प्रतिभावान एवं महान् वक्ता था जिसमें फ्यूहरर (नेता) बनने के सभी गुण मौजूद थे। हार्डी के अनुसार, ष्उसमें विलक्षण प्रतिभा थी, चाहे वह दिव्य न होकर राक्षसी थी।ष्
हिटलर प्रचार के महत्व को खूब अच्छी तरह पहचानता था। सौभाग्य से उसको एक ऐसा व्यक्ति भी मिल गया हो प्रचार-कला में निपण था। वह था उसका प्रचार मंत्री श्डॉ. गोबल्स।श् श्झूठी बात को इतना दोहराओं कि वह सत्य की जाएश् – यह था गोबल्स के प्रचार-सिद्धांत का मूल उद्देश्य जिससे जर्मनी की अन्य पार्टियां अनभिज्ञ थी।
7. आकर्षक कार्यक्रम : हिटलर का अत्यन्त आकर्षक तथा जर्मन जनता की इच्छाओं, परम्पराओं और विचारधाराओं के अनुकूल कार्यक्रम भी उसके उत्कर्ष का एक कारण था। जनता जिन बातों को चिरकाल से सोचती, मानती और चाहती थी, उन्हें हिटलर ने खुल्लमखुल्ला कहना शुरू किया और उन्हें पूरा करने का वचन दिया। चकि हिटलर जर्मन आकांक्षाओं का मूर्त रूप था, अतः उसे जनता, का हार्दिक समर्थन मिला। नाजी दल के विभिन्न जर्मन विचारकों द्वारा प्रतिपादित किए गए उन विचारों को अपनाया जो जनता में लोकप्रिय थे, उदाहरणार्थ – फ्रेड्रिक द्वितीय का सैनिकवाद, हीगल का राज्य की सर्वोच्चता का सिद्धांत, फिक्टे (Fichte) की वीरपूजा व नोवेलिस का ‘शक्ति ही अधिकार है का सिद्धांत, मार्वित्स का यहूदी-विरोध, जर्मनी के प्रसार के लिए अतिरिक्त प्रदेशों की लिस्ट की मांग तथा होस्टन स्टीवर्ट चेम्बरलेन का जर्मन अथवा आर्य जाति की उच्चता का विचार।ष् हिटलर का उग्र राष्ट्रीयता के विचारों से ओतप्रोत कार्यक्रम सहज ही जर्मन जनता में लोकप्रिय हो गया।
8. साम्यवाद का भय : नाजियों की सफलता का एक कारण जर्मनी में साम्यवाद का बढ़ता हुआ खतरा बतलाया जाता है। जर्मन साम्यवादी दल दिन-प्रतिदिन प्रगति कर रहा था। नवम्बर, 1932 के चुनावों में साम्यवादियों ने राइकस्टाग में 100 स्थान प्राप्त कर लिए थे। इसीलिए उसने और उसके दल ने साम्यवादी क्रांति की आशंका बड़े अतिरजित रूप में उपस्थित की। हिटलर की इन बातों का जर्मन जनता पर काफी प्रभाव पड़ा और राष्ट्रीयता के नाम पर नाजी पार्टी जनता का समर्थन पाने में सफल हुई। हिटलर ने जर्मनी में साम्यवाद का हौवा खड़ा कर दिया जबकि साम्यवाद का संकट वस्तुतः इतना उग्र नहीं था।
9. जर्मन युवकों, सेना और नौकरशाही का समर्थन : नाजीवाद की सफलता का एक बड़ा कारण यह था कि जर्मन युवकों, सैनिकों एवं राज-कर्मचारियों ने नाजियों को पर्याप्त समर्थन प्रदान किया। युद्धोपरान्त जर्मनी की दशा इतनी शोचनीय थी कि छात्रों को रोजगार नहीं मिल पा रहा था। इस अवस्था में उन्हें केवल तोड़फोड़ में ही अपने उद्धार का मार्ग दृष्टिगोचर होता था और इसीलिए नाजी दल का कार्यक्रम उनके आकर्षण का केन्द्र बन गया। नाजी दल का सेना और नौकरशाही का सहयोग भी मिला। हिटलर का उग्र राष्ट्रवादी कार्यक्रम और उनकी पुनः शस्त्रीकरण का मांग का सैनिकों में खूब स्वागत हुआ। उन्हें नाजियों का साम्यवाद-विरोध भी आकर्षक लगा।
प्रश्न: एन . हिटलर की विदेश नीति के उद्देश्य क्या थे और उपाय प्राप्त करने के लिए उसने क्या उपाय अपनाए जिसकी परिणति द्वितीय विश्व युद्ध में हुई।
उत्तर: नाजी जर्मनी की विदेश-नीति हिटलर की प्रसिद्ध पुस्तक मीन कैम्फ (Mein Kampf amp) पर आधारित थी। इसक मुल उद्देश्य निम्नलिखित थे –
1. आत्मनिर्णय के सिद्धांत के अनुसार जर्मन जाति के सब व्यक्तियों का एक वृहत्तर जर्मनी में एकीकरण
2. वर्साय एवम् सेंट जर्मेन की शांति-संधियों की समाप्ति
3. लेबेन्सराडम या वास स्थान की प्राप्ति हिटलर ने वस्त्तः पूर्व की ओर बढ़ने की प्राचीन जर्मन नीति को पुनर्जीवित किया।
स्पष्ट है कि हिटलर की विदेश-नीति की धारा मुख्यतः तीन दिशाओं में प्रवाहित होनी थी – (1) वर्साय-संधि का अवहेलना करते हुए एक
समर्थ तलवार का निर्माणय (2) युद्ध कार्य के लिए मित्रों की खोजः एवं (3) क्षेत्रीय विस्तार। इन तीनों दिशाओं में अग्रसर होने के लिए हिटलर
ने धमकी, धौंस, शांति का दम्भ और आडम्बर, संधि-भंग और युद्ध आदि के सभी अन्यायपूर्ण उपायों का अवलम्बन किया। श्विश्व-आधिपत्य
अथवा कुछ नहीं (World Power or Nothing) ही हिटलर का अंतिम लक्ष्य था।
नाजी-जर्मनी की विदेश-नीति के प्रमुख उपाय
1. निःशस्त्रीकरण सम्मेलन एवं राष्ट्रसंघ से विच्छेद (1933)
2. पौलेण्ड-जर्मन अनाक्रमण समझौता (26 जनवरी, 1934)
3. आस्ट्रिया को हड़पने का प्रथम विफल प्रयास (25 जुलाई, 1934)
4. सार की प्राप्ति, वर्साय-संधि की सैनिक धाराओं का भंग और शस्त्रीकरण का प्रारंभ (1935)
5. एंग्लो-जर्मन नौसैनिक समझौता (18 जून, 1935)
6. लोका! संधियां भंग, विसैन्यीकृत राइनलैण्ड का सैन्यीकरण (7 मार्च, 1936)
7. रोम-बर्लिन टोकियो धुरी (Rome-Berlin-Tokyo Axis) का निर्माण (6 नवंबर, 1937)
8. आंश्लूस (Anschluss) या आस्ट्रिया का जर्मनी में विलय (मार्च, 1938)
9. म्युनिख समझौता (29 सितम्बर, 1938)
10. म्यूनिख के उपरान्त चेकोस्लोवाकिया की अन्त्येष्टि
11. मसेल पर आधिपत्य (21 मार्च, 1939)
12. रूस-जर्मन अनक्रमण समझौता (23 अगस्त, 1939)
13. पोलैण्ड पर आक्रमण और विश्व युद्ध का प्रारंभ : वास्तव में जर्मन-पोलिश संघर्ष के बीज तो वर्साय संधि के द्वारा ही बोए जा चुके थे।
सोवियत-जर्मन अनाक्रमण संधि के बाद हिटलर ने पोलैण्ड में अपने उद्देश्यों की पूर्ति के लिए सैनिक कदम उठाने का उपयुक्त अवसर समझा।
1 सितम्बर को, बिना युद्ध की घोषणा किये जर्मन सेनाएं पोलैण्ड में प्रविष्ट हो गयी। 3 सितम्बर को ब्रिटेन ने जर्मनी को चेतावनी दी कि यदि उसने पोलैण्ड से अपनी सेनायें नहीं हुआई तो उसे पोलैण्ड की सहायता के लिए युद्ध की घोषणा करना पड़ेगी। जर्मनी की ओर से कोई संतोषजनक उत्तर न मिलने पर, ब्रिटेन ने युद्ध की घोषणा कर दी। उसी दिन फ्रांस की सरकार की ओर से भी उसी प्रकार का अल्टीमेटम दिया गया था। अतः फ्रांस ने भी, ब्रिटेन के साथ ही युद्ध को घोषणा कर दी।