Definition of religion in hindi धर्म की परिभाषा क्या है ? धर्म किसे कहते हैं अर्थ मतलब एवं दर्शन ?
धर्म एवं दर्शन
धर्म अपने विस्तृत अर्थों में संस्कृति के समान है और उससे बाहर भी है तथा संकुचित अर्थों में उसका महत्वपूर्ण अवयव बनता है। जहां धर्म आंतरिक अनुभूतियों के महत्व को प्रकट करता है, जिससे जीवन के अर्थ और उद्देश्य का ज्ञान हो, वहां वह संस्कृति की मूल आत्मा होता है और जहां धर्म बाह्य रूप में प्रयुक्त होता है, जिसमें आंतरिक अनुभूतियां प्रतिबिंबित होती हैं, वहां वह संस्कृति का एक अंशमात्र रह जाता है। धर्म उच्चतम सत्य की आंतरिक उपलब्धि के रूप में कभी संस्कृति का विरोधी नहीं हो सकता, किंतु जब वास्तविक धर्म
का हृास होता है और वह सारहीन बन जाता है, तब अक्सर संस्कृति से उसका टकराव होता है।
धर्म निरंतर परिवर्तित होते रहने वाला अनुभव है। इसे हम दैवी सिद्धांत नहीं मान सकते। वरन् यह एक आध्यात्मिक चेतना है। आस्था और आचरण, यज्ञ और अनुष्ठान, रूढ़िवादिता और अधिकार, आत्मावलोकन की कला और दैवी संबंधों के अधीन होते हैं। जब कोई व्यक्ति अपनी आत्मा को बाह्य गतिविधियों से परे रखता है और आंतरिक रूप में एकीकृत करता है तो उसे आश्चर्यजनक, किंतु पवित्र अनुभव होते हैं। इनसे उसे ऊर्जा मिलती है और उसकी स्वयं की सत्ता प्रकट होती है। तर्क और विज्ञान के मानने वाले भी आध्यात्मिक अनुभवों के प्राथमिक एवं सकारात्मक तथ्यों को मान्यता देंगे। यद्यपि हम धर्म विज्ञान के सम्बंध में विभिन्न विचारों एवं मतों का प्रतिपादन कर सकते हैं, किंतु तथ्यों की सत्यता से मुंह नहीं मोड़ सकते। धर्म का जो सबसे बड़ा गुण है बांधना, उसे हम अस्वीकार नहीं कर सकते। धर्म की विशालता, जिसमें सब कुछ समा सकता है, की अनदेखी नहीं कर सकते।
भारत भूमि भी ऐसी ही रही है, जहां धर्म के बाहर एवं भीतर अंतर्वलित करने वाले ऐसे कारक विकसित हुए, जिन्होंने यहां की संस्कृति को नैरन्तर्य का वरदान दिया। यहां जीवन का हर पक्ष धर्म से प्रभावित रहा। ऐसे अवसर भी आए, जब धर्म को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से नए विचारों, मतों एवं व्याख्याओं का सामना करना पड़ा, किंतु तथ्यों के ठोस धरातल पर खड़ा धर्म सब को समेटे निर्बाध गति से समाज और जीवन शैली को संचालित करता रहा।
यूं तो भारत का आदि धर्म हिंदू धर्म ही रहा है, जिसे हम व्यापक अर्थों में हिंदू संस्कृति की संज्ञा देते हैं। कालक्रम से कई मत प्रचलन में आए और धर्म के रूप में प्रतिष्ठित हुए। इन्होंने एक बड़ी आबादी को प्रभावित किया और धार्मिक बहुलवाद का अभिन्न अंग बन गए। हिन्दू, बौद्ध, जैन और सिख धर्म की पुण्य स्थली भारत रही है। कुछ धर्म बाहर से भी आए, लेकिन भारतीय सभ्यता और संस्कृति की ताल-मेली प्रवृत्ति का लाभ लेकर इसका अभिन्न अंग बन गए। मुसलमान, ईसाई, बहाई, जरथ्रुस्ट, पारसी सभी यहां आकर यहीं के बन गए। कुछ स्वयं सीखा और कुछ अपना दिया। तभी एकाकार हो पाए और अपनी उत्तरजीविता बना, रहे।