मुकांदा य मुकंदा क्या है | मुकन्दा – खतना करने का अनुष्ठान (Mukanda in hindi – The Rite of Circumcision)

(Mukanda in hindi The Rite of Circumcision) मुकांदा य मुकंदा क्या है | मुकन्दा – खतना करने का अनुष्ठान  किसे कहते है ?

‘मुकांदा‘ – खतना करने का अनुष्ठान (‘Mukanda’ ~ – The Rite of Circumcision)
इससे पहले कि हम मुकांदा का वर्णन करें, हम यह देख लें कि टर्नर किस प्रकार अनुष्ठान की व्याख्या करता है और उनका अध्ययन करता है। टर्नर अनुष्ठान की व्याख्या इस प्रकार करता हैः निर्धारित औपचारिक व्यवहार जो आम जीवन से संबंधित न होकर रहस्यमय शक्तियों से संबंधित है। दूसरे शब्दों में आनुष्ठानिक स्थिति में विद्यमान तत्व हैं, कुछ निर्धारित व्यवहार अवसर की पवित्रता और अलौकिकता पर विश्वास और इसके फलस्वरूप अलौकिक शक्तियों को प्रकट करने की योजना बनाना ।

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अनुष्ठान का अध्ययन करते हुए टर्नर क्या मानदंड ध्यान में रखता हैं। वह तीन मानदंड मानता है। पहला है बाहरी दिखावा । यह पूर्णतया विवरणात्क मानदंड है। दूसरा हैं अर्थनिरूपण यानि भाग लेने वालों द्वारा बनाई गई बाहरी दिखावे की व्याख्या और तीसरा मानदंड है मानवविज्ञानियों की व्याख्या जो कि बहुधा भाग लेने वालों की व्याख्या से भिन्न होती है। टर्नर का मानना है कि मानवविज्ञानिकों की स्थिति अनोखी है। वह उस समाज के बारे में ऐसी बातें जान सकता है जो उसके सदस्य भी अक्सर जान नहीं पाते।

इन तीन मानदंडों की झलक टर्नर द्वारा किये गये मुकांदा अनुष्ठान के अध्ययन में साफ दिखाई देती है। वह मुकांदा को अनेक प्रसंगों की श्रृंखला के रूप में प्रस्तुत करता है, जो बाहरी दिखावे पर आधारित है, साथ-साथ भाग लेने वालों की टिपणियाँ और अर्थनिरूपण भी दिया गया है। टर्नर के एक देम्बू सूचक मकोना ने मुकांदा अनुष्ठान के पीछे छिपे मिथक के बारे में उसे बताया। कहानी यह है कि एक बार एक माँ ने अपने बच्चे को घास में खेलने के लिये छोड़ा। नोकीले घास से बच्चे के लिंग की त्वचा कट गई। यह देखकर गाँव के बड़ों ने रेजर से खलड़ी पूरी तरह काट दी। घाव भर गया और सारे पुरुषों ने तब इस व्यवहार को अपनाने का निर्णय लिया। इस प्रकार मुकांदा ‘स्वास्थ्यकारी‘ प्रक्रिया है। खलड़ी के नीचे मैल जम जाता है। इसलिए पुरुषों को तब मैला माना जाता है जब तक उनका खतना न हो। खतना के बाद पुरुष पवित्र बन जाता है क्योंकि जो छिपा और मैला था वह अब साफ है और देखने योग्य है। मुकांदा का सामाजिक महत्व यह है कि लड़के को माँ से अलग कर पिता के साथ उसकी आनुष्ठानिक पहचान कराई जाती है।

जैसा कि आप पढ़ चुके हैं, मुकांदा समूह आधारित क्रिया है, अर्थात एक साथ कई लड़कों का खतना किया जाता है। इस समारोह में भाग लेने वाली सबसे महत्वपूर्ण सामाजिक इकाई पड़ोसी ग्रामों की है जिनकी संख्या दो से लेकर बारह तक हो सकती है। जैसा कि आप पढ़ चुकें है। ग्रामों का लंबात-चैड़ा इतिहास नहीं होता। वे अक्सर टूट कर बिखर जाते हैं, अतः पड़ोस अपने आप में बहुत ही अस्थाई इकाई है। प्रत्येक पड़ोस में कम से कम 2 ग्राम अपने आप को श्रेष्ठ मानते हैं। मुकांदा समारोह का आयोजन कर गाँव का सरपंच अपनी श्रेष्ठता सिद्ध कर सकता है। सफल मुकांदा समारोह आयोजित कर वह दूसरों पर नैतिक विजय प्राप्त कर सकता है। पड़ोस में आपसी प्रतिस्पर्धा और चालों को गौर से देखकर टर्नर इस नतीजे पर पहुँचा कि मुकांदा एक अनुष्ठान मात्र न होकर राजनीतिक शक्ति का प्रतीक है। इन प्रतिस्पर्धाओं की बारीकियों पर हम ध्यान नहीं देंगे, लेकिन हमें इस बात पर ध्यान देना चाहिये कि इनके पीछे एक राजनीतिक पहलू है। अब आइए इस अनुष्ठान के बारे में पढ़े।

मुकांदा अनुष्ठान के तीन प्रमुख भाग होते हैं: ये हैं 1) ‘क्विंगत-इजा‘ अर्थात प्रवेश का चरण 2) ‘मुंगत-उला‘ अर्थात एकांत का चरण, और 3) ‘क्विदिशा‘ अर्थात आम जीवन पुनः आरंभ करने की विधियाँ।

मुकांदा का आरंभ इस प्रकार होता है कि सबसे विशिष्ट खतना करने वाले को पड़ोस के बुजुर्ग (अपनी स्त्रियों की सहमति के साथ) आमंत्रण देते है। नव दीक्षितों (Novices) में से सबसे बड़े और हट्टे-कट्टे लड़के को उनके पास भेजा जाता है। लड़का जिसे काम्बोजी कहते हैं, खतना करने वाले को गाली देता है। ‘‘बुडढे तुम आलसी हो गये हो और तुम्हारा चाकू भोथरा । अब लड़कों का खतना करने में तुम किसी काम के नहीं हो। मुकांदा में तुम्हें क्यों बुलाएँ, भला?‘‘ (टर्नर, 167: 168)। बहुत क्रोधित होने का नाटक करते हुए खतना करने वाला काम्बोजी को आदेश देता है कि वह पड़ोस के सरपंचों को मुकांदा की तैयारियाँ आरंभ करने को कहे। ‘स्थापक‘ जिसका काम है प्रवेश चरण (किवंग-इजा) के लिये खाने-पीने का आयोजन करना, अपने काम में लग जाता है। इस प्रकार औपचारिक रूप से मुकांदा का आरंभ होता है अब से नव दीक्षितों को खाद्य-निषेध से संबंधित कुछ नियमों का पालन करना होगा।

आरंभिक अवस्था (The Stage of Induction)
अनुष्ठानों के आरंभ से पहले खाने का सामान और शराब मेजबान गाँव में जमा किया जाता है और नव दीक्षित और उनके रिश्तेदारों के रहने के लिये एक मैदान तैयार किया जाता है। खतना करने के एक दिन पहले खतना करने वाले कुछ पेड़ों के पत्ते और छाल से कू-कोलिश दवा बनाते हैं। कू-कोलिश का प्रयोग मुकांदा की अनेक विधियों में किया जाता है। इसका सबसे महत्वपूर्ण तत्व है ‘‘चिकोली‘‘ पेड़ की छाल। धार्मिक दृष्टि से यह पेड़ अत्यंत महत्वपूर्ण है, यह लिंग और शौर्य, शिकार में निपुणता और सहनशक्ति जैसे मर्दाना गुणों का प्रतीक माना जाता है। खतना करने वाले यह दवा बनाते हुए गाते और नाचते हैं। ये गाने नव दीक्षितों की कमजोरी और माँ से जुदाई के बारे में होते हैं।

खतना करने वाले दवा बनाते हैं और नव दीक्षित अपने रिश्तेदारों के साथ इकट्ठे होते हैं। उस रात भव्य नाच-गाने का आयोजन होता है। नव दीक्षित के पैर जमीन पर न लगें इसलिए उनके माता-पिता उन्हें अपने कंधों पर उठाते हैं। ध्यान रहे, वे अपनी जनजाति के सबसे महत्वपूर्ण अनुष्ठानों में से एक में भाग ले रहे हैं इसलिए उन्हें एक खास दर्जा दिया जा रहा है। अगले दिन सुबह-सुबह उन्हें उनकी माताओं और अनुष्ठान में भाग लेने वाले सभी अधिकारियों को ‘क-कुलिश‘ दवा लगाई जाती है। मछली और कैसवा का भोजन खाने के बाद वे ‘खतना स्थल‘ की ओर प्रस्थान करते हैं। डंडों से बने दरवाजे (मुकुला) से प्रवेश कर वे अपने कपड़े उतार कर उन्हें मुकुला डंडों पर टाँग देते है । यह घटना बचपन के छूटने और मर्यों की दुनिया में प्रवेश करने की प्रतीक है। खतना स्थल पर एक मुकुला लकड़ी रखी जाती है। लड़कों को पत्तों के बिछौनों पर लिटाया जाता है। उनकी माताएँ ऐसे रोने-गाने लगती है, मानों किसी की मौत हुई हो। यह बड़ी रोचक बात है कि खतना स्थल को ‘इफवि‘ या ‘चिफ-विलू‘ अर्थात मरण-स्थल कहा जाता है । खतना करने वाले लड़कों का खतना कर उन्हें मुकुला लकड़ी पर बिठाते हैं। घास की पट्टियाँ उनके घावों से खून सोख लेती हैं उनके लिंग रस्सी से बाँध दिए जाते हैं ताकि वे शरीर से रगड़ कर दर्द न करें। मीठी शराब, कैसवा का हलवा और फलियाँ खाने के बाद उन्हें वापस मैदान में लाया जाता है जहाँ उनकी रोती हुई माताएँ उनका स्वागत करती हैं। इस बात पर ध्यान दिया जाए कि महिलाओं का खतना स्थल के पास जाना सख्त मना है। आपने देखा कि किस प्रकार पुरुषों की दुनिया और स्त्रियों एवं छोटे बच्चों की दुनिया इन विधियों द्वारा अलग-अलग रखी जाती हैं। मुकांदा के अगले दो चरणों पर चर्चा करने से पहले आइए इस भाग का पुनरावलोकन करें।

बोध प्रश्न 2
प) ‘मुकांदा‘ को स्थापित करने के प्रयास का अर्थ है देम्बू के मुखियों का शक्ति परीक्षण। अपना उत्तर लगभग पाँच पंक्तियों में स्पष्ट करें।
पप) क-कोलिश दवाई में ‘चिकोली‘ वृक्ष का प्रयोग क्यों किया जाता है ? लगभग दो पंक्तियों में अपना उत्तर स्पष्ट कीजिए।
पपप) खतना करने वाले के गीतों की मुख्य विषय वस्तु क्या है? अपना उत्तर दो पंक्तियों में दीजिए।
पअ) ‘‘मुकांदा‘‘ द्वार में प्रवेश करना किस बात का प्रतीक माना जाता है। अपना उत्तर पाँच पंक्तियों में दीजिए।

बोध प्रश्न 2 उत्तर
प) पड़ोस के गाँव के प्रमुख व्यक्ति चारित्रिक सर्वोच्चता एवं प्रतिष्ठा के लिए एक-दूसरे से प्रतिस्पर्धा करते हैं। ‘मुकांदा‘ का सफलतापूर्वक प्रदर्शन करके प्रमुख व्यक्ति अन्य व्यक्तियों के ऊपर चारित्रिक सर्वोच्चता सिद्ध कर सकता है।
पप) चिकोली का पेड़ नर लिंग, लिंग और स्त्री के साहस, सहनशक्ति एवं शिकार करने की कला का प्रतीक है। इसलिए इसका प्रयोग कू-कालिश औषधियों में किया जाता है।
पपप) गीतों का मुख्य विषय नव दीक्षितों पर प्रभाव डालना है और उन्हें उनकी माँ से अलग करना है ।
पअ) ‘मुकांदा‘ द्वार में प्रवेश का अर्थ बाल्यावस्था की समाप्ति और पुरुष समूह में प्रवेश को उजागर करता है।