संस्कृति क्या है ? संस्कृति किसे कहते हैं परिभाषा बताइए अर्थ मतलब sanskriti in hindi definition

sanskriti in hindi definition संस्कृति क्या है ? संस्कृति किसे कहते हैं परिभाषा बताइए अर्थ मतलब ?

संस्कृति क्या है?
‘संस्कृति’ एक अमूर्त पद है, जिसे वैज्ञानिक पदों की भांति परिभाषा की सीमा में बांधना समीचीन प्रतीत नहीं होता। यद्यपि इसकी व्याख्या में मूर्त और अमूर्त दोनों पक्षों का समावेश रहता है, परंतु सर्वप्रथम हमें इस बात पर विचार करना होगा कि सामान्य व्यवहार में लोग संस्कृति का क्या अर्थ निकालते हैं? अधिकांशतः सुरुचि एवं शिष्ट व्यवहार के अर्थ में इसका प्रयोग होता है, लेकिन वस्तुओं के सम्बंध में भी इसका प्रचलन है। यही कारण है कि मुगल काल में निर्मित भवनों, उद्यानों तथा कलाकृतियों को मुगल संस्कृति के रूप में देखा जाता है। इसी प्रकार सामाजिक रीति-रिवाज भी संस्कृति के क्षेत्र में आते हैं।
संस्कृति शब्द संस्कृत की ‘कृ’ धातु से ‘क्टिन’ प्रत्यय एवं ‘सम’ उपसग्र को जोड़कर बना है। सम $ कृ $ क्ति = संस्कृति। वास्तव में संस्कृति शब्द का अर्थ अत्यंत ही व्यापक है।
यूनेस्को के अनुसार ‘‘संस्कृति को आमतौर पर कला का रूप माना जाता है। हम नैतिक मूल्यों और मानवीय सम्बंधों में लोगों के व्यवहार को संस्कृति से जोड़ते हैं। इसे किसी समाज या किसी सामाजिक समूह के हित में किए जागे वाले कार्य, व्यवहार और प्रवृत्ति से भी उपलक्षित किया जाता है। संस्कृति से हमारा तात्पर्य जीवन स्तर, निवास और वेशभूषा, भौतिक अनुशीलन से है। हम भाषा, विचार, कार्य की संस्कृति से इसका आकलन करते हैं।’’
रेडफील्ड के अनुसार, ‘‘संस्कृति, कला और वास्तुकला में स्पष्ट होने वाले परम्परागत ज्ञान का वह संगठित रूप है जो परम्परा के द्वारा संरक्षित होकर मानव-समूह की विशेषता बन जाता है।’’
श्री जवाहर लाल नेहरू के अनुसार ‘‘संस्कृति का अर्थ मनुष्य का आंतरिक विकास और उसकी नैतिक उन्नति है, पारस्परिक सद् व्यवहार है और एक-दूसरे को समझने की शक्ति है।’’
सामाजिक नृविज्ञानी ‘लौकिक’ एवं ‘अलौकिक’ संस्कृति में भेद मानते हैं। लौकिक संस्कृति में शामिल है प्रौद्योगिकी, कला के रूप, वास्तुकला, भौतिक वस्तुएं और घरेलू प्रयोग के सामान, कृषि, व्यापार एवं वाणिज्य, युद्ध एवं अन्य सामाजिक क्रिया-कलाप। अलौकिक संस्कृति से साहित्यिक एवं बौद्धिक परम्पराओं, विश्वासों, मिथकों, दंतकथाओं और वाचक परम्परा के अन्य रूपों का बोध होता है। व्यापक अर्थों में संस्कृति एक संश्लिष्ट समुच्चय है, जिसमें ज्ञान, विश्वास, कला, नैतिकता, विधान, रिवाज एवं समाज के सदस्य के रूप् में मनुष्य द्वारा अपनाई गई आदतों और क्षमताओं का समावेश होता है। संस्कृति के मूलभूत घटक हैं मूल्य, मान्यता,ं, संकेत (जैसे भाषा), लोक साहित्य, धर्म एवं विचारधाराएं।
संस्कृति मनुष्यों के समुदाय में निहित होती है और इसका निकटतम सम्बंध उच्चतम मूल्यों से होता है। समझने के स्तर पर इसे इस प्रकार कह सकते हैं कि किसी समाज में निहित उच्चतम मूल्यों की चेतना, जिसके अनुसार वह समाज अपने जीवन को ढालना चाहता है, संस्कृति कहलाती है।
यह परिभाषा सुकरात के तर्कों के सामने भले न ठहर सके, किंतु इसने हमें एक व्यापक सिद्धांत दिया है, जिसमें उन सभी अभिप्रायों का अंश है, जिनमें संस्कृति शब्द का उपभोग किया जाता है।
संस्कृति को हम तीन आयामों में देखते हैं। प्रथमतः यह एक नियामक प्रणाली या पद्धति है, जिसके द्वारा दण्ड-विधान के रूप में सामाजिक नियंत्राण का कार्य सम्पन्न होता है। इसी को देखते हुए लोग सामान्यतः स्वीकार्य नैतिक/व्यावहारिक प्रतिमानों का अनुकरण करते हैं। द्वितीयतः इसमें संगीत, नृत्य कला, साहित्य एवं अन्य प्रदर्शनकारी माध्यम हैं, जो लोगों के सांस्कृतिक प्रतीक हैं। तृतीयतः यह एक विचार पद्धति प्रदान करती है, जिसके माध्यम से समाज के लोग इस जगत का अर्थपूर्ण विवेचन करते हैं। कालक्रम से ये बातें संस्थागत रूप अपना लेती हैं और सामाजिक ढांचे को प्रभावित करती रहती हैं।
काल के पैमाने पर संस्कृति के तीन भेद हो जाते हैं शाश्वत, युगीन और क्षणिक। शाश्वत संस्कृति प्रकृति द्वारा संचालित काल अर्थात् संवत्सर से पर्वों-त्योहारों में व्यक्त होती है। इसका एक उदाहरण असम का ‘बिहू’ पर्व है सूर्य के चारों ओर पृथ्वी जिस परिभ्रमण पथ पर घूमती है, उसे विषुव वृत्त कहते हैं विषुव पर आधारित पर्व को बिहू कहा गया है। ऋतु परिवर्तन के तीन संधि-कालों में बिहू के तीन पर्व मनाए जाते हैं। इस प्रकार एक ही वार्षिक काल के अनुसार देश के विभिन्न भागों में प्रकृति की अपनी-अपनी विशेषताओं के अनुरूप अलग-अलग रीतियों और नामों से पर्व-उत्सव मनाए जाते हैं। इनमें कालगत एकता और देशगत विविधता होती है। दूसरी है युगीन संस्कृति। यह राज्य व्यवस्था और राजकीय प्रश्रयों के समानांतर विकसित होती है। युगीन परिस्थितियों के दबाव से साहित्य और कला के सृजन अछूते नहीं रहते। ये कभी सत्ता प्रतिष्ठान के विरुद्ध तो कभी पक्ष में आगे बढ़ते हैं, जन जीवन के साथ जुड़कर एक सतत् भूमिका में भी बने रहते हैं। युगीन संस्कृति इतिहास के कालक्रमों में व्याख्या पाती है। इस पर राज्य और वाणिज्य से बनने वाले अर्थ-चक्र का पूरा प्रभाव पड़ता है। इसे राजकीय संस्थाएं और जनाकांक्षा प्रेरित करती हैं। यह मानुषी व्यवस्था पर अधिक निर्भर है। तीसरी है क्षणिक संस्कृति, यह बाजार के तीव्र परिवर्तनों से प्रभावित रहती है। यही उपभोक्ता संस्कृति कही जाती है। इस पर देशी-विदेशी उत्पादों का असर पड़ता है। आज यही सर्वाधिक भूमंडलीकृत हुई है।